माफी मांग कर जीने के बजाय फांसी चुनी
भगत सिंह को भी जेल में आजाद किए जाने का प्रलोभन दिया गया लेकिन उनका मन नहीं डोला। अपनी जेल डायरी में भगत सिंह ने स्वयं भी लिखा है कि, ‘‘मई 1927 में मैं लाहौर में गिरफ्तार हुआ। पुलिस अफसरों ने मुझे बताया कि यदि मैं क्रान्तिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला एक वक्तव्य दे दूं, तो मुझे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और इसके विपरीत मुझे अदालत में मुखबिर की तरह पेश किए बगैर रिहा कर दिया जायेगा और इनाम दिया जायेगा। मैं इस प्रस्ताव पर हंसा ....एक दिन सुबह सी. आई. डी. के वरिष्ठ अधीक्षक श्री न्यूमन ने कहा कि यदि मैंने वैसा वक्तव्य नहीं दिया, तो मुझ पर काकोरी केस से सम्बन्धित विद्रोह छेड़ने के षडयन्त्र और दशहरा उपद्रव में क्रूर हत्याओं के लिए मुकदमा चलाने पर बाध्य होंगे और कि उनके पास मुझे सजा दिलाने और फांसी पर लटकवाने के लिए उचित प्रमाण हैं।’’
भगत सिंह का साम्यवाद भारतीय था
भगतसिंह निश्चित रूप से एक साम्यवादी थे जो कि रूस की बोल्शिेविक क्रांति के जनक ब्लादिमीर लेनिन से प्रभावित थेलेकिन उनका साम्यवाद पूर्णतः भारत के संदर्भ में था जहां जाति और अमीर गरीब के नाम पर समाज में अन्याय और शोषण होता था जिन लाला लाजपत राय की खातिर उन्होंने सैण्डर्स को मार डाला था वही लालाजी लाठीचार्ज में घायल होने से पूर्व हिन्दू महासभा से जुड़ गए थे और भगतसिंह पर नास्तिक और रूस का ऐजेण्ट होने का आरोप लगाते थे। भगतसिंह का मानना था कि जिस धर्म में असमानता, भेदभाव और छुआछूत जैसी बुराइयां हों वहां से दलित स्वाभाविक रूप से मानवीय गरिमा और समानता की खातिर ईसाइयत या इस्लाम जैसे दूसरे धर्म अपनायेंगे। उस स्थिति में अन्य धर्मों की आलोचना करना व्यर्थ होगा। वह गरीबी को दलितों का पर्याय मानते थे और इसी तथ्य को ध्यान में रख कर समाजवादी सोच के साथ सभी प्रकार की आस्थाओं और आर्थिक वर्गों को साथ लेकर राष्ट्र निर्माण के पक्षधर थे।
No comments:
Post a Comment