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Saturday, August 29, 2020

बीस करोड़ वयस्कों के लिये बैंक अब भी बहुत दूर

 

जन धन योजना के 6 साल: बीस करोड़ वयस्कों के लिये बैंक अब भी बहुत दूर

-जयसिंह रावत

औपचारिक वित्तीय या बैंकिंग सेवाओं से दूर रहने के कारण लाखों भारतीय परिवार गरीबी के चक्र में फंसे रह जाते हैं। लोग अपनी जमा पूंजी को असुरक्षित माध्यमों में रखते हैं जो कि अक्सर डूब जाती है। गरीब लोग मित्रों और रिश्तेदारों को पैसे भेजने के लिए अनौपचारिक माध्यमों का सहारा लेते हैं और जब मुश्किल पड़ती है तो पैसे के लिए महाजनों या आर्थिक बिचौलियों का रुख कर उनके चंगुल में फंस जाते हैं। इसीलिये लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त 2014 को विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाइ) की घोषणा कर 28 अगस्त से सम्पूर्ण देश में अभियान शुरू कर दिया था जिसके परिणामस्वरूप आज करोड़ों परिवार बैंक सेवाओं से जुड़ गये फिर भी अभी 20 प्रतिशत से अधिक वयस्कों के पास बैंक खाते नहीं हैं और जिन लोगों ने खाते खोले भी हैं उनमें से भी कुछ बंद हो गये और लगभग 19 प्रतिशत खाते निष्कृय हैं।

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट (फिंडेक्स-2018) में कहा है कि वर्ष 2014 में देश में केवल 53 प्रतिशत वयस्कों के पास बैंक खाते थे, जो बढ़ कर 2017 में 80 प्रतिशत तक पहुंच गये। चीन में भी 80 प्रतिशत लोगों के पास ही बैंक खाते हैं। विश्व बैंक ने प्रधानमंत्री जनधन योजना के माध्यम से वित्तीय समावेशन में आई तेजी का उल्लेख करते हुये फिंडेक्स रिपोर्ट में कहा है कि 2011 में देश में केवल 35 प्रतिशत वयस्कों के पास बैंक खाते थे जो कि 2017 तक 80 प्रतिशत तक पहुंच गये। मोदी जी की इस महत्वाकांक्षी योजना में बायोमीट्रिक पहचान के उपयोग से वित्तीय सेवाओं की पहुंच बढ़ाने में सहायता मिली है। मार्च 2017 में देश में 28.17 करोड़ जन धन  खाते थे जो कि मार्च 2018 तक 31.44 करोड़ तक पहुंच गये। रिपोर्ट में कहा गया कि वैश्विक स्तर वर्ष 2014 से लेकर 2017 तक कुल 51.4 करोड़ खाते खोले गये, जिनमें 28.17 करोड़ खाते याने कि विश्व के कुल 55 प्रतिशत खाते जन धन योजना के थे जो कि बैंक शाखाओं से बाहर विशेष कैंप लगा कर बिना अनावश्यक औपचारिकता के शून्य बैलेंस पर खोले गये।

19 अगस्त 2020 तक देश में प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खाताधारकों की संख्या 40.35 करोड़ तक पहुंच गयी थी और इन खातों में 130701.05 करोड़ की राशि जमा थी। गरीबों की यह रकम आज राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंग है। इनमें से 29.75 करोड़ खाताधारकों को रूपे डेविट कार्ड भी जारी हो चुके हैं। इन खाताधारकों में 22.27 करोड़ महिलाएं शामिल हैं। उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य में योजना के खाताधारकों की संख्या 26,45,447 तक पहुंच चुकी है। जिनके खातों में 1345.42 करोड़ की राशि जमा हो गयी है। केरल और गोवा में तो शतप्रतिशत आबादी खाताधारक हो गयी है। जम्मू-कश्मीर जैसे अशांत रहे राज्य में ऐसे जीरो बैंलेस से खुले खातों की संख्या 23,44,505 तक पहुंच गयी जिनमें 1285.25 करोड़ की रकम जमा है और 17,75,466 खाताधारकों को रूपे डेविड कार्ड जारी हुये हैं। इसी प्रकार अंडमान-निकोबार जैसे केन्द्र शासित क्षेत्र में 48,378 जन धन खाते खुले जिनमें 30.93 करोड़ रुपये जमा हैं। सुदूर अरुणाचल जैसे राज्य में भी 3,44,876 खाते खुले और उनमें 197.42 करोड़ की जमा राशि मौजूद है।

जनधन योजना निश्चित रूप से गरीबी उन्मूलन और समावेशी विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण योजना है, लेकिन तमाम सरकारी दावों के बावजूद इस योजना को भी पूरी तरह सफल नहीं माना जा सकता है। ताजा आकड़ों के अनुसार अभी तक 20 प्रतिशत वयस्क आबादी के पास बैंक खाते नहीं हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 15 जनवरी 2020 को जनधन योजना के 37.87 करोड़ खाते थे जिनमें से केवल 30.78 खाते ही सक्रिय थे। इन 19 प्रतिशत निष्कृय खातों में उत्तर प्रदेश के 23 प्रतिशत, महाराष्ट्र के 25.15 प्र.. तमिलनाडू के 21.95 प्र.. और कर्नाटक के 20.82 प्रतिशत खाते शामिल थे। इन खातों में से 2 प्रतिशत खाते तो बंद ही हो चुके हैं, क्योंकि बिना बैलेंस के खाते रखना भी घाटे का सौदा है। मीजोरम जैसे सीमावर्ती और सुदूर जनजाति बहुल राज्य में जन धन खातों की संख्या में गिरावट की शिकायतें भी रहीं है। मीजोरम में 10 नवम्बर 2016 को 3.7 लाख जन धन खाते थे जो कि 4 जनवरी 2017 को 1.8 लाख ही रह गये।

इस महत्वपूर्ण योजना में आंकड़े बढ़ाने की हड़बड़ी में कई अन्य कमियांे पर ध्यान नहीं दिया गया। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार इननो-फ्रिलबैंक खाता धारकों को महीने में चार बार निकासी की सीमा पार करते ही जुर्माने का सामना भी करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई बैंक ऐसे खातों में पांचवी निकासी होते ही इस नो-फ्रिल खाते को नियमित खाते में बदल दे रहे हैं। नोटबंदी के दौरान ऐसे कई खातों मंे करोड़ों रुपये जमा हुये हैं और गरीब लोग लालच में आकर या जानकारी के अभाव मंे काला धन छिपाने वालों के चुगुल मंे फंस गये। 8 नवम्बर 2016 को नोटबंदी की घोषणा के कुछ ही हफ्तों के अंदरी 30 नवम्बर 2016 को जन धन खातों में कुल 74,322 करोड़ रुपये जमा थे जो कि 4 जनवरी 2017 तक 70,070.8 करोड़ ही रह गये। बिजनेस स्टेंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार 8 नवम्बर 2016 से लेकर 30 दिसम्बर 2016 तक 3.74 जन धन खातों में 42,200 करोड़ की भारी भरकम राशि का जमा होना हो कुछ ही सप्ताह के अंदर हजारों करोड़ की रकम का निकल जाना जन धन खातों के दुरुपयोग का ही संकेत है। कारोना महामारी के समय गरीबों को राहत देने के लिये उनके जन धन खातों में 500 रुपये की एक-एक किश्त डालने का विचार तो नेक ही था लेकिन उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी और दूर दराज के दुर्गम इलाकों में यह राशि गरीबों को महंगी पड़ी।

समावेशी विकास और गरीबी उन्मूलन के लिये कमजोर वर्गों को बैंकिंग सेवा से जोड़ना सदैव राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में शामिल रहा है। इसी उद्ेश्य से भारत सरकार ने 2011 में ‘‘स्वाभिमान’’ जैसे अभियान भी चलाये। इस अभियान के तहत 2001 की जनगणना के आधार पर 2000 से अधिक आबादी वाले 74,000 गावों को बैंकिंग सुविधाओं से जोड़ा गया। यह अभियान पहुंच और कवरेज के मामले में सीमित था। यह सम्पूर्ण राष्ट्र के बजाय केवल 2000 से अधिक आबादी वाले गावों तक ही सीमित था। इसमें आज की तरह बैंक खाते खोलने, डिजिटल मनी तक पहुंच, माइक्रो क्रेडिट, बीमा और पेंशन का लाभ आदि शामिल नहीं थे। यह परिवारों पर केन्द्रित होकर जनसंख्या पर केन्द्रित था। नतीजतन इससे वांछित लाभ हासिल नहीं किया जा सका। पिछले अनुभवों से सीख लेते हुये प्रधानमंत्री ने भविष्य के भारत के समावेशी विकास के लिये जन धन योजना की घोषण की जो कि 28 अगस्त से देश में लागू हुयी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश की गरीब से गरीब जनता को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ कर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी है। मौजूदा समय में सरकार तमाम स्कीम का लाभ सीधे बैंक खाते के जरिए दे रही है। बैंक खाता होने से प्रत्येक परिवार की पहुंच बैंकिंग तथा ऋण सुविधा तक होती है।

जयसिंह रावत

-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर

डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।

jaysinghrawat@gmail.com

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