भारत के फेफड़े पर वनावरण का क्षयरोग
-जयसिंह रावत
देश का वायु गुणवत्ता सूचकांक जितनी जोर से खतरे की घण्टी बजा रहा है, उसका मुकाबला करने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों को सोखने वाला देश का वनावरण उस गति से नहीं बढ़ पा रहा है। गंभीर चिन्ता का विषय तो यह है कि भारत के फेफड़े, पूर्वोत्तर हिमालय में वनावरण में निरन्तर ह्रास होता जा रहा है। प्रदूषण के लिहाज से दुनिया के सबसे प्रदूषित 30 शहरों में भारत के 22 शहर चिन्हित किये गये हैं। एक अनुमान के अनुसार देश के लगभग 14 करोड़ लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से नीचे वायु की गुणवत्ता में संास लेते हैं जिस कारण औसतन लगभग 20 लाख लोग हर साल अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
अरबों रुपये खर्च करने पर भी आशानुरूप आंकड़े हाथ न लगने पर इस बार भी वनावरण की चिन्ताओं को वृ़क्षावरण के आवरण में छिपाने के लिये वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने वनावरण और वृक्षावरण की साझा वन स्थिति रिपोर्ट 2019 पेश कर दी। रिपोर्ट में वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र का कुल दायरा 5188 वर्ग किलोमीटर बढ़ कर 24.56 प्रतिशत होना बताया गया है। इस वृ़िद्ध को वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा प्रस्तुुत रिपोर्ट में प्रमुखता से सबसे पहले पेश किया गया। जबकि देश का वास्तविक वनावरण अभी 21.67 ही है। इसमें भी चिन्ता का विषय यह है कि सरकार द्वारा संरक्षित एवं कानून के अनुसार वन घोषित क्षेत्र में 70 प्रतिशत से अधिक वृक्ष छत्र वाले अति सघन वनावरण में 330 वर्ग किमी की कमी आ गयी है। यही अति सघन वन कार्बन डाइआक्साइड जैसी गैसों को सर्वाधिक सोखते हैं। यही नहीं दो साल के अंदर उत्तर पूर्व में अति सघन वनावरण 765 वर्ग किमी घट गया है। संभवतः इसी आंकड़ेबाजी की प्रवृत्ति को भांप कर ही वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को सलाहकार समिति ने वनावरण एवं वृक्षावरण के अलग-अलग सर्वे करने का सुझाव दिया है।
सर्वविदित ही है कि दुनिया भर में जिन जैव विधिता की दृष्टि से जो लगभग 34 क्षेत्र चिन्हित किये गये हैं उनमें भारतीय उप महाद्वीप में म्यमार तक पूर्वोत्तर हिमालय, पश्चिमी घाट और श्रीलंका शामिल हैं। इन तीनों में से भी सबसे अधिक जैव विविधता पूर्वोत्तर हिमालय में आंकी गयी है, और वनावरण में निरन्तर ह्रास भी इसी क्षेत्र में हो रहा है जो कि न केवल भारत अपितु विश्व बिरादरी की भी चिन्ता का विषय है। नवीनतम् वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार अरुणाचल में 276 वर्ग किमी, मणिपुर में 499 वर्ग किमी, मेघालय 27 वर्ग किमी, मीजोरम 180 वर्ग किमी, नागालैण्ड वर्ग किमी 3 और सिक्किम में 2 वर्ग किमी वनावरण घट गया है। अगर वर्ष 1999 की वन स्थिति रिपोर्ट से तुलना करें तो इस क्षेत्र में अब तक 1014 वर्ग किमी अति सघन वनावरण गायब हो गया है। वर्ष 1999 की रिपोर्ट के अनुसार अरुणाचल में 82.21 प्रतिशत वनावरण था जो कि अब 79.63 प्रतिशत रह गया। इसी प्रकार मीजोरम में 86.99 प्र.श. से 85.41, नागालैण्ड में 85.43 प्र.श. से 75.31 प्र.श और मणिपुर में वनावरण 77.86 प्र.श. से घटकर अब 75.46 प्र.श. ही रह गया है। वर्ष 2017 की वन स्थिति रिपोर्ट में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों का वनावरण 70 प्रतिशत से अधिक बताया गया था लेकिन इस बार की सर्वेक्षण रिपोर्ट में कुल वनावरण 65.5 प्रतिशत बताया गया है। कुल मिला कर 4.5 प्रतिशत वनावरण का यह अन्तर बहुत अधिक है, जिसे रिपोर्ट में छिपा दिया गया है। इन क्षेत्रों के मीजोरम, नागालैण्ड, अरुणाचल, त्रिपुरा और मेघालय में 2017 की रिपोर्ट में भी 2015 की तुलना में 1451 वर्ग किमी वनावरण घटने की बात कही गयी थी।
सवाल यह है कि जो वनावरण और वृक्षावरण अधिसूचित क्षेत्र से बढ़ भी रहा है वह सरकारी प्रयासों से नहीं बल्कि स्वेच्छिक संगठनों, वन प्रेमियों और वन पंचायतों के प्रयासों का नतीजा है। सरकार के अधीन संरक्षित क्षेत्र में 330 वर्ग किमी सघन वनावरण घटने के साथ ही अब तक अति सघन वन 40 से लेकर 70 प्रतिशत तक वृक्षछत्र (कैनोपी) वाले सामान्य सघन वनों में और सामान्य सघन वन 10 से लेकर 40 प्रतिशत वृक्षछत्र वाले खुले वनों में बदलते रहे हैं। एक और चिन्ता का विषय यह है कि देश के 187 जनजातीय जिलों में वनावरण केवल 37.54 प्रतिशत ही रह गया है, जबकि जनजातीय जीवन मुख्यतः वनों पर ही आश्रित होता है और इसीलिये उन्हें वनवासी या ‘‘आखेटक संग्रहक‘‘ भी कहा जाता था। इसीलिये ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के तहत 13 दिसंबर, 2005 से पूर्व वन भूमि पर काबिज अनुसूचित जनजाति के सभी समुदायों को वनों में रहने और आजीविका का अधिकार मिला है।
वन नीति 1988 के तहत मैदानी क्षेत्र का वनावरण कुल भूभाग के 33 प्रतिशत तथा पहाड़ी क्षेत्र का 67 प्रतिशत होना चाहिये। लेकिन दोनों क्षेत्र इस लक्ष्य से काफी दूर हैं। देश के 140 पहाड़ी जिलों का वनावरण केवल 40.30 प्रतिशत दिखाया गया है। पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड का ही उदाहरण ले लीजिये! यहां का वनावरण 45.44 प्रतिशत दिखाया गया है, जबकि इस राज्य में सरकार द्वारा घोषित वन क्षेत्र 71.05 और वन विभाग द्वारा नियंत्रित आरक्षित वन क्षेत्र 69.86 प्रतिशत है। जाहिर है कि इस हिमालयी राज्य के 25.61 प्रतिशत वन क्षेत्र का वनावरण गायब होने का हिसाब किसी के पास नहीं है, जबकि वानिकी का लम्बा इतिहास उत्तराखण्ड से ही जुड़ा हुआ है। यहीं देहरादून में सबसे पहले 1878 में इम्पीरियल फारेस्ट स्कूल की स्थापना हुयी थी।
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग की वैश्विक समस्या है। इसके साथ ही वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से निपटने के लिये 2015 में भारत सरकार ने आइआइटी कानपुर के साथ मिलकर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक शुरू किया था। 2019 में, भारत ने 2024 तक 20 से 30 प्रतिशत तक की कमी के अस्थायी लक्ष्य के साथ ‘‘द नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’’ की शुरुआत की। यह कार्यक्रम उन 102 शहरों के लिये है जहां वायु गुणवत्ता सबसे खराब है।
वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार भारत के वनों की कुल कार्बन स्टाक क्षमता 7142.6 टन है और इसमें 2017 के आंकलन की तुलना में 42.4 टन की वृद्धि हुयी है। भारतीय वनों की कुल वार्षिक कार्बन स्टॉक में वृद्धि 21.3 मिलियन टन है, जोकि लगभग 78.1 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर है। कार्बन सिंक एक प्राकृतिक या कृत्रिम भंडार है जो कि वातावरण से अनिश्चित अवधि के लिए कुछ मात्रा में कार्बनयुक्त रासायनिक अवयवों का भंडारण करता है। कार्बन सिंक द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को निष्कासित करने की प्रक्रिया, कार्बन प्रच्छादन (कार्बन सिक्वेस्टेशन) के रूप में जानी जाती है। कार्बन प्रच्छादन प्रक्रिया के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के संचय को कम या नियंत्रित करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड का वायुमंडल को उद्गहण कर दीर्घकाल तक उसका भण्डारण किया जाता है। यह वनारोपण, कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज से किया जाता है। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रीन इंडिया मिशन, 2030 तक 10 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष लगाने की योजना का कार्यान्वयन चल रहा है. इससे 2.5 बिलियन टन का कार्बन सिंक निर्मित करने का लक्ष्य है। लेकिन यह लक्ष्य तभी पूरा होगा जबकि कैम्पा जैसे वन क्षतिपूर्ति कार्यक्रम के लिये निर्धारित धनराशि का अन्यत्र दुरुपयोग नहीं होगा। विभिन्न राज्यों से शिकायतें आ रही हैं
िकइस फंड का अधिकतर हिस्सा अफसरों के विदेश दौरे पर, कार्यालयों में एसी लगाने और टाइल्स लगाकर बाथरूम को चमकाने में खर्च हुआ। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को तक हस्तक्षेप करना पड़ा और सरकार को कैम्पा फण्ड पर निगरानी रखने और उसका सदुपयोग सुनिश्चित करने का अदेश देनापड़ा।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर,
डिफेंस
कालोनी रो, देहरादून।
मोबाइल-9412324999
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