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Saturday, February 11, 2012

power crisis and GD Agrawal

जीडी अग्रवाल की तपस्या शुरू:उर्जा राज्य का भविष्य अन्धकारमय
जयसिंह रावत, देहरादून।
भागीरथी नदी पर निर्माणाधीन लगभग 14 सौ मेगावाट की तीन जल विद्युत परियोजनाओं को बन्द कराने के बाद पर्यावरण अभियांत्रिकी के प्रोफेसर रहे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द(पूर्व नाम डा0 गुरुदास अग्रवाल ) अब शेष लगभग 4000 मेगावाट की परियोजनाओं को भी बन्द कराने के लिये वृहस्पतिवार से हरिद्वार में तपस्यारत् हो गये हैं। डा0अग्रवाल की अगुवाई में परियोजना विरोधियों की ताजी मुहिम ने पहले ही बिजली संकट से जूझ रहे बहु प्रचारित उर्जा राज्य उत्तराखण्ड के समक्ष नया संकट खड़ा कर दिया है।
गंगा की खातिर सन्यासी बने पर्यावरण विज्ञानी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानन्द के मीडिया सहायक अर्जुन यादव से मिली जानकारी के अनुसार भागीरथी के बाद अब गंगा की अन्य मुख्य धाराओं अलकनन्दा, मन्दाकिनी, पिण्डर, मन्दाकिनी, नन्दाकिनी, धौलीगंगा एवं ऋषिगंगा नदियों पर निर्माणाधीन और प्रस्तावित 21 पन बिजली परियोजनाओं को बन्द कराने की मांग को लेकर स्वामी सानन्द का चौथा अनशन आज वृहस्पतिवार से हरिद्वार के मातृ सदन में शुरू हो गया है। इन परियोजनाओं की कुल क्षमता 4025 मेगावाट है। ज्ञनस्वरूप के इस अनशन को तपस्या का नाम दिया गया है। अर्जुन ने आज समाज को बताया कि स्वामी ज्ञानस्वरूप ने मंगलवार 7 फरबरी से अन्न त्याग दिया था और उसकी जगह वह केवल फल ले रहे थे। मगर बुधवार से उन्होंने दिल्ली में फल भी त्याग दिये हैं। वह वृहस्पति सुबह दिल्ली से हरिद्वार पहुंचते ही तपस्यारत् हो गये। अगर उनकी मांगें मानी गयीं तो उर्जा राज्य के रूप में प्रचारित उत्तराखण्ड का बिजली क्षेत्र अन्धकार में डूब जायेगा। इनमें सबसे बड़ी केन्द्र सरकार की 850 मेगावाट क्षमता की कोटली बहल परियोजना भी है जो कि अलकनन्दा पर बन रही है। इसके अलावा 330 मेगावाट की श्रीनगर, 500 मे.वा. की तपोबन विध्षुगाड, 340 मे.वा. की विष्णुप्रयाग-पीपलकोटी और बिरही नदी पर 300 मेगावाट की देवसारी बांध परियोजना भी शामिल है।
उत्तराखण्ड उर्जा निगम तथा जल विद्युत निगमों के अधिकारियों का कहना है कि राज्य गठन के बाद प्रदेश की अपनी केवल 304 मेगावाट क्षमता की मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना पर उत्पादन शुरू हुआ है और उसके बाद एक मेगावाट की भी कुल उत्पादन में वृद्धि दर्ज नहीं हुयी जबकि प्रदेश में बिजली की खपत 11 सालों में 9 मिलियिन यूनिट से तीन गुणा अधिक बढ़ कर 28 मिलियन यूनिट हो गयी है।ऊर्जा निगम के आंकणों के अनुसार 31 मार्च 2012 तक प्रदेश में कुल उपभोक्ताओं की संख्या 16,49,765 तक होगी, जो 2012-13 में बढ़कर 17,84,236 हो जाएगी। प्रदेश का पावर लोड भी इसी अनुपात में बढ़ेगा। 31 मार्च 2012 तक प्रदेश में बिजली की कुल खपत 8,153.42 मिलियन यूनिट(एमयू) होगी, वहीं 2012-13 में इसके 9210.60 मिलियन यूनिट तक पहुंचने का अनुमान है। स्पष्ट है 2011-12 के मुकाबले 2012-13 में उपभोक्ताओं की संख्या में एक लाख 35 हजार 471 की वृद्धि होगी तो इसी अनुपात में लोड भी एक हजार 57 एमयू तक बढ़ जाएगा। प्रदेश के जल विद्युत निगम के आंकलन के अनुसार वर्ष 2012-13 में कुल उत्पादन 4696.970 मिलियन यूनिट रहेगा। यह प्रस्तावित बिजली उत्पादन कुल मांग का लगभग आधा ही होगा। ऐसे में बचे हुए करीब 4511 मिलियन यूनिट बिजली की कमी की आपूर्ति करना चुनौती होगी। ऐसे में उद्योगों को समुचित बिजली न मिलने पर वह बंदी की कगार में जा सकते हैं। फलस्वरूप सूबे में बेरोजगारी और पलायन बढ़ने की भी आशंका है।
उत्तराखंड ऊर्जा निगम से प्राप्त जानकारी के अनुसार निगम ने गत जनवरी में 302 करोड़ की बिजली बाहर से खरीद कर प्रदेश की मांग पूरी की है। निगम द्वारा चुनाव में ही सरकार के दबाव में करीब सौ करोड़ की अतिरिक्त बिजली खरीदी गई। जबकि जनवरी 2012 में ऊर्जा निगम की आय केवल 275 करोड़ के लगभग ही हुयी है। इसी महीने में करीब 30 करोड़ की अन्य देनदारी भी निगम पर है। इस तरह निगम की देनदारी 330 करोड़ से अधिक हो गई। आय से अधिक खर्च होने की वजह से ही ऊर्जा निगम घाटे के दलदल में फंसता जा रहा है।

ऊर्जा निगम वर्ष 2010-11 में 1960 करोड़ रुपये के घाटे में था। चालू वित्तीय वर्ष में इस घाटे में इजाफा होना अवश्यंभावी है। इस करीब दो हजार करोड़ रुपये के घाटे के साथ ही ऊर्जा निगम पर 641 करोड़ रुपये का कर्ज का बोझ अलग से है। मनेरी भाली द्यितीय के अलावा प्रदेश में टिहरी बांध की 1000 मेगावाट की प्रथम चरण, 180 मेगावाट की धौलीगंगा और 400 मेगावाट की विष्णुप्रयाग परियाजना राज्य गठन के बाद शुरू हुयी हैं मगर इनमें से दो केन्द्र सरकार के निगमों की और एक जयप्रकाश इण्डस्ट्रीज की परियोजना है।। इन परियोजनाओं से प्रदेश को मात्र 12 प्रतिशत बिजली निशुल्क मिलती है।

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