Search This Blog

Saturday, January 6, 2018

उत्तराखंड में ख़बरों पर भी पहरा

https://ssl.gstatic.com/ui/v1/icons/mail/profile_mask2.png  मीडिया पर पाबन्दी पर उत्तराखंड के  मुख्यमंत्री के मीडिया कोआडिनेटर दर्शन सिंह रावत  द्वारा जारी स्पष्टीकरण
darshan rawat

देहरादून, दिनांक 06 जनवरी, 2018:-मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने शनिवार को मुख्यमंत्री आवास में मीडिया से अनौपचारिक वार्ता करते हुए कहा कि सरकार की खबरों का मीडिया को पूरी ब्रीफिंग होनी चाहिए। इसके लिये यह व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है कि मीडिया को एक काउण्टर पर सभी खबरे उपलब्ध हो। सरकार का उद्देश्य किसी भी खबर को मीडिया से छिपाने का नही है। समस्या यह रहती है कि कभी-कभी बिना आग के भी धुंआ निकलता दिखायी देता है जिससे सरकार एवं मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठते है। सरकार और मीडिया की विश्वसनीयता बनी रहे इसके लिये अविश्वास का माहौल दूर होना चाहिए। मीडिया को पूरी सूचनायें यथा समय उपलब्ध हो, इसके लिये राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। मीडिया से किसी भी प्रकार की कोई खबर छिपाना राज्य सरकार का उद्देश्य नही है। उन्होंने कहा कि कभी कभी अखबारों में ऐसे समाचार छप जाते हैं जो बिना किसी वजह के सरकार और मीडिया पर लोगों की विश्वसनीयता को कम करता है। 
शासकीय अनुदान प्राप्त मदरसों में प्रधानमंत्री की फोटो लगाये जाने के सम्बन्ध में कतिपय मदरसों द्वारा किये जा रहे विरोध के सम्बन्ध में पूछे गये सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि प्रधानमंत्री जैसी बड़ी संस्था की फोटो सभी सरकारी सरकारी अनुदान प्राप्त संस्थाओं में लगाये जाने की व्यवस्था रही है। इस सम्बन्ध में मदरसों को अपनी रूढ़िवादिता तोडनी चाहिए। मदरसा भी एक प्रकार का शिक्षण संस्थान ही है। संस्थानों में प्रधानमंत्री की फोटो लगाये जाने का विरोध किया जाना उचित निर्णय नही कहा जा सकता है। इस प्रकरण को भारतीय नजरिये से देखने में कोई भी आपत्ति नही होनी चाहिए। 

उत्तराखंड में ख़बरों पर भी पहरा

सचिवालय के अन्दर कार्यालयों में पत्रकारों के प्रवेश के बारे में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी की ओर से उनके मीडिया समन्वयक दर्शन सिंह रावत जी ने स्पष्टीकरण जारी किया है जो कि हास्यास्पद होने के साथ ही मुख्यमंत्री जी के मीडिया प्रकोष्ट की अपरिपक्वता, आज्ञानता और तंग सोच का एक जीता जागता नमूना है। दर्शन सिंह जी कहते हैं कि सरकार का एक काउंटर पर सारी खबरें उपलब्ध कराने का इरादा है। दर्शन सिंह जी! चलो माना कि मैं मूर्ख था और अज्ञानी भी था इसलिये मैं आपको आपके पत्रकारिता कैरियर की शुरुआत में खबर के बारे में सही पाठ नहीं पढ़ा सका। लेकिन मेरे बाद तो आप मेरे से बड़े पत्रकारों के पास चले गये थे। उन्होंने तो आपको सिखाया होगा कि खबर क्या होती है और कैसे निकल कर कहां भेजी जाती है। खेद है कि आप इतने सालों बाद भी खबर का मतलब नहीं समझ पाये। मुख्यमंत्री जी और उनके उद्भट सलाहकारों के अनुसार खबर वही होती है जो कि सरकार उपलब्ध कराती है। कोई अन्य सूचना या घटना जो कि सरकार को अप्रिय लगे वह इनके हिसाब से खबर नहीं होती है। पाठक या श्रोता की जिज्ञासा को शान्त करने वाली बात या सूचना कहीं भी छिपी हो सकती है और जरूरी नही कि वह सूचना सरकार के पक्ष या विपक्ष में हो। दर्शन भाई के अनुसार खबर वही हो सकती है जो कि सरकार द्वारा सरकार की और सराकर के लिये हो। मैं दर्शन को हमेशा छोटे भाई के तौर पर मानता रहा हॅंू और मुझे उम्मीद थी कि मेरा भाई इतने साल पत्रकारिता में व्यतीत करने के बाद कम से कम खबर या समाचार की परिभाषा तो सीखा होता ! बिना आग के धुआं नहीं होता, वाली कहावत जग जाहिर है। यह कहावत इतनी प्रसिद्ध हुयी कि इसका अंग्रेजी में भी रूपान्तर हो गया। अंग्रेजी में इसी कहावत को इस तरह कहते हैं कि ...दियर इज नो स्मोक विदाउट फायर.... या ह्वेर दियर इज नो स्मोक दियर इज नो फायर... मुख्यमंत्री जी के विद्वान मीडिया समन्वयक ने इस कहावत का पोस्टर्माटम कर यूं पेश कर दिया ...कभी-कभी बिना आग के भी धुआं निकलता दिखाई देता है।...इनकी इस कहावत रचनाधर्मिता पर रोया जाय या हंसा जाय, समझ में नहीं आता। वैज्ञानिक दृष्टि से भी आप आग और धुंयें को अलग नहीं कर सकते। इस सरकारी स्पष्टीकरण में दर्शन सिंह जी ने मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया है, मगर उससे पहले ये नहीं सोचा कि अगर किसी ने आप की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिया तो फिर क्या जवाब देंगे! विज्ञप्ति में अविश्वास का महौल पैदा होने की बात भी कही गयी है। अगर आप इस तरह से सूचनाओं पर पहरे लगायेंगे और शासन प्रशासन में पारदर्शिता के बजाय व्यवस्था को अपारदर्शी बनायेंगे तो अविश्वास का महौल नही ंतो विश्वास का महौल कैसे पैदा होगा? खेद का विषय है कि जो व्यक्ति पत्रकार के रूप में पिछले ही साल चुनाव अभियान शुरू होने से पहले तक (फील्ड से डेस्क में जाने तक) सचिवालय में हर रोज एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर के चक्कर लगाता था और खबरों को सूंघते -सूंघते सक्शनों में पड़ी फाइलों तक पहुंच जाता था वही व्यक्ति इतनी जल्दी बदल गया कि उसे पत्रकारिता का यह कर्म अधर्म लगने लग या। अफसोस है कि गिरगिट भी इतनी जल्दी रंग नहीं बदलता।

No comments:

Post a Comment