सवर्णों को कहां से देगी नौकरियां त्रिवेन्द्र सरकार ?
-जयसिंह रावतअपने कर्मचारियों के लिये वेतन देने के लिये भी कर्ज लेने वाली उत्तराखण्ड सरकार आर्थिक तंगहाली के कारण कर्मचारियों के रिक्त पड़े हुये 44 हजार पद तो भर नहीं पा रही है और ऊपर से उसने लोकसभा चुनाव में सवर्ण मतदाताओं को लुभाने के लिये संविधान (संशोधन 103) के तहत 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर स्वयं को अपने ही जाल में फंसा दिया है।
Jay Singh Rawat Journalist and Author |
राज्य की माली हालत तो शुरू से ही बहुत खराब थी जो कि छटवें एवं सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद इतनी खराब हो गयी कि अब राज्य सरकार को लगभग हर साल कर्मचारियों को वेतन देने के लिये बाजार से भारी कर्ज उठाना पड़ रहा है। इसीलिये राज्य में कई सालों से नयी भर्तियां नहीं हो पा रही हैं। सरकार को काम चालाने के लिये उपनल जैसी आउटसोर्स ऐजेंसियों से अनुबंध पर लिये गये लगभग 22 हजार कार्मिकों से काम चलाना पड़ रहा है जिन्हें कि नियमित कर्मचारियों की तुलना में लगभग एक तिहाई के बाराबर वेतन दिया जा रहा है। प्रदेश के वित्त मंत्री प्रकाश पन्त के अनुसार प्रदेश में विभिन्न श्रेणियों के कुल 2,17,000 पद हैं जिनमें से 1,73,000 पद भरे हुये हैं। इस हिसाब से प्रदेश के लगभग 88 सरकारी विभागों में विभिन्न श्रेणियों के 44 हजार से अधिक रिक्त पदो ंके लिये कर्मचारियों की जरूरत है। इनमें डाक्टर और शिक्षक सबसे अधिक हैं। इन खाली पदों में से आधे पदों पर उपनल आदि आउटसोर्स ऐजेंसियों के माध्यम से लगभग 22 हजार संविदाकर्मी नियुक्त किये गये हैं।
नैनीताल हाइकार्ट द्वारा गत 12 नवम्बर 2018 को जब सरकारी सेवाओं में पिछले डेढ दशक से लगे संविदा कर्मियों को नियमित करने के आदेश दिये गये तो राज्य सरकार उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गयी। अगर त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार की नीयत सचमुच सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरियां देने की होती तो सरकार हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट जाने के बजाय उस आदेश का पालन कर संविदा पर काम करने वाले प्रदेश के 22 हजार युवाओं को पहले नियमित कर उनको स्थाई सरकारी नौकरी देती। इन संविदाकर्मियों में से अधिकांश अब ओवरएज हो गये हैं और संविदा की अस्थाई और अल्प वेतन की नौकरी अगर चली जाती है तो उनकी दुबारा नौकरी लगने की संभावना भी समाप्त हो जाती है।
उत्तराखण्ड सरकार के पास नौकरियां तो हैं मगर उसकी आर्थिक स्थिति इती डांबाडोल है कि वह नौकरियों का पिटारा खोलने की स्थिति में नहीं है। राज्य सरकार की अपनी आमदनी इतनी नहीं कि वह अपने वर्तमान कर्मचारियों को ही समय से वेतन और भत्ते आदि दे सके। राज्य सरकार को अपने खर्चों की पूर्ति के लिए ऋण लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। राज्य गठन के समय राज्य के हिस्से में 4430.04 करोड़ कर्ज आया था। राज्य के जन्म के साथ मिला यह कर्ज 31 मार्च, 2017 तक बढ़कर 41,644 करोड़ हो गया था जो कि वित्तीय वर्ष 2018-19 तक बढ़कर 47759 करोड़ हो गया। अब सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन, भत्ते, पंेशन एवं कर्ज का ब्याज चुकाने के लिये हर साल बाजार से कर्ज लेना पड़ रहा है। राज्य सरकार का अपने करों और करेत्तर राजस्व के अलावा केन्द्रीय करों और अनुदान से लगभग 27 हजार करोड़ से कम राजस्व मिलने का अनुमान है, जबकि सरकार के अपने कमिटेड खर्चे ( वेतन आदि अति आवश्यक) 27 हजार करोड़ से अधिक हैं। त्रिवेन्द सरकार सरकार आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रख कर प्रधानमंत्री मोदी की नकल पर एक के बाद एक घोषणाएं तो कर रही है मगर ये नहीं सोच रही है कि बिना संसाधनों के ये ही घोषणाऐं आगे चल कर उसी के गले की फांस बनने वाली हैं।
जयसिंह रावत
ई-11,फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड
देहरादून।
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