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Monday, February 24, 2020

जानलेवा सड़कें यमलोक के द्वार तक  



महायुद्धों से अधिक सड़क हादसों में मौतें
-जयसिंह रावत
भारत के आज तक के युद्धों में जितने सैनिक शहीद नहीं हुए, उससे ज्यादा लोग सड़कों पर दुर्घटना में एक साल में मारे जाते हैं, इसलिए चिंतित सुप्रीम कोर्ट को यहां तक कहना पड़ा कि देश में इतने लोग सीमा पर या आतंकी हमले में नहीं मरते जितने सडकों पर गड्ढों की वजह से मर जाते हैं। पिछले एक दशक में ही भारत में लगभग 14 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए हैं। इन मौतों का दुष्प्रभाव तो मृतकों के परिवार पर पड़ना स्वाभाविक ही है साथ ही देश की प्रगति भी इन हादसों से प्रभावित होती है। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार भी वर्ष 2018 में वर्ष 2017 की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में 0.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई। विश्व सड़क सुरक्षा से संबंधित ब्रासिलिया घोषणा-पत्र में भारत ने सड़क दुर्घटनाओं में 2020 तक 50 प्रतिशत तक कमी लाने का संकल्प जताया था। जबकि सड़क दुर्घटनाओं के दौरान होने वाली मौतों में भी 2.37 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हो गई।


सड़कों पर लाशों का अम्बार

भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम् आंकड़ों के अनुसार देश में सड़क दुर्घटनाओं में वर्ष 2018 के दौरान 0.46 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 में हुई 4,64,910 की तुलना में इस वर्ष 4,67,044 सड़क दुर्घटनाएं देखने को मिली हैं। इसी अवधि के दौरान मृत्यु दर में भी लगभग 2.37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।  2018 में 1,51,471 लोग मारे गए, जबकि 2017 में 1,47,913 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे। सड़क दुर्घटनाओं में लगने वाली चोटों में 2017 के मुकाबले 2018 में 0.33 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई। मंत्रालय की यह रिपोर्ट राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस विभाग द्वारा उपलब्ध की गई जानकारी के आधार तैयार की गई है। सड़क दुर्घटनाओं के दौरान होने वाली मौतों में भी 2.37 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुई। कुल दुर्घटनाओं का 30.2 प्रतिशत दुर्घटनाएं राष्ट्रीय राजमार्गों पर दर्ज की गईं।

विश्व स्वाथ्य संगठन का अनुमान अधिक

विश्व स्वास्थ्य संगठन की सड़क दुर्घटना से संबंधित ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट में यह आंकड़ा लगभग 2,99,000 बताया गया है। संगठन के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में सड़क दुर्घटना में मरने वालों की दर प्रति 100,000 पर 6 है। इसी तरहसेव लाइफ फाउंडेशनके आंकड़ों के अनुसार भारत में सड़क दुर्घटना में पिछले 10 सालों में 13,81,314 लोगों की मौत और 50,30,707 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। देश में हर 3.5 मिनट में एक व्यक्ति की मौत सड़क दुर्घटना में हो जाती है।
राज मार्ग ज्यादा लहूलुहान

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार कुल दुर्घटनाओं में 30.2 प्रतिशत दुर्घटनाएं राष्ट्रीय राजमार्गों पर दर्ज की गईं जबकि ये सड़कें ग्रामीण सड़कों के मुकाबले ज्यादा चौड़ी एवं गड्ढा रहित होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार राज्यों के संदर्भ में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं तमिलनाडु में हुई। इस मामले में मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जबकि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के मामले उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 5 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाओं वाला शहर चेन्नई है, इन दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतों की संख्या दिल्ली में दर्ज की गई। वर्ष 2018 में 18-45 के आयु वर्ग के लोग सड़क दुर्घटनाओं के सबसे अधिक शिकार हुए। कुल दुर्घटनाओं में 84.7 प्रतिशत मौतें, आयु वर्ग 18-60 के मध्य दर्ज की गई।

अकेली सरकार दोषी नहीं

सड़क दुर्घटनाओं के लिए सरकार और खराब सड़कों को देाष देना तो आसान है, मगर लोग इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से साफ बच निकलते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में शहरीकरण की तीव्र दर, सुरक्षा के पर्याप्त उपायों का अभाव, नियमों को लागू करने में विलंब, नशीली दवाओं एवं शराब का सेवन कर वाहन चलाना, तेज गति से वाहन चलाते समय हेल्मेट और सीट-बेल्ट पहनना आदि हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘‘ग्लोबल स्टेटस ऑन रोड सेफ्टी रिपोर्ट 2018’’ के अनुसार सड़क हादसों में होने वाली कुल मौतों में 4 प्रतिशत शराब पीकर वाहन चलाने वालों की होती हैं। इसी प्रकार दुर्घटना में मरने वाले पुरुषों की संख्या लगभग 86 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं की संख्या लगभग 14 प्रतिशत है। जाहिर है कि महिलाएं अधिक सावधानी से वाहन चलाती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 64.4 प्रतिशत दुर्घटनाओं का कारण वाहनों की सीमा से अधिक गति रही है। जबकि सड़कों पर जहां तहां वाहन चालकों को गति सीमा में रहने के लिए सचेतक चिह्न और सावधानी बोर्ड लगे होते हैं। वाहन चलाना आए या आए, लोग आरटीओ दफ्तरों में रिश्वत देकर लाइसेंस बनवा लेते हैं। इसी तरह नाबालिग बच्चों को चलाने के लिए वाहन थमा दिए जाते हैं, जिससे अन्य लोग भी बिना गलती किए दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सड़क हादसों से होने वाली मौतों में चार पहिया वाले हल्के वाहनों के चालकों की मौतें 6 प्रतिशत, चार पहिया वाले हल्के पैसेंजर वाहनों के सवारों की 12 प्रतिशत, दो या तीन पहिया वाहन चालकों की सर्वाधिक 40 प्रतिशत, साइकिल चालकों की 2 प्रतिशत, पैदल चलने वालों की 10 प्रतिशत, भारी वाहन चालकों की 11 प्रतिशत, बस चालकों एवं पैसेंजरों की 7 प्रतिशत तथा अन्य की 13 प्रतिशत मौतें दर्ज हुई हैं। कुल मिलाकर मृत्यु दर प्रति लाख जनसंख्या पर 12 आंकी गई है।

 
2020 तक मौंतें घटाने का लक्ष्य फिसला
ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में 18-19 नवंबर, 2015 को दूसरा वैश्विक उच्च स्तरीय सड़क-सुरक्षा सम्मेलन आयोजित हुआ था और इसका सह-प्रायोजक विश्व स्वास्थ्य संगठन था। भारत ब्रासीलिया सड़क सुरक्षा घोषणा का हस्ताक्षरकर्त्ता भी है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इस सम्मेलन  में 2200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन के अंत में ब्रासीलिया सड़क-सुरक्षा घोषणा को अपनाते हुए सभी ने अपने देशों में एक दशक में सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या को आधा करने का संकल्प लिया। 

सुप्रीम कोर्ट भी आहत
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने 7 दिसम्बर 2018 को  एस राजशेखरन की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि देश में इतने लोग सीमा पर या आतंकी हमले में नहीं मरते जितने सडकों पर गड्ढों की वजह से मर जाते हैं। कोर्ट ने कहा लोगों का इस तरह मरना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे पहले भी सड़कों पर गड्ढों में गिरने से हुई मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा था कि वो सड़कों पर गड्ढों को हटाने को लेकर गंभीर नहीं है। केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था कि दुर्घटनाओं का केवल आर्थिक प्रभाव ही नहीं पड़ता बल्कि यह दुर्घटना पीड़ित के परिजनों पर मानसिक और भावनात्मक रूप से भी असर डालती है। 

वैश्विक सम्मेलन में भारत का संकल्प
स्टॉकहोम मेंवैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सड़क सुरक्षा पर तीसरे उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन 2030’ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने वर्ष 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के निर्धारित लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। गडकरी ने कहा कि वर्तमान में भारत में 200 मिलियन से ज्यादा वाहन हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाएं देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का कारण हैं। मंत्री का कहना था कि उनका मंत्रालय वाहन चालन प्रशिक्षण को मजबूत करने के लिए राज्यों और वाहन निर्माताओं के सहयोग से काम कर रहा है। वाहन चालन प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय वाहन चालन प्रशिक्षण केंद्र और वाहन चालन प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है जो कलात्मक बुनियादी ढांचे के के साथ मॉडल वाहन चालन प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में काम करते हैं।

2020 तक मौंतें घटाने का लक्ष्य फिसला

ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में 18-19 नवंबर, 2015 को दूसरा वैश्विक उच्च स्तरीय सड़क-सुरक्षा सम्मेलन आयोजित हुआ था और इसका सह-प्रायोजक विश्व स्वास्थ्य संगठन था। भारत ब्रासीलिया सड़क सुरक्षा घोषणा का हस्ताक्षरकर्त्ता भी है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इस सम्मेलन  में 2200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन के अंत में ब्रासीलिया सड़क-सुरक्षा घोषणा को अपनाते हुए सभी ने अपने देशों में एक दशक में सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या को आधा करने का संकल्प लिया।

सुप्रीम कोर्ट भी आहत

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने 7 दिसम्बर 2018 को  एस राजशेखरन की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि देश में इतने लोग सीमा पर या आतंकी हमले में नहीं मरते जितने सडकों पर गड्ढों की वजह से मर जाते हैं।
कोर्ट ने कहा लोगों का इस तरह मरना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे पहले भी सड़कों पर गड्ढों में गिरने से हुई मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा था कि वो सड़कों पर गड्ढों को हटाने को लेकर गंभीर नहीं है। केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था कि दुर्घटनाओं का केवल आर्थिक प्रभाव ही नहीं पड़ता बल्कि यह दुर्घटना पीड़ित के परिजनों पर मानसिक और भावनात्मक रूप से भी असर डालती है।

वैश्विक सम्मेलन में भारत का संकल्प
स्टॉकहोम मेंवैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सड़क सुरक्षा पर तीसरे उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन 2030’ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने वर्ष 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के निर्धारित लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया।गडकरी ने कहा कि वर्तमान में भारत में 200 मिलियन से ज्यादा वाहन हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाएं देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का कारण हैं। मंत्री का कहना था कि उनका मंत्रालय वाहन चालन प्रशिक्षण को मजबूत करने के लिए राज्यों और वाहन निर्माताओं के सहयोग से काम कर रहा है। वाहन चालन प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय वाहन चालन प्रशिक्षण केंद्र और वाहन चालन प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है जो कलात्मक बुनियादी ढांचे के के साथ मॉडल वाहन चालन प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में काम करते हैं।
जयसिंह रावत
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
उत्तराखण्ड
मोबाइल-09412324999
jaysinghrawat@gmail.com

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