हवाई चप्पल से हवाई यात्रा भी हवा हो गयी उत्तराखण्ड में
-जयसिंह रावत
’हवाई
चप्पल से हवाई
जहाज तक’ की प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की
बहुप्रचारित ”उड़ान“ योजना हिमालयी राज्य
उत्तराखण्ड के पहाड़
न चढ़ पाने
के कारण हवा
हवाई हो गयी
है। प्रदेश की
पांच हवाई पट्टियों
में से दो
पर निर्माण कार्य
अधूरा पड़ा है
और सीमान्त जिला
पिथौरागढ़ में स्थित
एक अन्य नैनी
सैनी हवाई अड्डे
के लिये फरबरी
में जैसे ही
उड़ान भरी गयी
तो हवा में
उसकी खिड़की खुल
गयी। इस घटना
में एक बड़ा
हादसा तो टल
गया मगर प्रस्तावित
नियमित उड़ानें भी अनिश्चित
काल के लिये
स्थगित हो गयीं।
Article of Jay Singh Rawat published in Navjivan on 31 March 2019 |
प्रधानमंत्री
मोदी द्वारा वर्ष
2017 में रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम,
जिसे ‘‘उड़ान’’ नाम से
जाना गया, को
लांच करते समय
जब हवाई चप्पल
पहन कर भी
हवाई यात्रा का
सपना दिखाया गया
तो पहाड़ी राज्य
उत्तराखण्ड के निवासियों
की उम्मीदों पर
भी पंख लगने
लगे थे। राज्य
में अवागमन हेतु
सड़क मार्ग पर
ही जनता को
निर्भर करना पड़ता
है। आपदा के
समय बचाव कार्य
हेतु एवम् चारधाम
यात्रा तथा पर्यटन
को बढ़ावा देने
के लिए राज्य
में हवाई मार्ग
से हवाई यातायात
को अति आवश्यक
माना जाता रहा
है। इसके लिये
राज्य सरकार ने
नये हेलीपैडों का
निर्माण, मौजूदा हेलीपैडों एवं
हवाईपट्टी का सुदृड़ीकरण
की बात कही
थी। लेकिन मोदी
और त्रिवेन्द्र रावत
की डबल इंजन
सरकारों की हवाई
घोषणाओं के धरती
पर न उतरने
के कारण देहरादून
और पन्तनगर के
अलावा प्रदेश के
पहाड़ी इलाकों की
जनता की कल्पना
की हवाई उड़ाने
अभी हवा में
ही गोते खा
रही हैं।
उत्तराखण्ड
में देहरादून के
जौलीग्राण्ट और उधमसिंहनगर
जिले के पन्तनगर
के अलावा भी
सामरिक और पर्यटन
की दृष्टि से
सीमान्त जिला उत्तरकाशी
के चिन्यालीसौड़, चमोली
के गौचर और
पिथौरागढ़ जिले के
नैनी सैनी में
हवाई सेवाएं शुरू
करने की दृष्टि
से हवाई पट्टियां
लम्बे अर्से पूर्व
बनाई गयीं थी।
हवाई सेवाओं के पीछे
एक सोच पहाड़वासियों
की देहरादून जैसे
शहरों के साथ
ही दिल्ली और
लखनऊ के बीच
की दूरी कम
करने की भी
थी। वर्तमान में
पिथौरागढ़ से देहरादून
की सड़क मार्ग
से दूरी 578 किमी,
चम्पावत से 503 किमी, बागेश्वर
से 442 किमी और
अल्मोड़़ा से 409 किमी बैठती
है। दिल्ली और
लखनऊ तो रहे
दूर पहाड़ के
कुछ इलाकों के
लोग तो अब
भी सड़क मार्ग
से दूसरे दिन
देहरादून पहुंचते हैं। जब
कभी कोई दुर्घटना
होती है तो
गंभीर घायल अक्सर
देहरादून या ऋषिकेश
के बड़े अस्पताल
तक पहुंचने से
पहले ही रास्ते
में दम तोड़
देते हैं।
प्रदेश में जौलीग्राण्ट
एवं पन्तनगर हवाई
अड्डों का संचालन
भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण
द्वारा तथा पहाड़ी
जिलों में स्थित
नैनीसैनी, चिन्यालीसौड़ और गौचर
की आधी अधूरी
हवाई पट्टियों का
निर्माण राज्य सरकार द्वारा
किया गया है।
जौलीग्राण्ट में सबसे
पहले पैरा ग्लाइडिंग
के लिये छोटी
पट्टी का निर्माण
सन् 1979 में हो
गया था। लेकिन
2008 में यहां से
नियमित वायुदूत सेवा शुरू
हुई। जौलीग्रण्ट के
बाद पन्तनगर हवाई
अड्डे का भी
उपयोग होने लगा
है। लेकिन सीमान्त
जिलों में स्थित
तीनों हवाई पट्टियां
अभी भी अधर
में लटकी हुयी
हैं। जबकि जौलीग्राण्ट
के बाद उत्तरकाशी
जिले में स्थित
चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी
से वायु सेना
वर्ष 2018 में अपने
भारी विमानों की
उड़ानों का ट्रायल
भी ले चुकी
है। सन् 1992-93 में
चिन्यालीसौड़ में 1200 मीटर रनवे
का निर्माण किया
गया था। बाद
में सेना और
सिविल के विमानों
की नियमित उड़ानों
के लिये 2014 में
इस हवाई पट्टी
के विस्तार के
लिये 40 करोड़ की
योजना बनी, जिसमें
टर्मिनल बिल्डिंग, पार्किंग, बाउण्ड्री
और सौन्दर्यीकरण का
काम होना था
जो कि धनाभाव
के कारण पिछले
दो सालों से
अधूरा पड़ा हुआ
है।
इसी तरह चमोली
जिले की गौचर
हवाई पट्टी से
नियमित यात्री उड़ानों की
घोषणा धरती पर
नहीं उतर पायी
है। चिपको आन्दोलन
में चण्डी प्रसाद
भट्ट के अनन्य
सहयोगी रहे रमेश
पहाड़ी के अनुसार
सामरिक दृष्टि से पहाड़
में हवाई पट्टियां
बनाने की कल्पना
1954-55 से और फिर
1962 के बाद की
जाने लगी थी,
लेकिन गौचर के
मैदान में सन्
1981 से हवाई पट्टी
बनाने पहल हुयी।
उस समय लोग
अपनी उपजाऊ जमीन
देने को राजी
नहीं हुये। वर्ष
1997 में लगभग 200 परिवारों की
800 नाली उपजाऊ जमीन को
कौड़ियों के भाव
अधिग्रहित कर वहां
1450 मीटर लम्बी हवाई पट्टी
का निर्माण करने
के साथ ही
उसके बाहर 52 मीटर
के दायरे में
निर्माण पर रोक
लगा दी गयी।
लेकिन तब से
अब तक न
तो वहां से
हवाई सेवायंे शुरू
हुयी और ना
ही काश्तकारों को
उनकी जमीन का
उचित मुआवजा मिला।
सीमान्त जिला पिथौरागढ़
की नैनी सैनी
हवाई पट्टी से
इस साल केन्द्र
और राज्य की
भाजपा सरकारों ने
‘‘उड़ान’’ सेवा शुरू
करने का खूब
प्रचार प्रसार तो किया
मगर 9 फरबरी को
हवा में विमान
की खिड़की खुलने
से हवाई चप्पल
समेत हवाई यात्रा
की तैयारियों की
पोल भी खुल
गयी। नैनीसैनी हवाई
पट्टी से 17 जनवरी
से पहली व्यावसायिक
उड़ान शुरू हुई
थी। 18 जनवरी को दूसरे
दिन ही विमान
सेवा में व्यवधान
आया। विमान पंतनगर
से सुबह 10.30 बजे
के बजाय दिन
में 2.10 बजे नैनीसैनी
पहुंचा। 19 जनवरी को तीनों
फ्लाइट ठीक रही
मगर 20, 21, 22 जनवरी को विमान
सेवा बंद रही।
23 जनवरी को साप्ताहिक
छुट्टी के कारण
उड़ान बंद रही।
इसके बाद 24 जनवरी
को सेवा सुचारु
रही। 25 जनवरी को तकनीकी
खराबी के कारण
विमान पंतनगर से
पिथौरागढ़ नहीं आ
सका। 26 जनवरी को तीन
फ्लाइटें संचालित हुईं। 27 जनवरी
को पंतनगर में
विजीविलिटी कम होने
से अपराह्न तीन
बजे विमान यहां
पहुंचा। 31 जनवरी से छह
फरवरी तक हवाई
सेवा सुचारू रही,
सात फरबरी को
खराब मौसम के
कारण फिर विमान
सेवा बंद रही।
आठ फरवरी को
खराब मौसम के
कारण विमान दो
घंटा देरी से
नैनीसैनी पहुंचा। नौ फरवरी
को नैनीसैनी से
पंतनगर के लिए
यात्रियों को लेकर
गये विमान की
खिड़की हवा में
ख्ुल जाने से
विमान वापस पंतनगर
लैण्ड कराना पड़ा
और उसके बाद
डीजीसीए ने सुरक्षा
कारणों से सेवा
बंद करा दी।
इस तरह प्रधानमंत्री
मोदी द्वारा हवाई
चप्पल में हवाई
यात्रा कराने का वायदा
हवा में ही
उड़ गया।
- जयसिंह
रावत
ई-11फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून।
मोबाइल-09412324999