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Monday, April 17, 2017

Sad Demise of Harsingh Gunsola reminiscensed Mussoorie Police Firing incident

हरिसिंह गुंसोला और मसूरी गोलीकाण्ड की यादें
-जयसिंह रावत
भाई हरि सिंह गुन्सोला के निधन की बेहद दुखद खबर सुन कर यकायक 2 सितम्बर 1994 के मसूरी गोली काण्ड के बाद की भयावह, विभत्स और रोंगटे खड़े करने वाली तस्बीरें स्मृति पटल पर तैरने लगीं। दरअसल उत्तराखण्ड आन्दोलन के चरम के दौरान दो सितम्बर को मध्याहन जैसे ही मुझे मसूरी के झूलाघर पर पुलिस गोलीबारी की सूचना मिली तो मैं बिना किसी संवाददाता का इंतजार किये स्वयं ही आफिस के अकाउटेंट दीपक गुप्ता को लेकर स्कूटर से मसूरी दौड़ पड़ा। रास्ते में लोग पहाड़ियों पर चढ़ कर पत्थर लुड़का रहे थे ताकि पुलिस या पैरा मिलिट्री मसूरी पहुंच सके। किसी तरह मसूरी पहुंचा तो वहां शमशान की जैसी खामोशी थी। हमें बताया गया कि दर्जनभर लाशें सेंट मेरी अस्पताल में पड़ी हैं। मैं जब उस अस्पताल में पहुंचा तो एक वर्दीधारी शव असप्ताल के सामने सड़क पर बुरी स्थिति में पड़ा था। करीब से देखा तो शव के कन्धे पर तीन स्टार नजर आये। नीचे नाम की प्लेट देखी तो उस पर उमाकांत त्रिपाठर लिखा था। गुस्साये लोगों ने प्राण निकलने के बाद भी अस्पताल के छत पर लगी सीमेंट की टंकी सड़क पर पड़े मुर्दा डीएसपी के ऊपर फेंकी हुयी थी। बेहद विभत्स दृष्य था वह। मैं वहां पहुंचने वाला पहला पत्रकार था। मैंने ही वहां सबसे पहले फोटाग्राफी भी की। उसके बाद अस्पताल के अंदर एक के बाद एक कमरे में लाशें पड़ी भी देखीं। सबसे विभत्स दृष्य उस महिला आन्दोलनकारी के शव का था जिसका खोपड़ी का भेजा बिस्तर पर खोपड़ी की बगल में पड़ा था। शायद उस शहीद महिला का नाम बेलमती था।  बगल के एक कमरे में युवा हैंडसम आन्दोलनकारी बलबीर सिंह नेगी का शव देख कर कलेजा भर आया था। उसी दौरान वहां विधायक राजेन्द्र शाह पहुंचे तो वे आग बबूला हो गये थे। कुछ देर बाद वहां देहरादून से अमर उजाला से सुभाष गुप्ता भी पहुंच गये। उन्होंने भी वहां फोटोग्राफी कर जानकारियां हासिल कीं। वहां की बेहद तनावपूर्ण स्थिति देख कर हमें लग रहा था कि दूसरा गोली काण्ड जरूर होगा। इसलिये स्थिति को भांप कर हमने सामने के होटल में ऐसा मोर्चा लगा दिया था कि अगर गोलियां चल गयीं तो हमारा कैमरा वह दृष्य कैद कर ले। गुस्साये लोग डीएसपी का शव उठाने नहीं दे रहे थे। अस्पताल के बाहर खड़ी भीड़ में से एक बुजुर्ग से यह विभत्स दृष्रू देख नहीं गया और वह आगे आकर कहने लगे कि जब आदमी मर जाता है तो उसके शव का सम्मान होना चाहिये। वह अन्दर अस्पताल से एक सफेद चादर ले आये और डीएसपी त्रिपाठी के शव पर डाल गये। काफी देर बाद जिला अधिकारी राकेश बहादुर भी पीएसी और पुलिस के दर्जनों हथियाबंद जवानों के घेरे में घटना स्थल पहुंचे तो विधायक राजेन्द्र शाह ने उन पर गालियों की बौछार कर दी। ऐसा लग रहा था कि डीएम और एसएसपी तैश में आकर विधायक को हिरासत में लेंगे और फिर स्थिति विस्फोटक हो जायेगी। मगर ऐसा नहीं हुआ। वह चुपचाप वैज और नॉनवैज गालियों का कड़ुवा स्वाद चखते रहे। हालांकि बाद में राजेन्द्र शाह जी ने डीएम से इस बर्ताव की भारी कीमत चुकाई। उन्हें पुलिस ने अमानवीय यातनाएं देने के साथ ही उन पर बेहद गंभीर आरोपों में मुकदमा चलाया जिसमें जमानत भी बहुत मुश्किल से हुयी। बहरहाल हमने घटनास्थल पर डीएम से पूछा कि क्या मसूरी में कर्फ्यू लग गया? तो उन्होंने हामी भरी और मुझे तथा सुभाष गुप्ता को जल्दी मसूरी से सुरक्षित निकलने को कह गये। वहां की कवरेज के बाद हम झूलाघर भी गये मगर तब तक कफ्यू का डरावना सन्नाटा पसर चुका था। इसलिये जल्दी ही हम मसूरी से नीचे उतर आये मगर जैसे ही स्कूटर से किंगक्रैग पहुंचे तो हमें लोगों ने घेर लिया। ये सभी आन्दोलनकारी थे जो कि जान बचाने के लिये नीचे किंगक्रैग भाग आये थे। इनमें हरिसिंह गुन्सोला और सुधीर थपलियाल भी थे। भाई हरिसिंह मुझे किनारे ले गये और चुपचाप मेरी जेब में कैमरे की दो-तीन रीलें डाल गये। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने गोलीकाण्ड की सारी तस्बीरें कैमरे में कैद कर इन रीलों में डाल दी हैं। उन्हें भय था कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार तो करेगी ही और प्रताड़ित भी करेगी मगर उनसे ये फोटो रीलें जरूर छीनेगी। ये मसूरी गोलीकाण्ड के बहुत ही महत्वपूर्ण सबूत थे और उनका दुरुपयोग भी हो सकता था। लेकिन भाई हरसिंह का मुझ पर अटूट विश्वास था। सुधीर और हरिसिंह ने मुझे तत्काल वहां से निकल जाने को कहा और वे भी तितर वितर हो गये। दो-तीन दिन बाद दोनों की जोड़ी देहरादून पहुंची और मुझसे अपनी रीलें वापस लेकर दोनों ही गढ़वाल भ्रमण पर निकल पड़े। मैं उन रीलों से फोटो निकाल कर अपने नाम से छाप सकता था। उस दौरान वे फोटो महंगे बिक भी सकते थे। मैंने सेंट मेरी अस्पताल के आसपास की स्पॉट फोटो ली थीं उन्हें बाद में कुछ लोगों ने अपने नाम से मैगजीनों में छपवा दिया। मेरे पेशे में आज ऐसे अविश्वसनीय और मतलबपरस्त लोग गये हैं कि अगर उनके पास वे फोटो होते तो वे पुलिस में अपने नम्बर बढ़ाने के लिये या लालच में वे रीलें पुलिस के सुपुर्द कर देते। आज मसूरी के पत्रकार मित्रों को इतना याद तो है कि हरिसिंह भाई ने मसूरी गोलीकाण्ड की बेहतरीन फोटो कवरेज की थी। लेकिन यह सच्चाई किसी को पता नहीं कि सुरक्षा की दृष्टि से उन संवेदनशील चित्रों की रीलें कई दिनों तक मेरी कस्टडी में रहीं। बाद में जब इस काण्ड की सीबीआइ जांच हुयी तो सीबीआइ के सब इंस्पेक्टर मिस्टर चन्दोला अक्सर मेरे पास आते थे। उन्हें बताया गया था कि मैंने सबसे पहले घटनास्थल की रिपोर्टिंग की थी। मैंने घटनास्थल के जो चित्र लिये थे उन्हें भी चन्दोला जी ने लिखित अनुरोध कर मुझसे ले लिया था। गोलीकाण्ड के सिलसिले में सीबीआइ ने मेरे बयान भी लिये थे। कभी सोचता हूंकि क्यों उत्तराखण्ड आन्दोलन की मेरी स्मृतियों पर ही अगली पुस्तक लिख डालूं। अगर सचमुच मैं ऐसा साहस बटोर पाया तो हरिसिंह गुंसोला की ये स्मृतियां अवश्य ही उस पुस्तक में होंगी।
यहां संदर्भ भाई हरिसिंह गुंसोला के निधन का है, इसलिये बरबस 2 सितम्बर 1994 का वह खौफनाक वाकया याद गया। सुधीर और हरिसिंह की जोड़ी बेमिसाल थी। दोनों के दोनों जीनियस थे। सुधीर भाई के लेखन का में सदैव कायल रहा हूं। कैमरे की आंख के पीछे हरिसिंह की विलक्षण आखें निर्जीव को सजीव बना देती थी। भाई हरिसिंह की लाजबाब फोटोग्राफी की एलबम मेरे पास पड़ी हुयी है। उनकी बोलती हुयी तस्बीरें सदैव उनकी याद दिलाती रहेंगी।

जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड
देहरादून।

9412324999

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