नागरिकता संशोधन कानून को समझना भी जरूरी
-जयसिंह रावत
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को
लेकर सारा देश
उबल रहा है।
नागरिकों को अपने
अधिकारों और संविधान
के प्रति जागरूक
होना जरूरी भी
है, लेकिन किसी
भी प्रतिक्रिया से
पहले वस्तुस्थिति की
जानकारी उससे भी
जरूरी है। भेड़
चाल से न
तो किसी पक्ष
का और ना
ही देश का
भला होने वाला
है। खास कर
वैचारिक विरोध के लिये
आपा खो कर
सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान
पहुंचाना राष्ट्र के प्रति
गैर जिम्मेदाराना व्यवहार
है। यही नहीं
क्रिया की प्रतिक्रिया
में आन्दोलन को
साम्प्रदायिक रंग देना
राष्ट्रवाद नहीं बल्कि
राष्ट्रविरोध है।
संवैधानिकता पर सवाल
Jay Singh Rawat Journalist and Author |
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 धर्म
के आधार पर
अवैध घुसपैठियों को
उनकी भारत में
घुसपैठ की तिथि
से नागरिकता के
लिये प्रावधान करने
वाला कानून वर्तमान
परिपेक्ष्य में गैर
जरूरी तो है
ही लेकिन इसकी
संवैधानिकता पर भी
गंभीर सवाल उठने
स्वाभाविक हैं। इस
कानून के कारण
देश में ही
नहीं विदेश में
भी ऐसा संदेश
जा रहा है
मानो कि यह
मौलिक अधिकार हनन
करने वाला और
भारत की सर्वधर्म
समभाव की विश्व
छवि को खराब
करने वाला है।
कुल 6 धाराओं के
इस कानून में
धारा 2 से अवैध
प्रवासी जिसे याघुसपैठिया
की परिभाषा में
स्पष्ट किया गया
है कि 31 दिसम्बर
2014 से पूर्व भारत में
प्रवेश करने वाले
अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान
के हिन्दू, सिक्ख,
बौद्ध, जैन, पारसी
या ईसाई समुदाय
के व्यक्तियों को
अवैध प्रवासी नहीं
माना जायेगा। उल्लेखनीय
है कि भारत
में अवैध प्रवासी
नागरिकता का पात्र
नहीं है। लेकिन
अब सभीगैर मुस्लिम
घुसपैठिये नागरिकता के पात्र
हो जायेंगे।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 में
कुल 6 धारायें हैं।
इस अधिनियम में
अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान
में इन नागरिकों
पर उत्पीड़न तथा
शरणार्थी होनेे का
कोई उल्लेख नहीं
हैै। मूल नागरिकता
अधिनियम 1955 की धारा
2(1) (ख) में अवैध
प्रवासी की परिभाषा
दी गयी है,
जिसे घुसपैठिया कहा
जा सकता है।
समाज सेवी संस्था
मौलाना अबुल कलाम
आजाद अल्पसंख्यक कल्याण
समिति के अध्यक्ष
तथा कानून के
जानकर एडवोकेट नदीम
उद्दीन कहते हैं
कि इस कानून
में स्पष्ट किया
गया हैै कि,
ऐसा व्यक्ति जो
वैैध पासपोर्ट या
अन्य यात्रा दस्तावेजों
के बिना भारत
में प्रवेश करता
है या वैध
पासपोर्ट या अन्य
यात्रा दस्तावेजांे से प्रवेश
करने वाला ऐसा
व्यक्ति है जो
दस्तावेजों में इजाजत
की अवधि के
बाद भी रह
जाता है, शामिल
हैै। धारा 1 में
नाम तथा विस्तार
के बाद नये
नागरिकता अधिनियम की धारा
2 से धारा 2(1) (ख)
में परन्तुक जोड़कर
यह अपवाद जोड़ा
गया है कि
अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान
के हिन्दू, सिख,
बौद्ध, जैैन, पारसी या
ईसाई समुदाय के
ऐसे व्यक्ति जो
31 दिसम्बर 2014 को या
उससे पूर्व भारत
में प्रविष्ट हुआ
और केन्द्र सरकार
द्वारा पासपोर्ट तथा विदेशी
विषयक अधिनियम से
छूट दी गयी
हैै तो वह
अवैध प्रवासी नहीं
माना जायेगा।
अवैध घुसपैठ हो जायेगी वैध
यद्यपि इस कानून
से घुपैठियों को
वैैध करने का
रास्ता तो खुल
ही रहा है
फिर भी, इसके
लिये भी छूट
वाले नियम एवं
आदेश लागू करने
हांेगे तभी इसका
लाभ मिलेगा। नये
नागरिता अधिनियम की धारा
3 से नयी धारा
6ख जोड़ी गयी
हैै। जिससे उक्त
व्यक्तियों द्वारा आवेदन करने
पर देशीयकरण द्वारा
नागरिकता के लिये
प्रमाण पत्र सम्बन्धित
अधिकारियों द्वारा प्रदान करने
का प्रावधान किया
गया है। यह
धारा पूर्वोतर के
अनुसूची-6 और इनर
लाइन वाले राज्यांे
पर नहीं लागू
होगी। नये नागरिकता
अधिनियम की धारा
6 से तीसरी अनुसूची
में देशीयकरण से
नागरिकता की उल्लेखित
शर्तों में अफगानिस्तान,
बांग्लादेश, पाकिस्तान के अवैध
प्रवासियों के लिये
छूट का प्रावधान
जोेड़ा गया हैै,
लेकिन इस छूट
के अतिरिक्त शेष
शर्तों का पालन
उन्हें भी नागरिकता
के लिये करना
होगा। यद्यपि ऐसे
नागरिकों को 11 वर्ष भारत
में रहने की
शर्त के स्थान
पर पांच वर्ष
का ही पालन
करना होगा।
दोहरी नागरिकता समाप्त करने का प्रावधान
नये अधिनियम की धारा
4 से 7घ नयी
उपधारा जोड़कर भारत के
कार्ड धारक विदेशी
नागरिकों की दोहरी
नागरिकता समाप्त करने का
प्रावधान शामिल किया गया
हैै। यह नागरिकता
16 देशों को अनिवासी
भारतीयोें को देने
का प्रावधान है
जिन्हेें चुनाव और सरकारी
नौैकरी सम्बन्धी अधिकार नहीं
मिलते हैं। नये
नागरिकता अधिनियम में धारा
5 से धारा 18(2) उपधारा
जोड़कर रजिस्ट्रेशन एवं
देशीयकरण प्रमाण पत्र की
शर्तों व प्रक्रिया
के नियम बनाने
का प्र्रावधान किया
गया हैै।
धर्म के आधार पर उत्पीड़न का उल्लेख नहीं
इस अधिनियम में कहीं
भी शरणार्थी तथा
धर्म के आधार
पर उत्पीड़न का
उल्लेख नहीं किया
गया है, जैसा
कि प्रचारित किया
जा रहा है।
यहां बता दें
कि शरणार्थियों तथा
वैध रूप से
भारत में रह
रहे विदेशियों के
लिये पहले से
ही नागरिकता का
प्रावधान है, जिसके
लिये इस कानून
की आवश्यकता ही
नहीं है। वैसे
भी भी नागरिकता
प्रदान करना एक
निरन्तर प्रकृया है। इस
कानून से किसी
भी व्यक्ति को
स्वयं नागरिकता नहीं
मिलेगी बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान
या बांग्लादेश का
घुसपैठिया बताते हुये उसे
आवेदन करना पड़ेगा
तथा नागरिकता की
शर्ते पूर्ण करने
व उसका आवेदन
अधिकारियों द्वारा स्वीकार करने
पर ही नागरिकता
मिलेगी। इस कानून
से पहले भी
लम्बी अवधि के
वीजा धारक विभिन्न
पात्र शरणार्थी अधिकारियों
के नागरिकता के
लिये चक्कर लगा
रहे हैं और
उन्हें नागरिकता नहीं मिल
पा रही है।
अब इस लाइन
में लाखों लोग
और बढ़ जायंेगे।
अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ सकते हैं
इस कानून से 9 प्रतिशत
से अधिक हिन्दू
आबादी वाले बंग्लादेश,
2 प्रतिशत आबादी वाले पाकिस्तान
तथा लगभग 1 प्रतिशत
हिन्दू आबादी वाले अफगानिस्तान
में हिन्दुओं का
उत्पीड़न बढ़ सकता
है और वहां
के कट्टरवादी एवं
अलगावादी लोग उन्हेें
भारत जाकर रहने
को विवश कर
सकते हैं। इसके
अतिरिक्त अन्य देशों
में हिन्दुओं के
प्रति उत्पीड़न व
नफरत बढ़ने तथा
भारत की धार्मिक
सदभाव व प्रेम
की संस्कृति तथा
छवि पर प्रतिकूल
असर पढ़ने की
भी संभावनायें रहेगी।
हिंसा और तोड़फोड़ हो सकती है घातक
एक वर्ग विशेष
के प्रति भेदभाव
के बावजूद देश
में लगभग सभी
वर्गों का और
खास कर बुद्धिजीवियों
का इस आन्दोलन
को व्यापक समर्थन
मिल रहा है।
इसी का नतीजा
है कि 2014 तक
देश में एनआरसी
लागू करने की
घोषणा करने वाली
सरकार भी यह
कहते हुये पीछे
हट गयी कि
एनआरसी पर अभी
कोई निर्णय ही
नहीं हुआ। लेकिन
साम्प्रदायिकता से ऊपर
उठ चल रहे
इस जनान्दोलन को
तभी तक व्यापक
समर्थन मिलेगा जब तक
कि यह शांतिपूर्ण
और लोकतांत्रिक ढंग
से चलेगा। वैसे
भी असामाजिक तत्व
इस जनजागरण को
साम्प्रदायिक रंग देने
पर तुले हुये
हैं। तोड़फोड़ और
हिंसा के नतीजे
बहुत खतरनाक हो
सकते हैं।
जयसिंह रावत
ई-11,फ्रेण्ड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून
मोबाइल-&9412324999
jaysinghrawat@gmail.com
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