मदिरा प्रेमियों के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून कहाँ ?
-जयसिंह रावत
शराब भले ही
स्वास्थ्य के लिये
हानिकारक हो मगर
यह सरकारों की
आर्थिकी के लिये
किसी टॉनिक से
कम नहीं है।
इसीलिये हाल ही
में जब लॉकडाउन
में थोड़ी ढील
मिली कि उनींदी
राज्य सरकारों का त्रिनेत्र सबसे पहले
शराब की दुकानों
पर ही खुला।
इन दुकानों का
चाहे कितना भी
विरोध क्यों न
हो मगर इस
सच्चाई से भी
मुंह नहीं मोड़ा
जा सकता कि
देश की 16 करोड़
से अधिक आबादी
मदिरा का सेवन
करती है और
इन करोड़ों मदिरा
प्रेमियों के भी
न केवल नागरिक
अधिकार हैं अपितु
वे उपभोक्ता भी
हैं, जिनके अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 ( 2019 में
संशोधित) के तहत
संरक्षित हैं।
शराब के लिये
महिलाओं
का
हुजूम
भी
टूट
पड़ा
बेंगलूरू के तवारेकरे
क्षेत्र की दुकान
से एक शख्श
4 मई को 52,841 रुपये
की शराब खरीद
कर ले गया।
उत्तर प्रदेश के
मिर्जापुर में शराब
की दुकान खुलते
ही दुकान संचालकों
द्वारा शुभ बोनी
के प्रतीक के
रूप में ग्रहकों
पर पुष्प वर्षा
का वीडियो सोशियल
मीडिया पर खूब
वायरल हुआ। कर्नाटक
के कोलार की
एक दुकान पर
जब 75 वर्षीय महिला
लक्षमम्मा पहुंची तो उसे
लक्ष्मी का प्रतीक
मानकर दुकानदार ने
उसे अपनी पहली
ग्राहक बना कर
सम्मानित किया ताकि
दुकान पर इसी
तरह धनवर्षा होती
रहे। अब तक
तो पुरुष ही
शराब के लिये
बदनाम रहे हैं।
शराबियों पर पत्नियों
के उत्पीड़न का
आरोप लगता रहा
है, लेकिन देश
के कई हिस्सों
में शराब की
दुकानों के आगे
जहां पुरुषों की
कई किमी लम्बी
कतारें देखीं गयीं वहीं
महिलाओं के लिये
उनकी मांग पर
अलग से लम्बी
कतारें सजाई गयीं।
कुल मिला कर
देखा जाय तो
लॉकडाउन में ढील
के पहले दिन
लाखों नहीं बल्कि
करोड़ों देशवासी सोशियल डिस्टेंसिंग
की परवाह न
करते हुये शराब
की दुकानों पर
उमड़ते नजर आये।
शराब के दीवानों
को न तो
महामारी का डर
और ना ही
आर्थिक संकट की
चिंता।
भारत में 16 करोड़
शराबी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
(एम्स) द्वारा कराए गए
एक सर्वेक्षण के
अनुसार देशभर में 10 से
75 साल की आयु
वर्ग के लगभग
16 करोड़ लोग (14.6 प्रतिशत) शराब
पीते हैं। सर्वेक्षण
के अनुसार छत्तीसगढ़,
त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश,
उत्तराखण्ड और गोवा
में शराब का
सबसे ज्यादा सेवन
किया जाता है।
एम्स द्वारा यह
सर्वे सभी 36 राज्यों
और संघ शासित
प्रदेशों में किया
गया था, जिसमें
कहा गया कि
राष्ट्रीय स्तर पर
186 जिलों के 2 लाख
111 घरों से संपर्क
किया गया और
4 लाख 73 हजार 569 लोगों से
इस बारे में
बातचीत की गई।
कुल 12 महीनों की अवधि
में लगभग 2.8 प्रतिशत
याने कि लगभग
3 करोड़ 1 लाख लोगों
ने भांग या
अन्य चीजों का
इस्तेमाल किया। भारत में
पांच में एक
व्यक्ति शराब पीता
है। सर्वे के
अनुसार 19 प्रतिशत लोगों को
शराब की लत
है। जबकि 2.9 करोड़
लोगों की तुलना
में 10-75 उम्र के
2.7 प्रतिशत लोगों को हर
रोज ज्यादा नहीं
तो कम से
कम एक पेग
जरूर चाहिए होता
है। सर्वे में
पहली बार महिलाओं
से जुड़े आंकड़े
भी शामिल किये
गये। इसके अनुसार
जहां 27 प्रतिशत पुरुष शराब
का सेवन करते
हैं वहीं शराब
का सेवन करने
वाली महिलाओं की
संख्या करीब 2 प्रतिशत है।
इतना ही नहीं
करीब साढ़े 6 प्रतिशत
महिलाओं को इलाज
की जरूरत थी।
शराब गृहणियों के
लिये
अभिशाप
तो
सरकार
के
लिये
बरदान
इस लॉकडाउन में शराबियों
से ज्यादा राज्य
सरकारें प्यासी नजर आ
रही हैं। शराब
के मामले में
दकियानूसी चाहे जितनी
भी हो मगर
सच्चाई यह है
कि राज्य सरकारों
के कर राजस्व
की 15 से लेकर
25 प्रतिशत तक की
भरपाई शराब की
ब्रिक्री से होती
है। इसलिये शराबियों
के परिवारों के
लिये भले ही
शराब एक अभिशाप
हो मगर राज्य
सरकारों की आर्थिकी
के लिये यह
एक बरदान है।
पिछले 40 दिनों से शराब
की बिक्री पर
रोक के चलते
अकेले दिल्ली राज्य
को सेकड़ों करोड़
की चपत लग
गयी है। राज्य
के 2020-21 के बजट
में आबकारी से
6,279 करोड़ का राजस्व
मिलने का अनुमान
लगाया गया था
लेकिन अब दिल्ली
सरकार ने यह
लक्ष्य 5,480 करोड़ का
पुनरीक्षित कर दिया
है। राज्य को
40 दिन के लॉकडाउन
में ही लगभग
654 करोड़ की राजस्व
हानि होने का
अनुमान है। पंजाब
के बजट में
शराब से प्रतिमाह
521 करोड़ का आबकारी
राजस्व अनुमानित था। कर्नाटक
ने लॉकडाउन के
कारण प्रतिदिन के
50 करोड़ के हिसाब
से कुल 2,050 करोड़
रुपये के आबकारी
राजस्व का नुकसान
होने का दावा
किया है।
शराबी से अधिक
राज्य
सरकारों
को
तलब
नशे से होने
वाली हानियों से
संविधान निर्माता अनविज्ञ नहीं
थे। इसलिये उन्होंने
संविधान के भाग-4
में अनुच्छेद 47 को
रखा जिसमें कहा
गया है कि
राज्य अपने नागरिकों
का जीवन स्तर
ऊंचा उठाने, सार्वजनिक
स्वास्थ्य में सुधार
करने तथा स्वास्थ्य
के लिए हानिकारक
नशीले पेय और
दवाओं के सेवन
पर रोक लगाने
का प्रयास करेगा।
लेकिन राज्य के
नीति निर्देशक तत्वों
में शामिल यह
अनुच्छेद, शराब पर
(उसके उपभोग पर)
सीधे तौर पर
प्रतिबंध नहीं लगाता
है, यह केवल
राज्य को उस
दिशा में प्रयास
करने के लिए
कहता है। ब्रिटिश
शासन में भी
आबकारी अधिनियम 1910 में भी
कुछ ऐसी ही
मिलती जुलती व्यवस्था
थी। इसीलिये आज
राज्य सरकारों के
आबकारी विभागों का लक्ष्य
मद्य निषेध न
हो कर राजस्व
वसूली ही रह
गया है।
मदिरा प्रेमियों के
लिए
उपभोक्ता
संरक्षण
कानून
कहाँ
?
एक अनुमान के अनुसार
राज्य सरकारों ने
वर्ष 2018-19 में प्रति
माह शराब आबकारी
से लगभग 12,500 करोड़
का और 2019-20 में
15,000 करोड़ का राजस्व
अर्जित किया। राज्य सरकारों
के 2019-20 के बजट
में शराब आबकारी
से लगभग 1.70 लाख
करोड़ का राजस्व
अनुमानित था। चालू
वर्ष 2020-21 के वार्षिक
बजटों में आन्ध्र
प्रदेश, गुजरात और बिहार
के अलावा देश
के 16 अन्य बड़े
राज्यों ने 1.65 लाख करोड़
के आबकारी कर
राजस्व का लक्ष्य
रखा हुआ है,
जिसे हासिल करना
अब बहुत दूर
की कौड़ी लगता
है। कर्नाटक के
आबकारी विभाग के अनुसार
राज्य में प्रतिदिन
लगभग 65 करोड़ की
शराब बिकती है।
गुजरात और बिहार,
मीजोरम और नागलैण्ड
में पूर्ण मद्य
निषेध लागू है।
जबकि आन्ध्र प्रदेश
में भी जगन्न
रेड्डी द्वारा चुनाव के
समय पूर्ण नशाबंदी
की घोषणा की
गयी थी, मगर
सच्चाई से वास्ता
पड़ने पर वहां
सीमित बिक्री तक
वायदा समिट गया।
आंध्र प्रदेश ने
इससे 2018-19 में 6,222 करोड़ का
राजस्व कमाया, जबकि पूरे
राज्य की कमाई
1,05,062 करोड़ रुपये थी। लेकिन
विभाजन से राज्य
पर 16 हजार करोड़
रुपये का कर्ज
भी चढ़ गया
था। देशभर में
इस वर्ष 2 लाख
करोड़ का आबकारी
कर राजस्व हासिल
करने का लक्ष्य
है। लॉकडाउन के
कारण इस लक्ष्य
की प्राप्ति असंभव
ही लग रही
है। राज्यों के
कुल कर राजस्व
में शराब की
बिक्री से मिलने
वाले आकारी राजस्व
का हिस्सा 15 से
लेकर 25 प्रतिशत तक होता
है। उत्तराखण्ड, उत्तर
प्रदेश और कर्नाटक
जैसे राज्यों के
कुल कर राजस्व
में शराब का
अंशदान 20 प्रतिशत से अधिक
आंका गया है।
जबकि केरल, महाराष्ट्र
और तमिलनाडू के
कुल कर राजस्व
में शराब की
बिक्री से अर्जित
कर राजस्व का
योगदान 10 प्रतिशत से कम
है। शराबी सरकारों
की आमदनी के
इतने बड़े श्रोत
होने के बावजूद
सरकारें उनका ध्यान
नहीं रखतीं, जबकि
उपभेक्ता कानून उन्हें संरक्षण
देता है।
भारत में नशाबंदी
कभी
सफल
नहीं
हो
सकी
इतिहास गवाह है
कि है कि
शराबबंदी भारत में
लंबे वक्त तक
नहीं चली। जीएसटी आने
के बाद शराब
से होने वाला
राजस्व राज्य सरकारों के
लिए महत्वपूर्ण हो
गया है। मोरारजी
देशाई के नेतृत्व
में 1977 में जब
जनता पार्टी की
सरकार केन्द्र में
बनी थी तो
राष्ट्रीय स्तर पर
मद्य निषेध की
नीति बनी थी
जो कि उत्तर
प्रदेश और बिहार
जैसे केवल उन
राज्यों में लागू
की गयी जहां
जनता पार्टी की
सरकारें बनीं थीं।
लेकिन जनता पार्टी
की सरकार के
पतन के साथ
ही मद्य निषेध
भी चलता बना।
वर्तमान में गुजरात,
बिहार, मिजोरम और नागालैंड
में पूर्ण रूप
से शराबबंदी है।
बिहार में 1977 से
लेकर 1980 तक नशाबंदी
रही जो कि
अन्ततः विफल रही।
हरियाणा ने भी
1996 में राज्य में शराबबंदी
का प्रयोग किया
था। लेकिन 1998 में
इसे हटा लिया
गया। अधिकारियों ने
अनुमान लगाया कि शराबबंदी
के दौरान प्रदेश
राजस्व के मामले
में 1200 करोड़ रुपये
पीछे चला गया।
1993 में आंध्र प्रदेश में
भी शराबबंदी को
लेकर प्रयोग किए
गए। लेकिन सितंबर
1995 में सत्ता की चाबी
चंद्रबाबू नायडू के हाथों
में आई और
1997 में उन्होंने केवल 16 महीने
पहले शराब पर
लगाए गए प्रतिबंध
को समाप्त कर
दिया। शराब सरकार
की आर्थिकी के
लिये टॉनिक का
काम तो करती
ही है लेकिन
अब बिना शराब
के चुनाव भी
नहीं लड़े जा
सकते। एक मशहूर
इटैलियन कहावत है कि
‘‘ शराब का एक
पीपा जो चमत्कार
कर सकता है
वह संतो से
भरा एक चर्च
भी नहीं कर
सकता”। मतलब
यह कि आजकल
सफलता की सीढ़ियां
चढ़ने के लिये
भी शराब मददगार
होती है। इसीलिये
एक अज्ञात शायर
ने कहा है
कि ‘‘ जाहिद शराब
पीने दे मस्जिद
में बैठ कर,
या वो जगह
बता दे जहाँ
पर खुदा न
हो’’
जयसिंह रावत
ई-11,फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
Mobile-9412324999
jaysinghrawat@gmail.com
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