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Wednesday, February 22, 2012

KOTDWAR MAY BE PROVED AS WATERLOO

खण्डूड़ी के लिये वाटरलू भी हो सकता है कोटद्वार

-जयसिंह रावत-

भारतवर्ष को अपना नाम देने वाले दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र तथा कुरूवंश के आदि पुरूष चक्रवर्ती महाराजा भरत की क्रीडा और शिक्षा स्थली कण्वाश्रम की कोटद्वार सीट इस विधनसभा चुनाव में एक बार फिर इतिहास रचने जा रही है। इस सीट पर अगर मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी चुनाव जीतते हैं तो वह 44 सालों के बाद इस क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले पहले ब्राह्मण प्रत्याशी होंगे और अगर चुनाव हार जाते हैं तो मुख्यमंत्री की हार एक इतिहास तो बनाती ही है। अगर खण्डूड़ी हार गये तो कोटद्वार एक और वाटरलू बन जायेगा जिसकी हार के बाद खण्डूड़ी को राजनीति सेण्ट हेलना द्वीप जाना पड़ सकता है।



उत्तराखंड की तीसरी निर्वाचित विधानसभा के चुनाव के लिए सारे मुद्दे ”खण्डूड़ी है जरूरी” या मजबूरी के नारे पर टिक जाने के साथ ही उत्तराखंड ही नहीं बल्कि सारे देश की निगाह गढ़वाल के प्रवेश द्वार और कण्व ऋषि की तपोस्थली (कण्वाश्रम) कोटद्वार पर टिक गई है। लगभग 82 हजार मतदाताओं वाली इस विधानसभा सीट पर कुल 8 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है जिनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी भी एक है, जिन्हें भाजपा न केवल पहले ही अपना अगला मुख्यमंत्राी घोषित कर चुकी है, बल्कि उनके नाम से ही अन्य सीटों पर वोट भी मांग रही थी। दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने परखे हुए प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी को चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि सुरेन्द्र सिंह नेगी 2007 में हुए धूमाकोट विधानसभा उपचुनाव में खंडूड़ी से हार गए थे, लेकिन इस समय परिस्थितियां बिल्कुल अलग है। क्योंकि कोटद्वार सुरेन्द्र सिंह नेगी का गढ़ होने के साथ ही एक ठाकुर बहुल निर्वाचन क्षेत्र है, जहां से पिछले 44 सालों में आज तक कोई भी ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया । अगर इस समय भुवन चन्द्र खंडूड़ी यहां से चुनाव जीतते है तो यह अपने आप में एक इतिहास तो होगा ही लेकिन अगर उन्हें कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी पटकनी देकर चुनाव जीत जाते है तो उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में एक और अविस्मरणीय रोचक पन्ना जुड़ जाएगा।

गत 30 जनवरी को कुल 84909 मतदाताओं वाले कोटद्वार के मतदाताओं ने खण्डूड़ी समेत सभी प्रत्याशियों की किश्मत ईवीएम में बन्द कर दी है। इस चुनाव में बसपा,उक्रांद और रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी भी मैदान में है लेकिन उनकी भूमिका केवल इन दोनों दलों के चुनावी समीकरण को गड़बड़ाने के अलावा नजर नहीं आ रही है। जो होना था वह 30 जनवरी को ही हो चुका होगा मगर प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह कोटद्वार में भी परिवर्तन की चर्चाएं काफी गर्म है।लेकिन जब मतदाताओं के सामने न केवल प्रदेश का मुख्यमंत्री हांे और वह भी एक पार्टी का खेवनहार हो तो परिवर्तन की हवाएं स्वयं ही दम तोड देती हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि उत्तराखंड की सर्वाधिक जातिवादग्रस्त सीट होने के कारण कोटद्वार में खंडूड़ी की राहें बेहद मुश्किल दिख रही हैं। पिछले इतिहास का हवाला देते हुए चुनावी विश्लेषक मानते है कि सन् 1967 में आखिरी ब्राह्मण प्रत्याशी भैरवदत्त धूलिया इस क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे। उस समय उन्होंने कांग्रेस के जगमोहन सिंह नेगी को हराया था। जगमोहन सिंह नेगी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी थे। उस समय से लेकर उत्तराखंड राज्य के गठन तक कोटद्वार, लैन्सडौन विधानसभा क्षेत्र का ही अंग रहा। उस चुनाव के बाद गढ़वाल की राजनीति में जातिवाद का असर इतना फैला कि उसके बाद आज तक कोई ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया। राजनीति के पण्डित तो यहां तक कह रहे हैं कि जिसने भी खण्डूड़ी को कोटद्वार से लड़ने की सलाह दी वह उनका शुभ चिन्तक तो हो ही नहीं सकता है। अगर वह कोटद्वार की जगह कहीं और से लड़ते तो जीत सुनिश्चित होने के साथ ही वह अन्य सीटों पर भी प्रचार के लिये अधिक समय दे पाते। कोटद्वार में संकट के कारण पूरे तीन दिन वहां दर-दर भटकना पड़ा।

इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तो 1967 में लैन्सडौन क्षेत्र से जगमोहन सिंह नेगी की हार के मात्र 2 साल बाद उनके बेटे चन्द्र मोहन सिंह नेगी ने 1969 में यह सीट दुबारा जीत कर अपने पिता की हार का बदला ले लिया। उसके बाद वह 1974,1977 और 1980 में इस क्षेत्र से चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे और अस्सी के दशक के बहुचर्चित गढ़वाल चुनाव में उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा से जबरदस्त टक्कर ली और मात्र 25 हजार वोट से हार गए। इस सीट पर उसके बाद उनकी विरासत सुरेन्द्र सिंह नेगी ने ही सम्भाली और वह 1985 में पहली बार इस सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। सुरेन्द्र सिंह नेगी एक बार निर्दलीय और 2 बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव जीते हैं और तिवारी मंत्रिमण्डल में केबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।

कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या करीब 1 लाख 80 हजार है जिसमें 84909 मतदाता हैं। इनमें करीब 41971 महिला और 42938 पुरुष मतदाता हैं। जातिवादी समीकरणों से देखा जाए तो इस सीट पर 40 प्रतिशत ठाकुर, 20 से 22 प्रतिशत ब्राह्मण और शेष मुस्लिम, अनुसूचितजाति तथा अनुसूचितजनजाति मतदाता हैं। इस सीट पर मैदानी मूल के मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। कोटद्वार विधनसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी भुवन चन्द्र खंडूड़ी और कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, जबकि बसपा के राजेन्द्रसिंह आर्य और जनरल टीपीएस रावत के उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के गीताराम सुन्द्रियाल तथा निर्दलीय प्रत्याशी राजेन्द्र ंिसंह आर्य के स्थान पर रहने की संभावना है।

कोटद्वार-तराई भाबर से लेकर कालागढ़ और कुंभीखाल तक करीब 32 किमी में फैली यह सीट अविभाजित उत्तरप्रदेश के दौरान लैंसडौन विधनसभा में थी, लेकिन पृथक उत्तराखंड के गठन के बाद कोटद्वार विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। इसी चुनाव क्षेत्र में पौराणिक कण्वाश्रम है जहां शकुन्तला और दुष्यन्त के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत का बाल्यकाल गुजरा। उसी भरत के नाम से इस देश का नाम भी भारत हुआ।नये परिसीमन के बाद विकासखंड दुगड्डा का घाड़ क्षेत्र यमकेश्वर विधानसभा में चला गया है। जिससे घाड़ क्षेत्र के करीब 10 हजार मतदाता इस सीट पर कम हो गये हैं। इसका कुछ नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है,किन्तु उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के प्रत्याशी गीताराम सुन्दिरयाल भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं, क्योंकि मोर्चा के अध्यक्ष पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत हैं जिनके कारण कुछ फौजी वोट सुन्दरियाल को मिल सकते हैं। जिसका नुकसान सीध्ेा-सीध्ेा भाजपा प्रत्याशी को खण्डूड़ी को होगा।

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