Search This Blog

Wednesday, April 17, 2019

उगते सूरज को सभी नमस्कार करते हैं ताकि फायदे के मौके मिल सकें। लेकिन मेरी फितरत डूबते सूरज को नमस्कार करने की रही है। इसीलिये मैं तो मैं ही रह गया जबकि ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे हो गये और मेरे जैसे ऐसे-वैसे ही रह गये। लेकिन मैं हमेशा उसी के साथ रहूंगा जिसके पास खड़े होने में भी अवसरवादी और मतलब परस्त खड़े होने से कतराते हों।

 tUetkr fonzksgh Fks fVgjh dh tuØkafr ds uk;d ifjiw.kkZuUn iSU;wyh
-जयसिंह रावत
टिहरी राज्य की जनक्रांति के डिक्टेटर, प्रख्यात पत्रकार, पूर्व सांसद एवं समाजसेवी परिपूर्णानन्द पैन्यूली ऐसे जीवित इतिहास थे जिन्होंने बाल्यकाल से ही अपने विद्रोही तेवरों के कारण इतिहास रचना शुरू कर दिया था। पहला इतिहास उन्होंने टिहरी की राजशाही की उस जेल से फरार होकर रचा जिस जेल में श्रीदेव सुमन ने 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद प्राण त्यागे थे। दूसरा इतिहास भारत के दीर्घतम् राजवंशों में से एक पंवार वंश के शासन को ध्वस्त करने वाली टिहरी की जनक्रांति का नेतृत्व करने पर रचा। तीसरा इतिहास उन्होंने गढ़वाल की राजनीति में अजेय माने जाने वाले पंवार वंश के अंतिम महाराजा मानवेन्द्र शाह, जिन्हें बोलान्दा बदरीनाथ या जीता जागता बदरीनाथ भी कहा जाता था, को चुनावी मुकाबले में परास्त कर रचा। पैन्यूली उस ऐतिहासिक लोकसभा के सदस्य रहे जिसका कार्यकाल 6 साल था और जिसके कार्यकाल में इमरजेंसी भी लगी थी। क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण मात्र 17 साल की उम्र में 5 साल की सजा पाना, जेल से ही बारहवीं की परीक्षा देना और हिमालयन हिल स्टेट रीजनल काउंसिल के चुनाव में हिमाचल प्रदेश के निर्माता डा0 यशवन्त सिंह परमार को परास्त करना जैसी घटनाऐं भी उनके ऐतिहासिक चरित्र को उजागर करती हैं। स्वतंत्रता सेनानी, लेखक और पत्रकार परिपूर्णा नन्द पैन्यूली को अगर एक जीवित पुराकथा (लिविंग लिजेण्ड) कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनका जन्म 19 नवम्बर 1924 में टिहरी नगर के निकट छोलगांव में हुआ था। उनके दादा राघवानन्द पैन्यूली टिहरी रियासत के दीवान थे और पिता कृष्णा नन्द रियासत के इंजिनीयर थे। इनका पूरा परिवार माता श्रीमती एकादशी देवी और अनुज सच्चिदानंद  सहित समाज सेवा और स्वाधीनता आन्दोलन के लिये समर्पित रहा।









No comments:

Post a Comment