उत्तराखण्ड: मोदी लहर में भाजपा जीत तो गई, लेकिन क्या होगा इन मुद्दों का?
उत्तराखण्ड
में
मोदी
लहर
ने
न
केवल
प्रतिद्वन्दी
कांग्रेस
के
अरमानों
को
धूल
धूसरित
कर
दिया - फोटो : सोशल मीडिया
उत्तराखण्ड में मोदी लहर ने न केवल प्रतिद्वन्दी कांग्रेस के अरमानों को धूल धूसरित कर दिया बल्कि मोदी के राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों ने पलायन और विकास जैसे स्थानीय मुद्दों के साथ ही 2014 के चुनाव में किए गए डबल इंजन और बेहतर परवरिश के वायदों पर भी मिट्टी डाल दी।
मोदी लहर ने प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। उत्तराखण्ड में एक बार फिर प्रकट हुई प्रचण्ड मोदी लहर ने बारी-बारी से सारी सीटें जीतने के क्रम को तोड़ते हुए कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया है। हरिद्वार को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों ने 60 प्रतिशत से अधिक मत हासिल कर चुनावी ज्योतिषियों को भी हैरान कर दिया है।
कांग्रेस के लिए रही चुनौतियां
कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका नैनीताल सीट और टिहरी सीट पर लगा। नैनीताल में प्रदेश के सबसे बड़े नेता एवं कांग्रेस महासचिव हरीश रावत भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट से 2,63,763 मतों से हार गए। अजय भट्ट को कुल 6,52,917 या 59.9 प्रतिशत मत मिले जबकि हरीश रावत मात्र 3,89,154 मत यानी कि 35.7 प्रतिशत मत ही हासिल कर सके।
इसी प्रकार टिहरी सीट पर एक बार फिर भाजपा की सिटिंग सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को 2,44,036 मतों से परास्त कर दिया। श्रीमती शाह को कुल 4,74571 यानी कि 64.12 प्रतिशत मत मिले जबकि प्रीतम सिंह केवल 2,30,535 मत (30.48 प्रतिशत) मत ही जुटा पाए। इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस ने सबसे दमदार प्रत्याशी उतारे थे और दोनों ही सीटों पर उसे जीत की पूरी आशा थी। लेकिन मोदी लहर ने कांग्रेस की आशाओं पर पानी फेर दिया।
राज्य ने पीएम मोदी की राष्ट्रवादी छवि पर भरोसा जताया। - फोटो : social media
राज्य के सामने पलायन और बेरोजगारी जैसी समस्या
गढ़वाल सीट पर भाजपा के तीरथ सिंह रावत ने कांग्रेस के मनीष खण्डूड़ी को 2,69,411मतों से हराया। इन दोनों में से एक तीरथ सिंह रावत मौजूदा भाजपा सांसद भुवनचन्द्र खण्डूड़ी के शागिर्द रहे हैं और मनीष खण्डूड़ी स्वयं भुवनचन्द्र खण्डूड़ी के पुत्र हैं। रावत को 4,59,481 मत तथा मनीष खण्डूड़ी को 1,90,070 मत मिले। अल्मोड़ा सीट पर भाजपा के अजय टमटा को 3,96,687 यानी कि 63.8 प्रतिशत मत मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टमटा 1,90,601 मत ही जुटा पाए। प्रदीप को 30.7 प्रतिशत मत ही मिले। हरिद्वार सीट पर तिकोने मुकाबले में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक को 5,87,311 मत, कांग्रेस के अम्बरीश कुमार को 3,77,809 तथा बसपा के अन्तरिक्ष सैनी को 1,56,786 मत मिले। इस प्रकार मौजूदा सांसद एवं उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश निशंक ने कांग्रेस के अम्बरीश को 2,09,502 मतों से परास्त किया।
इस बार रही अंडर करंट
2014 की मोदी लहर लौटी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डबल इंजन जैसे एक के बाद एक किए गए वायदों के धरातल पर न उतरने और राज्य के सामने पलायन और बेरोजगारी जैसी समस्याओं के जस के तस रहने के कारण पहले लग रहा था कि उत्तराखण्ड बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा को मौका देने वाला अपना इतिहास इस बार भी दुहरा देगा और केन्द्र तथा राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा राज्य की पांच की पांच सीट गंवा देगी। लेकिन इस साल के शुरू में ही मोदी सरकार ने जब एक के बाद एक राजनीतिक चैके-छक्के मारने शुरू किए तो इस बार राज्य की पांच की 5 सीटें जीतने के प्रति आश्वस्त कांग्रेस की संभावनाएं घटती चली गईं।
भाजपा ने लिया अपनी हार से सबक
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव हार जाने वाली भाजपा ने अपनी हार से सबक लेते हुए सबसे पहले साल के शुरू में ही अनारक्षित वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण सुरक्षित कर एससी एसटी एक्ट को कठोर बनाने से नाराज सवर्ण वर्ग की नाराजगी दूर कर दी। इसके बाद 1 फरबरी को पेश अंतरिम बजट में 6 हजार रुपये की सम्मान निधि सीधे किसानों के खाते में डालने जैसे कई लोकलुभावन फैसले लेकर समाज के लगभग हर वर्ग को कुछ न कुछ तोहफा देकर सत्ता विरोधी रुझान पर ब्रेक लगा दिया। यही नहीं आयुष्मान योजना में लाखों लोगों को बेहतर इलाज की सुविधा देने के साथ ही उत्तराखण्ड के कई लाख काश्तकारों के खातों में सम्मान निधि आने से दो साल के अन्दर ही प्रदेश की त्रिवेन्द्र सरकार से ऊब चुके लोगों के सामने एक बार फिर नरेन्द्र मोदी उम्मीद बन कर उभर गए। देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखण्ड में भी प्रधानमंत्री की उज्ज्वला, सौभाग्य एवं मुद्रा योजना जैसी कई पहलों ने मोदी सरकार पर भरोसा जगाया।
गढ़वाल सीट पर भाजपा के तीरथ सिंह रावत ने कांग्रेस के मनीष खण्डूड़ी को 2,69,411मतों से हराया। इन दोनों में से एक तीरथ सिंह रावत मौजूदा भाजपा सांसद भुवनचन्द्र खण्डूड़ी के शागिर्द रहे हैं और मनीष खण्डूड़ी स्वयं भुवनचन्द्र खण्डूड़ी के पुत्र हैं। रावत को 4,59,481 मत तथा मनीष खण्डूड़ी को 1,90,070 मत मिले। अल्मोड़ा सीट पर भाजपा के अजय टमटा को 3,96,687 यानी कि 63.8 प्रतिशत मत मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टमटा 1,90,601 मत ही जुटा पाए। प्रदीप को 30.7 प्रतिशत मत ही मिले। हरिद्वार सीट पर तिकोने मुकाबले में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक को 5,87,311 मत, कांग्रेस के अम्बरीश कुमार को 3,77,809 तथा बसपा के अन्तरिक्ष सैनी को 1,56,786 मत मिले। इस प्रकार मौजूदा सांसद एवं उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश निशंक ने कांग्रेस के अम्बरीश को 2,09,502 मतों से परास्त किया।
इस बार रही अंडर करंट
2014 की मोदी लहर लौटी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डबल इंजन जैसे एक के बाद एक किए गए वायदों के धरातल पर न उतरने और राज्य के सामने पलायन और बेरोजगारी जैसी समस्याओं के जस के तस रहने के कारण पहले लग रहा था कि उत्तराखण्ड बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा को मौका देने वाला अपना इतिहास इस बार भी दुहरा देगा और केन्द्र तथा राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा राज्य की पांच की पांच सीट गंवा देगी। लेकिन इस साल के शुरू में ही मोदी सरकार ने जब एक के बाद एक राजनीतिक चैके-छक्के मारने शुरू किए तो इस बार राज्य की पांच की 5 सीटें जीतने के प्रति आश्वस्त कांग्रेस की संभावनाएं घटती चली गईं।
भाजपा ने लिया अपनी हार से सबक
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव हार जाने वाली भाजपा ने अपनी हार से सबक लेते हुए सबसे पहले साल के शुरू में ही अनारक्षित वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण सुरक्षित कर एससी एसटी एक्ट को कठोर बनाने से नाराज सवर्ण वर्ग की नाराजगी दूर कर दी। इसके बाद 1 फरबरी को पेश अंतरिम बजट में 6 हजार रुपये की सम्मान निधि सीधे किसानों के खाते में डालने जैसे कई लोकलुभावन फैसले लेकर समाज के लगभग हर वर्ग को कुछ न कुछ तोहफा देकर सत्ता विरोधी रुझान पर ब्रेक लगा दिया। यही नहीं आयुष्मान योजना में लाखों लोगों को बेहतर इलाज की सुविधा देने के साथ ही उत्तराखण्ड के कई लाख काश्तकारों के खातों में सम्मान निधि आने से दो साल के अन्दर ही प्रदेश की त्रिवेन्द्र सरकार से ऊब चुके लोगों के सामने एक बार फिर नरेन्द्र मोदी उम्मीद बन कर उभर गए। देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखण्ड में भी प्रधानमंत्री की उज्ज्वला, सौभाग्य एवं मुद्रा योजना जैसी कई पहलों ने मोदी सरकार पर भरोसा जगाया।
उत्तराखण्ड में कांग्रेस प्रत्याशियों का मुकाबला भाजपा प्रत्याशियों से न होकर सीधे मोदी से हुआ। - फोटो : सोशल मीडिया
हमले पाकिस्तान पर और मार कांग्रेस पर पड़ी
सैन्य बाहुल्य उत्तराखण्ड में मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसी सैन्य कार्यवाहियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि सुपरमैन की तरह स्थापित करने में कामयाब हो गईं। 18 सितम्बर 2016 को उरी में जैश ए मोहम्मद के सैन्य शिविर पर फिदायीन हमले की प्रतिकृया स्वरूप इसके ठीक 8 दिन बाद 29 सितम्बर 2016 को भारतीय सेना द्वारा पाक अधिकृत आतंकी अड्डों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक ने मोदी सरकार की ऐसी छवि बनाई कि यह सरकार पिछली कांग्रेस सरकारों की तरह कठोर निर्णय लेने से परहेज करने के बजाय पाकिस्तान और आतंकियों को सबक सिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
बहादुर नेता की छवि और मोदी
इन हमलों से प्रधानमंत्री मोदी की घुसकर मारने वाले बहादुर की छवि सैन्य बाहुल्य उत्तराखण्ड में भी बनी। जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरबरी 2019 को सीआरपीएफ कानवाॅय पर जैश ए मोहम्मद के हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वह इस हमले के गुनाहगारों को छोड़ने वाले नहीं हैं चाहे वे कहीं भी छिप जाएं और वास्तव में वायुसेना ने 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान में घुसकर बालाकोट स्थित आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों पर हवाई हमला कर न केवल पाकिस्तान को बल्कि सारी दुनिया को हक्का बक्का कर दिया।
यह अति साहसिक कदम मोदी सरकार की दमदार राजनीतिक इच्छा शक्ति का ही नतीजा था। इस हमले से छटपटाये विपक्ष ने बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाया तो वह भी विपक्ष के खिलाफ ही गया। इस प्रकार उत्तराखण्ड में प्रधानमंत्री मोदी की ऐसी छवि बनी कि इस चुनाव में कमजोर माने जा रहे भाजपा के प्रत्याशी कांग्रेस के हरीश रावत जैसे दिग्गजों पर भारी पड़ गए। उत्तराखण्ड में कांग्रेस प्रत्याशियों का मुकाबला भाजपा प्रत्याशियों से न हो कर सीधे प्रधानमंत्री मोदी से हुआ। स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत चुनाव अभियान के दौरान अपने नाम और काम पर नहीं बल्कि मोदी के नाम पर वोट मांग रहे थे। त्रिवेन्द्र अगर अपने नाम पर वोट मांगते तो पार्टी का नुकसान भी हो सकता था, क्योंकि उनके खिलाफ आये एक के बाद एक स्टिंग आपरेशनों ने उनकी छवि को बिगाड़ने के साथ ही उनकी विश्वसनीयता को भी ठेस पहुंचाई है।
सैन्य बाहुल्य उत्तराखण्ड में मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसी सैन्य कार्यवाहियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि सुपरमैन की तरह स्थापित करने में कामयाब हो गईं। 18 सितम्बर 2016 को उरी में जैश ए मोहम्मद के सैन्य शिविर पर फिदायीन हमले की प्रतिकृया स्वरूप इसके ठीक 8 दिन बाद 29 सितम्बर 2016 को भारतीय सेना द्वारा पाक अधिकृत आतंकी अड्डों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक ने मोदी सरकार की ऐसी छवि बनाई कि यह सरकार पिछली कांग्रेस सरकारों की तरह कठोर निर्णय लेने से परहेज करने के बजाय पाकिस्तान और आतंकियों को सबक सिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
बहादुर नेता की छवि और मोदी
इन हमलों से प्रधानमंत्री मोदी की घुसकर मारने वाले बहादुर की छवि सैन्य बाहुल्य उत्तराखण्ड में भी बनी। जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरबरी 2019 को सीआरपीएफ कानवाॅय पर जैश ए मोहम्मद के हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वह इस हमले के गुनाहगारों को छोड़ने वाले नहीं हैं चाहे वे कहीं भी छिप जाएं और वास्तव में वायुसेना ने 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान में घुसकर बालाकोट स्थित आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों पर हवाई हमला कर न केवल पाकिस्तान को बल्कि सारी दुनिया को हक्का बक्का कर दिया।
यह अति साहसिक कदम मोदी सरकार की दमदार राजनीतिक इच्छा शक्ति का ही नतीजा था। इस हमले से छटपटाये विपक्ष ने बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाया तो वह भी विपक्ष के खिलाफ ही गया। इस प्रकार उत्तराखण्ड में प्रधानमंत्री मोदी की ऐसी छवि बनी कि इस चुनाव में कमजोर माने जा रहे भाजपा के प्रत्याशी कांग्रेस के हरीश रावत जैसे दिग्गजों पर भारी पड़ गए। उत्तराखण्ड में कांग्रेस प्रत्याशियों का मुकाबला भाजपा प्रत्याशियों से न हो कर सीधे प्रधानमंत्री मोदी से हुआ। स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत चुनाव अभियान के दौरान अपने नाम और काम पर नहीं बल्कि मोदी के नाम पर वोट मांग रहे थे। त्रिवेन्द्र अगर अपने नाम पर वोट मांगते तो पार्टी का नुकसान भी हो सकता था, क्योंकि उनके खिलाफ आये एक के बाद एक स्टिंग आपरेशनों ने उनकी छवि को बिगाड़ने के साथ ही उनकी विश्वसनीयता को भी ठेस पहुंचाई है।
कांग्रेस यहां अंतर्कलह से जूझती रही। - फोटो : फाइल फोटो
डबल इंजन का वायदा भी हुआ हवा हवाई
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने मोदी सरकार की वायदा खिलाफी और स्थानीय मुद्दों को उठाने के साथ ही अपनी न्याय योजना जैसे वायदों की ओर चुनाव अभियान के केन्द्र में लाने का प्रयास अवश्य किया मगर भाजपा के राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों ने कांग्रेस के मुद्दों की हवा निकाल ली। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड के मतदाताओं से जो वायदे किये थे उन पर वह खरे नहीं उतरे। वर्ष 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वर्ष 2000 में उत्तरांचल राज्य को वाजेपयी सरकार ने जन्म दिया और अब वह प्रधानमंत्री बने तो इस नये राज्य की परवरिश वही करेंगे।
फिर 2017 में राज्य विधानसभा के चुनाव आये तो मोदी जी ने कहा था कि राज्य में भी भाजपा की सरकार आयेगी तो विकास की गाड़ी पर डबल इंजन लग जायेगा और गाड़ी और तेज चलेगी। मगर उत्तराखण्ड के प्रति मोदी जी का विशेष प्रेम कहीं नजर नहीं आया। जो योजनाएं देश के अन्य हिस्सों में चलीं वही उत्तराखण्ड में भी चलीं जबकि इस पहाड़ी राज्य की विशिष्ट परिस्थितियों के कारण इसके सामने पलायन एवं विकास के मामले में असंतुलन जैसी विशिष्ट परिस्थितियां भी थीं जिन पर केन्द्र एवं राज्य सरकार को विशेष ध्यान देना था। नीति आयोग का फण्डिंग पैटर्न बदलने से तथा जीएसटी के लागू होने से उत्तराखण्ड को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई तक केन्द्र सरकार ने नहीं की।
सामरिक दृष्टि से अति संवेदनशील इस सीमावर्ती राज्य में बाड़ाहोती क्षेत्र में चीन की सेना अक्सर सीमा का उल्लंघन करती रहती है। नेपाल से लगी सीमा क्षेत्र में माओवादियों के सक्रिय होने के एक नहीं बल्कि अनेक उदाहरण हैं। ऐसी स्थिति में सीमा क्षेत्र से पलायन राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी चिन्ता का विषय है। मोदी सरकार ने इस पलायन को रोकने के लिए न तो स्वयं कोई पहल की और ना ही राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार को इस समस्या से निपटने में मदद की। राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री इस समय सांसद थे जिनमें से एक को भी केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में नहीं लिया गया। जिस कम अनुभवी सांसद अजय टमटा को राज्यमंत्री बनाया भी उसे ऐसा मंत्रालय दिया जिससे उत्तराखण्ड को कोई लाभ नहीं हो सकता था। जबकि वाजपेयी सरकार में भुवन चन्द्र खण्डूड़ी और बची सिंह रावत दो मंत्री थे।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने मोदी सरकार की वायदा खिलाफी और स्थानीय मुद्दों को उठाने के साथ ही अपनी न्याय योजना जैसे वायदों की ओर चुनाव अभियान के केन्द्र में लाने का प्रयास अवश्य किया मगर भाजपा के राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों ने कांग्रेस के मुद्दों की हवा निकाल ली। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड के मतदाताओं से जो वायदे किये थे उन पर वह खरे नहीं उतरे। वर्ष 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वर्ष 2000 में उत्तरांचल राज्य को वाजेपयी सरकार ने जन्म दिया और अब वह प्रधानमंत्री बने तो इस नये राज्य की परवरिश वही करेंगे।
फिर 2017 में राज्य विधानसभा के चुनाव आये तो मोदी जी ने कहा था कि राज्य में भी भाजपा की सरकार आयेगी तो विकास की गाड़ी पर डबल इंजन लग जायेगा और गाड़ी और तेज चलेगी। मगर उत्तराखण्ड के प्रति मोदी जी का विशेष प्रेम कहीं नजर नहीं आया। जो योजनाएं देश के अन्य हिस्सों में चलीं वही उत्तराखण्ड में भी चलीं जबकि इस पहाड़ी राज्य की विशिष्ट परिस्थितियों के कारण इसके सामने पलायन एवं विकास के मामले में असंतुलन जैसी विशिष्ट परिस्थितियां भी थीं जिन पर केन्द्र एवं राज्य सरकार को विशेष ध्यान देना था। नीति आयोग का फण्डिंग पैटर्न बदलने से तथा जीएसटी के लागू होने से उत्तराखण्ड को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई तक केन्द्र सरकार ने नहीं की।
सामरिक दृष्टि से अति संवेदनशील इस सीमावर्ती राज्य में बाड़ाहोती क्षेत्र में चीन की सेना अक्सर सीमा का उल्लंघन करती रहती है। नेपाल से लगी सीमा क्षेत्र में माओवादियों के सक्रिय होने के एक नहीं बल्कि अनेक उदाहरण हैं। ऐसी स्थिति में सीमा क्षेत्र से पलायन राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी चिन्ता का विषय है। मोदी सरकार ने इस पलायन को रोकने के लिए न तो स्वयं कोई पहल की और ना ही राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार को इस समस्या से निपटने में मदद की। राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री इस समय सांसद थे जिनमें से एक को भी केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में नहीं लिया गया। जिस कम अनुभवी सांसद अजय टमटा को राज्यमंत्री बनाया भी उसे ऐसा मंत्रालय दिया जिससे उत्तराखण्ड को कोई लाभ नहीं हो सकता था। जबकि वाजपेयी सरकार में भुवन चन्द्र खण्डूड़ी और बची सिंह रावत दो मंत्री थे।
10 सालों में 6338 ग्राम पंचायतों में 3 लाख 83 हजार 726 लोगों ने राज्य से पलायन किया। - फोटो : अमर उजाला
पलायन का मुद्दा नगण्य हुआ
त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा गठित किये गये पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 सालों में 6338 ग्राम पंचायतों में 3 लाख 83 हजार 726 लोगों ने स्थाई और अस्थाई रूप से पलायन किया। इन 3946 ग्राम पंचायतों से 1 लाख 18 हजार 981 लोगों ने पहाड़ों से स्थाई रूप से पलायन कर दिया। पलायन करने वालों में से 50 प्रतिशत ने आजीविका, 15 प्रतिशत ने शिक्षा एवं 8 प्रतिशत ने बेहतर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पलायन किया। स्पष्ट है कि राज्य के 84.37 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में अगर रोजगार या आजीविका के साधन होने के साथ ही बच्चों को पढ़ाने और बेहतर इलाज की सुविधा होती तो लोग पलायन नहीं करते। इस ओर न तो राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार ने और ना ही मोदी सरकार ने कोई ध्यान दिया।
पहाड़ों की गरीबी को गैर जरूरी मुद्दा माना
अप्रैल 2017 में अल्मोड़ा जिले के खुजरानी गांव में एक 17 साल की किशोरी की भूख से मौत की सूचना स्वयं भाजपा विधायक महेश नेगी ने दी थी। त्रिवेन्द्र सरकार का दावा है कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,74,622 रुपये है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय अभी तक 1,12,835 ही है। लेकिन यह आर्थिक उन्नति केवल तीन मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर तक ही सिमट गई है। उत्तराखंड के 63.41 प्रतिशत परिवार महीने में पांच हजार रुपये से कम की आय पर गुजारा कर रहे हैं। 21 प्रतिशत परिवार 10 हजार रुपये महीने से कम जबकि 14 प्रतिशत लोग महीने में दस हजार से अधिक कमाते हैं। हरिद्वार की प्रति व्यक्ति आय जहां 2,54,050 तक पहुंच गई वहीं रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय 83,521 रुपये से आगे नहीं बढ़ पाई। प्रदेश के 9 पहाड़ी जिलों में औसत प्रति व्यक्ति आय केवल 89994.88 रुपये के करीब है वहीं तीन मैदानी जिलों की औसत प्रति व्यक्ति आय 2,12,429 से अधिक पहुंच गई है। इस हिसाब से 10 पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति की प्रति माह आय 7499.57 रुपये बैठती है। यह आय भी पहाड़ी नगरों तक ही सीमित है। सामान्यतः पहाड़ के ग्रामीण मनरेगा में 100 दिन के रोजगार की गारण्टी के तहत औसतन 1458 रुपये प्रति माह की कमाई पर गृहस्थी चला रहे हैं। पहाड़ों में भी सारी आर्थिक गतिविधियां चार धाम यात्रा मार्ग, जिला, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों के छोटे बड़े नगरों तक ही सीमित हैं।
त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा गठित किये गये पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 सालों में 6338 ग्राम पंचायतों में 3 लाख 83 हजार 726 लोगों ने स्थाई और अस्थाई रूप से पलायन किया। इन 3946 ग्राम पंचायतों से 1 लाख 18 हजार 981 लोगों ने पहाड़ों से स्थाई रूप से पलायन कर दिया। पलायन करने वालों में से 50 प्रतिशत ने आजीविका, 15 प्रतिशत ने शिक्षा एवं 8 प्रतिशत ने बेहतर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पलायन किया। स्पष्ट है कि राज्य के 84.37 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में अगर रोजगार या आजीविका के साधन होने के साथ ही बच्चों को पढ़ाने और बेहतर इलाज की सुविधा होती तो लोग पलायन नहीं करते। इस ओर न तो राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार ने और ना ही मोदी सरकार ने कोई ध्यान दिया।
पहाड़ों की गरीबी को गैर जरूरी मुद्दा माना
अप्रैल 2017 में अल्मोड़ा जिले के खुजरानी गांव में एक 17 साल की किशोरी की भूख से मौत की सूचना स्वयं भाजपा विधायक महेश नेगी ने दी थी। त्रिवेन्द्र सरकार का दावा है कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,74,622 रुपये है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय अभी तक 1,12,835 ही है। लेकिन यह आर्थिक उन्नति केवल तीन मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर तक ही सिमट गई है। उत्तराखंड के 63.41 प्रतिशत परिवार महीने में पांच हजार रुपये से कम की आय पर गुजारा कर रहे हैं। 21 प्रतिशत परिवार 10 हजार रुपये महीने से कम जबकि 14 प्रतिशत लोग महीने में दस हजार से अधिक कमाते हैं। हरिद्वार की प्रति व्यक्ति आय जहां 2,54,050 तक पहुंच गई वहीं रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय 83,521 रुपये से आगे नहीं बढ़ पाई। प्रदेश के 9 पहाड़ी जिलों में औसत प्रति व्यक्ति आय केवल 89994.88 रुपये के करीब है वहीं तीन मैदानी जिलों की औसत प्रति व्यक्ति आय 2,12,429 से अधिक पहुंच गई है। इस हिसाब से 10 पहाड़ी जिलों में प्रति व्यक्ति की प्रति माह आय 7499.57 रुपये बैठती है। यह आय भी पहाड़ी नगरों तक ही सीमित है। सामान्यतः पहाड़ के ग्रामीण मनरेगा में 100 दिन के रोजगार की गारण्टी के तहत औसतन 1458 रुपये प्रति माह की कमाई पर गृहस्थी चला रहे हैं। पहाड़ों में भी सारी आर्थिक गतिविधियां चार धाम यात्रा मार्ग, जिला, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों के छोटे बड़े नगरों तक ही सीमित हैं।
आर्थिक असन्तुलन भी एक मुद्दा था
लेकिन इस राज्य में सारी आर्थिक गतिविधियां मैदानी जिलों तक सिमट गई है। पहाड़ों में जो गतिविधियां हैं भी वे पहाड़ी नगरों के इतर कहीं नहीं हैं। इसीलिये प्रचलित भावों पर राज्य का कुल घरेलू उत्पाद 2,14,933 करोड़ रुपये तक और 2018-19 में यह 2,37,147 करोड़ रुपये तक पहुचने का अनुमान है। इसमें भी सर्वाधिक 58,168.24 लाख रुपये सकल घरेलू उत्पाद हरिद्वार जिले का और सबसे कम 2,510.40 लाख रुपये रुद्रप्रयाग जिले का है। राज्य के 10 में से 9 पहाड़ी जिलों का औसत सकल घरेलू उत्पाद 4849.20 लाख करोड़ है तो अकेले तीन मैदानी जिले हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर का औसत सकल घरेलू उत्पाद 45,447.39 लाख रुपये है। बैंक भी आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिये पहाड़ों में ऋण देने में भारी कंजूसी कर रहे हैं। बैंकों का ऋण जमानुपात जहां उधमसिंहनगर में 122 हैं वहीं सर्वाधिक पलायन प्रभावित अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में यह अनुपात मात्र 23 है। मानव विकास सूचकांक में भी पहाड़ी जिले पिछड़े और मैदानी जिले आगे हैं। राज्य के 13 जिलों में से रुद्रप्रयाग, चम्पावत और टिहरी जिले क्रमशः 11वें, 12वें और 13वें स्थान पर जबकि देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंहनगर पहले तीन स्थानों पर हैं। मोदी फिर बेहतरीन फाइटर और शाह चाणक्य साबित हुये अपनी पसन्द के मुद्दे उभारने और विपक्ष के हमलों को निष्कृय कर उनके हथियार उन्हीं पर आजमाने के मामले में मोदी एक बार फिर बेहतर राजनीतिक योद्धा साबित हुए।
मोदी जिस प्रकार विपक्ष के आरोपों की खिल्ली उड़ा कर उनके आरोपों से उन्हीं पर वार करते थे उसी प्रकार भाजपा का जमीनी स्तर का कार्यकर्ता भी कांग्रेस की खिल्ली उड़ाकर आम आदमी को प्रभावित करता था। अमित शाह की बेहतरीन रणनीति भी इस चुनाव में निर्णाय साबित हुई। देवभूमि उत्तराखण्ड के बारे में कहा जाता है कि यहां जितने कंकर (कंकड़) उतने शंकर हैं। इसका मतलब यहां चप्पे-चप्पे में देवालय होना लोगों की धार्मिक प्रवृत्ति को उजागर करता है। लोगों की इस धार्मिक भावना को वोटों में बदलने के लिये भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। अन्य हिस्सों की तरह यहां भी भाजपा की बूथ स्तर की टीमें तैयार हो गयी थीं। भाजपा को अपने भरपूर संसाधनों और प्रतिद्वन्दी कांग्रेस की मुफिलिसी और उसकी अन्तर्कलह का भी लाभ मिला।
लेकिन इस राज्य में सारी आर्थिक गतिविधियां मैदानी जिलों तक सिमट गई है। पहाड़ों में जो गतिविधियां हैं भी वे पहाड़ी नगरों के इतर कहीं नहीं हैं। इसीलिये प्रचलित भावों पर राज्य का कुल घरेलू उत्पाद 2,14,933 करोड़ रुपये तक और 2018-19 में यह 2,37,147 करोड़ रुपये तक पहुचने का अनुमान है। इसमें भी सर्वाधिक 58,168.24 लाख रुपये सकल घरेलू उत्पाद हरिद्वार जिले का और सबसे कम 2,510.40 लाख रुपये रुद्रप्रयाग जिले का है। राज्य के 10 में से 9 पहाड़ी जिलों का औसत सकल घरेलू उत्पाद 4849.20 लाख करोड़ है तो अकेले तीन मैदानी जिले हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंहनगर का औसत सकल घरेलू उत्पाद 45,447.39 लाख रुपये है। बैंक भी आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिये पहाड़ों में ऋण देने में भारी कंजूसी कर रहे हैं। बैंकों का ऋण जमानुपात जहां उधमसिंहनगर में 122 हैं वहीं सर्वाधिक पलायन प्रभावित अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में यह अनुपात मात्र 23 है। मानव विकास सूचकांक में भी पहाड़ी जिले पिछड़े और मैदानी जिले आगे हैं। राज्य के 13 जिलों में से रुद्रप्रयाग, चम्पावत और टिहरी जिले क्रमशः 11वें, 12वें और 13वें स्थान पर जबकि देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंहनगर पहले तीन स्थानों पर हैं। मोदी फिर बेहतरीन फाइटर और शाह चाणक्य साबित हुये अपनी पसन्द के मुद्दे उभारने और विपक्ष के हमलों को निष्कृय कर उनके हथियार उन्हीं पर आजमाने के मामले में मोदी एक बार फिर बेहतर राजनीतिक योद्धा साबित हुए।
मोदी जिस प्रकार विपक्ष के आरोपों की खिल्ली उड़ा कर उनके आरोपों से उन्हीं पर वार करते थे उसी प्रकार भाजपा का जमीनी स्तर का कार्यकर्ता भी कांग्रेस की खिल्ली उड़ाकर आम आदमी को प्रभावित करता था। अमित शाह की बेहतरीन रणनीति भी इस चुनाव में निर्णाय साबित हुई। देवभूमि उत्तराखण्ड के बारे में कहा जाता है कि यहां जितने कंकर (कंकड़) उतने शंकर हैं। इसका मतलब यहां चप्पे-चप्पे में देवालय होना लोगों की धार्मिक प्रवृत्ति को उजागर करता है। लोगों की इस धार्मिक भावना को वोटों में बदलने के लिये भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। अन्य हिस्सों की तरह यहां भी भाजपा की बूथ स्तर की टीमें तैयार हो गयी थीं। भाजपा को अपने भरपूर संसाधनों और प्रतिद्वन्दी कांग्रेस की मुफिलिसी और उसकी अन्तर्कलह का भी लाभ मिला।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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