पंडित जसराज: आत्मा को झंकृत करने वाले सुर हुये खामोश
&जयसिंह रावत
धरती के एक
कोने से
लेकर दूसरे कोने तक और
भूमध्य रेखा से लेकर अंटार्कटिका तक
अपनी सुर
लहरियां प्रवाहित कर मानव समाज की अन्तरात्मा को
झंकृत करने वाले पद्मविभाूषण पंडित जसराज के मधुर स्वर मौन हो
गये। भारतीय संगीत की दुनिया को वृहद करने का श्रेय पंडित जसराज जैसे महान संगीतज्ञों को जाता है। पंडितजी संगीत के ऐसे नक्षत्र थे जिनके नाम
का डंका धरती से लेकर अंतरिक्ष में तक
बजता था।
उनके नाम
पर नक्षत्र का नामकरण भारत के लिये गर्व की बात है।
धरती
के
एक
कोने
से
दूसरे
कोने
तक
बहायी
सुर
लहरियां
हरियाणा में हिसार से लगभग 70 किलोमीटर दूर गाँव पीली मन्दौरी में 28 जनवरी 1930 को
जन्मे पंडित जसराज पहले भारतीय थे, जिन्होंने 82 साल
की उम्र में 8 जनवरी 2012 को
अंटार्कटिका तट
पर ‘‘सी
स्प्रिट’’ नाम
के क्रूज पर गायन कार्यक्रम प्रस्तुत किया और
पांचों महाद्वीपों में कार्यक्रम पेश
करने वाले पहले भारतीय बने। उन्होंने इससे पहले 2010 में
पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी धु्रव का दौरा किया था।
पिता
ने पिलाई
थी संगीत
की घुट्टी
पंडित जसराज का
जन्म एक
ऐसे परिवार में हुआ जिसे चार पीढ़ियों तक
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक
से बढ़
कर एक
गायन शिल्पी देने का गौरव हासिल है। उनके पिताश्री पंडित मोतीराम स्वं मेवाती घराने के लब्ध प्रतीष्ठित संगीतज्ञ थे। पंडित जसराज का जीवन उनके संगीत गायन की तरह सुरीला नहीं रहा। इसमें उनके सुर की
तरह ही
काफी उतार-चढ़ाव भी रहे। पंडित जी अपने माता-पिता की
नौवीं सन्तान थे। जसराज इनके बाद एक बच्चे का जन्म और
हुआ जिसका देहान्त हो गया। जसराज की माताजी जिनका निधन 1957 में
हुआ, कहा
करती थी
कि जसराज अपने पिता की
एकमात्र ऐसी
सन्तान थी
जिन्हें पिता ने शहद से
घुट्टी पिलाई थी। देखा जाय
तो पिता ने घुट्टी में
ही उन्हें संगीत का रस
पिला दिया था। जसराज जब
मात्र 3 साल
के थे
तो उनके सिर से उनके पिता का साया उठ गया था।
उसके बाद
उन्हें उनके अग्रज और गुरू पंडित मनिराम का
संरक्षण मिला। बाद में वह
अपने आध्यात्मिक गुरू महाराज जयवंत सिंह बघेला की
छत्रछाया में
चले गये।
तबले
से शुरू
की संगीत
की साधना
पंडितजी मूलतः तबला बवादक थे और
14 साल की
उम्र तक
वह तबला सीखते थे। बाद
में उन्होंने गायिकी की तालीम शुरू की। उन्होंने साढ़े तीन सप्तक तक शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता रखने की मेवाती घराने की विशेषता को
आगे बढ़ाया। उनकी शादी जाने माने फिल्म डायरेक्टर वी. शांताराम की
बेटी मधुरा शांताराम से हुई
थी। भारतीय शास्त्रीय संगीत को
पंडित जी
का योगदान पिछले कई दशकों से मिलता रहा।
नयी
ऊंचाइयां दीं
भारतीय संगीत
को
उन्होंने हिन्दुस्तानी संगीत को नयी ऊंचाइयां प्रदान की हैं। वह गायन को
साधना मानते थे और उसी
साधना ने
उन्हें संगीत की दुनियां में
इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। वह
कहा करते थे कि दिल
तक उसी
की आवाज पहुंचती है, जो
अपनी कला
और साधना ईश्वर को समर्पित कर आत्मा से
दिल की
गहराई और
सच्ची श्रद्धा से गाता है।
पंडित जी
का मानना था कि गायक को स्वास्थ्य लाभ
के साथ
- साथ अपनी आन्तरिक दिव्य शक्तियों को जाग्रत करने में भी सहायता मिलती है। अतः
तन - मन
को सहजतापूर्वक शक्ति प्रदान करने की
जैसी क्षमता गायन में है,
वैसी किसी और में नहीं है क्योंकि भावनात्मक उल्लास के प्रभाव में उससे विविध मनोविकारों एवं रोगों का निवारण होता है ।
जुगलबंदी
का नया
प्रयोग
उन्होंने गायन में
जुगलबंदी का
नया प्रयोग किया। इसमें एक
महिला और
एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर मंे भिन्न रागों एक साथ
गाते हैं। पंडित जसराज ने
एक अनोखी जुगलबंदी की रचना की। इसमें महिला और पुरुष गायक अलग-अलग रागों में एक साथ
गाते हैं। इस जुगलबंदी को
‘‘जसरंगी’’ नाम
दिया गया। वल्लभाचार्य द्वारा रचित भगवान कृष्ण की
बहुत ही
मधुर स्तुति है। पंडित जसराज ने इस स्तुति को अपने स्वर से घर-घर
तक पहुंचा दिया। पंडित जी
अपने हर
एक कार्यक्रम में मधुराष्टकम् जरूर गाते थे।
वल्लभाचार्य द्वारा रचित पंडित जसराज की
सबसे प्रिय मधुराष्टकम् रचना:-
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ।।
जसराज
के नाम
पर ग्रह
14 साल पहले नासा ने
एक क्षुद्र गृह का नाम ही पंडित जसराज के नाम पर रखा था। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय संगीतज्ञ थे। उल्लेखनीय है कि नासा द्वारा इस क्षुद्र ग्रह का नंबर पंडित जसराज की जन्मतिथि से उलट रखा गया । नासा और इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के वैज्ञानिकों ने बृहस्पति और मंगल के बीच 300128 नंबर का
क्षुद्र ग्रह 11 नवंबर 2006 को खोजा था और इसका नाम पंडित जसराज के नाम पर रखा। इस क्षुद्र ग्रह की खोज मंगल और बृहस्पति के बीच हुई थी। इसके पहले मोजार्ट, बीथोवन और टेनर लूसियानो पावारोत्ति के नाम पर थे क्षुद्र ग्रहों के नाम रखे गये थे। पंडित जसराज की जन्मतिथि 28 जनवरी 1930 है जो कि इस क्षुद्र ग्रह के नंबर के उलट है। नामकरण के समय नासा ने कहा था-पंडित जसराज छुद्रग्रह हमारे सौरमण्डल में गुरु और मंगल के बीच रहते हुए सूर्य की परिक्रमा कर रहा है।
अलंकार ही अलंकार
पंडित जसराज को संगीत के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिये पद्म विभूषण, पद्मभूषण, पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड, लता मंगेशकर पुरस्कार और महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार से अलंकृत किया गया। आज हमारे बीच पंडित जसराज सशरीर भले ही मौजूद न रह गये हों, पर उनकी आवाज और उनका अस्तित्व हमेशा रहेगा।
उत्तराखण्ड से आध्यात्मिक रिश्ता
देवभूमि उत्तराखण्ड से पंडित जसराज का सदा ही आध्यात्मिक संबंध रहा। मधुरा जसराज ने फिल्म डिविजन के लिये जसराज प्रोडक्शन की ओर से संगीत मार्तण्ड पंडित जसराज पर एक डॉक्यूमंेट्री भी बनाई जिसकी सूटिंग 1998 में बदरीनाथ, केदारनाथ और रुद्रप्रयाग आदि विभिन्न स्थानों पर हुयी। चूंकि सूटिंग उन्हीं पर होनी थी इसलिये वह सभी स्थानों पर उपस्थित रहे। वर्ष 2013 की महाविनाशकारी केदारनाथ आपदा के बाद जब उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा पर एक तरह से ग्रहण लग गया था तो अगले साल 4 मई 2014 को केदारनाथ के कपाटोद्घाटन पर पंडित जसराज को भजन गायन के लिये आमंत्रित किया गया। यद्यपि पंडित जी उस कार्यक्रम में नहीं आ सके मगर उन्होंने अपनी शिष्या तृप्ति को भगवाल केदारनाथ की आराधना के लिये भेजा। मुझे भी कई साल पहले पंडितजी को सुनने और उनके साथ भोजन का सौभाग्य मिला। वह देहरादून के बलबीर रोड पर अपनी एक शिष्या रश्मि नम्बूरी के घर 2008 में पधारे थे। महानता और सादगी-सहजता का ऐसा विलक्षण संगम के साक्षत् दर्शन मुझे उस दिन हुये। जिस व्यक्ति के नाम का डंका अंतरिक्ष में तक बजता हो वह निवेदन सुनते ही बिना वाद्ययंत्रों के ही मधुराष्टकं वाली श्रीकृष्ण की स्तुति सुनाने लगे। उस दिन उन्होंने दो या तीन भजन सुना कर हम सबको मुंत्रमुग्ध कर दिया था।
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