महिला दिवस पर भी याद नहीं रहा महिला आरक्षण बिल
-जयसिंह रावत
एक और अन्तर्राष्ट्रीय
महिला दिवस 8 मार्च
को आ कर
चला गया। महिलाओं
के उत्थान, सम्मान
और समानता पर
भाषणबाजी की औपचारिकता
भी सारे देश
में पूरी हो
गयी, मगर महिलाओं
को समान राजनीतिक
अवसर प्रदान करने
के लिये राज्यसभा
में 2010 से लोकसभा
में जाने का
इंतजार कर रहे
महिला आरक्षण विधेयक
की सुध किसी
ने नहीं ली।
जबकि महिला दिवस
की शुरुआत ही
वोट देने के
अधिकार और राजनीतिक
समानता के लिये
हुयी थी।
Jay Singh Rawat Author & Journalist |
महिला आरक्षण के लिए
संविधान संशोधन 108 वां विधेयक
2008 में मनमोहन सिंह सरकार
के कार्यकाल में
2008 में पेश
हुआ था जो
कि 9 मार्च को
विधेयक 2010 में राज्यसभा
में पारित हुआ
मगर लोकसभा में
पारित नहीं हो
पाया। उसके बाद
2014 में लोकसभा भंग हो
गयी। चूंकि राज्यसभा
स्थायी सदन है,
इसलिए यह बिल
अभी जिंदा माना
जा सकता है।
स्पष्ट बहुमत वाली मोदी
सरकार अब लोकसभा
में इसे पारित
करा दे, तो
राष्ट्रपति की मंजूरी
के बाद यह
कानून बन सकता
है। 2014 के लोकसभा
चुनाव में भाजपा
ने अपने घोषणापत्र
में महिला आरक्षण
विधेयक को पारित
करने का वायदा
किया था।
मोदी सरकार अपने साहसिक
और बेहद जटिल
फैसले लेने के
लिये जानी जाती
रही है। तीन
तलाक को गैर
कानूनी करार देने
और अनारक्षित वर्ग
के निर्धनों को
भी सरकारी नौकरियों
में 10 प्रतिशत जैसे साहसिक
फैसले लेने के
कारण ही देश
की जनता ने
मोदी सरकार को
पहले से कही
अधिक जनादेश देकर
दुबारा सत्ता सौंपी थी।
इससे प्रधानमंत्री मोदी
की हिम्मत और
बढ़ी और उनके
वरदहस्त से गृहमंत्री
अमित शाह ने
सत्ता में आने
के 6 महीनों के
अन्दर ही जम्मू-कश्मीर को विशेष
दर्जा देने वाली
संविधान की धारा
370 एवं 35ए को
समाप्त करने के
लिये जम्मू और
कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम, 2019; जम्मू
और कश्मीर आरक्षण
(संशोधन) अधिनियम 2019 पारित करा दिया।
यही नहीं विपक्ष
और दुनियां की
परवाह किये बिना
मोदी सरकार ने
राज्यसभा में भाजपा
का बहुमत न
होते हुये भी
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को
भी पारित करा
दिया। इस कानून
को लेकर सारे
देश में बबाल
मचा हुआ है,
और विश्व स्तर
पर भारत की
धर्मनिरपेक्षता पर उंगली
उठ रही है।
महिला दिवस को
जब सबसे पहले
वर्ष 1910 में सोशलिस्ट
इंटरनेशनल के कोपेनहेगन
सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय
दर्जा दिया गया
तो उस समय
इसका मुख्य उद्ेश्य
महिलाओं को वोट
देने का अधिकार
दिलवाना ही था,
क्योंकि उस समय
अधिकतर देशों में महिलाओं
को वोट देने
का अधिकार नहीं
था। यद्यपि समाजवादी
देश तब से
ही 8 मार्च को
महिलाओं के अधिकारों
और समानता की
आवाज के रूप
में इस दिवस
का मनाते रहे
हैं, लेकिन 1977 में
संयुक्त राष्ट्र ने भी
इसे अंगीकार किया
तो भारत में
भी इस अवसर
पर हर साल
जलसे होने लगे।
लेकिन महिलाआंे को
राजनीति में समान
अधिकार देने की
मूल भावना अब
भी नदारद है।
जबकि इसी भारत
ने दुनियां की
दूसरी महिला प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी दी थी
जिसने दुनियां का
राजनीतिक भूगोल ही बदल
डाला और अमेरिका
जैसे महाबली की
धमकियों की परवाह
न कर पाकिस्तान
को तोड़ कर
एक नया देश
ही श्रृजित कर
डाला। यही नहीं
भारत प्रतिभा पाटिल
जैसी एक महिला
राष्ट्रपति बन गयी,
सुमित्रा महाजन लोकसभा की
स्पीकर बन गयी,
मायावती और जयललिता
जैसी महिलाएं राज्यों
की सफल मुख्यमंत्री
बनीं।
अपनी सरकार रहते हुए
कांग्रेस इसे राज्यसभा
में पारित भी
करा चुकी है।
इसके अलावा कांग्रेस
की सरकार 1993 में
ही पंचायतों में
महिला आरक्षण लागू
कर चुकी है,
जो पंचायतों में
सफलतापूर्वक चल रही
है। कांग्रेस अध्यक्ष
राहुल गांधी ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को
पत्र लिख कर
संसद के 18 जुलाई
से 10 अगस्त 2018 तक चले
मानसून सत्र में
विधेयक पारित करने के
लिये और उससे
पहले कांग्रेस की
अध्यक्ष सोनिया गांधी ने
2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को
एक पत्र लिख
कर बिल पास
कराने का अनुरोध
किया था। पहली
बार इस विधेयक
को देवगौड़ा के
नेतृत्व वाली लोकसभा
में 1996 में पेश
किया गया था
तब भी सत्तारूढ़
पक्ष में एक
राय नहीं बन
सकी थी। 1998 में
जब इस विधेयक
को पेश करने
के लिए तत्कालीन
कानून मंत्री थंबी
दुरै खड़े हुए
थे तब संसद
में इतना हंगामा
हुआ कि हाथापाई
तक की नौबत
आ गयी।
वर्ष 2019 में 17 वीं लोकसभा
के लिये हुये
चुनावों में जीतने
वाली महिलाओं की
संख्या अब तक
की सबसे अधिक
संख्या 78 रही। जो
कि कुल सांसदों
का मात्र 14.58 प्रतिशत
है। इसकी तुलना
में 2014 में हुये
लोकसभा चुनाव 11.23 प्रतिशत महिलाएं
जीती थीं। 2014 में
8,251 प्रत्याशियों में से
668 महिलाएं थीं जिनमें
से 62 चुनाव जीतीं
थीं। जबकि 2019 के
चुनावों में 8,049 प्रत्याशियों में
से 716 महिलाएं थीं। इनमें
से भाजपा की
प्रज्ञा ठाकुर आदि 46 महिलाएं
पहली बार लोकसभा
का चुनाव जीतने
में सफल रहीं।
इस चुनाव में
222 महिलाएं निर्दलीय या स्वतंत्र
उम्मीदवार के रूप
में भी चुनाव
लड़ीं। इनके अलावा
4 किन्नरों ने भी
चुनाव में भाग्य
आजमाया था जिनमें
एक प्रत्याशी आम
आदमी पार्टी का
भी था। लेकिन
उनमें से कोई
भी चुनाव नहीं
जीत सका। गत
लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़
भाजपा ने कुल
53 महिला प्रत्याशी मैदान में
उतारी थीं, जिनमें
से 34 जीत दर्ज
कर लोकसभा में
पहुंची हैं। चुनाव
जीतने वाली प्रमुख
महिलाओं में सोनिया
गांधी, हेमा मालिनी,
मानेका गांधी, स्मृति ईरानी,
नुशरत जहां, किरन
खेर एवं मिमी
चक्रवर्ती आदि हैं।
देश की सर्वोच्च
पंचायत संसद में
देश के भविष्य
पर चिंतन करने
तथा उसे संवारने
की व्यवस्था करने
के लिये पहली
बार लोकसभा में
महिलाओं का हिस्सा
14.58 प्रतिशत तक बढ़ना
खुशी की बात
तो है मगर
सन्तोषजनक बात तब
होती जब आधी
आबादी को कम
से एक तिहाई
प्रतिनिधित्व मिलता।
महिलाओं को राजनीति
में समुचित हिस्सेदारी
देने और देश
के विकास में
उनके योगदान को
सुनिश्चित करने की
पहल 1993 में संसद
द्वारा 73वें एवं
74वें संविधान संशोधन
से हो गयी
थी। भले ही
यह सपना राजीव
गांधी का था
और उन्होंने ही
पंचायतीराज संस्थाओं को संवैधानिक
दर्जा देकर उन्हें
सशक्त करने एवं
महिलाओं की 33 प्रतिशत भागीदारी
सुनिश्चित करने के
लिये नवीन पंचायतीराज
का विधेयक तैयार
कराया था, जिसे
1993 में नरसिम्हाराव के कार्यकाल
में संसद ने
संविधान में भाग
9 जोड़ कर अनुच्छेद
243 डी में महिला
आरक्षण की व्यवस्था
की थी। आज
देश की इन
पंचायतीराज संस्थाओं में 13.45 लाख
महिला प्रतिनिधि (कुल
निर्वाचित प्रतिनिधियों में 46.14 प्रतिशत) लोकतंत्र
की बुनियादी इकाई
में सक्रिय रहते
हुये क्षेत्रीय विकास
में योगदान दे
रही है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून
मोबाइल-
9412324999
No comments:
Post a Comment