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Friday, April 3, 2020

महामारी सिर पर और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र जी मग्न हैं


उत्तराखण्ड: महामारी सिर पर और चिकित्सा इंतजाम बद्तर
-जयसिंह रावत
संकट की इस घडी में सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री
जी का मुस्कराता चेहरा माहमारी के बारे में
 उनकी गंभीरता को बयां कर रहा है।
Navjivan epaper
त्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत पार्टी नेतृत्व के समक्ष अपने नम्बर बढ़ाने के लिये कोरोना की महामारी से निपटने के लिये चाहे जितने भी दावे कर लें, मगर हकीकत यह है कि उनका स्वास्थ्य विभाग स्वयं वेंटिलेटर पर है जो कि डाक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी से तो पहले से ही जूझ रहा था, लेकिन अब उसके सामने महामारी से निपटने के लिये वेंटिलेटर और मास्क जैसे जैसे मूलभूत चिकित्सा उपकरणों की भारी कमी का भी संकट खड़ा हो गया है। यही नहीं राज्य में समय से मरीजों के लिये पर्याप्त संख्या में आइसोलेशन वार्डों और क्वारेंटाइन बिस्तरों का इंतजाम भी पर्याप्त नहीं है। भेड़ बकरियों की तरह ठूंसे गये बंदियों के कारण राज्य की जेलें संक्रमण केन्द्र साबित हो सकती हैं। संदिग्धों के रक्त के नमूनों की जांच के लिये अब जा कर ऋषिकेश एम्स में दूसरे टेस्टिंग लैब की व्यवस्था हो पायी है।संकट की इस घडी में सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री जी का मुस्कराता चेहरा माहमारी के बारे में उनकी गंभीरता को बयां कर रहा है। 
दुनियाभर में कोरोना महामारी फैलाने वाले चीन की सीमा से लगे उत्तराखण्ड की सरकार की नींद अब खुल रही है जबकि महामारी प्रकट हो कर फैलने भी लग गयी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन गत 30 जनवरी को ही कोरोना को महामारी घोषित कर चुका था लेकिन पहले ही डाक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ और अन्य मेडिकल सुविधाओं की कमी झेल रहे इस प्रदेश की सरकार को अब डाक्टरों का इंतजाम करने की जिम्मेदारी याद रहा है। सवा करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कुल 308 वेंटीलेटर हैं, और इनमें से भी सरकारी अस्पतालों में केवल 165 ही वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। कोरोना संक्रमित 15 प्रतिशत निमोनिया पीड़ितों में से भी लगभग 6 प्रतिशत को वेंटिलेटर की जरूरत होती है। सरकार ने अब 100 वेंटिलेटर खरीदने की प्रकृया शुरू की। इसी प्रकार राज्य की एक करोड़ से अधिक आबादी पर अब तक केवल 1 हजार आइसोलेशन और 1500 क्वॉरेंटाइन बेड तैयार किये जा सके। जबकि दिल्ली आदि नगरों से 18 हजार से अधिक प्रवासी अपने गावों में चुके हैं और हजारों अन्य दिल्ली आदि नगरों में लॉकडाउन के कारण फंसे हुये हैं। जिनके परीक्षण की पूरी व्यवस्था सरकार के पास नहीं है। टेस्टिंग लैब की कमी के चलते प्रदेश में नमूनों की जांच भी बहुत धीमी गति से चल रही है। एक सरकारी अफसर के अनुसार संसाधनों के अभाव में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रतिदिन औसतन 40 ही सैंपल लिये जा रहे थे। नीति आयोग द्वारा जारी ‘‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’’ रिपोर्ट में स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं के इंडेक्स में उत्तराखण्ड को 19वें स्थान पर सबसे खराब स्थिति वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ रखा गया है, जबकि यह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के पास है।
कोरोना की महामारी से निपटने के लिये डाक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ एवं सैंपल लेने वालों के लिये आंखों, चेहरे, हाथों के लिये विशेष दस्ताने, चस्में और मास्क, शरीर के लिये विशेष प्लाटिक कवच, सिर ढकने का कवर, 95 नम्बर का रिस्पेरेटरी मास्क, फ्लुइड रेजिस्टेंट गाउन एवं प्लास्टिक का एपरन जैसे लगभग 23 मेडिकल इक्विपमेंट्स की जरूरत होती है। सरकार ने आइसोलेशन वार्डों की घोषणा तो कर दी मगर उनमें साजो सामान का अभाव है, जिस कारण मेडिकल स्टाफ के लिये भी खतरा है। राज्य के आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक अस्पतालों में तो दस्ताने और मास्क खरीदने के लिये तक बजट नहीं है। राज्य में 12 जिला अस्पताल, 21 उप जिला अस्पताल, 80 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 614 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों और पैरा मेडिकल सहित कुल जरूरी 8945 पदों में से 2751 पद खाली पड़े हैं। खाली पदों में डाक्टरों के 1253, नर्सों के 349 और फार्मसिस्टों के 150 पद शामिल हैं। हाल ही में बजट सत्र में रखे गये एक दस्तावेज के अनुसार चिकित्सा एवं लोकस्वास्थ्य विभाग में विभिन्न श्रेणियों के कुल 11,379 में से 3,403 पद खाली हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल 1258 में से 843 पद खाली चल रहे हैं। कोरोना के प्रकोप के मामले में हिमालयी राज्यों में उत्तराखण्ड जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के बाद तीसरे नम्बर पर चुका है और त्रिवेन्द्र को डाक्टरों की कमी दूर करने की याद अब रही है।कहते हैं चेहरा आदमी के मस्तिष्क का आईना होता है।  राज्य के सुचना एवं जन संपर्क विभाग द्वारा जारी किये गए  कोरोना संकट  सम्बन्धी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत जी की अपील  के विज्ञापन में मुख्य मंत्री जी की प्रसन्नचित मुख मुद्रा से ही पता चल रहा है की वह इस संकट की घडी में कितने गंभीर हैं।  अब आप स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं कि किस तरह संकट  की इस घडी का सामना किया जा रहा होगा. 
महामारी के मामले में सर्वाधिक चिन्ताजनक स्थिति राज्य की जेलों की बनी हुयी है। राज्य की कुल 11 जेलों की क्षमता 3540 बंदियों को रखने की है जबकि उनमें अभी 5748 बंदी रखे गये हैं। सर्वाधिक खतरनाक स्थिति हल्द्वानी जेल की है जहां 382 की क्षमता के विपरीत 1304, देहरादून में 580 के विपरीत 1305 और अल्मोड़ा में 102 की क्षमता के विपरीत 232 बंदी रखे गये हैं। कुुल 3489 विचाराधीन कैदियों में 801 देेहरादून, 526 हरिद्वार, 122 नैनीताल, 96 अल्मोड़ा, 50 चमोेली, 83 पौड़ी, 113 टिहरी, 468 रूड़की, 1158 हल्द्वानी, 72 केन्द्र्रीय कारागार सितारगंज जेल में हैै।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के तुगलकी फरमान और राज्यवासियों के प्रति असंवेदनशीलता भी लोगों की तकलीफें बढ़ा रही है। अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिये त्रिवेन्द्र रावत ने हरिद्वार आदि में रुके लगभग डेढ हजार गुजरातियों को वापस भेजने के लिये परिवहन निगम की लक्जरी बसों का इंतजाम तो किया मगर उन्हीं बसों से गुजरात में फंसे उत्तराखण्ड के लोगों को वापस लाने की जरूरत नहीं समझी। अपने राज्य की बसें देख कर कुछ संकटग्रस्त उत्तराखण्डी बसों में बैठे भी तो उन्हें हरियाणा बार्डर पर उतार दिया गया और उत्तराखण्ड सरकार ने मांगने पर भी उनकी मदद नहीं की। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट 26 अपै्रल से खोलने के मुहूर्त घोषित हो गये मगर इस साल की चारधाम यात्रा चलेगी या नहीं, अभी तक त्रिवेन्द्र सरकार हर बात की तरह अमित शाह के निर्देशों की प्रतीक्षा कर रही है। जबकि परिवहन कंपनियों की डेढ हजार बसों की बुकिंग केंसिल हो चुकी है। जून में सीमान्त क्षेत्रों से भारत और तिब्बत के बीच होने वाले व्यापार के बारे में भी सरकार बेखबर है।

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