गलत आबकारी नीति की भट्टी में निकली मौत की शराब
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड
के हरिद्वार और
उत्तर प्रदेश के
सहारनपुर जिले के
बीच के गावों
में जहरीली शराब
के सेवन से
सौ से अधिक
लोगों के मौत
की नींद सो
जाने के बाद
दोनों प्रदेशों की
सरकारें अपनी जिम्मेदारियों
से बचने के
लिये एक दूसरे
राज्य के अवैध
शराब बनाने वालों
को तथा आबकारी
और पुलिस विभाग
के छोटे कर्मचारियों
को जिम्मेदार बता
रही हैं। जबकि
सच्चाई यह है
कि शराब का
समानान्तर तंत्र खड़ा होने
और इस तरह
के हादसों के
लिये इन दोनों
राज्यों की आबकारी
नीति तथा शराब
से अधिक से
अधिक राजस्व कमाने
की हवश ज्यादा
दोषी है।
Jay Singh Rawat Journalist and Writer |
बड़े हादसे के बाद
सरकारी तंत्र के अति
सक्रिय होने और
हादसे की उच्च
स्तरीय जांच शुरू
कराने के बाद
योगी और त्रिवेन्द्र
सिंह की सरकारें
अगले हादसे तक
के लिये निश्चिन्त
हो गयी हैं।
उत्तराखण्ड सरकार ने एक
दर्जन से अधिक
आबकारी कर्मचारियों को निलंबित
करने के साथ
ही कुछ पुलिस
वालों को भी
इधर से उधर
कर खानापूरी कर
ली। लेकिन हादसे
के असली कारण
पर गौर करने
की जरूरत नहीं
समझी। दोनों राज्यों
की सरकारें शराब
के समानान्तर तंत्र
के खड़े हो
जाने के प्रति
गंभीर होती तो
अपनी आबकारी नीति
पर जरूर गौर
करती। अवैध तरीके
से बनने और
बिकने वाली शराब
ही अक्सर जहरीली
होती है और
लाइसेंसी ठेकों की तुलना
में यह अवैध
शराब सस्ती और
सुलभ होने के
कारण गरीब मजदूर
ही इसका सेवन
ज्यादा करते हैं
इसलिये ऐसे हादसों
में गरीब ही
मारे जाते हैं।
उत्तराखण्ड
और उसके पैतृक
राज्य उत्तरप्रदेश में
बिना शराब के
न तो राज
चलता है और
ना ही राजनीति
चल पाती है।
उत्तराखण्ड सरकार वाहवाही लूटने
के लिये भले
ही एक के
बाद एक प्रदेशवासियों
को मुफ्त इलाज,
उज्ज्वला योजना में मुफ्त
गैस कनेक्शन, सौभाग्य
में मुफ्त बिजली
कनेक्शन जैसे घोेषणाएं
कर कल्याणकारी सरकार
होने का दिखावा
तो कर रही
है मगर वित्तीय
कुप्रबंधन और फिजूलखर्ची
के कारण उसकी
खराब आर्थिक स्थिति
के कारण उसे
कर्ज लेकर अपने
कर्मचारियों के लिये
वेतन-भत्ते और
पेंशन का भुगतान
करना पड़ता है।
अपनी गरीबी दूर
करने के लिये
सरकार के निशाने
पर सबसे पहले
शराबी की जेब
ही होती है।
सरकार शराबियों को
न तो प्रदेश
का नागरिक मानती
है और ना
ही उपभोक्ता के
रूप में उनका
संरक्षण करने की
जरूरत समझती है।
इसलिये हर साल
बेरोकटोक आबकारी राजस्व में
20 प्रतिशत वृद्धि कर शराब
की दामों में
भारी वृद्धि कर
गरीब शराब उपभोक्ता
को समानान्तर शराब
बाजार में सस्ती
और स्वास्थ्य के
लिये हानिकारक शराब
खरीदने को मजबूर
कर देती है।
राज्य सरकार का
वर्ष 2008-09 में आकारी
राजस्व का लक्ष्य
501 करोड़ तथा 2009-10 में 598 करोड़
रुपये का था
जो कि त्रिवेन्द्र
सरकार के कार्यकाल
में वर्ष 2018-19 में
26,000 करोड़ तथा 2019-20 में 3,180 करोड़ तक
पहुंच गया। राज्य
सरकार का यह
राजस्व लक्ष्य करेत्तर राजस्व
के अन्य श्रोतों
में सबसे अधिक
है। वर्ष 2009 से
लेकर 2019 के बीच
के इन सालों
में सरकार के
आबकारी राजस्व वसूली में
6 गुना से अधिक
वृद्धि का मतलब
इन दस सालों
में लाइसेंसी दुकानों
पर शराब के
दामों में 6 गुना
वृद्धि होना ही
है। उपभेक्ताओं का
यही एक वर्ग
है जिसके प्रति
समाज और सरकार
की सहानुभूति नहीं
होती और इसी
उपेक्षित भावना का लाभ
उठा कर सरकार
शराब के दामों
में हर साल
बेतहासा कर वसूल
कर बेतहासा वृद्धि
करा देती है।
युवाओं, छात्रों, महिलाओं, कमजोर
वर्गों या विकास
कार्यों के लिये
कोई नीति हो
या न हो
मगर राज्य में
हर साल आबकारी
नीति बनती है
और इस नीति
का मतलब सरकार
और सरकार में
बैठे लोगों की
आय के श्रोत
बढ़ाना और तलाशना
ही होता है।
शराबियों को शराब
की लत और
सरकार को शराब
व्यवसाय को चूसने
की लत का
नतीजा समानान्तर शराब
व्यवसाय का खड़ा
होना है जो
कि बिना आबकारी
विभाग, पुलिस और राजनीतिक
तंत्र के संभव
नहीं है।
राज्य सरकार की तिजोरी
तो शराब पर
पराश्रित है ही
लेकिन यहां राजनीति
भी बिना शराब
के सरूर के
फीकी ही है।
राजनीतिक दलों के
लिये शराब व्यवसायी
ही राजनीतिक चन्दे
के प्रमुख आर्थिक
श्रोत होते हैं।
इसका जीता जागता
उदाहरण 30 मई 2002 को भाजपा
के राजपुर रोड
स्थित तत्कालीन प्रदेश
कार्यालय से 27 लाख रुपये
की चोरी का
मामला है। इस
मामले की जब
भाजपा ने आन्तरिक
जांच कराई तो
जांच रिपोर्ट में
साफ कहा गया
था शराब वालों
ने भाजपा को
भवन खरीदने के
लिये जो भारी
भरकम रकम दी
थी उसी में
से यह चुराई
गयी रकम भी
थी और चोर
कोई बाहरी न
हो कर अन्दर
के ही लोग
थे। उत्तर प्रदेश
और उत्तराखण्ड में
शराब व्यवसाय के
बेताज के बादशाह
रहे गुरुदीप सिंह
उर्फ पौण्टी चड्ढा
की इन दोनों
प्रदेशों की राजनीति
में खासी दखल
रही है। इसी
दखल के चलते
उत्तराखण्ड में तत्कालीन
भाजपा सरकार ने
पौण्टी चड्ढा के दायें
हाथ कहे जाने
वाले शराब कारोबारी
सुखदेव सिंह नामधारी
को 26 फरवरी 2010 को
राज्य मंत्री स्तर
का राज्य अल्पसंख्यक
आयोग का अध्यक्ष
बना दिया था।
बाद में जब
12 जनवरी 2010 को दिल्ली
के महरौली के
फार्म हाउस में
सम्पत्ति के लिये
दोनों भाइयों हरदीप
और गुरुदीप चड्ढा
के बीच हुये
खूनी संघर्ष में
दोनों की मौत
हुयी तो इस
मामले में उत्तराखण्ड
सरकार के अल्पसंख्यक
आयोग के अध्यक्ष
सुखदेव सिंह नामधारी
और उसको राज्य
सरकार द्वारा दिया
गया गनर भी
गिरफ्तार हुआ। इस
बहुचर्चित हत्याकाण्ड में गिरफ्तारी
के बाद तत्कालीन
भाजपा सरकार ने
20 नवम्बर 2012 को नामधारी
को पद से
हटा तो दिया
मगर शराब माफिया
से मिलीभगत का
दाग उस पर
सदा के लिये
लग गया।
- जयसिंह रावत
ई-11 फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल- 09412324999
jaysinghrawat@gmail.com
No comments:
Post a Comment