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Friday, September 20, 2019

सफलताओं के लिये विफलताओं की सीढ़ी



Article of Jay Singh Rawat on space mission carried by Jansatta on 21 September 2019 
अंतरिक्ष में सफलताओं के लिये बनी विफलताओं की सीढ़ी
-जयसिंह रावत
चन्द्रयान 2 मिशन तो पूरी तरह सफल रहा और ना ही विफल। इसलिये इस मुकाम पर जश्न मनाने का मौका नहीं मिला तो रोने धोने का भी कोई औचित्य नहीं है। हमारे वैज्ञानिकों को यह समझाने या ढांडस बंधाने की भी आवश्यकता नहीं है कि विफलताओं से ही सफलता का मार्ग मिलता है, क्योंकि वे 7 सितम्बर को उसी वक्त से नई राह तलाशने में जुट गये होंगे जबकि विक्रम लैण्डर चन्द्रमा से मात्र 2.1 किमी की दूरी से बहक गया था। चांद की सतह पर तिरछे पड़े विक्रम लैंडर को ढूंड निकालना और उसे पुनः सक्रिय करने के निरन्तर प्रयास उनके दृढ़ संकल्प का ही द्योतक है।
विज्ञान प्रयोगों के आधार पर आगे बढ़ता है और प्रयोग जब विफल होते हैं तो विफलता के कारणों का पता लगाने से ही सफलता की राह मिलती है और यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि मानव विकास के इतिहास के साथ समानान्तर रूप से चल रहा है। अन्तरिक्ष की दौड़ में शामिल राकेटों का इतिहास भी भिन्न नहीं है। माना जाता है कि किसी निर्जीव वस्तु को आसमान में दागने का प्रयोग ईसा से 400 वर्ष पूर्व इटली के टारेन्टम निवासी आर्चिटस ने लकड़ी के कबूतर को उड़ा कर दी थी। फिर चीन में खेाखले बांस के डंडे के अन्दर बारूद भर कर उसे दुश्मन पर दागने और मंगोलों द्वारा उसे अपने शस्त्रागार का अंग बनाने के भी संदर्भ मिलते हैं।  बहुत दूर के इतिहास में जाने की जरूरत भी नहीं है। भारत ने जब 19 अप्रैल 1975 को अपने वैज्ञानिकों द्वारा तैयार पहले उपग्रह आर्यभट्ट को सोबियत संघ से उनकी ही मदद से प्रक्षेपित किया तो भारत के राजनीतिक नेतृत्व और उसके वैज्ञानिकों ने स्वयं अपने बलबूते अपने ही प्रक्षेपण स्थल से उपग्रह प्रक्षेपित करने का संकल्प लिया जिसे 10 अगस्त 1979 को पूरा करने की बारी आयी तो उपग्रह आसमान में जाने के बजाय बंगाल की खाड़ी में जा गिरा। इसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाना था लेकिन ईंधन में लीकेज के कारण मिशन विफल हो गया। इस मिशन के निदेशक डा0 .पी. जे. अब्दुल कलाम थे और उस समय इसरो अध्यक्ष सतीश धवन थे। बकौल डा0 कलाम इस नाकामयाबी पर सतीश धवन ने प्रेस कान्फ्रेंस बुलायी और और कहा कि ‘‘इस मिशन में हम विफल हो गये हैं लेकिन मुझे अपनी टीम पर पूरा भरोसा है और अगली बार हम निश्चित रूप से कामयाब होंगे।’’ इस विफलता के बावजूद डा. .पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में ही मिशन जारी रहा और अन्ततः 18 जुलाई 1980 को भारत का पहला उपग्रहरोहिणीभारत में निर्मित उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी-3) से प्रक्षेपित कर पृथ्वी की कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित कर दिया गया। लेकिन इस ऐतिहासिक सफलता के अवसर की प्रेस कान्फ्रेंस के लिये सतीश धवन ने स्वयं आगे आने के बजाय डा0 कलाम को आगे कर दिया। मतलब यह कि विफलता का अपयश लेने वाले इसरो अध्यक्ष ने सफलता का श्रेय भी लेने के बजाय वह स्वर्णिम अवसर .पी.जे. कलाम को देकर एक आदर्श नेतृत्व का उदाहरण वैज्ञानिक बिरादरी के समक्ष पेश कर भविष्य के लिये एक नजीर पेश कर दी। आज की बात होती तो सजधज कर दिल्ली से कोई प्रेस कान्फ्रेंस करने पहुंच जाता। डा0 कलाम नेतृत्व के गुणों पर चर्चा करते समय अक्सर सतीश धवन और इस वाकये का उल्लेख करते थे।
रोहिणी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा शुरू की गई उपग्रहों की एक श्रृंखला थी जिसकी सफलता की शुरुआत रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड (आर टी पी) की विफलता की बुनियाद पर हुयी। इसके बाद भारत को अंतरिक्ष में दोड़ने के लिये खुला आसमान मिल गया। इसरो द्वारा विकसित किये गये पांच प्रमोचन प्रक्षेपण यान एसएलवी-3, एएसएलवी, पीएसएलवी, जीएसएलवी, एसएलवी मार्क-3, जिसका दूसरा नाम एएलवीएम-3 है, अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक अपने मिशन पूरे कर चुके हैं। इसरो के अधिकांश उपग्रह एवं अंतरिक्ष यान स्वदेशी पीएसएलवी और जीएसएलवी प्रमोचक राकेटों से ही प्रक्षेपित किये गये। इनमें चन्द्रयान प्रथम और मंगल कक्षित्र यान भी शामिल हैं। अक्टूबर 1994 से लेकर 2015 तक पीएसएलवी (धु्रवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट) ने एक के बाद एक 28 सफलताएं हासिल कीं। चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पी एस एल वी) से ही मानवरहित चन्द्रयान-1 इसरो द्वारा 22 अक्टूबर, 2008 सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया जो 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा। यह चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (एमआइपी) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा गाढ़ने वाला चौथा देश बना। यही नहीं पीएसएलवी ने अनेक विदेशी उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया। इसरो ने 5 जनवरी 2014 को एक विशालकाय जीएसएलवी श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से मात्र 18 मिनट बाद एक सुनिश्चित कक्षा में जीसैट-14 उपग्रह को स्थापित किया। उसी वर्ष 18 दिसम्बर को सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से एलवीएम-3 एक्स के द्वारा दो बड़े ठोस राकेट बूस्टर और राकेट द्रव्य का परीक्षण किया गया। इसके बाद 15 जनवरी 2017 को इसरो ने पीएसएलवी-सी 37 के द्वारा एक साथ 104 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर अंतरिक्ष में भारत की सफलताओं का डंका बजा दिया। जून 2016 में इसरो ने एक ही राकेट पीएसएलवी द्वारा 20 उपग्रह प्रक्षेपित किये थे। इससे पहले इसरो 5 नवम्बर 2013 कोमंगल कक्षित्र मिशनलांच कर चुका था जिसने लगभग 67 करोड़ किमी की यात्रा अंतरिक्ष में तय की।
4 जुलाइ 1957 को दुनियां का पहला अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित करने वाले सोबियत संघ और फिर 21 जुलाइ 1969 को चांद पर अपोलो-11 के कमाण्डर नील आर्म्सस्ट्रांग को उतारने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका को भी अंतरिक्ष में सफलताओं के झण्डे गाढ़ने से पहले कई बार विफलताओं का सामना करना पड़ा है। सन् 1963 में 4 जनवरी को स्पुतनिक-25 का सफल प्रक्षेपण तो हुआ मगर उसके बाद खराबी के चलते उसका राकेट पृथ्वी की कक्षा से बाहर नहीं निकल पाया था। इसके बाद सोबियत संघ के लूना -6 नम्बर-3 (3 जनवरी 1963 को प्रक्षेपित), लूना-4 (2 अप्रैल 1963 को प्रक्षेपित), लूना--6 नम्बर-6 (21 मार्च 1964 को प्रक्षेपित), कास्मोस-60 (12 मार्च 1965 को प्रक्षेपित),  लूना -60 नम्बर-8 (10 अप्रैल 1965 को प्रक्षेपित), लून-5 ( 9 मई 1965 को प्रक्षेपित), लूना-6 (8 जून 1965 को प्रक्षेपित), लूना-7 ( 4 अक्टूबर 1965 को प्रक्षेपित), लूना-8 (3 दिसम्बर 1965 को प्रक्षेपित), और लूना -18 ( 2 दिसम्बर 1971 को प्रक्षेपित) मिशन विफल रहे थे। लूना-8 की चांद पर साफ्ट लैंडिंग होनी थी लेकिन वह आसानी से उतरने के बजाय चांद की सतह पर टकरा गया। सोबियत संघ ने पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गैगरिन को 1961 में अंतरिक्ष में भेजा था। भारत का चन्द्रयान-2 मिशन भी चांद पर क्रैश लैंडिंग के बजाय साफ्ट लैंडिंग का ही था जो 7 सितम्बर 2019 को विफल रहा। इसी तरह अमेरिका ने 20 सितम्बर 1966 को सर्वेयर-2 प्रक्षेपित किया था जो चांद की सतह से 130 किमी की दूरी पर पलट गया। 14 जुलाई 1967 को पक्षेपित सर्वेयर-4 भी चांद पर लैंडिंग से ढाइ मिनट पहले रेस्ट्रोराकेट में संभावित विस्फोट से उसका भी सम्पर्क धरती के कमाण्ड कण्ट्रोल से टूट गया। इजराइल का भी बेरेशीट मिशन  22 फरबरी 2019 को विफल रहा।
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम नया नहीं है और हमारी सफलताएं तथा विफलताएं भी कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ती रहती हैं। विज्ञान केवल आसमान में नयी संभावनाएं तलाशने के साथ ही अंतरिक्ष की अबूझ पहेलियों को बूझने का प्रयास कर रहा है बल्कि धरती पर मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिये जूझा हुआ है। वह पशु-पक्षियों और पादप जगत के हित में भी निरन्तर अनुसंधानों में जूझा हुआ है। इस महान बिरादरी के महान कार्यों का श्रेय छीन कर अपने सिर पर सजाने की प्रवृत्ति को भी प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये।
जयसिंह रावत
-11 फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9412324999





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