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Tuesday, February 14, 2012

JAY SINGH RAWAT INTERVIEWS GD AGRWAL AILAS GYANSWAROOP SANAND

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द उर्फ प्रो0 जी.डी. अग्रवाल का साक्षात्कार

गंगा के लिये एक और भगीरथ तपस्यारत्

महापुरुष भी सुख और समृद्धि को तो त्याग देते हैं, मगर अपना यश नहीं त्याग सकते। क्योंकि वही यश आदमी को युगों-युगों तक जीवित रखता है। लेकिन डा0 गुरुदास अग्रवाल उन हस्तियों में हैं जो कि यश से भी आगे पहुंच गये हैं और केवल अपने यशस्वी नाम को त्याग कर एक भगीरथ प्रयास के लिये सन्यास धारण कर गये बल्कि अपने विख्यात अतीत के बारे में चर्चा तक करना नहीं चाहते। जी हां ! गंगा की अविरलता और निर्मलता की खातिर जीडी अग्रवाल अब ज्ञानस्वरूप सानन्द हो गये हैं। वह भगोया धारण करने से पहले गंगा पर बिजली परियोजनाओं को रोकने की मांग को लेकर तीन बार 91 दिन का अनशन कर चुके हैं और अब इसी उद्ेश्य को हासिल करने के लिये वह अन्न त्याग कर हरिद्वार के मातृ सदन में चौथी बार तपस्या पर बैठ गये हैं। इंजिनियरिंग की डिग्री के बाद अमेरिका के बर्कले स्थित कैलीॅफोेर्निया विश्वविद्यालय में मास्टर आफ साइंस के साथ ही पर्यावरण अभियांत्रिकी में पीएचडी करने वाले डा0 अग्रवाल आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर रहने के बाद भारत सरकार के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पहले सदस्य सचिव भी रहे हैं। उनकी विद्वता के ही कारण दुनियाभर में उनके शिष्य अभियांत्रिकी के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित कर रहे हैं। तपस्यारत् स्वामी सानन्द पत्रकारों की आवाजाही को भी विघ्न मान कर ख्ीज रहे हैं। फिर भी आज समाज के उत्तराखण्ड ब्यूरो प्रमुख जयसिंह रावत से बात करने के लिये वह मुश्किल से तैयार हो ही गये। वार्ता के दौरान वह अक्सर खीजते भी रहे। प्रस्तुत है स्वामी सानन्द से हुयी बातचीत के अंश:-

प्रश्न- स्वामी जी पर्यावरण अभियांत्रिकी में डा0 गुरुदास अग्रवाल एक बहुत बड़ा नाम था। डा0 अग्रवाल की ख्याति दुनियां में थी। आपने वह यशस्वी नाम आखिर क्यों और किसकी प्रेरणा से त्यागा और सन्यासी क्यों बन गये?

स्वामी सानन्दः- मुझे लगा कि हमें संन्यास आश्रम ग्रहण कर लेना चाहिए और साथ में जो हमारे यहाँ चार पुरुषार्थ बताये गए हैं, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और उसमें भले ही मोक्ष की मुझे कामना नहीं , पर मुझे ये लगा कि इस स्थिति में आकर शास्त्रों का अध्ययन आत्मज्ञान ये भी एक महत्वपूर्ण कार्य है मैंने सोचा कि अब वो समय गया है कि मैं चौथा आश्रम अपनाऊं और दूसरी ओर ये तो था ही कि मैं 2006 में ही अपना बचा संपूर्ण जीवन गंगा जी को समर्पित कर चुका था। मुझे ये लगा कि अब संन्यास ले लेने से मैं अधिक स्वतंत्र हो जाऊंगा। अन्य दबाव से जैसे बार -बार समाज की बात की जाती है। मित्रों की या सम्बन्धियों की उन सब दबाव से मैं मुक्त हो जाऊंगा। उस रूप में भी मुझे ये लगा कि संन्यास ले लेना इस समय एक अच्छी स्ट्रेटेजी होगी तो एक प्रकार से संन्यास ले लेना दोनों दिशाओं से एक सर्वोत्तम बात लगी। एक तरफ स्ट्रेटेजी के रूप में एक तरफ सिद्धांत के रूप में तो फिर मैंने संन्यास ले लिया। आपको पता ही होगा कि मैंने जुलाई मास में संन्यास लिया और उसके बाद लगभग तुरंत मैं 15 जुलाई से गुरुदेव के साथ, मेरे गुरूजी के गुरुदेव शंकराचार्य जी हैं, ज्योतिषपीठ के स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती। मेरे गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द जी हैं, जो शंकराचार्य के शिष्य हैं। इन दोनों के साथ और बहुत से संतो के साथ जैसे स्वामी अमृता नन्द जी और अन्य संतो के साथ मैंने चातुर्मास कलकत्ते में किया वहां एक ओर वेदांत का अध्ययन और धर्म शास्त्रों का मनुस्मृति नारद स्मृति इन साबका अध्ययन किया जो संभवतया मैंने संन्यास लिया होता तो मैंने वह ज्ञान प्राप्त किया होता। साथ ही वहां पर गंगा जी की भी चर्चा चलती ही रही और उसके बाद आकर जो ये तपस्या का निर्णय लिया गया इसमें अब मैं अकेला नहीं हूँ। मेरे साथ मेरे गुरूजी ने भी संकल्प लिया है और एक ब्रह्मचारी हैं और एक गंगा प्रेमी भिक्षु हैं जो अपना नाम भी नहीं बताते। वह पूरा बोलते भी नहीं और गंगा जी के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। पांचवें तपस्वी राजेन्द्र सिंह जी हैं जो हम सबसे जुड़े हैं। वह जल पुरुष के नाम से भी जाने जाते हैं। उनका भी बड़ा आग्रह था कि मुझे भी उसमें रखा जाए। हम पांच ने गंगा सागर जाकर गंगा सागर समुद्र में खड़े होकर विधिपूर्वक जैसी हमारी शास्त्रीय विधि है उससे ये संकल्प लिया है कि गंगा जी की जैसी स्थिति हम देखना चाहते हैं अगर वो नहीं होती है तो हम जीवनोत्कर्ष करने के लिए तैयार हैं, एक के बाद एक

प्रश्न-स्वामी जी! गंगा की दुर्दशा पर तो आपने काफी लड़ाई लड़ ली। आपने कुछ बिजली प्रोजेक्ट पहले ही बन्द करा दिये। लेकिन यमुना की कोई सुध नहीं रहा है, जबकि यमुना दिल्ली पहुंचते-पहुंचते गन्दे नाले में बदल गयी है?

स्वामीः-मैंने आपको जो दिया है वो आपने पढ़ लिया होगा मुझे कुछ नहीं कहना है यमुना के बारे में। उससे आगे जो मैंने अपने उस व्यक्तव्य में दिया है जिसकी कापी आपके पास है, उसे पढ़ लें। हमने किसी नदी की अनदेखी नहीं की।

प्रश्न- स्वामी जी आप इतने बड़े इंजीनियर हैं। आप इंज्निियरों के भी गुरू रहे हैं। अगर नदियों से बिजली नहीं बनेगी तो बिजली आयेगी कहां से और बिना बिजली के कैसे काम चलेगा?

स्वामीः- मुझे अपने पिछले जीवन की कोई चर्चा नहीं करनी है। आप इसलिए उन सब बातों की बिलकुल चर्चा करें। आप मुर्गे की गरदन रोज मरोड़ सकते हैं। मुर्गे की गरदन रोज काटी जाती है, लेकिन मोर की गरदन आप नहीं मरोड़ सकते। ये दोनों ही पशु हैं।मोर को मार के देखिये ! आप अपराधी माने जायेंगे। राष्ट्रीय पशु बाघ , उसका भी संरक्षण हो रहा है तो राष्ट्रीय नदी का क्यों नहीं? हम केवल गंगा जी पर बांधों का विरोध कर रहे हैं। हम केवल भागीरथी जी , अलकनन्दा जी और मन्दाकिनी जी और देवप्रयाग से गंगा सागर तक गंगा जी की अविरलता की बात कर रहे हैं।

प्रश्न-मेरा सीधा सवाल है कि अगर गंगा के पानी से बिजली नहीं बनेगी तो बिजली कहाँ से आयेगी ?

स्वामीः- कहीं से भी आये! गंगा जी की सहायक धारायें हैं। चाहे वो भिलंगना हो या जाडगंगा या फिर रामगंगा, कोसी गण्डक , घाघरा और सोन नदी हो हम इन नदियों पर बांध का विरोध थोड़े ही कर रहे हैं। देखिए! आप मेरी बात सुनिए! भाइयों के साथ सम्बन्ध केवल मां के माध्यम से होता है। गंगा हमारी मां है और आप सब भारतवासी मेरे भाई हैं। अगर वो सब भाई कपूत बनकर मां को लूटने-खसोटने लगें और कहें कि मैं तो बहुत भूखा हूँ।मां मैं तुम्हारा खून चूस लूँगा। तो मैं कपूत नहीं हूँ तो मैं क्या हूँ ।जब तक मां स्वस्थ हो हमें मां से कुछ मांगने का अधिकार नहीं है और मां के ऊपर सबसे अधिक अधिकार उस बेटे का है जिसने मां से कम माँगा हो और मां के लिए किया ज्यादा हो और मां की दुर्दशा देखकर वो बजाए मां के स्वस्थ होने की कामना करके अपनी स्थिति की सोचते हैं। एक बेटा है, मां पडी है इतनी बीमार कि मुझे तो नौकरी पर जाना है। मुझे तो बच्चों की फीस का इंतजाम करना हैं। मां की दवा का इंतजाम कहाँ से होगा ? तो जब या तो वो कहें कि हमारी मां अस्वस्थ ही नहीं है तो भी फिर वो कपूत है।वो मां की स्थिति नहीं देख रहे और दूसरी और मां की दुर्दशा देखते हुए उन्हें अपना ही ध्यान आता है। अपने स्वार्थ का अपने परिवार का अपने बच्चों का तो वे कपूत हैं। ऐसे बेटों के लिए मेरे मन में कोई स्नेह नहीं कोई सद्भावना नहीं। भाड़ में जाएं वो।

प्रश्न- स्वामी जी हरिद्वार से नीचे गंगा में प्रदूषण ज्यादा बताया जा रहा है और आप हरिद्वार से ऊपर की चिन्ता कर रहे हैं?

स्वामीः- आपको पहले हमारे कागज देखने चाहिये। हम केवल बांधांे की बात नहीं कर रहे। हमारी जो बात है वो सीधे गंगोत्री से गंगा सागर तक की है। उसमें पहली बात अविरल प्रवाह की है। अविरल प्रवाह में केवल बाँध की बात नहीं आती। नहरों की भी बात आती है। एक ओर उत्तराखंड के लोग अपनी तरह से गंगा जी का शोषण करना चाहते है, तो दूसरी और उत्तरप्रदेश वाले नहरों के माध्यम से शोषण करते है। प्रदूषण की बात तो बहुत बाद में आती है। अगर गंगा जी में समुचित प्रवाह रहे तो गंगा जी बहुत प्रदूषण झेलने के लिए समर्थ हैं। जैसे मां स्वस्थ होती है तो वह बहुत सारी बीमारियाँ झेल पाती है। उसे उसका खून चूस -चूस कर नहरों के द्वारा कमजोर कर दिया। लेकिन यहां सारा का सारा पानी चूसा जा रहा है। अब इसके लिए आपको हमारे कागज पढ़ने चाहिये। मुझे इस स्थिति में बात करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। और अगर आप मेरे बारे में कुछ नहीं जानते तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है। मैं तपस्या कर रहा हूं और अगर आप मेरी तपस्या के बारे में कुछ नहीं जानते तो कृपया मुझे किसी को बताना नहीं है। मैं कोई आन्दोलन नहीं कर रहा हूँ। मुझे किसी को बताना नहीं है। मैं ये मानता हूँ कि तपस्या के समय जो भी आता है, वो चाहे देवता हो या दानव हो, वो तपस्या में विघ्न डालने के लिए आता है। चाहे वो पत्रकार ही क्यों हो वो विघ्न डालने के लिए आता है। जिससे इसकी तपस्या भंग हो निष्फल हो और मैं जान बुझकर ऐसी किसी स्थिति में क्यों पडूं? मुझे किसी से लम्बी बात करने की इच्छा नहीं है। अगर आपको जानना है तो आप कागज पढ़िये। अखबार पढ़िए। जहां से जो पढ़ना हो पढ़िए, जानिये ना जानिये। मुझे आपकी कोई जरुरत है, और मैंने आपको बुलाया है।

प्रश्नः- स्वामी जी क्या सरकार को कोई नुमाइन्दा आपसे वार्ता के लिये आया?

स्वामी- नहीं कोई नहीं आया। मुझे सरकार से कोई अपेक्षा है और आशा है। और जरूरत भी नहीं है। आपके पास कोई छोटा मोटा प्रश्न हो तो वह करिये लम्बी बात मैं नहीं करूंगा। मुझसे पीछे की कोई बात मत करिये। मुझे सरकार से कोई अपेक्षा नहीं है।

प्रश्न-इसके बाद आपका क्या कार्यक्रम है?

स्वामीः- अभी अगर शरीर चलता है तो फागुन की पूर्णिमा तक मैं यहां रहूंगा। केवल जल ग्रहण कर। और अगर नहीं होता है तो फागुन प्रतिप्रदा से मैं काशी चला जाऊंगा और वहां जल भी त्याग कर प्राण छूटने की प्रतीक्षा करूंगा। आगे प्रभू पर है। गंगा जी को लाने का इतिहास यही रहा है। गंगाजी ऐसे ही ग्लेशियर से पिघल कर नहीं आई। गंगा जी के लिये तीन पीढ़ियों तक मेरे पूर्वजों ने तपस्या की। पहली और दूसरी पीढ़ी की तपस्या से गंगा जी नहीं आई। तीसरी पीढ़ी से जा कर आई। तो हम भी यह मानते हैं कि अकेले एक ही तपस्वी के बलिदान से गंगा जी नहीं बचेगी। इसलिये यह अभियान हमने 5 के संकल्प से प्रारम्भ किया है और इस समय उस लिस्ट में 10 और जुड़ गये हैं। इस समय हमारे पास 15 तपस्वियों की लिस्ट तैयार है। अगर वह स्थिति आती है तो कम से कम 15 लोग तो अपने प्राणोत्सर्ग करने को तैयार हैं। जैसा कि मैं कह रहा था कि गंगा की अविरलता के लिये बाधों का रुकना, नहरों के रुकने के साथ नहरों का नियंत्रण हो। जैसे किसी की जान बचाने के लिये किसी मनुष्य के शरीर से रक्त लेना हो तो एसकी एक सीमा होती है। रक्त की एक यूनिट शरीर में मौजूद कुल रक्त का लगभग 15वां भाग होती है। हम तो यह कहते हैं कि अगर गंगा जी का जल पीने के लिये,सिंचाई के लिये, उद्योगों के लिये लेना हो तो उसकी भी एक सीमा होनी चाहिये। वह सीमा आजकल इनवार्नमेण्टल प्रो के नाम से जानी जाती है। हमारे गुरूजी का कहना है कि वो किसी भी स्थिति में 49 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। किसी भी स्थान पर नदी के प्राकृतिक प्रवाह का आधा से कम ही जल लो। मेजोरिटी जल गंगा जी का गंगा जी में ही रहना चाहिये।

प्रश्नः- स्वामी जी अविरलता की बात तो समझ में आती है मगर हरिद्वार से नीचे मैदान में गंगा में जो प्रदूषण हो रहा है वह बात गौण क्यों हो गयी है?

स्वामीः- गंगा के प्रवाह के साथ ही प्रदूषण की भी बात है। चाहे औद्योगिक हो या नगरीय प्रदूषण हो वह बिल्कुल भी गंगा जी में नहीं पड़ना चाहिये। गंगाजी को अपनी पदवी के अनुरूप सम्मान मिलना चाहिये। गंगा हमारी संस्कृति की मूल धारा है। हम उनको मां कहते हैं। सभी भारतीय गंगाजी का सम्मान करते हैं। अब तो सरकार ने भी उसे राष्ट्रीय नदी का पद दे दिया है। एक राष्ट्र नदी के रूप में उनका सम्मान होना चाहिये। जैसे राष्ट्र घ्वज का शब्दों या हाथ से अपमान नहीं कर सकते। ध्वज पर गन्दा जल नहीं डाल सकते हैं तो गंगा जी में गन्दा जल कैसे डाल सकते हैं?

प्रश्नः- गंगा की पवित्रता और निर्मलता के लिये गंगा बेसिन अथारिटी बना दी गयी है। इससे आपकी क्या अपेक्षा है?

स्वामीः-गंगा बेसिन अथारिटी के प्रति तो हमें कोई श्रद्धा है और ना ही उसका हमारी तपस्या से कोई संदर्भ है। बेसिन अथारिटी केवल एक दिखावा है। आप जैसे लोगों को धोखा देने के लिये।

प्रश्नः-भारत सरकार ने गंगा का महत्व समझ कर उसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर तो दिया?

स्वामीः- मैं पहले ही कह चुका हूं कि भारत सरकार से हमें कोई अपेक्षा नहीं है।हमें उनसे कोई मतलब नहीं है। वो आप जानो। आप अपने पत्रकारिता के प्रोफेशन के लिये मेरी तपस्या में भंग डाल रहे हैं।

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