जीडी अग्रवाल-गंगा के लिये सब कुछ त्यागा
-जयसिंह रावत
किसी भी भूभाग की रक्त वाहिनियों की तरह प्रकृति की अनुपम धरोहर नदियों और खास कर करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था की प्रतीक गंगा के प्रति असीम आस्था और पर्यावरण असन्तुलन की चिन्ता ने देश के सबसे बड़े पर्यावरण विज्ञानी डा0 गुरूदास अग्रवाल को इतना व्यग्र कर दिया कि उनका जीवन का अन्तिम लक्ष्य ही गंगा रक्षा हो गया और इसके लिये सब कुछ त्याग कर सन्यास लने के बाद वह फिर से हरिद्वार के मातृ सदन में तपस्या पर बैठ गये हैं।
आइआइटी कानुपर में पर्यारण अभियांत्रिकी पढ़ा चुके ज्ञानस्वरूप सानन्द (यही प्रो. अग्रवाल का नया अध्यात्मिक नाम है) अब ज्योर्तिपीठ और शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती की छत्रछाया में रह कर गंगा बचाओ अभियान जुट गये हैं। उनका मानना है कि अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये अध्यात्म ही सबसे ताकतवर उपाय है। कई दशकों तक देश विदेश में फैले अपने शिष्यों को पर्यावरण विज्ञान की शिक्षा देने वाले स्वामी ज्ञान स्वरूप अब तपोबल से गंगा को स्वर्ग से उतारने वाले राजा भगीरथ से प्रेरणा लेकर अब मार्च में ंजल का त्याग कर प्राणेत्सर्ग के लिये भी तैयार बैठे हैं। भगोया धारण करने से पहले वह गंगा पर बिजली परियोजनाओं को रोकने की मांग को लेकर तीन बार 91 दिन का अनशन कर चुके हैं। अपने इन्हीं भगीरथ प्रयासों से वह भागीरथी पर निर्माणाधीन 480 मे.वा क्षमता की पाला मनेरी, 381 मे.वा. की भैरोंघाटी और 600 मेगावाट की लोहार नागपाल परियोजनाओं को बन्द करा चुके हैं। हालांकि इसके लिये प्रो0 अग्रवाल को स्वयं गंगा के मायके उत्तराखण्ड में भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। उत्तरकाशी में अनशन के दौरान उन्हें वहां से आम जनता ने खदेड़ ही दिया था। इस सन्यासी की देश विदेश में भले ही उज्ज्वल छवि रही है, मगर उत्तराखण्ड में उन्हें विकास के खलनायक के रूप में ज्यादा जाना जाता है। इसीलिये उन्हें अपने उपवास स्थल पहाड़ों के बजाय हरिद्वार से नीचे मैदानों में रखने पड़े हैं। भगोयाधारी प्रो0 अग्रवाल का कहना है कि भागीरथी और अलकनंदा समेत संपूर्ण गंगा जिस हाल में है, उसके लिए सरकार की गलत नीतियां जिम्मेदार ह,ैं तथा जीवनदायिनी गंगा राजनीतिक स्वार्थ की भेंट चढ़ गई है।
उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के कान्धला में सन् 1932 में जन्में गुरुदास ने शायद ही कभी सोचा होगा कि जिस गंगा की खातिर वह अपना विश्वविख्यात नाम डा0 गुरुदास अग्रवाल,और अपना यश त्याग रहे हैं, उसी गंगा के प्रवाह की तरह उनके अपने जीवन की गंगा का प्रवाह उन्हें आइआइटी और अनेक विश्वमंचों से लेकर सीधे अखाड़ों की विरक्ति की दुनियां में छोड़ देगा। बालक गुरुदास ने अपने प्ररम्भिक जीवन के 10 सालों तक स्कूल नहीं देखा। इस दौरान वह अपने दादा से संस्कृत की ही शिक्षा लिया करते थे। उनकी विलक्षण बुद्धि से प्रभावित हो कर उन्हें कान्धला में ही प्राइमरी स्कूल में दाखिल किया गया और फिर बारहवीं तक की पढ़ाई के लिये उन्हें मुजफ्फरनगर भेजा गया। वहां बारहवीं पास करने के बाद उस विलक्षण बालक को बीएससी के लिये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय भेजा गया। उस समय महामना मदन मोहन मालवीय जीवित थे और गुरुदास की प्रतिभा से काफी प्रभावित रहते थे।विज्ञान स्नातक बनने के बाद उन्होंने तत्कालीन रुड़की विश्व विद्ययालय में सिविल इंजिनीयरिंग में दाखिला ले लिया। वह विश्वविद्यालय अब आइआइटी में बदल गया है। कालेज से पासआउट होने के बाद वह उत्तरप्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग में डिजाइन इंजिनीयर के तौर पर नियुक्त हुये। ज्ञान पिपासु गुरुदास के लिये इंजिनियरिंग की डिग्री और फिर सरकारी अफसरी ही जीवन का ध्येय नहीं था। इसलिये उन्होंने अमेरिका के बर्कले स्थित कैलीॅफोेर्निया विश्वविद्यालय में मास्टर आफ साइंस के साथ ही पर्यावरण अभियांत्रिकी में पीएचडी के लिये दाखिला लिया और उस विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार मात्र ढाइ साल में एम.एस के साथ ही पीएचडी की थीसिस पूरी कर ली।उस जमाने में भारत में पर्यावरण इंजिनियरिंग एक नयी विधा थी। इसलिये उनका चयन आइआइटी कानपुर में सिविल एवं पर्यावरण इंजिनियरिंग के प्रोफेसर के रूप में हो गया। बाद में डा0 अग्रवाल उसी विभाग के विभागाध्यक्ष बन गये। इस दौरान उनके कई वैज्ञानिक शोधपत्र प्रकाशित हुये।
प्रो0 अग्रवाल की ख्याति देशभर में फैली तो भारत सरकार ने भी उनके ज्ञान का लाभ उठाना चाहा और उन्हें केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का पहला सदस्य सचिव बनाया गया।वह 1981 तक इस पद पर रहे। तब तक डा0 अग्रवाल पर्यावरण अभियांत्रिकी की अन्तर्राष्ट्रीय हस्तियों में गिने जाने लगे थे। इस ख्याति के चलते वह पर्यावरणीय प्रभावों के मामले में सलाहकार के रूप में भी स्थापित हो गये। जाने माने पर्यावरणवादी सुन्दरलाल बहुगुणा ने जब टिहरी बांध के बारे में पर्यावरणीय चिन्ताऐं उठा कर अनशन शुरू किया तो भारत सरकार द्वारा बांध से होने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिये डा0 मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया और पर्यावरण विशेषज्ञ के तौर पर समिति में डा0 अग्रवाल भी एक सदस्य मनोनीत किये गये। इस मामले में डा0 गुरुदास अग्रवाल और भाजपा नेता डा0 मुरली मनोहर जोशी के बीच मतभेद खुल कर सामने आये थ,े क्योंकि अग्रवाल ने तत्कालीन बाजपेयी सरकार द्वारा गठित इस समिति को फरेब बताया था। सन् 1990 में जब नानाजी देशमुख ने चित्रकूट में गुरुकुल पद्धति पर ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की तो डा0अग्रवाल को भी अन्य जाने माने विशेषज्ञों के साथ वहां प्रोफेसर निुयक्त किया गया। वह सन् 2008 में गंगा बचाओं अभियान में जुड़ने तक चित्रकूट महात्मा गांधी विश्व विद्यालय में रहे। उससे पहले अस्सी के दशक में वह बांग्लेदश सरकार के भी पर्यावरण सलाहकार रहे। यही नहीं वह कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक देशभर की दर्जनों संस्थाओं को निशुल्क तकनीकी परामर्श दिया करते हैं।
ज्ञान स्वरूप सानन्द उर्फ गुरुदास अग्रवाल जीवनभर कुवारे रह कर वसुधैवै कुटम्बकम् की धारणा से समाज की सेवा करते रहे। उनके शिष्यों के अनुसार आज गांधीवादियों की कमी नहीं है मगर गुरुदास अग्रवाल जैसे गांधीवादी बहुत कम हैं। प्रोफेसरी और अफसरी के दौरान भी वह स्वयं भोजन पकाने के साथ ही अपने कपड़े भी स्वयं धोया करते थे। उनका अपना वाहन साइकिल होता था। गंगा में बन रहे बिजली प्रोजेक्टों के खिलाफ सबसे पहले वह जून 2008 में उत्तरकाशी और दिल्ली में 32 दिन तक अनशन पर रहे। उसके बाद इस उद्ेश्य को लेकर जनवरी 2009 में दिल्ली के हिन्दू महासभा भवन में 39 दिन तक और फिर 2010 में हरिद्वार के मातृ सदन में 27 दिन तक अनशन पर रहे। अ बवह फिर मातृ सदन में अन्न त्याग कर तपस्या पर बैठ गये हैं। इस बार उनका लक्ष्य गंगा की मुख्य धारा अलकनन्दा और भागीरथी तथा उनकी सहायक नदियों पर लगभग 3500 मेगावाट की निर्माणाधीन और 4800 मेगावाट की अनुसंधान और विकास के चरण वाली परियोजनाओं को बन्द कराने के लिये तपस्या कर रहे हैं।
जयसिंह रावत
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