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Thursday, March 19, 2020

दकियानूसों को निर्भया तो याद रही मगर उत्तराखण्ड की दामिनी नहीं

 Symbolic Photo source: social media (internet)

दकियानूसों को निर्भया तो याद रही मगर दामिनी नहीं
समाज में दकियानूसी और दिखावा किस कदर बढ़ गया है उसका ताजा उदाहरण निर्भया काण्ड के दोषियों को फांसी पर लटकाये जाने के बाद रही प्रतिक्रियाओं में साफ झलक रहा है। जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा। इसलिये बलात्कारी और हत्यारे इसी सजा के पात्र थे। लेकिन एक ही तरह के अपराध में अनेक तरह का न्याय होना अन्याय है। जिस तरह की दरिन्दगी निर्भया के साथ दिल्ली में हुयी थी उसी तरह की दरिन्दगी उत्तराखण्ड की एक लड़की जिसे बाद में दामिनी नाम दिया गया था, के साथ भी उसी दिल्ली के बसन्तकुंज इलाके में 9 फरबरी 2012 को हुयी थी। यद्यपि कुछ गैर जिम्मेदार मीडिया ने लड़की का असली नाम भी प्रकट किया जिससे उसका उत्तराखण्ड मूल जाहिर होता था। उत्तराखण्ड के पौड़ी जिले का यह परिवार अन्य पहाड़ियों की तरह आजीविका के लिये गांव छोड़ कर नजफगढ़ में रह रहा था। 9 फरवरी 2012 को गुडगांव से अपने घर नजफगढ़ छावला लौट रही 19 वर्षीया दामिनी (परिवर्तित नाम) को रात आठ बजे छावला में तीन नकाबपोशों ने जबरन कार में बिठा कर अपहरण किया और हरियाणा में उसके साथ बेहद दरिन्दगी से बलात्कार करके मार डाला था। इस प्रकरण पर जब दिल्ल्ी के आक्रोशित प्रवासियों ने प्रदर्शन किया तो पुलिस को दामिनी की लाश 14 फरवरी को मिली। लड़की का गरीब पिता कई महीनों तक सपरिवार जंतर मंतर में न्याय की मांग को लेकर धरने पर बैठे रहे। दिल्ली के प्रवासियों में अनिता गुप्ता, समाजसेवी डा विनोद बछेती, पत्रकार सुनील नेगी, देवसिंह रावत, अनिल पंत, सतेन्द्र रावत, गढवाल मंडल विकास निगम के पूर्व उपाध्यक्ष राजनेता राजेन्द्र भण्डारी, कालेज आफ आर्ट के प्राद्यापक ज्ञानसिंह ज्ञान, गढवाल विष्वविद्यालय के प्रोफेसर महावीरसिंह नेगी आदि दर्जनों लोग पीड़ित परिवार का काफी समय तक साथ देते भी रहे। मगर उत्तराखण्ड में कोई प्रतिकृया नहीं हुयी। इसके बाद जनाक्रोष के चलते तीनों बलात्कारियों को पुलिस ने दबोच लिया गया था मगर उसके बाद कोई नहीं जानता कि उन दरिन्दों का क्या हुआ। विडम्बना देखिये ! निर्भया के लिये आंसू बहाने वाले उत्तराखण्डियों के पास दामिनी के लिये एक बूंद आंसू तक नहीं बचा। दामिनी और निर्भया दरिन्दगी की शिकार होने वाली अकेली नहीं हैं। हैवानियत के किस्से देश के हर कोने से आते हैं लेकिन समाज के आंसू केवल सलेक्टेड मामलों में छलकते हैं। मीडिया को अपना टीआरपी और सर्कुलेशन बढ़ाना होता है इसलिये उनके लिये ज्यादा प्रचारित निर्भया में ही बेटी और उसके दोषियों में दरिन्दगी नजर आती है। उनके लिये हर बुरी खबर और सरकार की चापलूसी अच्छी खबर होती है। लोगों के साथ हो रहे अन्याय को भी वे कैश कर लेते हैं।

1 comment:

  1. इसमें मीडिया का भी बड़ा हाथ होता है जिसे highlight कर दें , पीछे काऊ काऊं करने वालों की कमी नही है । दामिनी unnoticed रही क्योंकि वह गरीब परिवार से थी , उसके परिजनों को किसी का भी support नही मिला । उत्तराखंड से आवाज उठानी चाहिए ,आखिर वह भी किसी की लाडली थी ।

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