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Saturday, April 8, 2017

A Book on the History of erstwhile Tehri Estate

**टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह ** पुस्तक का लोकार्पण
-त्रिलोचन भट्ट
देहरादून। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने वृहस्पतिवार सांय अपने सरकारी आवास पर गणमान्य व्यक्तियों और लेखन जगत से जुड़ी हस्तियों की उपस्थिति में वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की नवीनतम् पुस्तक ‘‘टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह’’ का लोकार्पण किया। इस पुस्तक में लेखक ने जन संघर्षों की पृष्ठभूमि पर एक पत्रकार के तौर पर स्वतंत्र नजरिये से प्रकाश डालने के साथ ही यह साबित करने का प्रयास किया है कि अगर टिहरी की जनक्रांति के नायकों की एक दिशा और एक संकल्प होता तो आज या तो गढ़वाल हिमाचल प्रदेश का हिस्सा होता या फिर हिमाचल प्रदेश गढ़वाल होता। इस अवसर पर पद्मश्री अवधेश कौशल, पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, पद्मश्री बसन्ती बिष्ट और प्रख्यात लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद थे।
वृहस्पतिवार को सांय अपने न्यूकैंट रोड आवास पर टिहरी राज्य की निर्णायक जनक्रांति के डिक्टेटर रहे पूर्व सांसद, क्रांतिकारी और प्रख्यात पत्रकार परिपूर्णनन्द पैन्यूली पर केन्द्रित विनसर पब्लिशिंग कंपनी द्वारा प्रकाशित जयसिंह रावत की पांचवीं पुस्तक, ‘‘टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह’’ मुख्यमंत्री श्री रावत ने पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कहा कि इतिहास हमको बुद्धिमान बनाता है। हमें इतिहास पढ़ना आवश्यक है। उत्तराखण्ड के दर्द का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य का दूरस्त क्षेत्र राज्य निर्माण तक भी विकास से अछूता था। ऐसे-ऐसे गांव भी थे जहां 20-25 किमी पैदल चलना पड़ता था। उन्होंने कहा कि राज्य में पलायन एक बड़ी समस्या है। पलायन यदि विकास के लिये हो तो अच्छा होता परन्तु राज्य में पलायन समस्याओं के कारण हुआ है। हमें इसे रोकने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि इतिहास पर शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक इतिहास पर शोध को बढ़ावा दिया जाना चािहये। इस अवसर पर मुख्यमंत्री रावत ने टिहरी की राजशाही का तख्तापलट करने वाली जनक्रांति के नायक तथा मेरठ के सूरजकुण्ड बम काण्ड के क्रांतिकारी परिपूर्णानन्द पैन्यूली का शॉल ओढ़ कर अभिनन्दन भी किया।
लगभग 4 दशकों से संवाददाता से लेकर संपादक और स्वतंत्र पत्रकार से लेकर पत्रकारिता गुरू की भूमिका में क्षेत्र और समाज के कई ज्वलंत मुद्दे उठाने वाले लेखक जयसिंह रावत ने इस पुस्तक में टिहरी राज्य के महाराजा सुदर्शन शाह से लेकर अंतिम शासक महाराजा मानवेन्द्र शाह तक के जनसंघर्षों का विवरण देने के साथ ही उनकी पृष्ठभूमि पर निष्पक्ष प्रकाश डालने का प्रयास किया है। पुस्तक में कहा गया कि टिहरी का महाराजा देश के उन बहुत थोड़े राजाओं में से एक था जिसने लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर कदम बढा़ते हुये अपने यहां 1923 में निर्वाचित प्रतिनिधि सभा का गठन किया था। लेखक ने सवाल उठाया है कि अगर पंवार वंशीय शासक इतने शोषक दमनकारी थे तो फिर सन् 1949 में टिहरी के भारत संघ में विलय और वहां लोकतंत्र की बहाली के इतने सालों बाद भी वहां की प्रजा के दिलोदिमाग से महाराजा की छाप बोलान्दा बदरीनाथ की क्यों बनी रही और महाराजा कैसे 8 बार चुनाव जीतता रहा। टिहरी के भारत संघ में विलय के तत्काल बाद हुये चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी हार गये थे और महाराजा समर्थक सभी उम्मीदवार चुनाव जीत गये थे। इसलिये महाराजा को अपरिहार्य मानते हुये उन्हें कांग्रेस में शामिल करा दिया गया था। महाराजा केवल एक बार 1971 में चुनाव हारे थे और उनको हराने वाला कोई और नहीं बल्कि परिपूर्णानन्द पैन्यूली ही थे। इसलिये पंवार वंश को दो बड़े और असहनीय झटके देने वाले परिपूर्णानन्द पैन्यूली ही थे।
नौ खण्डों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खण्डविप्लवों में डूबी टिहरी राजशाहीके अन्तर्गत टिहरी रियासत में व्याप्त कुप्रथाओं, राजशाही की ज्यादातियों और इन ज्यादातियों के खिलाफ हुए अनेक जनसंघर्षों का वर्णन किया गया है। इसमें दास प्रथा, बेगार प्रथा, वन नीति और इसे लेकर हुए अनेक जनविद्रोहों, रंवाई काण्ड, रामा सिंराई कांड, सकलाना विद्रोह, कीर्तिनगर कांड आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। पुस्तक का दूसरा खण्डबागी पैन्यूलीऔरसूरजकुण्ड बन कांडटिहरी क्रान्ति के जननायक परिपूर्णा नन्द पैन्यूली के बारें में हैं। इसमें उनके बचपन और पढ़ाई से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने, सूरजकुण्ड बमकांड, जेल यात्रा आदि का घटनाओं का वर्णन किया गया है। पुस्तक के चौथे खण्ड टिहरी का निर्णायक जन विद्रोह है। इस खण्ड में श्री पैन्यूली की टिहरी वापसी, गिरफ्तारी, टिहरी जेल से फरार होने, दिल्ली और मुंबई में अनेक राष्ट्रीय नेताओं के साथ भेंट होने, टिहरी लौट कर फिर गिरफ्तारी, सकलाना सत्याग्रह, नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी की शहादत और टिहरी राजा के तख्तापलट की जानकारी है।
पांचवें खण्डहिमाचल प्रदेश की टिहरीके अन्तर्गत लेखक ने कई ऐसे पहलू भी छुये हैं जो अब तक अज्ञात रहे। पंजाब हिल्स की एक रियासत के रूप में टिहरी हिमाचल प्रदेश की 35 रियासतों में से एक रही। इसलिये लेखक ने यह साबित करने का प्रयास किया है कि अगर उस समय टिहरी में अराजकता होती और सभी नेता एकमुंह-एकजुट होते तो टिहरी भी हिमाचल की अन्य रियासतों के साथ ही केन्द्र शासित क्षेत्र होता और जब हिमाचल को सी श्रेणी के राज्य का दर्जा मिला तो उस समय हिमाचल की रियासतें टिहरी गढ़वाल में होतीं या फिर टिहरी और ब्रिटिश गढ़वाल हिमाचल प्रदेश के अंग होते। टिहरी इन सभी रियासतों में सबसे बड़ी थी और इसी कारण कांग्रेस की अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की शाखा हिमालयन हिल रीजनल कांउसिल में टिहरी का वर्चस्व होने के चलते परिपूर्णा नन्द पैन्यूली ने काउंसिल के चुनाव में आधुनिक हिमाचल प्रदेश के निर्माता डा0 यशवन्त सिंह परमार को परास्त कर दिया था। एकीकरण या ग्रेटर हिमाचल के पक्षधरों ने देहरादून को राजधानी बनाने का प्रस्ताव भी रखा था। छठे खंडटिहरी की जनक्रान्ति के बादमें उस स्थिति का वर्णन किया गया है, जब राजशाही का तख्ता पलटा जा चुका था और टिहरी में पूरी तरह से अराजकता की स्थिति थी। यह स्थिति टिहरी के भारतीय संघ में विलय के बाद ही नियंत्रित हो पाई थी।
पुस्तक के सातवीं खण्डपंवार वंश को पैन्यूली का झटकाके अन्तर्गत लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि श्री पैन्यूली राजनीति में एक तरह से बेमेल थे। कांग्रेस में रहते हुए पं. नेहरू को चुनौती देना, कांग्रेस से बाहर होना, फिर कांग्रेस में प्रवेश, चुनाव जीतना और बाद फिर राजनीति के हाशिये पर चले जाना आदि की जानकारी दी गई है। पुस्तक के आठवें खण्ड में श्री पैन्यूली का साक्षात्कार प्रकाशित किया गया है, जबकि नौवें और अंतिम खण्ड मेंपरिशिष्टअत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इसमें टिहरी राजशाही और श्री पैन्यूली से संबंधित अनेक प्रमाणिक दस्तावेज प्रकशित किये गये हैं।
लेखक जयसिंह रावत की इस पांचवीं पुस्तक के प्रकाशक भी विनसर पब्लिशिंग कम्पनी के कीर्ति नवानी ही हैं। प्रकाशक अब तक हिमालय और खास कर उत्तराखण्ड के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और जन सरोकारों पर दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित कर चुके हैं। इस प्रकाशन गृह ने गढ़वाली, कुमाऊंनी और अंग्रेजी की डिक्शनरी के साथ ही क्षेत्रीय बोलियों पर भी कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं।

लेखकः-जयसिंह रावत
प्रकाशकः-कीर्ति नवानी
विनसर पब्लिशिंग कंपनी,
8,प्रथम तल, के.सी. सिटी सेंटर (गांधी स्कूल के सामने)
4 डिस्पेंसरी रोड,
देहरादून, उत्तराखण्ड
आएसबीएन-9789382830139
मूल्य-495 रुपये







 TEHRI RAJYA KE AITIHASIK JAN VIDROH

Uttarakhand Chief Minister Trivendra Singh Rawat released “Tehri Rajya Ke Aitihasik Jan Vidroh”, a book on people’s agitation in erstwhile Tehri estate on Thursday 6th April  in Dehradun. 
The book has been authored by eminent writer and senior journalist Jay Singh Rawat.  The book Narrates the stories of people’s struggles against highhandedness of  monarchy and its bureaucracy from King Sudarshan Shah to the last king Manvendra Shah. Many hidden and unknown historic facts were brought to the light by the author in this book. Historians like Dr. Yogesh Dhasmana and Dr Devendra Bhashin appreciated the great effort of the Author. Padmshree LeelaDhar Jaguri, Avdhesh Kaushal, Basanti bisht and the Chief Minister himself lauded the great efforts of  senior journalist and author Jay Singh Rawat. The Chief Minister said the book was a historic document that would serve the readers, who are keen to know of the peoples resentment caused by encroachments of the traditional rights on forest erstwhile bureaucracy of the king  that took place during the kingship of Panwar dynasty from Sudarshan Shah to Manvendra Shah. Padmshree Avdhesh Kaushal, Padmshre Leela Dhar Jaguri, Padmshree Basanti Bisht and Renowned Garhwali singer Narendra Singh Negi were among those hundreds of prominent citizens of Uttarakhand who attended the book release function.   — TNS






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