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Saturday, February 15, 2020

A million dollar question; who is the replacement of Trivendra Rawat in Uttarakhand



दिल्ली चुनाव के बाद उत्तराखण्ड में शक्ति परीक्षण की नौबत
दिल्ली चुनाव में भाजपा की करारी हार का सीधा असर उत्तराखण्ड में नजर आने लगा है। भाजपा नेतृत्व द्वारा संगठन को चुस्त दुरस्त करने एवं राज्यों में अपनी गिरती स्थिति को संभालने के लिये भारी फेरबदल के संकेतों के साथ ही उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की कुर्सी डोलते देख सत्ताधारी दल में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिये शक्ति परीक्षण की नौबत गयी है। इसका जीता जागता उदाहरण आनन फानन में 17 फरबरी को दिल्ली आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम को माना जा रहा है, जिसमें प्रदेश के सभी 57 विधायकों एवं मंत्रियों को बुलाया गया है। इस शक्ति परीक्षण ने अगस्त 2008 की घटना की वह याद ताजा कर दी जब भाजपा के 24 विधायक नेतृत्व परिवर्तन को लेकर दिल्ली पहुंच गये थे। उन विधायकों में सबसे मुखर त्रिवेन्द्र रावत ही थे।
पुलवामा आतंकी हमले की बरसी 14 फरबरी को गयी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री समेत समूचे राष्ट्र ने सीआरपीएफ के अपने उन 40 जवानों को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित कर दी और उत्तराखण्ड सरकार अब 17 फरबरी को श्रद्धांजलि अर्पित करने दिल्ली जा रही है। दिल्ली स्थित राज्य के रेजिडंेट कमिश्नर द्वारा भेजे गये निमंत्रणपत्र के अनुसार यह श्रद्धांजलि कार्यक्रम 17 फरबरी को राष्ट्रीय पुलिस मेमोरियल, चाणक्यपुरी, नयी दिल्ली में रखा गया है जिसमें मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत होंगे। इसमें सभी सांसद, विधायक और मंत्रियों को शामिल होने के लिये कहा गया है।
उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन और इस सिलसिले में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को दिल्ली बुलाये जाने की चर्चाओं के बीच अचानक इस तरह श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन राजनीतिक गलियारों में मुख्यमंत्री के खेमे की ओर से शक्ति परीक्षण ही माना जा रहा है। हैरानी का विषय तो यह है कि शनिवार दोपहर तक विधायकों को इस कार्यक्रम की जानकारी तक नहीं थी। पूछने पर कुछ भाजपा विधायकों ने अनविज्ञता प्रकट करने के साथ ही दिल्ली में इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन को अनावश्यक भी बताया है। भाजपा के ही सूत्रों के अनुसार यह पहला अवसर है, जबकि उत्तराखण्ड की ओर से इतने बड़े पैमाने पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जा रहा है। आयोजन भी अचानक तीन दिन बाद आयोजित किया जाना भी किसी के गले नहीं उतर रहा है। इससे पहले अप्रैल 2010 में छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा जिले में माओवादी हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गये थे, लेकिन तब भी किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार के सभी मंत्रियों और पार्टी विधायकों को लेकर श्रद्धांजलि सभा आयोजित नहीं की थी। हाल में मुख्यमंत्री द्वारा भाजपा के सभी विधायकों के साथ विकास कार्यों पर चर्चा करना भी विधायकों को अपने पक्ष में बनाये रखने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री को अब तक अपने मंत्रिमण्डल के विस्तार की अनुमति मिलने को भी नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं से जोड़ा जा रहा है।
भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता के अनुसार श्रद्धांजलि सभा के बहाने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का खेमा शक्ति परीक्षण करना चाहता है। त्रिवेन्द्र खेमा दिल्ली में पार्टी नेतृत्व के समक्ष यह जताना चाहता है कि भाजपा के विधायक उनके कहने पर कुछ भी कर गुजरने के लिये तैयार हैं। जानकारों के अनुसार त्रिवेन्द्र को हटाये जाने की स्थिति में केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, सतपाल महाराज और धनसिंह रावत में से गढ़वाल के ही किसी नेता की लाटरी खलने वाली है। चूंकि कुमाऊं मण्डल के बंशीधर भगत को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा चुका है, इसलिये अब मुख्यमंत्री गढ़वाल से ही बनना है।


भाजपा के सूत्र यहां तक बताते हैं कि कुमॉंऊं से पार्टी अध्यक्ष पद पर एक ब्राह्मण को लिया जा चुका है इसलिये अब बारी गढ़वाल के किसी ठाकुर की सकती है। इसलिये अब चयन का दायरा सिमट कर सतपाल महाराज और धनसिंह रावत के बीच सकता है। सतपाल महाराज का विशाल व्यक्तित्व और अनुभव होने के साथ हीजनाधार भी है लेकिन पार्टी में  उनका विरोध भी कम नहीं है। जैसे कि हरक सिंह रावत फिलहाल त्रिवेन्द्र विरोधी खेमे में अवश्य हैं मगर वह सतपाल महाराज का भी शायद ही समर्थन करेंगे। महाराज से उनका छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। जबकि धनसिंह रावत अनुभव में बहुत कम होने के बावजूद त्रिवेन्द्र की ही तरह आरएसएस के पुराने प्रचारक रहे हैं और पार्टी में संगठन महामंत्री का जैसा पद धारणकर चुके हैं। वह त्रिवेन्द्र से ज्यादा पढ़े लिखे होने के साथ ही ज्यादा व्यवहारिक और नम्र भी माने जाते हैं।
अगस्त 2008 में भी भाजपा के 24 विधायकों ने दिल्ली में शक्ति परीक्षण किया था जिसमें सबसे मुखर त्रिवेन्द्र रावत ही थे। लेकिन इस समय उल्टा हो रहा है। त्रिवेन्द्र रावत अपनी कुर्सी बचाने के लिये दिल्ली में भाजपा विधायकों का जमावड़ा कर रहे हैं। देखना यह है कि उसमें कितने विधायक शामिल होते हैं। गौरतलब है कि अब तक प्रदेश में भाजपा का कोई भी मुख्यमंत्री अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका।


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