टिहरी बांध झील में नाव डूबी और करोड़ों का घोटाला उभरा
-जयसिंह रावत
विश्व में आठवें
नम्बर के तथा
भारत के सबसे
ऊंचाई पर स्थित
उच्चतम् बांध की
सागर समान विशालकाय
झील में कैबिनेट
बैठक करा कर
वाहवाही लूटने और राज्य
के पर्यटन विकास
में मील का
एक पत्थर गाढ़ने
का दावा करने
वाली उत्तराखण्ड की
त्रिवेन्द्र सरकार की करोड़ों
रुपये लगात की
मैरीना रेस्टोरेण्ट बोट के
डूबने से न
केवल किरकिरी हो
गयी बल्कि सरकार
की अकर्मण्यता, दिशाहीनता
के साथ ही
4 करोड़ से अधिक
की हुयी इस
खरीद में घोटाले
की पोल भी
खुल गयी है।
राज्य सूचना आयोग
ने इन महंगी
नावों एवं साजो
सामान की खरीद
में घोटाले तथा
सुरक्षा मानकों में लापरवाही
की जांच के
आदेश सरकार को
दिये थे जो
कि राज्य सरकार
की फाइलों में
कहीं गुम हो
गये।
16 मई 2018
को एक भव्य
समारोह के साथ
त्रिवेन्द्र सिंह रावत
कैबिनेट की बैठक
भागीरथी और भिलंगना
घाटियों में 42 वर्ग किमी
तक फैली टिहरी
बांध झील के
ऊपर तैरती हुयी
करोड़ों की लागत
वाली मैरीना रस्टारेण्ट
बोट पर हुयी
थी तो इसे
उत्तराखण्ड के पर्यटन
विकास की दिशा
में एक क्रांतिकारी
शुरुआत और राज्य
के लिये इस
आयोजन को ऐतिहासिक
घड़ी बताया गया
था। फ्लोटिंग मैरीना
वोट पर हुये
इस अभूतपूर्व आयोजन
में कैबिनेट ने
देश विदेश के
पर्यटकों को आकर्षित
करने के लिए
कई महत्वपूर्ण निर्णय
लिये थे। इस
आयोजन के प्रचार
प्रसार पर ही
सरकार ने करोड़ों
रुपये खर्च कर
डाले थे। लेकिन
कैबिनेट बैठक सम्पन्न
होने के बाद
यह बात ऐसी
आयी गयी हो
गयी कि सरकार
न केवल अपने
पर्यटन विकास की हवाई
घोषणाओं को अपितु
टिहरी झील में
तैरते हुये रस्तरां
वाली मैरीना फ्लोटिंग
बोट और बार्ज
बोट को भी
भूल गयी और
एक साल के
अन्दर ही गत
7 मई को बांध
की झील में
लावारिश पड़ी मैरीना
बोट का आधा
हिस्सा झील में
समा गया। फिलहाल
डूबी हुयी तैरती
मैरीना रस्टोरेंट को तो
खींच कर बाहर
निकाल लिया गया
मगर राज्य सरकार,
पर्यटन विभाग और टिहरी
झील विशेष क्षेत्र
पर्यटन विकास प्राधिकरण की
लापरवाही के कारण
झील में करोड़ों
रूपए की परिसंपत्तियां
डूबने और टूटने
की कगार पर
हैं।
दरअसल टिहरी झील को
साहसिक खेल गतिविधियों
का केंद्र बनाने
की कवायद वर्ष
2015 में कांग्रेस कार्यकाल में
ही शुरू हो
चुकी थी। इसी
उद्देश्य से झील
में मरीना बोट
और बार्ज बोट
भी उतारे गए।
मरीना को जहां
झील के बीच
में आधुनिक रेस्तरां
की भांति खाने-पीने और
मनोरंजन के लिए
उपयोग किया जाना
था वहीं बार्ज
बोट को टिहरी
से प्रतापनगर जाने
वाले बांध प्रभावितों
और यात्रियों को
वाहनों समेत आरपार
करवाना था। मरीना
को करीब ढाई
करोड़ और बार्ज
बोट को दो
करोड़ 17 लाख की
लागत से तैयार
किया गया था।
सरकार का उद्देश्य
साढ़े चार करोड़
से अधिक लागत
की इन दोनों
परिसंपत्तियों को लीज
पर देकर देश
विदेश के पर्यटकों
को झील की
ओर आकर्षित कर
लाभ कमाना था।
लेकिन कुप्रबंधन के
चलते न तो
कोई पीपीपी पार्टनर
बार्ज और मरीना
के संचालन के
लिये आया और
न ही टाडा
(टिहरी झील विशेष
क्षेत्र पर्यटन विकास प्राधिकरण)
ही इनका संचालन
कर पाया। नतीजतन
गत 7 मई को
तड़के लावारिश पड़ी
मरीना बोट का
आधा हिस्सा टिहरी
झील में समा
गया है। मरीना
फ्लोटिंग रेस्टोरेण्ट में 80 लोगों
के बैठने की
क्षमता है। मरीना
की छत पर
44 और नीचे 36 लोग
सवार हो कर
झील का आनन्द
उठा सकते हैं।
दुनिया के सबसे
बड़े बांधों में
सुमार टिहरी बांध
की भागीरथी और
भिलंगना घाटियों में 42 वर्ग
किमी में फैली
विशालकाय झील पर्यटन
विकास की असीम
संभावनाओं को संजोये
हुए है। पर्यटन
को बढ़ावा देने
के लिए केंद्र
और राज्य सरकारों
ने यहां पर्यटन
विकास के लिए
करोड़ों रुपये अवस्थापना विकास
पर खर्च भी
किए हैं। झील
में बार्ज बोट,
फ्लोटिंग मरीना, इको हट्स
से लेकर झील
किनारे होटल
भी बनकर तैयार
हैं। लेकिन त्रिवेन्द्र
सरकार एवं पर्यटन
विकास परिषद की
अकर्मण्यता और अदूरदर्शिता
के कारण पर्यटकों
के अभाव में
पर्यटन गतिविधियां ठप होने
से सभी संसाधन
बेकार पड़े हुए
हैं।
टिहरी बांध झील
के पर्यटन विकास
में केवल अकर्मण्यता
ही नहीं बल्कि
भारी घोटाला भी
हुआ जिसका खुलासा
राज्य सूचना आयोग
ने दिनांक 8 जून
2017 के आदेश में
किया है। सूचना
के अधिकार के
तहत पर्यटन विकास
परिषद द्वारा की
जा रही टाल
बराई के बाद
जब एक अपीलार्थी
राज्य सूचना आयोग
में गया तो
तो परिषद द्वारा
उपलब्ध कराये गये अभिलेखों
की विवेचना से
लगभग 4.50 करोड़ के
बोट एवं उपकरण
खरीद में भारी
घोटाला भी उजागर
हुआ है। राज्य
सूचना आयुक्त सुरेन्द्र
सिंह रावत ने
अपने 8 जून 2017 के आदेश
में कहा है
कि जिस उत्तर
प्रदेश राज्य निर्माण निगम
को करोड़ों की
नावें एवं उपकरण
खरीद का ठेका
उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद
ने दिया उस
निगम के पास
इस तरह की
न तो विशेषज्ञता
थी और ना
ही उसे इस
कार्य का कोई
अनुभव था। यही
नहीं निर्माण निगम
को इन नावों
और उनसे सम्बन्धित
उपकरणों की सुरक्षा
सम्बन्धी जांच की
भी विशेषज्ञता हासिल
नहीं थी और
ना ही उसके
पास इसका कोई
अनुभव था इसलिये
यह योजना सुरक्षा
की दृष्टि से
भी भारी जोखिमपूर्ण
थी। (मैरीना बोट
के डूबने से
आयोग की आशंका
की पुष्टि हो
गयी है।) यही
नहीं उत्तराखण्ड पर्यटन
विकास परिषद ने
उत्तर प्रदेश राज्य
निर्माण निगम से
इन बोटों और
उनसे सम्बन्धित महंगे
उपकरणों से सम्बन्धित
न तो कोई
जानकारी हासिल की और
ना ही निगम
से अभिलेख हासिल
करने का प्रयास
किया गया। राज्य
सूचना आयुक्त ने
इस बात पर
भी हैरानी जताई
कि जिस व्यक्ति
ने आरटीआइ से
मिली अपूर्ण सूचनाओं
पर असन्तोष प्रकट
कर राज्य सूचना
आयोग में अपनी
अपील दायर की
थी उसी आरटीआइ
अपीलार्थी को पर्यटन
विकास परिषद के
अधिकारियों ने पटा
दिया और अपीलार्थी
आयोग के समक्ष
बाद में अपनी
ही शिकायत से
ही मुकर गया।
राज्य सूचना आयुक्त सुरेन्द्र
सिंह रावत ने
अपने आदेश में
राज्य के मुख्य
सचिव को साफ
शब्दों में लिखा
था कि, ‘‘ऐसा
प्रतीत होता है
कि खरीद में
भारी अनियमितता एवं
लोक धन अपवंचन
करने के लिये
ऐसी कार्यवाही की
गयी।‘‘ सूचना आयुक्त ने
इस घोटाले की
जांच महालेखा परीक्षक
के साथ ही
सतर्कता विभाग से कराने
के आदेश मुख्य
सचिव को दिये
थे। लेकिन जीरो
टॉलरेंस का ढोल
पीटने वाली त्रिवेन्द्र
सरकार ने इस
भारी भरकम घोटाले
एवं सुरक्षा के
मामले में अपराधिक
लापरवाही की ओर
आंख मूंद कर
भ्रष्टाचार को संरक्षण
ही दिया।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेण्ड्स एन्कलव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9412324999
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