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Monday, April 5, 2021

ग्रामीण आर्थिकी को नयी राह दिखाता महेन्द्र कुंवर का मॉडल

 


ग्रामीण
आर्थिकी को नयी राह दिखाता महेन्द्र कुंवर का मॉडल

पलायन पर लगी लगाम:खुशहाल गांव उजड़ने से बचे: लोगों को स्वयं अपनी तकदीर लिखने को किया प्रेरित

भारत की ही तरह उत्तराखण्ड भी गावों का ही एक प्रदेश है, जिसकी 69.77 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है। पहाड़़ों में तो 83 प्रतिशत तक जनसंख्या ग्रामीण है। गांव और कृषि एक दूसरे के पर्याय होते हैं। गांव के बिना कृषि और कृषि के बिना गाव की बात करना भी मजाक लगता है। लेकिन हमारे उत्तराखण्ड में यह मजाक ही हकीकत है। बड़े पैमाने पर पलायन के बावजूद जनसंख्या का बड़ा हिस्सा आज भी गांव में रहता जरूर है मगर उसकी आजीविका खेत या खेती पर निर्भर नहीं है। अगर प्रदेश के 84 प्रतिशत से अधिक पहाड़ी भूभाग में सचमुच लोगों की आजीविका खेती किसानी पर निर्भर होती तो लोग इतने बड़े पैमाने पर पहाड़ से पलायन नहीं करते। वर्ष 2011 की ही जनगणना देख लीजिये! प्रदेश के 84.37 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में 48 प्रतिशत जनसंख्या रह गयी जबकि 15.63 प्रतिशत मैदान क्षेत्र में 52 प्रतिशत जनसंख्या केन्द्रित हो गयी है। जनसांख्यकी के इस असन्तुलन से कई विसंगतियां पैदा हो रही हैं जिनका असर आर्थिक, समाजिक, राजनीतिक और सामरिक क्षेत्र पर पड़ना स्वाभाविक ही है।

उत्तराखण्ड में पलायन सदैव भाषणबाज नेताओं और आलीशान घरों या दफ्तरों में बैठे-बैठे चिन्ताओं के घोड़े दौड़ाने वाले चिन्तकों के लिये हॉट टॉपिक रहा है। लेखकों, चिन्तकों और योजनाकारों ने मिल कर जाने कितने टन कागज पलायन पर खपा लिये होंगे। नेताओं और सामाजिक चितकों ने तो पहाड़ की इस वेदना पर आंसुओं के जाने कितने दरिया बहा लिये होंगे। फिर भी समस्या जहां की तहां है। लेकिन हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के संस्थापक/सचिव महेन्द्र कुंवर जैसे विरले ही लोग हैं जो कि सचमुच ग्रामीण आर्थिकी के विकास के लिये जीजान से जुटे हुये हैं ताकि उजड़ते जा रहे गावों में खुशहाली वापस लौट सके और खेत खलिहानों से उपजी वह खुशहाली पहाड़ छोड़ कर दूर कहीं मैदानों में रोजीरोटी के लिये जूझ रहे प्रवासियों को आकर्षित कर वापस अपनी माटी में ला सके। महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। उन्होंने अपने सपनों के भारत में गांव के विकास को प्रमुखता प्रदान करके उससे देश की उन्नति निर्धारित होने की बात कही थी। महेन्द्र कुंवर और उनकी संस्था हार्क उत्तराखण्ड के सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में अपनी व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए कृषि एवं बागवानी के साथ ही ग्रामीण विकास की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति करके समग्र विकास के माध्यम से एक स्वावलंबी एवं खुशहाल ग्राम समाज का निर्माण करने पर जुटे हुये हैं। अगर आपको उत्तराखण्ड में अपनी माटी से उपजी हुयी खुशहाली देखनी हो तो आप यमुना घाटी के नौगांव और पुरौला विकास खण्डों में जा कर देख सकते हैं। वहां अनूठी संस्कृति के साथ ही आपको विकास का अलग ही माहौल नजर आयेगा। सतत् विकास का यही एक आदर्श नमूना है जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है। भाई महेन्द्र कुंवर केवल यमुना घाटी को अपितु इस हिमालयी राज्य के योजनाकारों और सर्वोच्च स्तर पर नीतिगत निर्णय लेने वालों को सस्टेनेबल डेवेलपमेंट का यह रास्ता दिखा रहे हैं।

उत्तराखण्ड पलायन आयोग की रिपोर्ट पर गौर करें तो पिछली जनगणना के बाद के 10 वर्षों में 6,338 ग्राम पंचायतों के 3,83,726 लोगों ने अर्ध स्थाई रूप से तथा 3,964 ग्राम पंचायतों के 1,18,981 लोगों ने स्थाई रूप से पहाड़ के अपने गावों से पलायन किया। गौर करने वाली बात यह है कि प्रदेश में सबसे कम पलायन उत्तरकाशी जिले में दर्ज हुआ है। पलायन आयोग की रिपोर्ट पर ही ध्यान दें तो जहां पौड़ी जिले की 821 ग्राम पंचायतों से 25,584 व्यक्तियों ने और अल्मोड़ा जिले की 646 ग्राम पंचायतों से 16,207 व्यक्तियों ने अपनी जमीन जायदादें बेच कर स्थाई रूप से पलायन किया है वहीं उत्तरकाशी जिले की केवल 111 ग्राम पंचायतों से 2,727 व्यक्तियों ने ही स्थाई पलायन किया है। यह नाम मात्र का पलायन भी मुख्य रूप से यमुना घाटी का नहीं है। इसी प्रकार उत्तरकाशी जिले में प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में अर्ध स्थाई पलायन भी सबसे कम दर्ज हुआ है। पौड़ी में 47,488 और अल्मोड़ा में 53,611 ऐसे व्यक्तियों ने अर्ध-स्थाई पलायन किया है जो कि साल दो साल में कभी कभार अपने गांव ही जाते हैं। उत्तरकाशी में सबसे कम पलायन होने का श्रेय निश्चित रूप से वहां अपने खेत-खलिहान से जुड़े लोगों तथा महेन्द्र कुंवर और उनकी संस्था हार्क को जाता है। हार्क ने महेन्द्र भाई के विजनरी नेतृत्व में केवल लोगों को अपने पुश्तैनी खेतों से जोड़े रखा अपितु कृषि और बागवानी विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत प्रयोगशालाओं के प्रयोगों को यमुना घाटी के खेतों तक पहुंचाया। गांव की आर्थिकी की रीड़ कृषि और बागवानी के क्षेत्र में देशभर में हो रहे अनुसंधानों की जानकारियां या तो संस्थानों की आल्मारियों में कैद हो जाती थीं या क्षेत्र विशेष तक ही अवरुद्ध रहती थीं। लेकिन हार्क ने उन तमाम अवरोधों को तोड़ कर उन जानकारियों का अविछिन्न प्रवाह यमुना घाटी तक जोड़ा। हार्क के द्वारा देश के ख्यातिनामा कृषि एवं बागवानी वैज्ञानिक यमुना घाटी में लाये गये। नये कृषि कानूनों के जरिये किसान की उपज को लाभकारी मूल्य दिलाने का दावा आज किया जा रहा है लेकिन महेन्द्र कुंवर ने मदर डेयरी आदि संस्थाओं के माध्यम से यमुना घाटी की सब्जियां और टमाटर एक दशक पहले ही दिल्ली की आजादपुर मण्डी तक पहुंचा कर किसानों को उनकी उपज के अधिकतम् लाभकारी दाम दिलवा दिये थे और साथ ही उनको बिचौलियों के शोषण से मुक्त करा दिया था। इस घाटी के सेव आज बाजार में हिमाचल के सेवों से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। कीवी जैसे जो फल और ब्रोकली एवं स्पेरेगस जैसी जिन सब्जियों के नाम उत्तराखण्ड के पहाड़वासियों ने सुने भी नहीं थे, वे ही आज पहाड़ी काश्तकारों की आमदनी को कई गुना बढ़ा रहे हैं। बेमौसमी सब्जियांें के उचित दाम के लिये काश्तकार को भागना भी नहीं पड़ रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बिना जन सहयोग के कोई भी विकास कार्य सफल नहीं हो सकता। इसी कारण हमारे प्रदेश की विकास की गाड़ी कभी गति नहीं पकड़ सकी। जब तक आम आदमी को उसके विकास की प्रकृया में शामिल नहीं किया जायेगा और जब तक वह स्वयं अपने विकास की आवश्यकतानुसार प्रयास नहीं करेगा, तब तक उस आदमी पर विकास थोपना समय और शक्ति की बरबादी ही है। इसके लिये वह भोले भोले पहाड़ी काश्तकारों और बागवानों को हिमाचल प्रदेश सहित विभिन्न प्रदेशों की प्रयोगशालाओं और सफलतम् खेती तथा बागवानी को दिखाने के लिये ले गये। महेन्द्र कुंवर ने रवांईं घाटी में विकास की ऐसी कार्य संस्कृति विकसित की है, जिसमें लोग स्वयं ही विकास के नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। लोगों में बेहतर उत्पादन के लिये होड़ लगी हुयी है। लेकिन तरक्की के इस माहौल को जड़ता से भी उबारना होता है, क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है। इसलिये उसमें निरन्तरता बनाये रखने के लिये नये परिवर्तनों की आवश्यकता होती है तभी वे परिवर्तन चिरन्तरता के मील के पत्थर बनते हैं। इसके लिये महेन्द्र कुंवर जैसा विकास पुरुष सदैव खड़ा नजर आता है।

परम्परागत खेतों में सीधे प्रोद्योगिकी और अनुसंधानों की दखल पहुंचाने के साथ ही ग्राम समाज को उन्नत और आत्मनिर्भर बनाने के लिये हार्क ने त्रिस्तरीय पंचायतों को मजबूत करने की दिशा में भी अहं भूमिका अदा की है। ताकि लोग पंचायतों के माध्यम से जरूरतों के हिसाब से अपने विकास के लिये स्वयं नियोजन कर सकें। इसके लिये हार्क ने महिलाओं के सशक्तीकरण पर जोर देकर ग्रामीण लोकतंत्र में उनकी बेहतर भागीदारी के साथ ही विकास की प्रकृया में हिस्सेदारी तय की। यही नहीं उन्होंने स्वयं सहयता समूहों के जरिये महिलाओं को ग्रामीण आर्थिकी का हिस्सा बनाने के साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनाने का अनुकरणीय प्रयास भी किया।

 

 

 

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