
लॉक डाउन में निखर रही है पतित पावनी गंगा
-जयसिंह रावत
गंगाजल में आशातीत सुधार
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट के अनुसार ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला क्षेत्र में इन दिनों गंगा के पानी में फीकल कॉलिफार्म की मात्रा में 47 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं ऋषिकेश में बैराज से आगे यह कमी 46 प्रतिशत, हरिद्वार में बिंदुघाट के पास 25 प्रतिशत और हर की पैड़ी पर 34 प्रतिशत दर्ज की गई है। इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि लॉकडाउन के दौरान हर की पैड़ी पर गंगा का पानी प्रथम श्रेणी का हो चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट में भी गंगाजल में सुधार के संकेत बताये गये है। बोर्ड की पिोर्ट के अनुसार रियल टाइम वॉटर मॉनिटरिंग में गंगा नदी का पानी 36 निगरानी केन्द्रों में से 27 में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया है। जबकि पिछले साल की रिपोर्ट में केन्द्रीय बोर्डा के अध्ययन में 86 में से 78 स्थानों पर गंगाजल पीने के लिये ही नहीं बल्कि नहाने योग्य भी नहीं पाया गया था।उद्योग बंद होने और शवदाह रुकने से भी पड़ा असर
बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के अन्तर्गत आईआईटी के केमिकल इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर पी. के मिश्रा द्वारा हाल ही में किये गये एक अध्ययन के अनुसार लॉकडाउन के शुरू होने से लेकर अब तक गंगा के पानी में सुधार दिखाई दे रहा है। अधिकतर उद्योगों का जो प्रदूषण गंगा में मिलता है वह कारखानों के बंद होने से रुक गया है। डा0 मिश्रा के अनुसार गंगा में होने वाले कुल प्रदूषण में उद्योगों की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत होती है। यह वैल्यूमवाइज होता है। इसकी स्ट्रेन्थ 30 प्रतिशत होती है। यह बीओडी (बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड) ज्यादातर उद्योगों से और शेष अन्य श्रोतों से आता है। इधर लॉकडाउन से घाटों के किनारे शव जलना, नौकायान तथा अन्य गतिविधियां बंद होने से भी लगभग 5 प्रतिशत गंदगी कम हुई है। यद्यपि लॉकडाउन में भी सीवेज वाली गंदगी अभी रुक नहीं पाई है, फिर भी इसमें घुलित ऑक्सीजन 5 से 6 प्रति लीटर एमजी से बढ़कर 8-9 हो गई है। लॉकडाउन के दौरान हर पैरामीटर में 35 से 40 प्रतिशत असर हुआ है। इस कारण गंगा निर्मल दिखाई दे रही है।लॉकडाउन से पहले बुरा हाल था पतित पावनी का
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा गत वर्ष मई में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि गंगा का पानी पीने के लिये बिल्कुल अनुपयुक्त होने के साथ ही उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक के हिस्से में गंगाजल नहाने लायक भी नहीं है। बोर्ड के कुल 86 स्थानों पर बने गंगाजल निगरानी केन्द्रों में से केवल 7 केन्द्रों के निकट ही गंगा जल कीटाणुशोधन के बाद पीने लायक था। शेष 78 केन्द्रों के निकट का पानी पीने योग्य नहीं था। इनमें से भी केवल 18 स्थानों पर गंगाजल नहाने योग्य पाया गया था। जबकि सम्पूर्ण गंगा तट के 62 स्थानों पर पानी नहाने के लिये भी उपयुक्त नहीं पाया गया। जिन 7 स्थानों पर कीटाणुशोधन के बाद गंगाजल पीने योग्य पाया गया उनमें से अधिकतर स्थान उत्तराखण्ड में तथा 2 स्थान पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में चिन्हित किये गये। गंगा का शेष हिस्सा हिन्द महासागर में गिरने तक पीने और नहाने के योग्य नहीं पाया गया था। जिन 78 क्षेत्रों में गंगाजल पीने और स्नान के लिये उपयुक्त नहीं पाया गया उनमें से बिहार में भुसौला के पास गोमती नदी में, कानपुर, बाराणसी के गोला घाट, राय बरेली के डालमऊ, इलाहाबाद संगम, बुक्सार, पटना, भागलपुर, एवं पश्चिम बंगाल का हावड़ा-शिवपुर आदि क्षेत्र शामिल थे।उत्तराखण्ड से निर्मल बहती है गंगा
पिछले साल भी जिन 6 स्थानों पर गंगाजल कीटाणुशोधन के बाद पीने योग्य पाया गया उनमें उत्तराखण्ड में भागीरथी में गंगोत्री, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, रायवाला और ऋषिकेश, उत्तर प्रदेश में बिजनौर और पश्चिम बंगाल में डायमण्ड हार्बर शामिल थे। इसका मतलब साफ है कि गंगा अपने मायके उत्तराखण्ड में तो निर्मल है लेकिन वह जैसे ही मैदान में अपनी लम्बी यात्रा शुरू करती है, उसमें गंदगी का बोझ बढ़ता जाता है। लेकिन ज्यादातर शोर उत्तराखण्ड में गंगा की स्थिति पर किया जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश में नदियों को प्रदूषित करने वाले 1360 उद्योग चिन्हित किये हैं। इस सूची में उत्तराखण्ड के 33, उत्तरप्रदेश के 432, बिहार के 22 और पश्चिम बंगाल के 56 कारखाने शामिल हैं जो कि गंगा में सीधे खतरनाक रसायन और संयंत्रों से निकला दूषित जल तथा कचरा प्रवाहित कर रहे हैं। इनमें कानुपर के 76 चमड़ा कारखाने भी शामिल हैं।मैदान उतरते ही मैली होने लगती है गंगा

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