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राजद्रोह के ब्रिटिशकालीन कानून पर फिर बहस
-जयसिंह रावत
Author and Journalist Jay Singh Rawat |
दिल्ली की केजरीवाल
सरकार द्वारा कन्हैया
कुमार सहित 9 लोगों
के खिलाफ भारतीय
दंड संहिता की
धारा 124 ए के
तहत देशद्रोह का
मुकदमा चलाने की अनुमति
दिये जाने के
बाद केजरीवाल पर
राजनीतिक अवसरवादिता का आरोप
तो लग ही
रहा है, लेकिन
इस कानून के
औचित्य पर यह
कहते हुये एक
बार फिर बहस
शुरू हो गयी
है कि अंग्रेजों
द्वारा अपने शासन
के खिलाफ उठ
रही आजादी की
आवाजों को दबाने
के लिये जो
कानून बनाया गया
था उसका आजाद
लोकतांत्रिक भारत में
क्या औचित्य है।
इससे पहले 2016 में
भी रामचन्द्र गुहा
समेत 49 बुद्धिजीवियों द्वारा प्रधानमंत्री को
पत्र लिखे जाने
पर उनके खिलाफ
भी इसी धारा
का उपयोग किये
जाने पर देश
व्यापी बहस शुरू
हुयी थी। इस
सम्बन्ध में विधि
आयोग की टिप्पणी
और सुप्रीम कोर्ट
के पिछले फैसलों
का भी हवाला
दिया जा रहा
है।
केजरी ने टुकड़े-टुकड़े गैंग का अस्तित्व मान ही लिया
हालांकि संसद में
इसी वर्ष केन्द्र
सरकार ने किसी
टुकड़े-टुकड़े गैंग
का अस्तित्व देश
में होने से
साफ इंकार कर
दिया था लेकिन
अब लगता है
कि दिल्ल्ी के
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तीन
साल से अधिक
समय तक चिन्तन
करने के बाद
टुकड़े-टुकड़े वाली
आरएसएस थ्योरी अंगीकार कर
ही ली। दिल्ली
सरकार के गृह
विभाग के डिप्टी
सेंक्रेटरी ने 27 फरबरी को
दंड प्रक्रिया संहिता
की धारा 196 की
उप-धारा (1) द्वारा
प्रदान की गई
शक्तियों का प्रयोग
करते हुये (1) कन्हैया
कुमार (2) सैय्यद उमर खालिद
(3) अनिर्बान भट्टाचार्य (4) एक्विब हुसैन (5) मुजीब
हुसैन टैटू (6) मुनीब
हुसैन गोदना (7) उमैर
गुल (8) रेयाज रसूल (9) बशारत
अली (10) खालिद बशीर भट
के खिलाफ भारतीय
दंड संहिता 1860 की
धारा 124 ए एवं
120 बी के तहत
सजा योग्य अपराध
के आरोप में
मुकदमा चलाने की अनुमति
दिल्ली पुलिस को दे
दी। दिल्ली पुलिस
इस अलनुमति का
इंतजार लम्बे अर्से से
कर रही थी
जो कि उसे
मनचाही मुराद के रूप
में मिल गयी।
1870 से चल रहा है अंग्रेजों का राजद्रोह कानून
जवाहर लाल नेहरू
विश्व विद्यालय में
अफजाल गुरू को
फांसी की बरसी
पर 9 फरबरी 2016 को
आयोजित कथित सभा
में देश विरोधी
नारे नारे लगाने
के मामले में
भाकपा से संबंधित
कन्हैया कुमार सहित 9 लोगों
के खिलाफ मुकदमा
चलाने की अनुमति
देने पर वामपंथी
और कुछ बुद्धिजीव
तो सवाल उठा
ही रहे हैं
लेकिन कभी केजरीवाल
के बहुत करीबी
और थिंक टैंक
रहे आशुतोष जैसे
उनके पुराने सहयोगी
भी केजरी की
नीयत पर सवाल
उठाने के साथ
ही आइपीसी की
धारा 124 ए के
दुरूपयोग का आरोप
लगा रहे हैं।
इस धारा के
नवीनतम् उपयोग पर चर्चा
से पहले इस
धारा और इसकी
पृष्ठभूति पर प्रकाश
डालना जरूरी है।
दरअसल आइपीसी की
धारा 124ए के
अनुसार, बोले या
लिखे गए शब्दों
या संकेतों द्वारा
या दृश्य प्रस्तुति
द्वारा, जो कोई
भी भारत में
विधि द्वारा स्थापित
सरकार के प्रति
घृणा या अवमान
पैदा करेगा या
पैदा करने का
प्रयत्न करेगा, असंतोष (डिसएफेक्शन)
उत्पन्न करेगा या करने
का प्रयत्न करेगा,
उसे आजीवन कारावास
या तीन वर्ष
तक की कैद
और जुर्माना अथवा
दोनों से दंडित
किया जाएगा। जब
वर्ष 1860 में भारत
में भारतीय दंड
संहिता (आइपीसी) लागू
की गयी, तो
राजद्रोह के कानून
को उसमें शामिल
नहीं किया गया।
जब वर्ष 1870 में
सर जेम्स स्टीफन
को अपराध से
निपटने के लिये
एक विशिष्ट खंड
की आवश्यकता महसूस
हुई तो उन्होंने
आईपीसी (संशोधन) अधिनियम, 1870 के
तहत धारा 124ए
को आइपीसी में
शामिल किया।
गांधी जैसे राष्ट्रभक्तों ने भी झेला राजद्रोह का कानून
ब्रिटिश सरकार ने इस
कानून का उपयोग
कई स्वतंत्रता सेनानियों
को दोषी ठहराने
और उन्हें सजा
देने के लिये
किया था। भारत
की स्वतंत्रता के
कट्टर समर्थक बाल
गंगाधर तिलक पर
तो दो बार
राजद्रोह का आरोप
लगाया गया था।
इस कानून के
तहत महात्मा गांधी
पर भी यंग
इंडिया में उनके
लेखों के कारण
राजद्रोह का मुकदमा
दायर किया गया
था। तब गांधी
जी ने अपने
ऊपर 124 ए के
तहत मुकदमा चलाये
जाने को सम्मान
की बात बताया
था। सर्वप्रथम इस
कानून का प्रयोग
वर्ष 1891 में एक
अखबार के संपादक
जोगेंद्र चंद्र बोस के
विरुद्ध किया गया,
क्योंकि उन पर
आरोप था कि
उन्होंने ब्रिटिश सरकार के
विरुद्ध लेख लिखा
था।
विधि आयोग ने भी इस कानून के औचित्य पर सवाल उठाया
लोकतांत्रिक
भारत की मौजूदा
परिस्थितियों में आइपीसी
की धारा 124ए
औपनिवेशिक विरासत का एक
अवशेष मानकर इसके
जारी रहने पर
सवाल उठाये जाते
रहे हैं। विधि
आयोग ने भी
‘देशद्रोह’ विषय पर
अपने 2018 के दृष्टि
पत्र में कहा
था कि देश
या इसके किसी
पहलू की आलोचना
को देशद्रोह नहीं
माना जा सकता
और यह आरोप
उन मामलों में
ही लगाया जा
सकता है जहां
इरादा हिंसा और
अवैध तरीकों से
सरकार को अपदस्थ
करने का हो।
उस चर्चित दृष्टिपत्र
में वैयक्तिक कानूनों
समेत कई कानूनों
पर आयोग ने
विचार आमंत्रित किये
थे। उसमें आयोग
ने यह भी
कहा था कि
देशद्रोह से संबंधित
आईपीसी की धारा
‘124 ए’ के संशोधन
का अध्ययन करने
के लिए, इसे
ध्यान में रखा
जाना चाहिए कि
आईपीसी में इस
धारा को जोड़ने
वाले ब्रिटेन ने
दस साल पहले
देशद्रोह के प्रावधानों
को हटा दिया
है। बोलने और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
का समर्थन करते
हुए आयोग ने
कहा कि देशभक्ति
का कोई एक
पैमाना नहीं है।
लोगों को अपने
तरीके से देश के
प्रति स्नेह प्रकट
करने की स्वतंत्रता
होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा सरकार का विरोध देशद्रोह नहीं
चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा
सहित 49 प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी को भीड़
संबंधी हिंसा अथवा मॉबलिंचिंग
पर चिंता जाहिर
करते हुए पत्र
लिखा था तो
बिहार की एक
निचली अदालत ने
सुनवाई के दौरान
उनके खिलाफ आईपीसी
की धारा 124ए
के तहत राजद्रोह
का मामला दर्ज
करने का निर्देश
दिया था। यह
मामला जब सुप्रीमकोर्ट
गया तो अदालत
ने इसे अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता का
अतिक्रमण माना। कार्टूनिस्ट और
एक्टिविस्ट असीम त्रिवेदी
को वर्ष 2010 में
राजद्रोह के आरोप
में गिरफ्तार किया
गया था। लेकिन
वह भी अदालत
से बरी कर
दिये गये। सन्
1962 में केदारनाथ बनाम स्टेट
ऑफ बिहार के
मामले में फैसला
सुनाते हुए सुप्रीम
कोर्ट की पांच
सदस्यीय संविधान पीठ ने
कहा था कि
सरकार के कामकाज
की आलोचना करना
राजद्रोह नहीं हैं।
अगर किसी के
भाषण या लेख
से किसी तरह
की हिंसा, असंतोष
या फिर समाज
में अराजकता नहीं
फैलती है, तो
यह राजद्रोह नहीं
माना जा सकता
है। सुप्रीम कोर्ट
की संवैधानिक बेंच
ने यह व्यवस्था
दी थी कि
देशद्रोह के मामले
में हिंसा को
बढ़ावा देने का
तत्व मौजूद होना
चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने
1995 में बलवंत सिंह बनाम
स्टेट ऑफ पंजाब
के केस में
व्यवस्था दी थी
कि महज नारेबाजी
किए जाने से
राजद्रोह का मामला
नहीं बनता।
चाह कर भी इस कानून को कोई नहीं हटा पाया
इस कानून का शुरू
से ही दुरुपयोग
होता रहा है
फिर भी राष्ट्रीय
सुरक्षा और देश
की अखण्डता को
ध्यान में रखते
हुये किसी भी
सरकार ने इसे
समाप्त करने का
प्रयास नहीं किया।
पंडित जवाहरलाल नेहरू
ने एक बार
संसद में कहा
था कि धारा
124ए का संबंधित
दंडात्मक प्रावधान अत्यधिक आपत्तिजनक
और अप्रिय है
एवं जितनी जल्दी
हम इससे छुटकारा
पा लें उतना
बेहतर होगा। लेकिन
वह भी इस
कानून से छुटकारा
नहीं दिला पाये।
सुप्रीमकोर्ट ने भी
इस कानून के
दुरुपयोग को रोकने
का प्रयास अवश्य
किया मगर इसे
असंवैधानिक करार देने
से इंकार कर
दिया था। राजद्रोह
कानून के हिमायतियों
का कहना है
कि आइपीसी की
धारा 124ए में
राष्ट्र विरोधी, अलगाववादी और
आतंकवादी तत्त्वों का मुकाबला
करने की क्षमता
है। इसी कारण
इस कानून के
दुरुपयोग को रोकने
के लिए सीआरपीसी
की धारा-196 में
प्रावधान किया गया
है कि देशद्रोह
से संबंधित मामले
में दर्ज मामले
में पुलिस को
चार्जशीट के वक्त
मुकदमा चलाने के लिए
केंद्र अथवा राज्य
सरकार की संबंधित
अथॉरिटी से मंजूरी
लेना जरूरी है
और इसी प्रावधान
के तहत केजरीवाल
ने तीन साल
से अधिक समय
तक कन्हैंया के
खिलाफ मुकदमे की
अनुमति देने सम्बन्धी
फाइल को दबाने
के बाद अन्ततः
मुकदमें की अनुमति
दे दी। जबकि
उन्होंने स्वयं अपने मैजिस्ट्रेट
से जेएनयू की
नारेबाजी की घटना
की जांच कराई
थी जिसमें कन्हैया
को दोषी नहीं
पाया गया था।
लेकिन जब उन्हें
लगा कि केन्द्र
की मोदी सरकार
और सत्ताधारी भाजपा
का विरोध करने
से कुछ हासिल
नहीं होगा और
उनके सुर में
सुर मिलाने से
ही उनकी भावी
राजनीति दीर्घगामी होगी तो
उन्होंने भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के
नारे को मौन
सहमति दे दी।
केजरीवाल का राजनीतिक दर्शन बदलता रहता है
अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक
व्यक्तित्व का सबसे
पेचीदा पहलू यह
है कि उन्होंने
कभी भी अपनी
राजनीतिक वैचारिक धारणा का
खुलासा नहीं किया।
क्या वह अराजकतावादी
है, जैसा कि
भाजपा के कुछ
नेता दावा करते
रहे हैं? क्या
वह एक शहरी
माओवादी हैं, जो
कुछ अन्य लोग
उनके बारे में
प्रचारित करते रहे
हैं? क्या वह
आरएसएस की ’बी’ टीम है, जैसा
कि कुछ माओवादी
मानते हैं? या
वह इस सब
का मिश्रण हैं
जो कि अपनी
राजनीतिक नैया सत्ता
में बने रहने
के लिये किसी
भी ओर मुड़
कर उसी अनुकूल
तैरने लगती है।
दिल्ली चुनाव रामभक्तों के
मुकाबले के लिये
हनुमान की एंट्री
किसी और नेता
ने नहीं बल्कि
केजरीवाल ने कराई
थी। अरविंद केजरीवाल
ने दिल्ली चुनाव
से पहले अपनी
हनुमान भक्ति सार्वजनिक नहीं
की थी। पिछले
चुनावों में उन्होंने
इस तरह हनुमान
चालीसा का गायन
किया और ना
ही वह किसी
हनुमान मंदिर गये जबकि
उस समय हनुमान
मंदिर उनके कार्यालयों
के निकट थे।
माना जा रहा
है कि आप
पार्टी बीजेपी के कट्टर
हिंदुत्व का मुकाबले
के लिए दूसरी
पार्टियां भी सॉफ्ट
हिंदुत्व के जरिए
अपने सियासी वजूद
को बनाए रखना
चाहती है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून,
उत्तराखण्ड।
मोबाइल-9412324999
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