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Sunday, April 4, 2021

हरिद्वार महाकुम्भ : महामरियों के इतिहास से सबक नहीं सीख रही है सरकार 


हरिद्वार से फैला हैजा यूरोप तक पहुंचा

रॉयल सोसाइटी ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एण्ड हाइजीन के संस्थापक सर लियोनार्ड रॉजर्स ( कण्डीसन इन्फुलेंयेसिंग  इंसीडेंस एण्ड स्प्रेड ऑफ कॉलेरा इन इंडियाके अनुसार सन् 1890 के दशक में हरिद्वार कुंभ से फैला हैजा पंजाब होते हुये अफगानिस्तानपर्सिया रूस और फिर यूरोप तक पहुंचा था। सन् 1823 की प्लेग की महामारी में केदारनाथ के रावल और पुजारियों समेत कई लोग मारे गये थे। गढ़वाल में सन् 1857, 1867 एवं 1879 की हैजे की महामारियां हरिद्वार कुंभ के बाद ही फैलीं थीं। सन् 1857 एवं 1879 का हैजा हरिद्वार से लेकर भारत के अंतिम गांव माणा तक फैल गया था। वाल्टन के गजेटियर के अनुसार हैजे से गढ़वाल में 1892 में 5,943 मौतेंवर्ष 1903 में 4,017, वर्ष 1906 में 3,429 और 1908 में 1,775 मौतें हुयीं।



 


कुंभ और महामारियों का चोली दामन का साथ


कुंभ और महामारियों का चोली दामन का साथ माना जाता रहा है। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की घुसपैठ के बाद 1783 कुंभ के पहले 8 दिनों में ही हैजे से लगभग 20 हजार लोगों के मरने का उल्लेख इतिहास में आया है। हरिद्वार सहित सहारनपुर जिले में 1804 में  अंग्रेजों का शासन शुरू होने पर कंुभ में भी कानून व्यवस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये उनका हस्तक्षेप शुरू हुआ। अंग्रेजों ने शैव और बैरागी आदि सन्यासियों के खूनी टकराव को रोकने के लिये सेना की तैनाती करने के साथ ही कानून व्यवस्था बनाये रखने और महामारियां रोकने के लिये पुलिसिंग शुरू की तो 1867 के कुंभ का संचालन अखाड़ों के बजाय सैनिटरी विभाग को सौंपा गया। उस समय संक्रामक रोगियों की पहचान के लिये स्थानीय पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया। उसके बाद 1885 के कुंभ में भीड़ को नियंत्रित करने के लिये बैरियर लगाये गये। सन् 1891 में सारे देश में हैजा फैल गया था। उस समय पहली बार मेले में संक्रमितों को क्वारेंटीन करने की व्यवस्था की गयी। पहली बार मेले में सार्वजनिक शौचालयों और मल निस्तारण की व्यवस्था की गयी। खुले में शौच रोकने के लिये 332 पुलिसकर्मी तैनात किये गये थे। लेकिन पुलिस की रोकटोक के बावजूद लोग तब भी खुले में शौच करने से बाज नहीं आते थे और उसके 130 साल बाद आज भी स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद जब गांधी जी कुंभ मेले के दौरान हरिद्वार पहुंचे थे तो उन्होंने भी लोगों के जहां तहां खुले में शौच किये जाने पर दुख प्रकट किया था।


आर. दास गुप्ता (टाइम ट्रेंड ऑफ कॉलेरा इन इण्डिया-13 दिसम्बर 2015) के अनुसार हरिद्वार 1891 के कंुभ में हैजे से कुल 1,69,013 यात्री मरे थे। विश्वमॉय पत्ती एवं मार्क हैरिसन ( सोशियल हिस्ट्री ऑफ हेल्थ एण्ड मेडिसिन पद कालोनियल इंडिया) के अनुसार महामारी पर नियंत्रण के लिये नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविन्स की सरकार ने मेले पर प्रतिबंन्ध लगा दिया था तथा यात्रियों को मेला क्षेत्र छोड़ने के आदेश दिये जाने के साथ ही रेलवे को हरिद्वार के लिये टिकट जारी करने को कहा गया था। आर. दास गुप्ता एवं .सी. बनर्जी ( नोट ऑन कालेरा इन यूनाइटेड प्रोविन्सेज) के अनुसार सन् 1879 से लेकर 1945 तक हरिद्वार में आयोजित कुंभों और अर्ध कुंभों में हैजे से 7,99,894 लोगों की मौतें हुयीं।

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