पिछले दरवाजे से एनआरसी की तैयारी
-जयसिंह रावत
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को
लेकर देशभर में
फैली आशंकाओं का
कोहरा अभी थमा
भी नहीं कि
केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय
जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का
खाता भी खोल
दिया। ऊपर से
सरकार की ओर
से आ रहे
विरोधाभासी बयानों ने स्थितियों
को स्पष्ट करने
के बजाय आशंकाओं
की धंुंध को
और अधिक गहरा
दिया। जानकारों का
मानना है कि
एनपीआर अपने आप
में एनआरसी का
पिछला दरवाजा ही
है जिसे एनआरआइसी
कहा जा रहा
है।
Jay Singh Rawat Journalist and Author |
एनआरसी
पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के परस्पर विरोधी बयान
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर या
एनपीआर कोई पहली
बार नहीं हो
रहा है मगर
इस बार नागरिकता
संशोधन कानून के तत्काल
बाद यह कार्य
शुरू कराने एवं
गृहमंत्री और प्रधानमंत्री
के परस्पर विरोधी
बयानों के कारण
भी स्थिति और
अधिक अस्पष्ट एवं
भ्रामक हो गयी
है। प्रधानमंत्री ने
22 दिसम्बर को दिल्ली
के रामलीला मैदान
में आयोजित जनसभा
को संबोधित करते
हुये नागरिकता कानून
के बारे में
फैली भ्रांतियों को
दूर करने के
लिये स्पष्ट रूप
से कहा कि,
‘‘मैं 130 करोड़ देशवासियों
को कहना चाहता
हूं कि कहीं
पर भी एनआरसी
शब्द पर कोई
चर्चा नहीं हुयी,
काई बात नहीं
हुयी। सिर्फ जब
सुप्रीमकोर्ट ने कहा
तो आसाम के
लिये करना पड़ा।’’ जबकि गृृहमंत्री अमित शाह
ने नवम्बर में
ही लोकसभा में
कहा था कि
‘‘एनआरसी की प्रकृया
देशभर में शुरू
होगी और उस
समय असाम में
भी यह प्रकृया
फिर से की
जायेगी। .....इन सारे
लोगों को एनआरसी
में समाहित करने
की व्यवस्था है
ही है।’’ राष्ट्रपति रामनाथ
कोविन्द ने भी
20 जून 2019 को संसद
में अपने अभिभाषण
में कहा था
कि, ‘‘मेरी सरकार
ने तय किया
है कि घुसपैठ
की समस्या से
जूझ रहे क्षेत्रों
में नेशनल रजिस्टर
ऑफ सिटिजंस की
प्रकृया को
प्राथमिकता के आधार
पर अमल में
लाया जायेगा। ’’ राष्ट्रपति
का अभिभाषण कैबिनेट
द्वारा ही अनुमोदित
किया जाता है।
पिछले ही महीने
नवम्बर में झारखण्ड
की चुनावी सभाओं
में गृहमंत्री अमित
शाह ने कहा
था कि देश
में एनआरसी लागू
कर चुन-चुन
कर विदेशी घुसपैठियों
को बाहर कर
दिया जायेगा। इसी
माह 4 दिसम्बर को
अमित शाह के
आफिशियल ट्विटर पर भी
कहा गया था
कि, ‘‘हम सम्पूर्ण
देश में एनआरसी
का कृयान्वयन सुनिश्चित
कर बौद्ध, हिन्दू
और सिखों के
अलावा बाकी एक-एक घुसपैठियों
को बाहर करेंगे।’’ नागरिकता
कानून पर बबाल
मचने के बाद
इस ट्वीट को
19 दिसम्बर को हटा
दिया गया। यही
नहीं इसी साल
लोकसभा चुनाव में भाजपा
के घोषणापत्र में
भी देशभर में
चरणबद्ध तरीके से एनआरसी
लागू करने का
वायदा किया गया
था।
सीएए के बाद एनपीआर
केन्द्र सरकार ने नागरिकता
संबंधी 1955 के कानून
में संशोधन कराने
के तत्काल बाद
एनपीआर की घोषणा
भी कर डाली।
इस योजना के
तहत 1 अप्रैल से
लेकर 30 सितम्बर 2020 तक देश
में रह रहे
प्रत्येक व्यक्ति का डाटा
तैयार किया जाना
है। पहली
बार एनपीआर 2011 की
जनगणना के दौरान
तैयार किया गया
था जिसे 2015 में
अपडेट किया गया।
अब इसे 2021 की
जनगणना के लिए
इसे अद्यतन किया
जाना है। पिछली
बार की तुलना
में इस बार
कुछ अतिरिक्त जानकारियां
भी मांगी जा
रही हैं। जिस
कारण देश में
कई तरह की
आशंकाएं उभर रही
हैं। जनसंख्या गणना
का यह काम
दो चरणों में
किया जाएगा। पहले
चरण के तहत
अप्रैल-सितंबर 2020 तक प्रत्येक
घर और उसमें
रहने वाले व्यक्तियों
की सूची बनाई
जाएगी। असम को
छोड़कर देश के
अन्य हिस्सों
में एनपीआर रजिस्टर
के अद्यतन का
काम भी इसके
साथ किया जाएगा।
जबकि दूसरे चरण
में 9 फरवरी से
28 फरवरी 2021 तक पूरी
जनसंख्या की गणना
का काम होगा।
जनगणना प्रक्रिया पर 8754.23 करोड़
रूपए तथा एनपीआर
के अद्यतन पर
3941.35 करोड़ रूपए का
खर्च आएगा। इस
काम को पूरा
करने के लिए
30 लाख कर्मियों को देश
के विभिन्न हिस्सों
में भेजा जाएगा।
जनगणना 2011 के दौरान
ऐसे कर्मियों की
संख्या 28 लाख थी।
सरकार का कहना
है कि जनसंख्या
से जुड़े सभी
आंकड़े मंत्रालयों, विभागों,
राज्य सरकारों और
अनुसंधान संगठनों सहित सभी
हितधारकों और उपयोगकर्ताओं
के लिए उपलब्ध
कराए जाएंगे।
पिछले दरवाजे से एनआरसी लाने की तैयारी
एनपीआर पर भी
संदेह करने के
पर्याप्त कारण हैं।
31 जुलाई, 2019 के ऑफिशियल
गजट नोटिफिकेशन के
अनुसार असम में
‘सिटीजनशिप रूल्स 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ
सिटीजन्स एण्ड इश्यू
ऑफ नेशनल आइडेंटिटी
कार्ड्स) का नियम
3 ‘नेशनल रजिस्टर फॉर इंडियन
सिटीजन्स (एनआरआइसी) की अवधारणा
के बारे में
है। वहीं इसका
उप-नियम 4 ‘नेशनल
रजिस्टर ऑफ इंडियन
सिटीजन्स की तैयारी’ की बात कहता
है। अभी तक
भले ही आफिशियली
एनआरसी की घोषणा
नहीं हुयी हो
मगर एनआरआइसी की
तैयारी तो शुरू
हो ही गयी।
अंतर यह है
कि इसे एनआरसी
के बजाय एनआरआइसी
कहा जा रहा
है। एनआरसी अभी
तक असम के
लिए ही सीमित
रहा है जो
1985 के असम समझौते
के तहत ही
लाया गया था।
गजट नोटिफिकेशन में
कहा गया है
कि एनआरआइसी की
तैयारी की दिशा
में पहला कदम
‘पॉपुलेशन रजिस्टर’ होगा। वर्ष 2003 के
नागरिकता संशोधन अधिनियम के
नियम 3 का उप-नियम (5) कहता है,
‘भारतीय नागरिकों के स्थानीय
रजिस्टर में जनसंख्या
रजिस्टर से उपयुक्त
वेरिफिकेशन के बाद
लोगों का विवरण
शामिल होगा। एनआरआइसी
को चार हिस्सों
में बांटा जाएगारू
(अ) भारतीय नागरिकों
का स्टेट रजिस्टर
(ब) भारतीय नागरिकों
का डिस्ट्रिक्ट रजिस्टर
(स) भारतीय नागरिकों
का सब-डिस्ट्रिक्ट
रजिस्टर (द) भारतीय
नागरिकों का स्थानीय
रजिस्टर। ‘इसमें वे विवरण
होंगे जो केंद्र
सरकार रजिस्ट्रार जनरल
ऑफ सिटीजन्स रजिस्ट्रेशन
की सलाह से
निर्धारित करेगी।
अतिरिक्त पूछताछ पर भी सवाल
एनपीआर
2020 में माता-पिता
के जन्म स्थान
की जो जानकारी
मांगी गई है,
वह 2003 नियम में
नहीं थी। 2003 के
नियम में जनसंख्या
रजिस्टर में 12 तरह के
विवरण मांगे गये
थे जिनमें नाम,
पिता का नाम,
माता का नाम,
लिंग, जन्म स्थान,
जन्मतिथि, आवास का
पता (स्थायी और
अस्थायी), वैवाहिक स्थिति (यदि
विवाहित हैं तो
पति-पत्नी का
नाम), शरीर पर
पहचान का कोई
चिह्न, नागरिक के रजिस्ट्रेशन
की तिथि, रजिस्ट्रेशन
का सीरियल नंबर
और नियम 13 के
तहत उपलब्ध राष्ट्रीय
पहचान संख्या शामिल
थी। लेकिन अब
ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार
जनरल एण्ड सेंसस
कमिश्नर की वेबसाइट
को अपडेट कर
उसमें एनपीआर के
बारे में ‘राष्ट्रीयता’ जैसी 15 तरह की
जानकारियों का उल्लेख
है। केन्द्र सरकार
द्वारा एनपीआर तैयार करने
के लिये जिला
अधिकारियों को भेजे
गये दिशा निर्देश
के पृष्ठ संख्या
2, कॉलम 3 में कहा
गया है, ‘माता-पिता के
जन्म का स्थान,
यदि भारत में
है तो राज्य
और जिले का
नाम लिखें और
यदि भारत से
बाहर का है,
तो देश का
नाम लिखें और
जिले का कॉलम
हाइफन (-) लगाकर खाली छोड़ें।
संदिग्धता की तलवार नागरिकों के सिर पर भी
2003 के नियम के
अनुसार एनपीआर में जिन
लोगों के नाम
दर्ज होंगे, उन्हें
संदिग्ध नागरिक माना जा
सकता है, लेकिन
नागरिकता पर बने
1955 के मुख्य कानून में
‘संदिग्ध नागरिक’ की परिभाषा
नहीं है और
2003 के नियम में
भी ‘संदिग्ध नागरिकता’ की कोई परिभाषा
नहीं है। दरअसल
यह कानून स्थानीय
अधिकारी को असीमित
अधिकार देता है।
इससे 2003 रूल्स के नियम
4 के अनुसार लोकल
रजिस्ट्रार संदिग्ध नागरिकता तय
करेगा। लेकिन इसका आधार
क्या होगा, यह
स्पष्ट नहीं है।
इसका दुष्प्रभाव असम
में कारगिल युद्ध
में शामिल रहे
सेना के रिटायर
कैप्टन मोहम्मद सनाउल्लाह और
पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन
अली अहमद के
वंशजों पर देखा
जा चुका है।
सनाउल्लाह डिटेंशन कैंप में
रह चुके हैं
जो कि हाइकोर्ट
के आदेश पर
रिहा हुये हैं।
जबकि सरकार कह
रही है कि
देश में डिटेंशन
कैंप हैं ही
नहीं।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9421324999