चंद्र कुंवर बर्त्वाल पर १९७८
में प्रकाशित मेरा पहला लेख
उससे पहले शम्भु प्रसाद बहुगुणा जी और भक्त दर्शन
जी ने उन पर लिखा था
My Article on Chandra Kunwar Bartwal published in May 1978 |
चन्द्र कुवर बर्तवाल
पर इन दिनों काफी कुछ लिखा जा रहा है। सोशियल मीडिया पर भी काफी लोगों के लेख पढ़ने
को मिल रहे हैं। कभी ऐसा भी समय था जबकि हिन्दी साहित्य की इस विलक्षण विभूति के बारे
में बहुत कम लोग जानते थे। मैं भी स्वयं अनविज्ञ था। बात सन् 1978 की है। मैं कुछ महीनों
की ट्रेनिंग के बाद नया-नया पत्रकार बन कर गोपेश्वर में तैनात हुआ तो सूचना विभाग के
कार्यालय आना जाना हो गया। उसी कार्यालय के ऊपर जिला पुस्तकालय था जिसमें पुस्तकालयाध्यक्ष
श्री फकीर सिंह रावत होते थे जो कि रिश्ते में हमारे जीजा जी लगते थे। हालांकि उनका
स्वभाव सभी को हड़काने और समझाने वाला होता था लेकिन मैं उनका साला लगता था इसलिये मेरे
साथ उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही कड़क होता था।मेरी उम्र उस समय 21-22 साल रही होगी।
मैंने पहली बार उस लाइब्रेरी में टाइम मैग्जीन देखी। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि उस
लाइब्रेरी को फकीर सिंह जी ने कितना संवारा होगा। मैं जब पहले पहल लाइब्रेरी में गया
तो उहोंने मुझे कैटालॉग देखने को कहा। लेकिन मेरी नजर अंग्रेजी के उपन्यासों पर होती
थी। उन्होंने मुझे एक दो बार तो उपन्यास दे दिये। मगर तीसरी बार मैंने उपन्यास की मांग
कर डाली तो उन्होंने मुझे डपट कर बैठने का आदेश दे डाला और कुछ ही क्षणों में टाइम
मैग्जीन की प्रतियां मेरे सामने पटक डाली और कहा कि पत्रकारिता ही करनी है तो इनको
पढ़ो। वास्तव में मेरे लिये वह नयी दुनियां ही थी। हम अपने देश के ही अखबार पढ़ते थे।
उस समय तो जिले के साप्ताहिक पत्रों में ही पत्रकारिता समाहित होती थी। देहरादून में
दो बहुत ही सीमित प्रसार संख्या वाले अखबार दैनिक होते थे जिनमें से एक अंग्रेजी अखबार
का मैं प्रतिनिधि था। टाइम मैग्जीन पढ़ने के बाद अगले दिन जीजा श्री ने फिर रीडिंग रूम
में बैठने का हुक्म दिया और मेरे सामने शम्भू प्रसाद बहुगुणा जी और भक्त दर्शन जी की
दो किताबें रख दीं। उनका कहना था कि पत्रकारिता करनी है तो कुछ नया लिखो और नया पढ़ो!
उन्होंने मुझे इन पुस्तकों में चन्द्र कंुवर बर्तवाल पर छपी सामग्री पढ़ कर लेख लिखने
को कहा। उनका कहनाथा कि इतनी महान साहित्यिक हस्ती पर आज तक किसी पत्रकार ने कुछ नहीं
लिखा। मैंने उनकी आज्ञा का पालन कर यह लेख लिखा। जो कि मई 1978 का है। मैं खबरों का
पत्रकार था इसलिये यह लेख मेरा शुरुआती लेखों में से एक था। जहां तक मुझे याद है यह
मेरा पहला लेख होना चाहिये। उससे पहले मैं 1976 से ही स्थानीय पत्रों में सम्पादक के
नाम पत्र लिखता था और जब वह पत्र छपता था तो अल्हादित हो जाता था। इस लेख के कई सालों
बाद तक मैंने किसी भी पत्र या पत्रिका में चन्द्र कुंवर पर कोई लेख नहीं देखा। आज कई
लोग चन्द्र कुंवर पर शोध कर रहे हैं तो कुछ लोगों ने उनके नाम का पेटेण्ट भी ले रखा
है। लेकिन जब मैंने यह लेख लिखा था उससे पहले चन्द्र कंुवर जैसी गुमनाम मगर असाधारण
प्रतिभा को दुनिया के सामने लाने का श्रेय केवल शम्भू प्रसाद बहुगुणा और फिर भक्त दर्शन
जी को ही जाता है। मैं आभारी रहूंगा श्री फकीर सिंह रावत जी का, जिनकी प्रेरणा से मैंने
सबसे पहले समाचारों के इतर लेख लिखना शुरू किया था। there are some errors in the
article due to conversion of font -JSR
कविवर चंद्रकुंवर बर्त्वाल जी पर बहुत बेहतरीन लेख है सर! भाषा, पत्रकारिता, साहित्य और उत्तराखंड के इतिहास के विद्यार्थियों का अनमोल मार्गदर्शन देगा।
ReplyDeleteसादर
योगेश पांडेय