Article of Jay Singh Rawat carried by Nav Jivan Sunday e paper (Associate Journals Ltd) on 29 February 2020 |
सरकार की नाक के नीचे आबकारी विभाग के अनधिकृत अड्डे
-जयसिंह रावत
किसी सरकारी विभाग के
अधिकारी अगर समानान्तर
निजी कार्यालय चला
रहे हों तो
उन अधिकारियों की
नीयत पर तो
सवाल उठेगा ही
लेकिन अपने कर्मचारियों
को निजी कार्यालय
खोलने की छूट
देने वाले विभाग
की कार्य प्रणाली
और इस गोरखधन्धे
के बारे में
जान कर भी
अनजान बनने वाली
सरकार की नीयत
पर भी सवाल
उठने लाजिमी ही
हैं। ऐसे अनधिकृत
कार्यालय भी किसी
और ने नहीं
बल्कि उत्तराखण्ड सरकार
के उस आबकारी
विभाग के निरीक्षकों
ने खोले हुये
हैं जिनकी जिम्मेदारी
शराब की दुकानों
पर निगरानी करने,
तस्करी और अवैध
शराब रोकने की
है। ये अड्डे
अगर सचमुच नेकनीयती
से खुले होते
तो गत वर्ष
फरवरी में हरिद्वार
और सहारनपुर में
जहरीली शराब से
100 से अधिक लोग
तथा सितम्बर में
भाजपा सरकार की
नाक के नीचे
देहरादून में 6 लोग नहीं मारे
जाते। इस जहरीली
शराब काण्ड का
सरगना कोई और
नहीं बल्कि भाजपा
का ही नेता
था।
उत्तराखण्ड
के आबकारी विभाग
के 40 सर्किलों में
तैनात आबकारी निरीक्षकों
में से लगभग
30 निरीक्षक तहसीलों या कलेक्ट्रेटों
के सरकारी भवनों
के बजाय निजी
भवनों पर समानान्तर
निजी कार्यालय चला
रहे हैं। इस
सम्बन्ध में अपर
आबकारी आयुक्त (प्रशासन) उदयसिंह
राणा का कहना
था कि आबकारी
निरीक्षकों को कार्यालय
चलाने का किराया
विभाग की ओर
से नहीं मिलता
है। राणा के
अनुसार रुड़की, रानीखेत और
उधमसिंहनगर सहित कुल
6 स्थानों पर आबकारी
निरीक्षकों को सरकारी
भवनों पर कार्यालय
उपलब्ध करायेे गये हैं।
बाकी निरीक्षक निजी
तौर पर कार्यालय
चला रहे हैं
तो वह उनकी
जानकारी में नहीं
है। राणा के
अनुसार प्रदेश में शराब
की तस्करी पर
रोक लगाने, सरकार
का राजस्व बढाने
और शराब व्यवसाय
पर पैनी नजर
रखने के लिये
आबकारी विभाग में निरीक्षकों
की नियुक्ति की
जाती है। राज्य
में आबकारी निरीक्षकों
के कुल 73 पद
श्रृजित हैं जिनमें
से 40 निरीक्षक इतने
ही आबकारी सर्किलों
में तैनात हैं।
जबकि बाकी निरीक्षक
2 मण्डलीय और 4 जिला
स्तरीय सेक्टरों और शराब
की तस्करी रोकने
के लिये बने
13 चैक पोस्टों पर तैनात
हैं।
सरकार और विभागीय
उच्चाधिकारियों की नाक
के नीचे प्रदेश
की राजधानी देहरादून
के माता मंदिर
मार्ग पर भी
तीन आबकारी निरीक्षकों
के निजी कार्यालय
खुले हुये हैं,
जिनका किराया विभाग
तो नहीं दे
रहा मगर भवन
स्वामी को नियमित
रूप से मिल
रहा है। सवाल
उठ रहा है
कि आखिर निजी
भवनों का किराया
किसकी जेब से
जा रहा है।
महंगाई के इस
दौर में लगता
नहीं कि ये
निरीक्षक अपनी जेब
से सरकारी काम
पर खर्च कर
रहे होंगे। एक
अन्य आबकारी अपर
आयुक्त ए. आर.
सेमवाल से जब
इस सम्बन्ध में
बात की गयी
तो उनका कहना
था कि अगर
निरीक्षक सचमुच अपने बैठने
और सरकारी काम
निपटाने के लिये
सरकारी कार्यालय चाहते हैं
तो उन्हें एसडीएम
से निवेदन कर
तहसीलों में आसानी
से कार्यालय भवन
मिल जायेगा। लेकिन
वे फील्ड ड्यूटी
के नाम पर
सरकारी दफ्तर में बैठने
से परहेज करते
हैं। अगर सरकारी
दफ्तर में बैठेंगे
तो प्रतिदिन हाजिरी
भी बायोमीट्रिक से
लगानी पड़ेगी।
लेकिन शराब के
धन्धे के जानकारों
के अनुसार इन
निजी कार्यालयों का
मकसद सरकारी काम
नहीं बल्कि शराब
व्यवसायियों से निजी
डीलिंग करना है
और इनका किराया
भी नम्बर दो
की कमाई से
या फिर करोबारियों
द्वारा चुकाया जाता है।
जानकारों का यह
भी कहना है
कि दरअसल ये
कार्यालय न होकर
अड्डे या ठिकाने
हैं जहां हर
रोज बड़ी-बड़ी
रकमों का वारा
न्यारा होता है।
सरकार द्वारा शराब
पर अत्यधिक टैक्स
बढ़ाये जाने के
कारण कुछ व्यवसायी
घाटा पूरा करने
के लिये तस्करी
या किसी न
किसी तरह टैक्स
चोरी करके पूरा
कर रहे हैं
और यह काम
इन्हीं निजी कार्यालयों
के सहयोग से
संभव होता है।
चूंकि ऐसे अनधिकृत
कार्यालयों में सत्ताधारी
दल की भी
मिलभगत होती है
इसलिये ये विजिलेंस,
ई.डी. और
आयकर विभाग के
राडार से भी
बाहर होते हैं।
गत वर्ष फरवरी
में सहारानपुर और
हरिद्वार जिलों में जहरीली
शराब पीने से
लगभग 110 लोग मारे
गये थे। उसके
बाद सितम्बर में
देहरादून के शराब
काण्ड में 6 लोग
मारे गये जिसमें
भाजपा नेता अजय
सोनकर उर्फ घोंचू
पकड़ा गया था।
जाहिर है कि
सत्ताधारी दल से
जुडे माफिया की
आबकारी विभाग के इन
अड्डों से मिली
भगत होती है।
शराब माफिया और तस्करों
से आबकारी विभाग
तथा सत्ताधारी भाजपा
का गठजोड़ की
पोल 2001 में पहले
मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी ने
विधानसभा में अपने
अंतिम भाषण में
यह कह कर
खोली थी कि
उन्हें पद से
हटाने में उनके
दल के लोगों
ने शराब एवं
खनन माफिया का
सहयोग लिया था।
शराब सिण्डिकेट से
रिश्तों का खुलासा
दूसरी बार 30 मई
2002 को भाजपा के प्रदेश
कार्यालय में हुयी
27 लाख की चोरी
की अंदरूनी जांच
के सार्वजनिक होने
के बाद हुआ
था। उस चोरी
की जांच रिपोर्ट
में बताया गया
था कि चुराई
गयी 27 लाख की
राशि शराब व्यवसायियों
द्वारा कार्यालय भवन खरीदने
के लिये दी
गयी 30 लाख की
राशि में से
ही थी।
शराब माफिया और भाजपाइयों
के बीच चोली
दामन का साथ
26 फरवरी 2010 को तब
भी बेपर्दा हुआ
जबकि तत्कालीन भाजपा
सरकार ने उत्तर
प्रदेश एवं उत्तराखण्ड
सहित कई राज्यों
में शराब व्यवसाय
के बेताज के
बादशाह रहे गुरुदीप
सिंह उर्फ पौंटी
चड्ढा के दायें
हाथ सुखदेव सिंह
नामधारी को अल्पसंख्यक
आयोग का अध्यक्ष
नियुक्त कर दिया
था। बाद में
12 जनवरी 2010 को दिल्ली
के महरौली में
हुये खूनी संघर्ष
में पौंटी चड्ढा
और उसके भाई
के मारे जाने
पर सुखदेव सिंह
नामधारी तथा राज्य
सरकार द्वारा उसे
उपलब्ध कराया गया गनर
गिरफ्तार हुये थे।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव,
शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून।
Mobile-9412324999
jaysinghrawat@gmail.com