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Tuesday, February 5, 2019

तबियत बहुत ख़राब है उत्तराखंड की ज़मीन की



बीमार हो गयी उत्तराखण्ड की सोना उगलने वाली जमीन
-जयसिंह रावत
किसी जमाने में तिब्बत एवं गंग नहर निर्माण से पहले के पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पेट पालने वाले उत्तराखण्ड की उपजाऊ जमीन का स्वास्थ्य इतना गिर गया है कि अब वह प्रदेशवासियों का ही पेट भरने में सक्षम नहीं रह गयी है। चिन्ता का विषय तो यह है कि राज्य के मैदानी तराई क्षेत्र की जमीन जो कि सर्वाधिक उपजाऊ मानी जाती थी, उसी का स्वास्थ्य सर्वाधिक खराब पाया गया है। जमीन का बांझपन बढ़ते जाने से कृषि उत्पादन घटने के कारण उत्तराखण्ड जैसे प्रदेश में भी किसानों द्वारा आत्महत्याएं किये जाने की शुरुआत हो गयी है। यही नहीं लोगों का खेती किसानी से मोहभंग हो जाने के कारण प्रतिवर्ष कृषि क्षेत्र में कमी के कारण किसानों की संख्या में भी गिरावट रही है।
This article of Jay Singh Rawat published in Navjivan (Associated Journals Ltd, National Herald on 3 Feb 19
उत्तराखण्ड के कृषि विभाग की मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं से प्राप्त ताजा रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की सीमित कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्सियम, सल्फर, मैग्नीसियम, कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन जैसे मुख्य तत्व और जस्ता, मैग्नीज, तांबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम, निक्किल एवं क्लोरीन जैसे शूक्ष्म तत्वों की कमी के कारण क्षीण होती जा रही है। कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार मृदा स्वास्थ्य की सर्वाधिक खराब स्थिति उधमसिंहनगर, हरिद्वार, एवं देहरादून जिले के मैदानी क्षेत्र की है। नैनीताल जिले के मैदानी क्षेत्र की कृषि भूमि की स्थिति भी अन्य मैदानी क्षेत्र की ही तरह काफी बीमारी की स्थिति में है, जबकि यही मैदानी क्षेत्र प्रदेश का सर्वाधिक खाद्यान्न एवं फल सब्जी उत्पादक क्षेत्र है, जिसे उत्तराखण्ड का अन्न का कटोरा भी कहा जाता है। संयुक्त निदेशक दिनेश कुमार द्वारा उपलब्ध कराई गयी जानकारी के अनुसार उधमसिंहनगर जिले की कृषि भूमि में जीवाश्म कार्बन (नेत्रजन) और फॉस्फोरस की मात्रा न्यून तथा पोटाश की मात्रा मध्यम स्तर की पायी गयी। नैनीताल के मैदानी क्षेत्र में भी फॉस्फोरस की मात्रा न्यून तथा पोटाश की मात्रा मध्यम पायी गयी। हरिद्वार जिले की कृषि भूमि में नेत्रजन की मात्रा न्यून और फॉस्फोरस तथा पोटाश की मात्रा मध्यम पायी गयी। जबकि चमोली जैसे पर्वतीय जिले में इन तीनों मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा उच्च स्तर पर पायी गयीं। जबकि पहाड़ी इलाकों में भूक्षरण या अपरदन के कारण पोषक तत्व बह कर नीचे गंगा के मैदान में जाते हैं। कुल मिला कर गढ़वाल मण्डल के जिलों की भूमि में नेत्रजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा मध्यम स्तर की तथा कुमाऊं मण्डल के जिलों में जीवाश्म (नेत्रजन) मध्यम, फॉस्फोरस न्यून और पोटाश मध्यम स्तर पर पाया गया।
उत्तराखण्ड के अन्न के कटोरे उधमसिंहनगर की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की स्थिति प्रदेश में सबसे खराब है। इस तराई क्षेत्र की जमीन का उपजाऊ पंजाब एवं बंगाल जैसे राज्यों से भी आब्रजकों को आकर्षित कर उन्हें धरती से सोना उगाने के लिये प्रेरित करता रहा है। यहां राज्य में सबसे अधिक कृषि पैदावार होने के कारण जमीन का सबसे अधिक दोहन हो रहा है। इस जिले की मिट्टी में जिंक याने कि जस्ता की 26.29 प्रतिशत, मैग्नीज की 8.61 प्र00, लौह तत्व की 10.61 प्र00, तांबा की 9.64 प्र0 एवं सल्फर की 24.58 प्रतिशत कमी पायी गयी। कृषि वैज्ञानिक डा0 आनन्द सिंह के अनुसार मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की 20 प्रतिशत या उससे अधिक कमी को काफी गंभीर माना जाता है। इसी प्रकार नैनीताल जिले की मिट्टी में मैग्नीज की 36.08 प्रतिशत, बागेश्वर में सल्फर की 29.16 प्रतिशत, पिथौरागढ़ जिले में जिंक की 20.20 प्रतिशत,रुद्रप्रयाग में मैग्नीज की 28.32 प्रतिशत, टिहरी में लौह तत्व की 22.05 और सल्फर तत्व की 46.05 प्रतिशत, उत्तरकाशी में मैग्नीज की 33.24 और सल्फर की 64.94 प्रतिशत, हरिद्वार में जिंक की 20.26 तथा सल्फर की 34.12 प्रतिशत और चमोली जिले की कृषि भूमि में मैग्नीज की 23.26 प्रतिशत कमी पायी गयी है। राज्य में ऐसा कोई जिला नहीं जहां की कृषिभूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी पायी गयी हो। यह सर्वेक्षण भी बहुत ही मोटे तौर पर किया गया है। पहाड़ों में एक ही गांव क्षेत्र में एक से अनेक प्रकार की मिट्टी पायी जाती है। इसलिये स्थिति इससे कहीं गम्भीर हो सकती है। वैसे भी 9 लाख से अधिक किसानों में से केवल 3.50 लाख किसानों की भूमि का मृदा परीक्षण अब तक किया जा सका है। सूक्ष्म तत्वों में सल्फर पत्ती और बीज निर्माण में, कैल्सियम और मैग्नीसियम पत्ती और जड़ निर्माण में, नाइट्रोजन पत्ती निर्माण में, पोटेशियम फूल और फल निर्माण में तथा फॉस्फोरस जड़ एवं फूल निर्माण में सहायक होता है।
अस्वस्थ कृषि भूमि के कारण पैदावार घटने से राज्य के कृषकों का संकट बढ़ गया है। पहाड़ की कृषि चौपट हो जाने के कारण वहां से पिछले 10 वर्षों में ही 1.18 लाख लोग स्थाई रूप से अपने गावं छोड़ कर मैदान में बस गये। राज्य निर्माण के बाद लगभग 1 लाख हैक्टेअर कृषि योग्य जमीन लावारिश होने से बंजर पड़ गयी है। कृषि विभाग के आंकड़े भी कृषि क्षेत्र घटने का संकेत दे रहे है। कृषि संाख्यकी के अनुसार वर्ष 2004-05 के दौरान प्रदेश में लगभग 7.93 लाख हैक्टेअर कृषि योग्य भूमि थी जो कि 2008 में 7.88 लाख हैक्अेअर और 2013-14 में 7.41 लाख हैक्टेअर रह गयी। कृषि विभाग ने अपने सर्वे में 2013-14 में राज्य में 9.21 लाख किसान तथा 2014-15 में 9.12 लाख किसान दर्ज कर रखे हैं। एक अनुमान के अनुसार पहाड़ में पिछले 18 सालों में लगभग 1 लाख हैक्टेअर कृषि भूमि खेती किये जाने के कारण बंजर हो गयी है। कृषि विभाग के 2009-10 के आंकड़ों पर गौर करें तो उस समय राज्य में कृषि योग्य बंजर भूमि 3,09,466 हेक्टेअर थी। इसी तरह परती भूमि का आंकड़ा 1,14,244 हेक्टेअर और ऊसर एवं कृषि अयोग्य भूमि 2,24,503 हेक्टेअर थी। इसके अगले वर्ष 2010-11 में कृषि विभाग के रिकार्ड में कृषि योग्य बंजर भूमि 3,10,390 हेक्टेअर, परती भूमि 1,27,793 हेक्टेअर और कृषि अयोग्य बंजर भूमि 2,24,764 हेक्टेअर दर्ज हुयी है। इसके बाद कृषि विभाग द्वारा अब तक भूमि का सर्वेक्षण नहीं किया गया।
जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।

मोबाइल-9412324999



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