Search This Blog

Thursday, March 5, 2020

सरकार  या सरकारी  दल  का विरोध राष्ट्र द्रोह नहीं 




https://www.amarujala.com/columns/blog/debate-start-again-on-british-law-of-sedition-under-the-pretext-of-kanhaiya-and-kejriwal-politics?src=top-lead
राजद्रोह के ब्रिटिशकालीन कानून पर फिर बहस
-जयसिंह रावत
Author and Journalist Jay Singh Rawat
दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा कन्हैया कुमार सहित 9 लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124 के तहत देशद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति दिये जाने के बाद केजरीवाल पर राजनीतिक अवसरवादिता का आरोप तो लग ही रहा है, लेकिन इस कानून के औचित्य पर यह कहते हुये एक बार फिर बहस शुरू हो गयी है कि अंग्रेजों द्वारा अपने शासन के खिलाफ उठ रही आजादी की आवाजों को दबाने के लिये जो कानून बनाया गया था उसका आजाद लोकतांत्रिक भारत में क्या औचित्य है। इससे पहले 2016 में भी रामचन्द्र गुहा समेत 49 बुद्धिजीवियों द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखे जाने पर उनके खिलाफ भी इसी धारा का उपयोग किये जाने पर देश व्यापी बहस शुरू हुयी थी। इस सम्बन्ध में विधि आयोग की टिप्पणी और सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का भी हवाला दिया जा रहा है।
केजरी ने टुकड़े-टुकड़े गैंग का अस्तित्व मान ही लिया
हालांकि संसद में इसी वर्ष केन्द्र सरकार ने किसी टुकड़े-टुकड़े गैंग का अस्तित्व देश में होने से साफ इंकार कर दिया था लेकिन अब लगता है कि दिल्ल्ी के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तीन साल से अधिक समय तक चिन्तन करने के बाद टुकड़े-टुकड़े वाली आरएसएस थ्योरी अंगीकार कर ही ली। दिल्ली सरकार के गृह विभाग के डिप्टी सेंक्रेटरी ने 27 फरबरी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 की उप-धारा (1) द्वारा प्रदान की गई शक्तियों का प्रयोग करते हुये (1) कन्हैया कुमार (2) सैय्यद उमर खालिद (3) अनिर्बान भट्टाचार्य (4) एक्विब हुसैन (5) मुजीब हुसैन टैटू (6) मुनीब हुसैन गोदना (7) उमैर गुल (8) रेयाज रसूल (9) बशारत अली (10) खालिद बशीर भट के खिलाफ भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 124 एवं 120 बी के तहत सजा योग्य अपराध के आरोप में मुकदमा चलाने की अनुमति दिल्ली पुलिस को दे दी। दिल्ली पुलिस इस अलनुमति का इंतजार लम्बे अर्से से कर रही थी जो कि उसे मनचाही मुराद के रूप में मिल गयी।
1870 से चल रहा है अंग्रेजों का राजद्रोह कानून
जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय में अफजाल गुरू को फांसी की बरसी पर 9 फरबरी 2016 को आयोजित कथित सभा में देश विरोधी नारे नारे लगाने के मामले में भाकपा से संबंधित कन्हैया कुमार सहित 9 लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने पर वामपंथी और कुछ बुद्धिजीव तो सवाल उठा ही रहे हैं लेकिन कभी केजरीवाल के बहुत करीबी और थिंक टैंक रहे आशुतोष जैसे उनके पुराने सहयोगी भी केजरी की नीयत पर सवाल उठाने के साथ ही आइपीसी की धारा 124 के दुरूपयोग का आरोप लगा रहे हैं। इस धारा के नवीनतम् उपयोग पर चर्चा से पहले इस धारा और इसकी पृष्ठभूति पर प्रकाश डालना जरूरी है। दरअसल आइपीसी की धारा 124 के अनुसार, बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, जो कोई भी भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष (डिसएफेक्शन) उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, उसे आजीवन कारावास या तीन वर्ष तक की कैद और जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा। जब वर्ष 1860 में भारत में भारतीय दंड संहिता (आइपीसी)  लागू की गयी, तो राजद्रोह के कानून को उसमें शामिल नहीं किया गया। जब वर्ष 1870 में सर जेम्स स्टीफन को अपराध से निपटने के लिये एक विशिष्ट खंड की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्होंने आईपीसी (संशोधन) अधिनियम, 1870 के तहत धारा 124 को आइपीसी में शामिल किया।
गांधी जैसे राष्ट्रभक्तों ने भी झेला राजद्रोह का कानून
ब्रिटिश सरकार ने इस कानून का उपयोग कई स्वतंत्रता सेनानियों को दोषी ठहराने और उन्हें सजा देने के लिये किया था। भारत की स्वतंत्रता के कट्टर समर्थक बाल गंगाधर तिलक पर तो दो बार राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। इस कानून के तहत महात्मा गांधी पर भी यंग इंडिया में उनके लेखों के कारण राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था। तब गांधी जी ने अपने ऊपर 124 के तहत मुकदमा चलाये जाने को सम्मान की बात बताया था। सर्वप्रथम इस कानून का प्रयोग वर्ष 1891 में एक अखबार के संपादक जोगेंद्र चंद्र बोस के विरुद्ध किया गया, क्योंकि उन पर आरोप था कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लेख लिखा था।
विधि आयोग ने भी इस कानून के औचित्य पर सवाल उठाया
लोकतांत्रिक भारत की मौजूदा परिस्थितियों में आइपीसी की धारा 124 औपनिवेशिक विरासत का एक अवशेष मानकर इसके जारी रहने पर सवाल उठाये जाते रहे हैं। विधि आयोग ने भीदेशद्रोहविषय पर अपने 2018 के दृष्टि पत्र में कहा था कि देश या इसके किसी पहलू की आलोचना को देशद्रोह नहीं माना जा सकता और यह आरोप उन मामलों में ही लगाया जा सकता है जहां इरादा हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को अपदस्थ करने का हो। उस चर्चित दृष्टिपत्र में वैयक्तिक कानूनों समेत कई कानूनों पर आयोग ने विचार आमंत्रित किये थे। उसमें आयोग ने यह भी कहा था कि देशद्रोह से संबंधित आईपीसी की धारा ‘124 के संशोधन का अध्ययन करने के लिए, इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आईपीसी में इस धारा को जोड़ने वाले ब्रिटेन ने दस साल पहले देशद्रोह के प्रावधानों को हटा दिया है। बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए आयोग ने कहा कि देशभक्ति का कोई एक पैमाना नहीं है। लोगों को अपने तरीके से  देश के प्रति स्नेह प्रकट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा सरकार का विरोध देशद्रोह नहीं
चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा सहित 49 प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भीड़ संबंधी हिंसा अथवा मॉबलिंचिंग पर चिंता जाहिर करते हुए पत्र लिखा था तो बिहार की एक निचली अदालत ने सुनवाई के दौरान उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 के तहत राजद्रोह का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया था। यह मामला जब सुप्रीमकोर्ट गया तो अदालत ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण माना। कार्टूनिस्ट और एक्टिविस्ट असीम त्रिवेदी को वर्ष 2010 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। लेकिन वह भी अदालत से बरी कर दिये गये। सन् 1962 में केदारनाथ बनाम स्टेट ऑफ बिहार के मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि सरकार के कामकाज की आलोचना करना राजद्रोह नहीं हैं। अगर किसी के भाषण या लेख से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर समाज में अराजकता नहीं फैलती है, तो यह राजद्रोह नहीं माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने यह व्यवस्था दी थी कि देशद्रोह के मामले में हिंसा को बढ़ावा देने का तत्व मौजूद होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में बलवंत सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के केस में व्यवस्था दी थी कि महज नारेबाजी किए जाने से राजद्रोह का मामला नहीं बनता।
चाह कर भी इस कानून को कोई नहीं हटा पाया
इस कानून का शुरू से ही दुरुपयोग होता रहा है फिर भी राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की अखण्डता को ध्यान में रखते हुये किसी भी सरकार ने इसे समाप्त करने का प्रयास नहीं किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार संसद में कहा था कि धारा 124 का संबंधित दंडात्मक प्रावधान अत्यधिक आपत्तिजनक और अप्रिय है एवं जितनी जल्दी हम इससे छुटकारा पा लें उतना बेहतर होगा। लेकिन वह भी इस कानून से छुटकारा नहीं दिला पाये। सुप्रीमकोर्ट ने भी इस कानून के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास अवश्य किया मगर इसे असंवैधानिक करार देने से इंकार कर दिया था। राजद्रोह कानून के हिमायतियों का कहना है कि आइपीसी की धारा 124 में राष्ट्र विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का मुकाबला करने की क्षमता है। इसी कारण इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा-196 में प्रावधान किया गया है कि देशद्रोह से संबंधित मामले में दर्ज मामले में पुलिस को चार्जशीट के वक्त मुकदमा चलाने के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकार की संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेना जरूरी है और इसी प्रावधान के तहत केजरीवाल ने तीन साल से अधिक समय तक कन्हैंया के खिलाफ मुकदमे की अनुमति देने सम्बन्धी फाइल को दबाने के बाद अन्ततः मुकदमें की अनुमति दे दी। जबकि उन्होंने स्वयं अपने मैजिस्ट्रेट से जेएनयू की नारेबाजी की घटना की जांच कराई थी जिसमें कन्हैया को दोषी नहीं पाया गया था। लेकिन जब उन्हें लगा कि केन्द्र की मोदी सरकार और सत्ताधारी भाजपा का विरोध करने से कुछ हासिल नहीं होगा और उनके सुर में सुर मिलाने से ही उनकी भावी राजनीति दीर्घगामी होगी तो उन्होंने भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के नारे को मौन सहमति दे दी।
केजरीवाल का राजनीतिक दर्शन बदलता रहता है
अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक व्यक्तित्व का सबसे पेचीदा पहलू यह है कि उन्होंने कभी भी अपनी राजनीतिक वैचारिक धारणा का खुलासा नहीं किया। क्या वह अराजकतावादी है, जैसा कि भाजपा के कुछ नेता दावा करते रहे हैं? क्या वह एक शहरी माओवादी हैं, जो कुछ अन्य लोग उनके बारे में प्रचारित करते रहे हैं? क्या वह आरएसएस कीबीटीम है, जैसा कि कुछ माओवादी मानते हैं? या वह इस सब का मिश्रण हैं जो कि अपनी राजनीतिक नैया सत्ता में बने रहने के लिये किसी भी ओर मुड़ कर उसी अनुकूल तैरने लगती है। दिल्ली चुनाव रामभक्तों के मुकाबले के लिये हनुमान की एंट्री किसी और नेता ने नहीं बल्कि केजरीवाल ने कराई थी। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव से पहले अपनी हनुमान भक्ति सार्वजनिक नहीं की थी। पिछले चुनावों में उन्होंने इस तरह हनुमान चालीसा का गायन किया और ना ही वह किसी हनुमान मंदिर गये जबकि उस समय हनुमान मंदिर उनके कार्यालयों के निकट थे। माना जा रहा है कि आप पार्टी बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबले के लिए दूसरी पार्टियां भी सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए अपने सियासी वजूद को बनाए रखना चाहती है।
जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून,
उत्तराखण्ड।
मोबाइल-9412324999

No comments:

Post a Comment