अधूरा भारत ही आजाद हुआ था 15 अगस्त को
-जयसिंह रावत
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के
तहत 15 अगस्त 1947 को भारत
और पाकिस्तान कानूनी
तौर पर दो
स्वतंत्र राष्ट्र अवश्य बने
मगर सही मायनों
में सम्पूर्ण भारत
फिर भी आजाद
नहीं हुआ था।
दरअसल यह केवल
ब्रिटिश भारत का
स्वतंत्रता दिवस था
जिसके बाद भी
देश में लगभग
562 देशी रियासतें मौजूद थीं
जिनके अधिकांश शासकों
को यह गलतफहमी
हो गयी थी
कि नयी व्यवस्था
के तहत उनके
सिर से ब्रिटिश
साम्राज्ञी की पैरामौंट्सी
(सार्वभौम सत्ता) हट गयी
और अब वे
फिर से निरंकुश
शासक हो गये
हैं। देखा जाय
तो ब्रिटिश भारत
की आजादी के
साथ ही देशी
राज्यों में भी
राजशाही से स्वतंत्रता
की मांग जोर
पकड़ने लगी और
अंतरिम सरकार में देशी
राज्यों के मामलों
के प्रभारी तथा
गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई
पटेल और इसी
विभाग के
Cover page of India Indepnendence Act 1947 |
सचिव
वी.पी.मेनन
की सूझबूझ, दृढ़
इच्छा शक्ति तथा
दूरदृष्टि से 26 जनवरी 1950 को
एक सम्प्रभुता सम्पन्न
गणराज्य बनने से
पहले ही सम्पूर्ण
भारत एक ही
शासन व्यवस्था के
तहत एकता के
सूत्र में बंध
गया। इसलिये अगर
देखा जाय तो
भले ही ब्रिटिश
भारत के लिये
अगस्त का महीना
क्रांति का महीना
और 15 अगस्त स्वतंत्रता
दिवस हो मगर
समूचे भारत के
लियेयह राष्ट्रीय
एकता और अखण्डता
का पर्व है।
१५ अगस्त १९४७ के टाइम्स ऑफ इंडिया का मुखपृष्ठ |
१५ अगस्त १९४७ के हिंदुस्तान टाइम्स का मुखपृष्ठ |
कंपनी से छीन
कर अपने हाथ
में लेने के
बाद जब 1876 के
अधिनियम के तहत
ब्रिटिश साम्राज्ञी को ‘‘क्वीन
एम्प्रेस ऑफ इंडिया’’
या भारत की
महारानी घोषित किया गया
तो इसके साथ
ही राज्य हरण
की नीति के
बजाय देशी रियासतों
को आन्तरिक और
बाह्य सुरक्षा की
गारण्टी दी गयी
और उसके बदले
उनकी सार्वभौम सत्ता
(पैरामौंट्सी) ब्रिटिश क्राउन में
सन्निहित हो गयी
थी। इसमें देशी
राज्यों के रक्षा,
संचार, डाक एवं
तार, रेलवे एवं
वैदेशिक मामले ब्रिटिश हुकूमत
में निहित हो
गये थे। द्वितीय
विश्वयुद्ध के बाद
ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेण्ट एटली ने
20 फरबरी 1947 को पार्लियामेंट
में घोषणा कर
दी थी कि
देशी राज्यों पर
जो ब्रिटिश पैरामौंट्सी
(सार्वभौम सत्ता) है वह
किसी अन्य को
नहीं सौंपी जायेगी।
इसलिये सरदार पटेल और
वीपी मेनन ने
बहुत ही होशियारी
से सबसे पहले
देशी राज्यों को
भारत संघ में
मिलाने से पहले
उनसे ‘इंस्ट्रूमेंट आफ
एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर
करा कर स्वतंत्र
निर्णय लेने के
मामले में कानूनी
तौर पर उनके
हाथ बांध दिये
थे। इसके बाद
चरणबद्ध तरीके से उन
सबका भारत संघ
में विलय करा
दिया गया। इस
प्रकृया में उड़ीसा
के 36 राज्यों का
विलय 15 दिसम्बर 1947 को तो
कोल्हापुर और दक्कन
ऐजेंसी के 17 राज्यों का
विलय 8 मार्च 1948 को हुआ।
सन् 1948 में ही
सौराष्ट्र और काठियावाड़
की रियासतों का
विलय हुआ। बुन्देलखण्ड
और बाघेलखण्ड की
35 रियासतों का 13 मार्च 1948, राजपूताना
की 19 रियासतों का
विलय भी मार्च
1948 में, जोधपुर, जैसलमेर, जयपुर,
एवं बीकानेर का
19 मार्च 1948, इंदौर, ग्वालियर झबुआ
एवं देवास का
जून 1949 में, पंजाब
की 6 रियासतों का
1948 में, उत्तर पूर्व के
मणिपुर का 21 सितम्बर 1948 को,
त्रिपुरा का 9 सितम्बर
1949 को, कूच बिहार
का 30 अगस्त 1949 को
विलय हुआ। बड़े
राज्यों में से
हैदराबाद का पुलिस
कार्यवाही के बाद
18 सितम्बर 1948 को अधिग्रहण
किया गया। जबकि
त्रावनकोर-कोचीन 27 मई 1949, कोल्हापुर
फरबरी 1949 तथा मैसूर
का विलय 25 नवम्बर
1949 को तथा हिमालयी
राज्य टिहरी का
विलय 1 अगस्त 1949 को हुआ। सन्
1948 हिमाचल प्रदेश का गठन
करने से पहले
वहां की 27 रियासतों
का संघ बनाया
गया।
१४ अगस्त १९४७ के पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन का कवर पेज |
दरअसल देशी रियासतें
ब्रिटिश हुकूमत के लिये
बफर स्टेट्स के
समान थीं। सन्
1857 की गदर के
दौरान अधिकतर देशी
शासकों ने अंग्रेजों
का साथ देकर
उन्हें अहसास दिला दिया
था कि भारत
पर शासन करना
है तो राज्य
हरण की नीति
पर चलने के
बजाय उनसे मिल
कर चलने में
ही अंग्रेजी शासन
की भलाई है।
अंग्रेजों का इन
पर नियंत्रण भी
था और इनके
प्रति सुरक्षा के
अलावा कोई खास
जिम्मेदारी भी नहीं
थी। अंग्रेजों ने
गदर के बाद
राज्यहरण की नीति
तो त्याग दी
थी मगर देशी
शासकों को दंडित
करने और उनके
उत्तराधिकारी के चयन
का अधिकार अपने
पास रख कर
ब्रिटिश शासन ने
उनकी सार्वभौमिकता के
साथ ही उनकी
बफादारी भी गिरवी
रख दी। सन्
1921 में माउण्टफोर्ड सुधार के
तहत देशी शासकों
को अपनी जरूरतों
और आकांक्षाओं को
प्रकट करने के
लिये ’चैम्बर ऑफ
प्रिंसेज’ का गठन
हो चुका था
जिसे ‘‘नरेन्द्र मण्डल’’ भी
कहा जाता था।
इसके पहले चांसलर
महाराजा बिकानेर गंगा सिंह
बने। जवाहर लाल
नेहरू ने स्वतंत्र
भारत का संविधान
बनाने के लिये
जब देशी राज्यों
के नरेन्द्र मण्डल
से संविधानसभा में
अपने प्रतिनिधि भेजने
की अपील की
तो भोपाल के
नवाब हमीदुल्लाह खान,
जो कि नरेन्द्र
मण्डल का चांसलर
भी था, ने
अपील ठुकरा दी।
जबकि बिकानेर के
महाराजा ने सबसे
पहले अपना प्रतिनिधि
संविधानसभा के लिये
मनोनीत कर दिया।
उसके बाद पटियाला,
बड़ोदा, जयपुर और कोचीन
के प्रतिनिधि भी
संविधानसभा में शामिल
हो गये। यह
एक तरह से
इन राजाओं की
नयी व्यवस्था के
साथ चलने की
उत्सुकता थी। तत्कालीन
गर्वनर जनरल माउंट
बेटन ने ‘चैम्बर
ऑफ प्रिंसेज’ की
बैठक में साफ
कह दिया था
कि राज्यों का
अपना अलग अस्तित्व
बनाये रखना अब
व्यवहारिक नहीं रह
गया है इसलिये
इन राज्यों को
भारत या पाकिस्तान
में से किसी
के साथ भौगोलिक
सम्बद्धता के अनुसार
मिल जाना चाहिये।
चूंकि जितने देशी राज्य
उतने प्रान्त बनाना
संभव नहीं था
इसलिये पूर्ण रूप से
भारत संघ में
इनके विलय से
पहले एकीकरण की
कार्यवाही की गयी
और विलीनीकरण या
मर्जर से पहले
‘इंट्रूमेण्ट ऑफ एक्सेशन’
पर देशी शासकों
से हस्ताक्षर करा
कर पटेल और
मेनन ने एक
तरह बहुत
ही सूझबूझ से
उनकी सार्वभौमिकता हासिल
कर ली। जिसके
तहत देशी राज्यों
को सुरक्षा, यातायात
और वैदेशिक मामलों
के अधिकार भारत
संघ को मिल
गये मगर उनकी
आन्तरिक स्वायत्तता बरकरार रही।
इस रतह वे
स्वतंत्र देश के
रूप में सीधे
किसी अन्य राष्ट्र
से सम्पर्क नहीं
कर सकते थे।
15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद,
भोपाल और कश्मीर
को छोड़कर 136 राज्यों
ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ
एक्सेशन पर हस्ताक्षर
कर दिये थे।
भारत संघ में
मिलने वाले 554 देशी
राज्यों में से
551 तो इंस्ट्रूमेण्ट ऑफ एक्सेशन
पर हस्ताक्षर के
बाद शंतिपूर्ण ढंग
से भारत संघ
में विलीन हो
गये। लेकिन हैदराबाद
और भोपाल के
विलय में मामूली
बल का प्रयोग
करना पड़ा। जूनागढ़
का नवाब पाकिस्तान
में मिलने की
घोषणा कर पाकिस्तान
भाग गया था
और उसकी रियासत
को जनमत के
आधार पर भारत
में मिलाना पड़ा
जबकि कश्मीर के
शासक ने भी
स्वतंत्र रहने की
घोषणा की थी
लेकिन जब 1948 में
पाकिस्तान की ओर
से उस पर
कबायली हमला हुआ
तो उसने भी
भारत संघ में
विलय संधि पर
हस्ताक्षर कर लिये।
एकीकरण समय 216 छोटे राज्यों
को निकटवर्ती प्रान्तों
से जोड़ कर
उन प्रान्तों को
पार्ट-ए में
रखा गया। उड़ीसा
और छत्तीसगढ़ के
39 राज्यों को सेंट्रल
प्रोविन्स और उड़ीसा
में जोड़ा गया
जबकि गुजरात के
राज्य बम्बई में
मिलाये गये। इसी
तरह के 61 छोटे
राज्यों का एकीकरण
कर उन्हें पार्ट-सी की
श्रेणी में तथा
कुछ राज्यों के
पांच संघ बना
कर उन्हें पार्ट-बी
की विशेष श्रेणी में
रखा गया। इनमें
संयुक्त प्रान्त पंजाब राज्य
संघ राजस्थान संयुक्त
प्रान्त त्रानकोर-कोचीन आदि
शामिल थे। सन्
1956 में संविधान के सातवें
संशोधन से पार्ट-बी श्रेणी
समाप्त कर दी
गयी।
देखा जाय तो
भले ही अगस्त
का महीना समूचे
भारत के लिये
क्रांति का महीना
और ना ही
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस न
हो मगर जिस
तरह ब्रिटिश भारत
के नागरिकों की
तरह रियासती प्रजा
ने भारत की
एकता और अखण्डता
के लिये उत्साह
दिखा कर अपने
शासकों को भारत
संघ में मिलने
के लिये विवश
किया था वह
उत्साह उल्लेखनीय है और
आज देश को
कश्मीर से लेकर
कन्या कुमारी तक
उसी उत्साह और
एकता की भावना
की जरूरत है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-
9412324999
jaysinghrawat@gmail.com
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