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उत्तराखंड से एक्सक्लूसिवः ये मतदाता पलट सकते हैं चुनाव में बाजी
जयसिंह रावत Updated Wed,
22 May 2019 03:53 PM IST
सेवा मतदाता जिनमें मुख्यतः सेवारत सैनिक और चुनाव ड्यूटी पर लगे कर्मचारी होते हैं। - फोटो : अमर उजाला
सेवा मतदाता जिनमें मुख्यतः सेवारत सैनिक और चुनाव ड्यूटी पर लगे कर्मचारी होते हैं, भले ही सामान्य मतदाताओं से संख्या में काफी कम हों मगर वे कभी-कभी प्रत्याशियों की हार जीत में निर्णायक भूमिका भी निभा सकते हैं। उत्तराखण्ड में 2007 में हुए उपचुनाव में भाजपा के ले. जनरल (सेनि) टी.पी.एस. रावत को इन्हीं सर्विस मतदाताओं ने सामान्य मतदाताओं द्वारा हराए जाने के बावजूद चुनाव जितवा दिया था।
देश की आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा में दिन रात समर्पित एवं निर्वाचन जैसे अति महत्वपूर्ण कार्य का सम्पादन करने वाले मतदाता सामान्य मतदाताओं के समक्ष भले ही नगण्य हों, मगर उनकी अहमियत मतदान के मोर्चे पर भी कम नहीं है।
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदान केंद्रों की संख्या 10,35,919 है। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में सामान्य मतदाताओं की संख्या 89,60,76,899 हैं। दिव्यांग सामान्य मतदाताओं की संख्या 45,63,905 है। प्रवासी भारतीय मतदाताओं की कुल संख्या 71735 है। सेवा मतदाताओं की कुल संख्या 16,62,993 है। जबकि 2014 में यह संख्या 13,27,627 थी। इस प्रकार 2019 मतदाता सूची के लिए मतदाताओं की कुल संख्या 89,78,11,627 है।
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदान केंद्रों की संख्या 10,35,919 है। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में सामान्य मतदाताओं की संख्या 89,60,76,899 हैं। दिव्यांग सामान्य मतदाताओं की संख्या 45,63,905 है। प्रवासी भारतीय मतदाताओं की कुल संख्या 71735 है। सेवा मतदाताओं की कुल संख्या 16,62,993 है। जबकि 2014 में यह संख्या 13,27,627 थी। इस प्रकार 2019 मतदाता सूची के लिए मतदाताओं की कुल संख्या 89,78,11,627 है।
यह व्यवस्था विशेषकर उन फौजी मतदाताओं के लिए की गई है। - फोटो : फाइल फोटो
सेवा मतदताओं के लिए अब इलेट्रॉनिक मतपत्र
सेवा मतदाताओं के डाक से आने वाले मतपत्र विलम्ब से आने के कारण अधिकांश की गिनती न हो पाने की समस्या से निपटने के लिए निर्वाचन आयोग ने इस बार सर्विस मतदाताओं के लिए इलेक्ट्रानिक तरीके से ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) व्यवस्था शुरू की है। इस नई व्यवस्था के कारण इस बार सर्वाधिक सेवा मतदाताओं के मतपत्र वापस लौट गए हैं। सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी मस्तूदास के अनुसार यह व्यवस्था विशेषकर उन फौजी मतदाताओं के लिए की गई है जो कि दूर कहीं सीमा पर या कहीं और तैनात हैं। इन मतदाताओं को 28 मार्च को प्रत्याशियों के नाम वापसी के बाद 48 घंटे के भीतर आरओ के माध्यम से ई-सिस्टम से मतपत्र भेज दिए गये थे। इस मतपत्र को मतदाता डाउनलोड कर प्रिंट करवा कर अपने पसंद के प्रत्याशी के नाम के आगे टिक कर उसे निर्वाचन आयोग के निर्धारित लिफाफे द्वारा डाक से वापस भेजते हैं। ये मतपत्र भले ही इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड तरीके से मतदाताओं तक पहुंचाए गए हैं मगर उन्हें पूर्व की भांति डाक से ही वापस लौटना है। इससे सर्विस वोटर तक मतपत्र पहुंचने में डाक में लगने वाला काफी समय बच गया है। चुनाव ड्यूटी पर तैनात सेवा मतदाताओं के लिए पुराना पोस्टल बैलेट सिस्टम यथावत् है। गौरतलब है कि इससे पूर्व सेवा मतदाताओं को डाक से मतपत्र भेजे जाते थे। फिर वहां से मतपत्र भी डाक से ही वापस आते थे। इसमें अधिक समय लगता था। इन नये इलेक्ट्रानिक मतपत्रों से लेकर लिफाफे पर पांच 5 कोड बने हैं। आयोग इनके मिलान के बाद ही मतदान को स्वीकार करेगा।
पहली बार सेवा मतदाताओं के सर्वाधिक मत लौटे
फौजियों और अर्धसैन्य बलों के सैनिकों के लिए नई ईटीपीबीएस व्यवस्था लागू होने से इस बार इतिहास में सर्वाधिक डाक मतपत्र वापस लौट रहे हैं। राज्य के सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी मस्तू दास के अनुसार 21 मई की सायं तक सर्विस वोटर्स के 82 हजार से अधिक डाक मतपत्र वापस लौट चुके हैं। मस्तूदास के अनुसार इनमें सर्वाधिक 26637 डाक मतपत्र पौड़ी संसदीय क्षेत्र के हैं। इसके बाद अल्मोड़ा क्षेत्र के 21,166, टिहरी के 15,190, नैनीताल के 11,494 तथा हरिद्वार संसदीय क्षेत्र के 7,904 डाक मतपत्र 21 मई की सायं तक वापस जिला निर्वाचन अधिकारियों के पास लौट आए हैं। 23 मई की सुबह 7 बज कर 59 मिनट तक आने वाले डाकमतपत्रों को गिनती में शामिल किया जाना है और इसके लिए डाक विभाग को डाक मतपत्र पहुंचाने के लिए विशेष व्यवस्था करने को कहा गया है इसलिए और अधिक डाक मतपत्रों के मतगणना में शामिल होने की उम्मीद है।
सेवा मतदाताओं के डाक से आने वाले मतपत्र विलम्ब से आने के कारण अधिकांश की गिनती न हो पाने की समस्या से निपटने के लिए निर्वाचन आयोग ने इस बार सर्विस मतदाताओं के लिए इलेक्ट्रानिक तरीके से ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) व्यवस्था शुरू की है। इस नई व्यवस्था के कारण इस बार सर्वाधिक सेवा मतदाताओं के मतपत्र वापस लौट गए हैं। सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी मस्तूदास के अनुसार यह व्यवस्था विशेषकर उन फौजी मतदाताओं के लिए की गई है जो कि दूर कहीं सीमा पर या कहीं और तैनात हैं। इन मतदाताओं को 28 मार्च को प्रत्याशियों के नाम वापसी के बाद 48 घंटे के भीतर आरओ के माध्यम से ई-सिस्टम से मतपत्र भेज दिए गये थे। इस मतपत्र को मतदाता डाउनलोड कर प्रिंट करवा कर अपने पसंद के प्रत्याशी के नाम के आगे टिक कर उसे निर्वाचन आयोग के निर्धारित लिफाफे द्वारा डाक से वापस भेजते हैं। ये मतपत्र भले ही इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड तरीके से मतदाताओं तक पहुंचाए गए हैं मगर उन्हें पूर्व की भांति डाक से ही वापस लौटना है। इससे सर्विस वोटर तक मतपत्र पहुंचने में डाक में लगने वाला काफी समय बच गया है। चुनाव ड्यूटी पर तैनात सेवा मतदाताओं के लिए पुराना पोस्टल बैलेट सिस्टम यथावत् है। गौरतलब है कि इससे पूर्व सेवा मतदाताओं को डाक से मतपत्र भेजे जाते थे। फिर वहां से मतपत्र भी डाक से ही वापस आते थे। इसमें अधिक समय लगता था। इन नये इलेक्ट्रानिक मतपत्रों से लेकर लिफाफे पर पांच 5 कोड बने हैं। आयोग इनके मिलान के बाद ही मतदान को स्वीकार करेगा।
पहली बार सेवा मतदाताओं के सर्वाधिक मत लौटे
फौजियों और अर्धसैन्य बलों के सैनिकों के लिए नई ईटीपीबीएस व्यवस्था लागू होने से इस बार इतिहास में सर्वाधिक डाक मतपत्र वापस लौट रहे हैं। राज्य के सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी मस्तू दास के अनुसार 21 मई की सायं तक सर्विस वोटर्स के 82 हजार से अधिक डाक मतपत्र वापस लौट चुके हैं। मस्तूदास के अनुसार इनमें सर्वाधिक 26637 डाक मतपत्र पौड़ी संसदीय क्षेत्र के हैं। इसके बाद अल्मोड़ा क्षेत्र के 21,166, टिहरी के 15,190, नैनीताल के 11,494 तथा हरिद्वार संसदीय क्षेत्र के 7,904 डाक मतपत्र 21 मई की सायं तक वापस जिला निर्वाचन अधिकारियों के पास लौट आए हैं। 23 मई की सुबह 7 बज कर 59 मिनट तक आने वाले डाकमतपत्रों को गिनती में शामिल किया जाना है और इसके लिए डाक विभाग को डाक मतपत्र पहुंचाने के लिए विशेष व्यवस्था करने को कहा गया है इसलिए और अधिक डाक मतपत्रों के मतगणना में शामिल होने की उम्मीद है।
पौड़ी गढ़वाल में सर्वाधिक सेवा मतदाता
उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में सेवा मतदाता हैं। उत्तराखंड में भी 90,845 सेवा मतदाता दर्ज हैं। इनमें पौड़ी गढ़वाल संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक 34,433 सेवा मतदाता हैं। पौड़ी के बाद अल्मोड़ा में 28,718, टिहरी क्षेत्र में 12,329, हरिद्वार में 5,203 और नैनीताल में 10,162 सेवा मतदाता हैं। पौड़ जिले के लैंसडौन में गढ़वाल रायफल्स का रेजिमेण्टल सेंटर होने के कारण इस जिले में सर्वाधिक सेवारत् और सेवानिवृत्त सैनिक और सैन्य विधवाएं हैं। इसीलिये इस जिले में सैनिक कल्याण बोर्ड के दो-दो कार्यालय स्थापित हैं। उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है जिसकी दो बेहतरीन लड़ाकू रेजिमेंटें, गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं रेजिमेंट भारत की थल सेना में योगदान दे रही हैं। विशुद्ध गढ़वालियों की ‘‘गढ़वाल राइफल्स’’ की 22 रेगुलर बटालियनों के अलावा 2 इको टास्क फोर्स, 1 गढ़वाल स्काउट, और तीन राष्ट्रीय राइफल्स की बटालियनें हैं। इसी तरह 1947 में कबायली हमले को नाकाम कर जम्मू-कश्मीर को बचाने वाली कुमाऊं रेजिमेंट की भी 21 रेगुलर बटालियनें, 2 टेरिटोरियल आर्मी, 1 कुमाऊं स्काउट और 3 अन्य विशेष बटालियनें हैं। नगा रेजिमेंट का मुख्यालय भी रानीखेत में ही है जिसमें बड़ी संख्या में गढ़वाली, कुमाऊनी और भारतीय गोरखा सैनिक शामिल हैं। सेना के तीनों अंगों में उत्तराखण्ड के सैनिक हैं और देश की असम राइफल्स समेत सेना की ऐसी कोई पैरा मिलिट्री फोर्स नहीं जिसमें उत्तराखण्ड के सैनिक और अधिकारी बहुतायत में न हों। अब तक उत्तराखण्ड देश को 2 थल सेनाध्यक्ष और एक नोसेनाध्यक्ष दे चुका है। तीनों सेनाओं में दूसरी और तीसरी पंक्ति के सैन्य नेतृत्व में भी हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब के साथ ही उत्तराखण्ड के जाबाजों की बहुतायत है।
कांटे के मुकाबलों में निर्णायक सेवा मतदाता
कांटे के मुकाबलों में सेवा मतदाता बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। सेवा मतदाताओं में, भारतीय संघ के सशस्त्र बलों के सदस्य, राज्यों के सशस्त्र पुलिस बलों के वे सदस्य जो उस राज्ये से बाहर सेवारत हैं और भारत सरकार के अधीन कार्यरत वे व्यक्ति जो भारत से बाहर तैनात हैं, शामिल हैं। मौजूदा व्यवस्थाओं के अनुसार भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना, सीमा सड़क संगठन, बीएसएफ, आईटीबीपी, असम राइफल्स, एनएसजी, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी के सदस्य सेवा मतदाताओं के रूप में पंजीकृत होने के पात्र हैं। सेवा मतदाता प्रॉक्सी द्वारा भी अपना मत डाल सकते हैं। वे निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर उपलब्धत फॉर्म 13 एफ में निर्वाचन अधिकारी को आवेदन करके किसी भी व्यक्ति को अपना प्रॉक्सी् नियुक्त करके मतदान केन्द्र पर अपनी ओर से मतदान करा सकते हैं। लेकिन ऐसा प्रॉक्सी मतदाता उस निर्वाचन क्षेत्र का पंजीकृत मतदाता होना चाहिए।
2008 के उपचुनाव में सेवा मतदताओं ने पलटी बाजी
भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनने पर उनके द्वारा खाली की गई गढ़वाल संसदीय सीट पर जब 2008 में उपचुनाव हुए तो उन्होंने अपने लिए धूमाकोट विधानसभा सीट खाली कर भाजपा में शामिल होने वाले ले0 जनरल (सेनि) टीपीएस रावत को इस सीट पर अपने चिर परिचित प्रतिद्वन्दी सतपाल महाराज (कांग्रेस) के खिलाफ मैदान में उतारा। उस समय भाजपा प्रत्याशी जनरल टीपीएस रावत कांग्रेस के अपने प्रतिद्वन्दी सतपाल महाराज से साधारण मतपत्रों की गिनती में 251 मतों से हार गये थे, लेकिन अचानक मतगणना के दौरान 16 हजार डाकमत पत्र आने के बाद वह लगभग 8 हजार मतों से विजयी घोषित हो गए। इनमें कांग्रेस ने लगभग 5 हजार डाक मतपत्र रद्द भी कराए थे। उस दौरान राज्य सरकार द्वारा डाक मतपत्रों को समय से काउंटिंग टेबल तक पहुंचाने में असाधारण तत्परता दिखाई थी जिसका लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिला। अन्यथा डाक मतपत्र अक्सर मतगणना समाप्त हो जाने के बाद भी आते रहते हैं जिनकी गिनती नहीं हो पाती।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में सेवा मतदाता हैं। उत्तराखंड में भी 90,845 सेवा मतदाता दर्ज हैं। इनमें पौड़ी गढ़वाल संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक 34,433 सेवा मतदाता हैं। पौड़ी के बाद अल्मोड़ा में 28,718, टिहरी क्षेत्र में 12,329, हरिद्वार में 5,203 और नैनीताल में 10,162 सेवा मतदाता हैं। पौड़ जिले के लैंसडौन में गढ़वाल रायफल्स का रेजिमेण्टल सेंटर होने के कारण इस जिले में सर्वाधिक सेवारत् और सेवानिवृत्त सैनिक और सैन्य विधवाएं हैं। इसीलिये इस जिले में सैनिक कल्याण बोर्ड के दो-दो कार्यालय स्थापित हैं। उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है जिसकी दो बेहतरीन लड़ाकू रेजिमेंटें, गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं रेजिमेंट भारत की थल सेना में योगदान दे रही हैं। विशुद्ध गढ़वालियों की ‘‘गढ़वाल राइफल्स’’ की 22 रेगुलर बटालियनों के अलावा 2 इको टास्क फोर्स, 1 गढ़वाल स्काउट, और तीन राष्ट्रीय राइफल्स की बटालियनें हैं। इसी तरह 1947 में कबायली हमले को नाकाम कर जम्मू-कश्मीर को बचाने वाली कुमाऊं रेजिमेंट की भी 21 रेगुलर बटालियनें, 2 टेरिटोरियल आर्मी, 1 कुमाऊं स्काउट और 3 अन्य विशेष बटालियनें हैं। नगा रेजिमेंट का मुख्यालय भी रानीखेत में ही है जिसमें बड़ी संख्या में गढ़वाली, कुमाऊनी और भारतीय गोरखा सैनिक शामिल हैं। सेना के तीनों अंगों में उत्तराखण्ड के सैनिक हैं और देश की असम राइफल्स समेत सेना की ऐसी कोई पैरा मिलिट्री फोर्स नहीं जिसमें उत्तराखण्ड के सैनिक और अधिकारी बहुतायत में न हों। अब तक उत्तराखण्ड देश को 2 थल सेनाध्यक्ष और एक नोसेनाध्यक्ष दे चुका है। तीनों सेनाओं में दूसरी और तीसरी पंक्ति के सैन्य नेतृत्व में भी हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब के साथ ही उत्तराखण्ड के जाबाजों की बहुतायत है।
कांटे के मुकाबलों में निर्णायक सेवा मतदाता
कांटे के मुकाबलों में सेवा मतदाता बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। सेवा मतदाताओं में, भारतीय संघ के सशस्त्र बलों के सदस्य, राज्यों के सशस्त्र पुलिस बलों के वे सदस्य जो उस राज्ये से बाहर सेवारत हैं और भारत सरकार के अधीन कार्यरत वे व्यक्ति जो भारत से बाहर तैनात हैं, शामिल हैं। मौजूदा व्यवस्थाओं के अनुसार भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना, सीमा सड़क संगठन, बीएसएफ, आईटीबीपी, असम राइफल्स, एनएसजी, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी के सदस्य सेवा मतदाताओं के रूप में पंजीकृत होने के पात्र हैं। सेवा मतदाता प्रॉक्सी द्वारा भी अपना मत डाल सकते हैं। वे निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर उपलब्धत फॉर्म 13 एफ में निर्वाचन अधिकारी को आवेदन करके किसी भी व्यक्ति को अपना प्रॉक्सी् नियुक्त करके मतदान केन्द्र पर अपनी ओर से मतदान करा सकते हैं। लेकिन ऐसा प्रॉक्सी मतदाता उस निर्वाचन क्षेत्र का पंजीकृत मतदाता होना चाहिए।
2008 के उपचुनाव में सेवा मतदताओं ने पलटी बाजी
भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनने पर उनके द्वारा खाली की गई गढ़वाल संसदीय सीट पर जब 2008 में उपचुनाव हुए तो उन्होंने अपने लिए धूमाकोट विधानसभा सीट खाली कर भाजपा में शामिल होने वाले ले0 जनरल (सेनि) टीपीएस रावत को इस सीट पर अपने चिर परिचित प्रतिद्वन्दी सतपाल महाराज (कांग्रेस) के खिलाफ मैदान में उतारा। उस समय भाजपा प्रत्याशी जनरल टीपीएस रावत कांग्रेस के अपने प्रतिद्वन्दी सतपाल महाराज से साधारण मतपत्रों की गिनती में 251 मतों से हार गये थे, लेकिन अचानक मतगणना के दौरान 16 हजार डाकमत पत्र आने के बाद वह लगभग 8 हजार मतों से विजयी घोषित हो गए। इनमें कांग्रेस ने लगभग 5 हजार डाक मतपत्र रद्द भी कराए थे। उस दौरान राज्य सरकार द्वारा डाक मतपत्रों को समय से काउंटिंग टेबल तक पहुंचाने में असाधारण तत्परता दिखाई थी जिसका लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिला। अन्यथा डाक मतपत्र अक्सर मतगणना समाप्त हो जाने के बाद भी आते रहते हैं जिनकी गिनती नहीं हो पाती।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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