जमीनों को नीलाम करने वाला पहला राज्य बनेगा उत्तराखण्ड
-जयसिंह रावतऔद्योगिकीकरण के नाम पर देश के पहले भूमि सुधार कानून ‘जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम’ में निरन्तर छेड़छाड़ कर धन्ना सेठों को गरीब किसानों की जमीनें हड़पने की खुली छूट देने के बाद अब प्रदेश की त्रिवेन्द्र सरकार की नजर निरन्त घटती जा रही सरकारी जमीनों पर भी पड़ गयी है। जिस उत्तर प्रदेश ने अन्य राज्यों को अपने भूमि सुधार कानून से नया रास्ता दिखाया था उसी उत्तर प्रदेश से जन्मा हुआ उत्तराखण्ड राज्य अब त्रिवेन्द्र सिंह रावत की रहनुमाई में देश को सरकारी जमीनों की नीलामी का नया रास्ता भी दिखाने जा रहा है। वर्तमान सरकार का औद्योगिक निवेश का अभियान तो औंधे मंुह गिर ही चुका है, लेकिन अब सरकार अपनी जमीनों को नीलाम कर अपनी आय बढ़ाने की सोच रही है। अगर सभी सरकारीजमीनें बिक गयीं तो भविष्य में विकास कार्यों के लिये आने वाली सरकारों के पास जमीन ही नहीं बचेगी।
Article of Jay Singh Rawat published by Navjivan Sunday e paper on 16 Feb 2020 |
स्वतंत्रता के बाद प्रत्येक राज्य सरकारों को भूमि के असमान वितरण, भूमिहीनता तथा सामंती शोषण को समाप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कानून-बनाने की जरूरत थी। इस उद्देश्य से संयुक्त प्रान्त के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त की अध्यक्षता में जमींदारी उन्मूलन समिति का गठन किया गया, जिसने 1948 में अपनी सिफारिशें दीं। इन सिफारिशों के आधार पर उत्तर प्रदेश विधान सभा ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक 1950 को पारित किया था, जिसे राष्ट्रपति ने 24 जरवरी, 1951 अनुमादित किया, जो कि 26 जनवरी 1951 के गजट में प्रकाशित हुआ। उत्तराखण्ड राज्य के अलग होने पर जनता की मांग पर नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व वाली पहली निर्वाचित सरकार ने उत्तराखण्ड के पहाड़ी किसानों की जमीनों को धन्ना सेठों के हाथ बिकने और किसानों को भूमिहीन होने से बचाने के लिये उत्तराखंड में साल 2002 में राज्य से बाहरी व्यक्तियों के लिए भूमि खरीद की सीमा 500 वर्ग मीटर थी और फिर 2007 में यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी गई थी। लेकिन त्रिवेन्द्र सरकार ने 2018 में उत्तराखंड (उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950)(अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश, 2001) में संशोधन कर उक्त कानून में धारा धारा 154 (2) जोड़ते हुए पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा खत्म कर दी। इस के साथ ही 143 (क) जोड़ कर कृषकों की जमीनों को अकृषक बाहरी लोगों द्वारा उद्योगों के नाम पर खरीद कर उसका भूउपयोग परिवर्तन आसान कर दिया है। तिवारी सरकार ने हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एण्ड लैण्ड रिफॉर्म एक्ट 1972 की धारा 118 की तरह ही उत्तराखण्ड में भी बाहरी लोगों द्वारा जमीनों की खरीद फरोख्त नियंत्रित करने के लिये जमीेदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था कानून में संशोधन किया था ताकि बाहरी धन्ना सेठ भोले-ंभाले काश्तकारों की जमीनें खरीद कर उन्हें भूमिहीन न बना दें। लेकिन अब तो त्रिवेन्द्र सरकार ने रही सही बंदिशें भी समाप्त कर पहाड़ की जमीनें लूटने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। यह वही सरकार है जो 2022 तक राज्य के किसानों की आय दोगुनी करने का दावा कर रही है और जिसे हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कृषि कर्मण पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था।
अगर इस पहाड़ी राज्य में जमीनों की नीलामी की गयी तो इससे विकास कार्यों के लिये भविष्य की सरकारों के लिये जमीन ही नहीं बचेगी और मजबूरन उन्हें जबरन निजी जमीनों का अधिग्रहण करना पडेगा। राज्य में सरकारी 71 प्रतिशत भूभाग पर वनभूमि और जंगल हैं जबकि 13 प्रतिशत निजी जमीन है। शेष 17 प्रतिशत सरकारी जमीन पहाड़ी और नदी नालों की होने के कारण उपयोग लायक जमीन ही बहुत कम बची हुयी है। इस बचीखुची जमीन पर भी बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे हैं।
सरकारी भूमि का नीलाम होने का हम विरोध करते हैं उत्तराखंड समाज संगठन 9910970777
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