रिस्पना
का पुनर्जीवन-न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड
के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत देहरादून
की डिफेंस कालोनी
स्थित अपने निजी
आवास के निकट
प्राचीन तालाब को बचाने
एवं उसमें प्रसिद्ध
चिपको आन्दोलन की
जननी गौरा देवी
के नाम पर
वाटर पार्क बनाने
के अपने ड्रीम
प्रोजेक्ट को तो
धरती पर उतार
नहीं पाये मगर
उन्होंने केवल बरसात
में नजर आने
वाली रिस्पना नदी
को पुनर्जीवित करने
के लिये स्वर्ग
से धरती पर
गंगा लाने का
जैसा भगीरथ संकल्प
जरूर ले लिया
है।
जयसिंह रावत का आलेख जो कि नवजीचवन (एसोसिएटेड जर्नल लि0) में 3 फरबरी 2019 को पृष्ठ 3 पर प्रकाशित |
साबरमती रिवर फ्रंट
की तर्ज पर
उत्तराखण्ड की रिस्पना
और कोसी नदियों
को पुनर्जीवित करने
के लिये उत्तराखण्ड
के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
सिंह रावत ने
गत वर्ष जुलाइ
में हजारों की
संख्या में स्कूल-कालेजों के छात्रों,
स्वयंसेवी संस्थाआंे के स्वयंसेवकों,
सेना, आइटीबीपी और
पुलिस के जवानों
तथा एनसीसी के
कैडेटों के साथ
इस अति महत्वाकांक्षी
योजना की शुरुआत
मसूरी के कैरवान
गाँव में स्वयं
फावड़ा चला कर
तो कर दी।
लेकिन मुख्यमंत्री के
साथ ही इस
योजना में जुटे
लोगों का जोश
ठण्डा होने के
साथ ही इस
योजना का हस्र
भी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
के एक अन्य
ड्रीम प्रोजेक्ट ‘‘गौरा
देवी वाटर पार्क’’ की तरह होना
अवश्यंभावी हो गया
है। इस अभियान
की लॉंचिंग के
समय जन सहभागिता
से एक दिन
में ही ढाई
लाख से अधिक
पौधे रोपे गए
थे। उसके बाद
22 जुलाई 2018 को भी
कई लाख पौधे
लगाए थे। लेकिन
रोपे गये पौधों
की सुध न
लिये जाने के
कारण ज्यादातर पौधे
सूख गये हैं।
मुख्यमंत्री रावत ने
वर्ष 2008 में खण्डूड़ी
सरकार में कृषिमंत्री
रहते हुये इसी
तरह अति उत्साह
में डिफेंस कालोनी
स्थित अपने निजी
आवास के निकट
एक प्राचीन तालाब
को पुनर्जीवित कर
उसे देहरादून शहर
का मुख्य आकर्षण
बनाने के लिये
एक वाटर पार्क
का शिलान्यास किया
था। लगभग डेढ
करोड़ से बनने
वाले उस वाटर
पार्क का नामकरण
भी श्री रावत
ने प्रसिद्ध चिपको
आन्दोलन की जननी
गौरा देवी के
नाम पर रख
दिया था। दस
साल गुजरने के
बाद भी त्रिवेन्द्र
रावत का वह
ड्रीम पार्क तो
बना नहीं अलबत्ता
उसका आधा हिस्सा
राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भूमाफिया
ने कब्जा कर
वहां कालोनी बसा
दी और शेष
तालाब में त्रिवेन्द्र
रावत द्वारा स्थापित
शिलान्यास स्तम्भ जमींदोज कर
गायब करा दिया।
अब रिस्पना पुनर्जीवन अभियान
का भी गौरा
देवी पार्क की
ही तरह अंजाम
होना इसलिये भी
तय हो गया
कि आखिर मुख्यमंत्री
बरसाती नाला बन
चुकी रिस्पना के
लिये पानी कहां
से लायेंगे। उन्होंने
रिस्पना को तथाकथित
ऐतिहासिक नाम ऋषिपर्णा
तो दे दिया
मगर रिस्पना का
इतिहास नहीं पढ़ा।
वास्तव में रिस्पना
नदी सत्रहवीं सदी
में तब गायब
हो गयी थी
जबकि संयुक्त गढ़वाल
की महारानी कर्णावती
ने देहरादून के
गावों (उस समय
गाव ही थे)
के खेतों की
सिंचाई और पेयजल
व्यवस्था के लिये
राजपुर नहर का
निर्माण कराया था। इस
नहर से गुरुराम
राय दरबार के
पवित्र सरोवर के लिये
भी पानी आता
था और इसीलिये
इसका रखरखाव गुरुराम
राय दरबार द्वारा
कराया जाता था।
वर्तमान में राजपुर
रोड पर दिलाराम
चौक स्थित जल
संस्थान का वाटर
वर्क्स भी राजपुर
नहर के पानी
पर निर्भर है
और यह देहरादून
शहर की पेयजल
व्यवस्था का मुख्य
श्रोत भी है।
अगर रिस्पना को
पुनर्जीवित करने के
लिये राजपुर कैनाल
को बंद कर
दिया जाता है
तो देहरादून में
पानी के लिये
हायतौबा मच जायेगी।
ऐसी स्थिति में
मलिन बस्तियों से
आने वाले मलजल
के कारण गंदे
नाले में तब्दल
हो चुकी प्राचीन
रिस्पना का पानी
लौटाने के लिये
राजपुर नहर को
बंद करना ही
एकमात्र विकल्प है जो
कि संभव नहीं
है
सन् 1871 में देहरादून
के असिस्टेण्ट सुप्रीण्टेंडेंट
(मजिस्ट्रेट) रहे बंगाल
सिवल सर्विस के
जी.आ.सी.
विलियम्स ने अपने
प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘‘मेम्वॉयर आफ
दून’’
(1874) में पृष्ठ 6 पर प्राचीन
राजपुर नहर के
1841 से 44 के बीच
जीर्णोद्धार का उल्लेख
करते हये कहा
गया है कि
इस नहर में
पानी रस्पुना (रिस्पना
को उस अंग्रेज
अफसर ने यह
नाम दिया) जलधारा
के शीर्ष से
मोड़ कर डाला
गया था। इसी
पुस्तक के पृष्ठ
92 के शीर्षक संख्या
181 में राजपोर कैनाल के
तहत विलियम्स ने
बोर्ड कमिश्नर के
सेक्रेटरी मूर (1818) का हवाला
देते हुये इस
नहर का निर्माण
गुरुराम राय की
पत्नी माता पंजाब
कौर एवं राजपूत
महारानी कर्णावती द्वारा किये
जाने एवं बाद
में गुरुराम राय
दरबार द्वारा नहर
का रख रखाव
की जिम्मेदारी लेने
का उल्लेख किया
है। नहर का
निर्माण देहरादून के गावों
और गुरुराम राय
दरबार के पवित्र
तालाब के लिये
किया गया था।
गढ़वाल के प्रसिद्ध
इतिहासकार शिव प्रसाद
डबराल एवं कैप्टन
शूरवीर सिंह ने
भी अपने ग्रन्थों
में औरंगजेब की
सेना को हरा
कर बचे हुये
मुगल सैनिकों के
नाक काट कर
वापस भिजवाने वाली
महारानी कर्णावती द्वारा देहरादून
के गावों को
सरसब्ज बनाने के लिये
रिसपना नदी का
पानी मोड़ कर
इस नहर का
निर्माण किये जाने
का उल्लेख किया
है। कैप्टन शूरवीर
सिंह ने अपनी
पुस्तक गढ़परिवृढ़ वेश वैजयंती
के पृष्ठ 24 पर
गढ़नरेश महाराजा महिपति शाह
की सन् 1631 में
मृत्यु के बाद
उनकी विधवा महारानी
कर्णावती द्वारा अपने नाबालिग
पुत्र पृथ्वीपति शाह
के बालिग होने
तक गढ़वाल का
राज्यभार समभालने और उसी
दौरान देहरादून के
नवादा में दून
घाटी के प्रशासन
के लिये राजमहल
के साथ ही
कई बावड़ियां तथा
राजपुर नहर बनवाने
का उल्लेख किया
है। पूर्व सांसद
एवं केन्द्रीय मंत्री
रहे डा0 भक्त
दर्शन ने भी
अपनी विख्यात पुस्तक
‘‘गढ़वाल की दिवंगत
विभूतियां’’ के पृष्ठ
130 पर दून घाटी
की उन्नति के
लिये राजपुर के
निकट जलश्रोत (रिस्पना
का जलश्रोत) से
राजपुर नहर का
निर्माण कराने का उल्लेख
किया है। मुख्यमंत्री
त्रिवेन्द्र सिंह ने
पानी के अभाव
में नदी किनारे
की मलिन बस्तियों
से निकलने वाले
मलजल पर निर्भर
रिस्पना को पुनः
जीवित कराने के
संकल्प के साथ
ही नदी को
रिस्पना की जगह
प्राचाीन नाम ऋषिपर्णा
को भी बहाल
कर दिया है
लेकिन इतिहास में
कहीं भी ऋषिपर्णा
नदी का उल्लेख
नजर नहीं आता
है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
Mobile&9412324999
jaysinghrawat@gmail.com
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