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Friday, July 26, 2019
कारगिल युद्ध से कितना सबक लिया हमने?
कारगिल युद्ध से कितना सबक लिया हमने? युद्ध के लिए वाकई तैयार है भारतीय सेना?
जयसिंह रावत Updated Fri, 26 Jul 2019 12:56 PM IST
कारगिल युद्ध में विजय का जश्न मनाते हुए हमें पूरे 20 साल हो गए। जश्न तो स्वाभाविक ही है क्योंकि यह दुनिया के युद्धों के इतिहास का एक असाधारण युद्ध था जो कि समुद्रतल से 17500 फुट से अधिक ऊंचाइयों पर बेहद कठिन चट्टानों पर भारत की सेना के अदम्य साहस, पराक्रम और सर्वोच्च बलिदान की भावना से लड़ा गया और जीता भी गया। आण्विक शस्त्र बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था। इस युद्ध में हमारे 527 जांबाज सैनिकों ने हमारे भविष्य के लिए अपने वर्तमान का सर्वोच्च बलिदान दिया इनमें 75 जांबाज अकेले उत्तराखण्ड के थे। इस युद्ध में भारतीय सेना ने दुनिया में एक बार फिर अपना लोहा तो मनवाया मगर हमारे राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही ने कोई सीख नहीं ली। दरअसल, कारगिल युद्ध से कोई सबक लिया होता तो उसके बाद पुलवामा जैसे काण्ड नहीं होते और ना ही हमारे हजारों जांबाज सैनिकों अपनी जान से हाथ धोना पड़ता।
हमारी रक्षा तैयारियों पर चिन्ता जताने वाली संसदीय समिति के अध्यक्ष रहे मेजर जनरल (से.नि) भुवन चन्द्र खण्डूड़ी को पद से हाथ धोना पड़ा। लेकिन उनकी जगह जब कलराज मिश्र को समिति का अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने भी रक्षा तैयारियों पर लगभग वहीं चिन्ताएं अपनी रिपोर्ट में प्रकट कीं जो कि जनरल खण्डूड़ी की अध्यक्षता वाली समिति ने प्रकट की थीं।
कारगिल के बाद भी खुफिया तंत्र न जागा
कारगिल विजय का जश्न मनाना हमारी सेना का मनोबल ऊंचा रखने के लिए जरूरी है क्योंकि सेना के लिए उच्च मनोबल उसकी शक्ति को ही कई गुना बढ़ाता है। इसके साथ ही कृतज्ञ राष्ट्र के लिए विजय दिवस इसलिये मनाना जरूरी है हमारे जांबाज सैनिक हमारे कल के लिए अपना वर्तमान का बलिदान देते हैं। लेकिन हमारे लिए विजयोल्लास के साथ ही अति दुर्गम चोटियों पर लड़े गए उस युद्ध से सबक लेना भी जरूरी है। कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना और मुजाहिद्दीनों द्वारा इतने बड़े पैमाने पर घुसपैठ और वहां बंकर बनाकर किलेबन्दी करना हमारे खुफिया तंत्र की बड़ी विफलता थी। इसकी जानकारी भी मार्च में भेड़ बकरियां चराने वाले बकरवालों ने सेना को दी थी। इसकी जानकारी भारत के शत्रुओं पर पैनी नजर रखने वाली खुफिया ऐजेंसी राॅ को भी काफी बाद में हुई। कहा जाता है कि इस घुसपैठ की जानकारी पत्रकारों द्वारा सरकार को दी गई थी। हमारी खुफिया ऐजेंसियों की विफलता और सरकार की लापरवाही से हमें मई से लेकर 26 जुलाई तक इतिहास की सबसे कठिन माउण्टेन वार लड़नी पड़ी जिसमें हमें अपने 527 बहादुर सैनिक गंवाने के साथ ही हमारे हजारों सैनिकों को घायल होना पड़ा। युद्ध के कारण आर्थिक रूप से जो नुकसान उठाना पड़ा वह अलग है। लेकिन इतने बड़े कारगिल कांड से हमने अगर कुछ सीखा होता तो पुलवामा में हमें अर्ध सैन्यबल के 40 जवानों को नहीं खोना पड़ता। पुलवामा से पहले पठानकोट, पम्पोर, उरी, बारामुला, हण्डवारा, शोपियां और जाकुरा में सैनिकों या सैन्य शिविरों पर भी पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के कई हमले हो चुके हैं।
सुन्जवान आर्मी कैंप पर आतंकियों ने 10 फरवरी 2018 को सैनिकों के परिवारों को लक्ष्य बनाया था। अगर हमने कारगिल से कुछ सबक लिए होता और अपना खुफिया तंत्र चुस्त किया होता और हमारे इतने जांबाज सैनिकों और अर्ध सैनिकों की जानें नहीं जातीं।
हमारी ताकत धरती पर कम और आसमान में ज्यादा बढ़ी
इसमें दो राय नहीं कि कारगिल युद्ध के बाद भारत की सामरिक क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत ने मिशन ‘‘शक्ति’’ के तहत् गत् 27 मार्च को एसैट प्रक्षेपास्त्र से अन्तरिक्ष में एक लक्षित उपग्रह को मार गिरा कर धरती पर ही नहीं बल्कि आसमान में भी अमेरिका, रूस और चीन के साथ अपनी बराबरी दर्ज कर ली। कारगिल के बाद भारत की तीनों सेनाओं के शस्त्रागार की क्षमता भी बढ़ी है। वायुसेना द्वारा 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट पर हमला किया जाना आसमान में हमारे बढ़ते दबदबे का ही एक उदाहरण है। विवादों के बावजूद अति आधुनिक युद्धक विमान राफेल को हासिल करने से भी भारत की वायुशक्ति में भी काफी इजाफा होने जा रहा है। लेकिन तीनों सेनाएं अब भी गोला बारूद के साथ ही अन्य साजो-सामान के लिए नौकरशाही और उससे प्रभावित राजनीतिक नेतृत्व के समक्ष जद्दोजहद कर रही हैं। हमारा राजनीतिक नेतृत्व और खासकर सेना के आधुनिकीकरण के लिए धन उपलब्ध कराने वाला वित्त मंत्रालय पाकिस्तान के साथ ही चीन जैसे महाबली के विरुद्ध दो मोर्चों पर डटी भारतीय सेना की ताकत बढ़ाने के प्रति कितना सजग है उसका जीता जागता उदाहरण संसद की रक्षा मामलों की 40वीं और 41 वीं रिपोर्ट ही काफी हैं।
सेना के पास 10 दिन की लड़ाई के लिए भी नहीं है गोला-बारूद
मेजर जनरल (सेनि) भुवन चन्द्र खण्डूड़ी की अध्यक्षता वाली रक्षा मामलों की संसदीय समिति की 40वीं रिपोर्ट जब मार्च 2018 में संसद में पहुंची तो समिति के अध्यक्ष जनरल खण्डूड़ी को 20 सितम्बर 2018 को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। जबकि सामान्यतः कमेटी पांच साल के लिए होती है इसलिए उसके अध्यक्ष को बीच में नहीं हटाया जाता है।
दरअसल, खण्डूड़ी वाली समिति ने रक्षा तैयारियों में हो रही लापरवाहियों पर घोर चिन्ता प्रकट की थी। इस समिति ने रक्षा बलों पर हो रहे आतंकी हमलों से निपटने की तैयारियों पर भी टिप्पणी की थी। लेकिन जब खण्डूड़ी की जगह वरिष्ठ भाजपा नेता एवं सांसद कलराज मिश्र को समिति का अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने भी लगभग उन्हीं बिन्दुओं पर अपनी चिन्ताएं जाहिर कीं। इस समिति की रिपोर्ट में साफ कहा गया कि अगर किसी भी देश से पूर्ण और लंबे समय तक चलने वाला युद्ध होता है तो भारतीय सेनाओं के पास 10 दिन का भी पूरा साजो सामान और गोला बारूद नहीं है।
68 प्रतिशत साजो सामान और हथियार बहुत पुराने
खण्डूड़ी की अध्यक्षता वाली समिति ने इस रिपोर्ट में बताया था कि हमारे करीब 68 प्रतिशत गोला-बारूद और हथियार पुराने जमाने के हैं। केवल 24 प्रतिशत ही ऐसे हथियार हैं, जिन्हें हम आज के जमाने के हथियार कह सकते हैं और सिर्फ आठ प्रतिशत हथियार ऐसे हैं, जो ‘‘स्टेट ऑफ द आर्ट’’ यानी अत्याधुनिक श्रणी में रखे जा सकते हैं। यानी सेना के पास अधिकतर हथियार बहुत पुराने समय के हैं और उनकी जगह तुरन्त नये हथियार खरीदे जाने की जरूरत है। वर्तमान में किसी भी आधुनिक सेना के पास मुश्किल से सिर्फ एक तिहाई हथियार ही ऐसे रह जाते हैं, जिन्हें पुराना कहा जा सके। समिति ने यह भी कहा था कि हमारी सेनाओं के पास धन की बेहद कमी है और युद्ध छिड़ जाने पर मौजूदा स्टॉक से हम मुश्किल से दस दिन की लड़ाई ही पाकिस्तान से लड़ सकते हैं, वह भी तब जब चीन मैदान में न हो। रिपोर्ट में कहा गया था कि रक्षा बजट 2018-19 में सेना ने राजस्व व्यय में 1,51,814 करोड़ मांगे थे लेकिन उसे केवल 1,27,059 करोड़ ही मिले। इसी प्रकार पूंजीगत् व्यय में सेना को 44,572 करोड़ की जरूरत थी मगर उसे केवल 26,815 करोड़ ही मिले।
सेना का सामना दो दुश्मनों से
खण्डूड़ी की अध्यक्षता वाली स्मिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पाकिस्तान और चीन दोनों अपनी सेनाओं को आधुनिक बनाने में जी-जान से लगे हुए हैं। जहां चीन का लक्ष्य अमेरिका की बराबरी करना है, वहीं पाकिस्तान भारत को पछाड़कर आगे निकल जाना चाहता है। हमारे सामने दोनों ओर से चुनौती है, लेकिन हमारा रक्षा बजट इस क्षेत्र में सिर्फ आंशिक या न के बराबर योगदान कर रहा है। यही नहीं कई बार तो सेना को धन का आवंटन पिछले वर्ष के मुकाबले घट ही गया। वह ऐसे कि जिस रफ्तार से मुद्रास्फीति बढ़ी, उससे भी कम बढ़ोतरी रक्षा बजट पर की गई। ऑपरेशन और मेंटेनेंस के मद में विगत् साल से कुल 3.73 प्रतिशत अधिक आवंटित तो किया गया, लेकिन मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत तक रही। यानी अगर औसत मुद्रास्फीति को हिसाब में ले लें, तो बढ़ोत्तरी नकारात्मक हो गई। सेना के आधुनिकीकरण की 125 योजनाओं के लिए 29,033 करोड़ के इंतजाम का वादा किया गया था, पर 21,338 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए। समिति के समक्ष सेना द्वारा बताया गया कि उसके पास किसी भी सूरत में दस दिन तक लड़ने के लिए साजो सामान का रिजर्व रहना जरूरी है। इस मद में 9,980 करोड़ रुपए की मांग सेना ने रखी थी, लेकिन उसे कुल 3600 करोड़ रुपए ही आवंटित हुए।
इधर, अभी सेना के बजट का करीब 63 प्रतिशत वेतन देने में निकल जाता है। मैंटेंनेंस और ऑपरेशनल जरूरतों के लिए 20 प्रतिशत और करीब 3 प्रतिशत आधारभूत ढांचे पर खर्च होता है। इसके बाद बचा 14 प्रतिशत धन ही आधुनिकीकरण के लिए खर्च किया जाता है, जबकि सेना पिछले कई सालों से इसको कम से कम 22 से 25 प्रतिशत करने की मांग कर रही है। दुनिया की आधुनिक सेनाएं कम से कम 40 प्रतिशत धन इस मद में खर्च कर रही हैं।
कुल मिलाकर हालात बहुत ही खराब
वायुसेना के प्रतिनिधि ने कमेटी को बताया कि बजट में कमी की वजह से मरम्मत के लिए जरूरी कलपुर्जे और ईंधन खरीदना मुश्किल हो रहा है। इससे हमारे हवाई बेड़े की मेंटेनेंस और ट्रेनिंग प्रभावित हो रही है। कमेटी ने इस बात पर रिपोर्ट में कड़ी नाराजगी जाहिर की थी कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठानों (समुद्री अड्डों समेत) की सुरक्षा के मौजूदा इंतजाम बहुत ही घटिया है। मतलब यह कि सैन्य व अन्य सुरक्षा प्रतिष्ठानों की अपनी खुद की सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर है कि वे आसानी से आतंकवादी हमलों की चपेट में आ जाते हैं। इसी सन्दर्भ में समिति ने सुन्जुवान आर्मी कैम्प पर आतंकवादी हमले का उल्लेख किया था और कहा था कि हमें इंक्वायरी और पॉलिसी अनाउंसमेंट मत सुनाइए, हमको बताइए कि सिक्योरिटी सिस्टम को मजबूत करने का आपका क्या प्लान है? इन प्रतिष्ठानों और मोर्चों के आधुनिकीकरण के लिए आपकी क्या योजना है? इन ठिकानों की सुरक्षा के लिए कौन-सी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है? अभी तक क्यों नहीं हुआ?
सेना के प्रतिनिधि ने कमेटी के सामने अपना बयान देते हुए कहा कि कुल मिलाकर हालात बहुत ही खराब हैं। सेना के प्रतिनिधि ने समिति के समक्ष कहा कि यदि हम दो मोर्चों पर युद्ध के लिए सेना को तैयार रखना चाहते हैं, तो तत्काल सेना के आधुनिकीकरण के काम को देश में सबसे बड़ी प्राथमिकता के तौर पर ही लेना होगा, फिलहाल न तो स्पष्ट नीति पर कोई ध्यान है और न ही बजट उपलब्ध है।
कलराज मिश्रा समिति ने भी असन्तोष जताया
कलराज मिश्र की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की 7 जनवरी 2019 को संसद के दोनों सदनों में पेश की गई। रिपोर्ट में रक्षा बजट में सेना की मांग के अनुरूप बजट न मिलने की बात कही। समिति ने भी मांग से 41,512.14 करोड़ कम मिलने का उल्लेख करने के साथ ही सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से 4427 करोड़ का व्ययभार बढ़ने का उल्लेख किया। समिति ने सेना की आधुनिकीकरण की मांगों पर वित्त मंत्रालय की पैनी कैंची का उल्लेख करना नहीं भूली। यही नहीं कलराज मिश्र की अध्यक्षता वाली समिति ने 41वीं रिपोर्ट में यहां तक कहा कि एक पेशेवर ताकतवर सेना का सैन्य साजो सामान, उपकरण और गोला बारूद का एक-एक तिहाई समय के तीन चक्रों में श्रेणीबद्ध होना चाहिए। इसमें एक तिहाई साजो सामान एवं शस्त्रागार विन्टेज या पुराना, एक तिहाई वर्तमान में प्रचलित श्रेणी में तथा शेष एक तिहाई स्टेट ऑफ आर्ट यानी की अगली पीढ़ी के योग्य अत्याधुनिक होना चाहिए। मगर हमारी सेना के पास 68 प्रतिशत साजो सामान विन्टेज श्रेणी का या प्रचलन में पुरानी हो चुकी श्रेणी, 24 प्रतिशत वर्तमान में प्रचलित श्रेणी का और मात्र 8 प्रतिशत अत्याधुनिक श्रेणी का है।
सेना के आधुनिकीकरण पर ध्यान नहीं
समिति की रिपोर्ट के पैराग्राफ 13 में कहा गया कि 2012 से 2027 की दीर्घकालीन आधुनिकीकरण योजना के तहत थल सेना ने 2012 से 2018 तक 10,64,336 करोड़ की मांग की थी, लेकिन उसे 8,78,001 करोड़ ही मिले। इस प्रकार इस मद में भी उसे 1,86,335 करोड़ रुपये आवश्यकता से कम मिले। यही बात पिछली समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में कही थी। समिति ने रिपोर्ट में कहा था कि सेना ने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत 25 प्रोजेक्ट तय किए थे। इनमें से दो तिहाई तो शुरुआती महीनों में ही बजट की कमी से बंद हो गए। बाकी के लिए भी बजट इतना कम है कि इन्हें जारी रखना अनिश्चित है।
सैनिकों के पास बुलेट जैकेट नहीं
समिति ने सैनिकों के लिए बुलेट प्रूफ जैकेटों का मामला भी उठाया और कहा कि समिति इस मुद्दे को गत् 5 सालों से निरन्तर उठा रही है, लेकिन इस दिशा में बहुत सन्तोषजनक कार्य नहीं हो पा रहा है। इसका मतलब है कि सेना के आधुनिकीकरण और अपग्रेडेशन पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जबकि राजनीतिक शासकों के लिए महंगी से महंगी बुलेट प्रूफ जैकेट मंगाई जाती है। जाहिर है कि सरकार के लिए सैनिकों की जान से अधिक राजनीतिक नेताओं की जान की ज्यादा फिक्र होती है।
सेना में अधिकारियों की कमी
समिति के समक्ष सेना के प्रतिनिधि ने बताया कि थल सेना में अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 49,932 है जिसके विपरीत केवल 42,235 ही अधिकारी उस समय उपलब्ध थे। यह कमी लगभग 14 प्रतिशत आंकी गई है। इसी प्रकार जेसीओ तथा अन्य रैंक के कुल 12,15,049 स्वीकृत पदों के विपरीत 11,94,864 सैन्यकर्मी ही तैनात थे। समिति को बताया गया कि प्रतिवर्ष 1 प्रतिशत की दर से यह कमी दूर की जा रही है जिससे समिति सन्तुष्ट नहीं थी।
नेवी और एयर फोर्स भी बजट की कमी से त्रस्त
कलराज मिश्रा समिति ने नेवी में भी मांग से 40 प्रतिशत कम बजट मिलने पर भी चिन्ता जताई थी। समिति को बताया गया कि 2018-19 के बजट में नेवी को 15,083 करोड़ का आबंटन हुआ जबकि उसका प्रतिबद्ध खर्च ही 25,106.74 करोड़ था। इसी प्रकार समिति ने वायुसेना के बजट पर भी असन्तोष प्रकट किया। वायु सेना में प्रशिक्षण विमानों की संख्या 310 है जबकि उसकी जरूरत 432 विमानों की थी।
कारगिल युद्ध में उत्तराखण्ड टाप पर
समुद्रतल से लगभग 17 हजार फुट से अधिक उंचाई पर शून्य से नीचे 11 से लेकर 15 डिग्री के तापमान में लगभग 160 कि.मी. तक फैले रणक्षेत्र की कारगिल और द्रास की जैसी चोटियों पर लड़े गए इस भीषणतम युद्ध में लगभग 30 हजार सैनिकों ने भाग लिया, जिसमें 527 सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इन में से 75 शहीद उत्तराखण्ड के थे। इनके अलावा लगभग 30 अर्धसैनिकों ने भी इस संघर्ष में मातृभूमि की खातिर अपने प्राण गंवाए। इनमें मेजर विवेक गुप्ता और मेरी राजेश अधिकारी को मरणेापरान्त महावीर चक्र मिला। वीर चक्र से अंलकृत होने वाले उत्तराखण्डियों में कश्मीर सिंह, बृजमोहन सिंह,अनुसूया प्रसाद, कुलदीप सिंह, ए.के.सिन्हा, के.उस. गुरुग, शशिभूषण घिल्डियाल, रूपेश प्रधान एवं राजेश शाह शामिल थे। हालांकि बिक्रम बत्रा और मनोज पाण्डे जैसे कई महान बलिदानी उत्तराखण्ड में नहीं जन्में थे मगर उनका प्रशिक्षण देहरादून की भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ था।
उत्तराखण्ड के कारगिल शहीदों में देहरादून से 18,पौड़ी से 17, टिहरी से 15, चमोली से 11, पिथौरागढ़ से 5, नैनीताल से 3, अल्मोड़ा से 3, उत्तरकाशी, बागेश्वर और रुद्रप्रयाग से एक-एक शहीद शामिल हैं। पहाड़ी होने के कारण इस पहाड़ी युद्ध में गढ़वाल रायफल्स की 10वीं, 14वी, 17वीं और 18वीं बटालियनें तैनात थीं। इसी प्रकार कुमाऊं रेजिमेंट की यूनिटों ने भी अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानियों को मार भगाने में अहम भूमिका अदा की। इस युद्ध में उत्तराखण्ड के 15जांबाजों को सेना मेडल, एवं 11 को मेंन्सन इन डिस्पैच जैसे बहादुरी के पुरस्कार मिले।
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