त्रिवेन्द्र सरकार में खाली कुर्सियां-
दो अनार दर्जनों दावेदार
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत एक ओर तो 35 विभागों का बोझ स्वयं ढो रहे हैं और दूसरी ओर उनके मंत्रिमण्डल में पिछले 9 महीनों से खाली दो पद भरे नहीं जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने गृह] ऊर्जा] पीडब्ल्यूडी एवं चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी स्वयं अपने पास रखे हुये है। इतने महत्वपूर्ण विभागों के लिये मुख्यमंत्री के पास समय नहीं होता है। इसलिये संवैधानेत्तर पदों पर बैठे उनके सलाहकार ये विभाग चला रहे हैं। हरवंश कपूर] मुन्ना सिंह चौहान] विशन सिंह चुफाल जैसे वरिष्ठ विधायकों को मंत्रिमण्डल से बाहर रखा गया है और ऐसे विधायकों को मंत्री बना दिया जिन पर 11 &11
मुकदमें चल रहे हैं। कांग्रेस से बगावत कर भाAजपा में शामिल वे नेता मंत्री बन गये जो कि पिछले साल इन दिनों भाजपा को गरियाते-गरियाते थकते नहीं थे। एक नेता कहता था कि राहुल गांधी के हाथ में पारस मणि है जिसे छू दे वह सोना बन जाय। वही नेता अब नमोनाद निनाद कर रहा है। जबकि भाजपा के निष्ठावान नेता सरकार से बाहर लार टपका रहे हैं। मुख्यमंत्री के पास वैसे ही समय कम होता है और ऊपर से विभागों के बोझ के कारण फाइलें मुख्यमंत्री कार्यलय में डंप होती जा रही हैं। मार्च का महीना सन्निकट है और विकास के लक्ष्य अभी बहुत दूर हैं। ऊपर से भाजपा ने अभी नगर निकाय चुनावों और फिर पंचायत चुनावों में जाना है। अगले साल लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को जाना है। अगर सरकार रिजल्ट नहीं दे पायेगी तो उत्तराखण्ड में 2009 और 2014 का इतिहास दुहराये जाने का खतरा भाजपा पर मंडरा रहा है। मुख्यमंत्री अगर शुरू में ही दोनों पद भर लेते तो इतनी समस्या नहीं आती। आज हाल यह है कि अगर मुख्यमंत्री ने अपनी बंद मुट्ठी खोल दी तो फिर पार्टी में वैसी ही बगावत खड़ी हो सकती है जैसी कि भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के कार्यकाल में हुयी थी। क्योंकि मंत्रिमण्डल में पद तो केवल दो खाली हैं मगर उनके दावेदार कम से कम दो दर्जन विधायक हैं।
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