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Friday, June 19, 2020

भारत ने नेपाल जैसा दोस्त भी खोया 



Article of Jay Singh Rawat appeared in Shah Times on 20 June 20

और अब नेपाल भी भारत की घेरेबंदी में शामिल
-जयसिंह रावत
लद्ाख की गलवान घाटी में बलात् कब्जा जमाये बैठे चीनी सैनिकों द्वारा भारत 20 निहत्थे सैनिकों को मौत के घाट उतारे जाने की विभत्स एवं कायराना घटना से भारत उबरा भी नहीं था कि सदियों पुराने मित्र नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा क्षेत्र पर अपना दावा जताने वाले नये राजनीतिक नक्शे से संबंधित संविधान संशोधन को संसद में पारित कराने के कुछ ही घंटों के अन्दर राष्ट्रपति से भी अनुमोदित करा कर भारत की परेशानी और बढ़ा दी। लिपुलेख-लिम्पियाधुरा सीमा विवाद पर थल सेनाध्यक्ष एम.एम नरवाणे ने नेपाल-चीन की मिली भगत की जो आशंका प्रकट की थी उसकी पुष्टि अब नेपाल की इस टाइमिंग से स्वतः ही हो गयी है।
भारत और नेपाल की सीमाएं मार्च 1816 में अस्तित्व में आयी सुगोली की संधि के समय पूर्व में मेची और पश्चिम में काली नदी के बीच तय हो चुकी थीं। उसके बाद राजा सुरेन्द्र विक्रम शाह से लेकर 2008 में माओवादियों द्वारा राजशाही की समाप्ति तक हिन्दू देश नेपाल में दर्जनभर से ज्यादा शासक हुए। सन् 2008 राजशाही की समाप्ति और लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत के बाद नेपाल में 11 सरकारें आयीं मगर नेपाल को अपना राजनीतिक नक्सा अद्यतन करने की याद तब आयी जबकि चीन लद्दाख के गलवान घाटी क्षेत्र में लगभग 37 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा जमा कर वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने का बलात् प्रयास कर रहा था। यही नहीं नेपाल ने नये नक्शे में कूट यांग्ती को काली नदी बता बता दिया, जबकि सुगोली की संधि में वर्णित सीमा तय करने वाली काली नदी लिम्यिाधुरा से नहीं बल्कि काला पानी से निकलने वाली जल धारा है। इस नदी में कूटी यांग्ती गुंजी में आकर मिलती है। नेपाल के नये नक्शे में भारत के जनजातीय गांव गंुंजी, कूटी और नाबी भी गये हैं। इन गावों में दर्जनभर से अधिक आइएएस, आइपीएस, पीसीएस, पीपीएस तथा अन्य भारतीय सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारी हैं।
भारत के लिये सबसे चिन्ता का विषय यह है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत, चीन और नेपाल की सीमाओं के इस ट्राइजंक्शन का अकेला ऐसा मोर्चा था जिस पर भारत की सबसे मजबूत स्थिति थी। आज जब गलवान घाटी विवाद के चलते सम्पूर्ण भारत चीन सीमा पर भारी तनाव है, तब नेपाल द्वारा खड़े किये गये विवाद के कारण भारत का मजबूत गढ़ कालापानी क्षेत्र भी विवादित हो गया और यही चीन चाहता भी था। भारत-चीन के बीच 1962 के युद्ध में इस मोर्चे पर सबसे अधिक मजबूत था। चीन वैसे ही चमोली जिले में बाड़ाहोती क्षेत्र में हर साल घुसपैठ करता रहता है।

नेपाल और भारत के बीच जो सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और नृवंशविज्ञान की असाधारण समानताएं हैं वे चीन और नेपाल के बीच नहीं हैं। बावजूद इसके अगर नेपाल अपने स्वाभाविक सहयोगी से दूर और सांकृतिक रूप से एकदम भिन्न चीन की ओर झुक रहा है तो इस स्थिति के लिये केवल नेपाली नेतृत्व की अदूरदर्शिता और अवसरवादिता को ही दोषी ठहराना उचित नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब 2014 में 3 अगस्त को नेपाल पहुंचे थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री सुशील कुमार कोइराला ने प्रोटोकॉल तोड़ कर स्वयं हवाई अड्डे पर भारतीय प्रधानमंत्री को स्वागत किया था। उस समय नरेन्द्र मोदी अकेले विदेशी प्रधानमंत्री थे जिन्हें नेपाली संविधानसभा और संसद को संबोधित करने का अवसर मिला था। आखिर इन 6 सालों में ऐसा क्या हो गया कि भारत का युगों-युगों का मित्र नेपाल पराया हो गया।
दोनों देशों के सम्बन्ध बिगाड़ने और चीन की ओर झुकाव के लिये जिस कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को सबसे बड़ा खलनायक माना जा रहा है, उन्होंने 1996 में भारत और नेपाल के बीच हुई ऐतिहासिक महाकाली संधि में बड़ी भूमिका निभाई थी। 2007 तक नेपाल के विदेश मंत्री रहते हुये उनके भारत से काफी अच्छे सम्बन्ध माने जाते थे। सन् 2015 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से वह तीन बार भारत चुके हैं और  उनकी फरबरी 2016 की भारत यात्रा के दौरान ही परिवहन, व्यापार और जल ऊर्जा समेत 9 समझौते सपन्न हुये थे।
New map aprooved by Nepalese parliamnet 
भारत और नेपाल के बीच ताजा स्थिति केलिये वाम और दक्षिणपंथ के वैचारिक क्लेश को नकारा नहीं जा सकता। नेपाल जहां 2008 में राजशाही को त्यागने के साथ ही हिन्दू राष्ट्रवाद से बाहर निकल चुका हैं। जबकि भारत अब हिन्दू राष्ट्रवाद की ओर बढ़ रहा है। भारत और नेपाल के सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों के बावजूद अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी बिरादरीवाद नेपाल कोे चीन के करीब ले जाता है। नेपाली कम्युनिस्ट कभी नहीं चाहेंगे कि जिस तरह भारत में साम्प्रदायिक धु्रवीकरण हो रहा है वैसा ही हिन्दूवाद पुनः नेपाल में भी होने लगे। सन् 2008 में राजशाही के खात्मे के 12 साल के अन्तराल में नेपाल में 11 सरकारें बन और बिगड़ चुकी हैं। इन 11 सरकारों में 7 सरकारें कम्युनिस्टों ने मिल कर बनायी हैं। इससे नेपाल की जनता के राजनीतिक झुकाव का भी अन्दाजा लगाया जा सकता है। आरएसएस की सन्तान भाजपा का कम्युनिस्टों से दुराव नया नहीं है।
मधेशी आन्दोलन और फिर 23 सितम्बर 2015 से शुरू हुयी नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी ने भारत और नेपाल के रिश्तों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया। हालांकि भारत ने उस आर्थिक नाकेबंदी से संबंध होने का खण्डन तो अवश्य किया, मगर मधेशी आन्दोलन को भारत का समर्थन छिपा नहीं रहा। लगभग 3 महीनों तक चली नाकेबंदी से नेपाल के नागरिकों को जिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा, उससे वहां भारत विरोध को बहुत बल मिला। वहां के नागरिकों को डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस एवं केरोसिन के लिये कई दिनों तक लाइनों में लगना पड़ा। लोगों को चोर बाजारी में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 400 रुपये तक अदा करनी पड़ी। हालात बद्तर होने परनेपाल ऑयल कारपोरेशनको चीन की तेल कंपनीपेट्रो चाइनासे 28 अक्टूबर 2015 को नेपाल की कुल जरूरत का एक तिहाई तेल आपूर्ति करने का करार करना पड़ा। चीन इसकी फिराक में तो था ही इसलिये उसने संकट की इस घड़ी में नेपाल को अनुबंधित मात्रा के अतिरिक्त 13 लाख लीटर पेट्रोल मुफ्त में भी दे दिया। चूंकि उस समय सिंधुपाल चौक जिला स्थित तातोपानी बार्डर प्वाइंट का मार्ग क्षतिग्रस्त था, इसलिये चीन को उस संकट में केरुंग बार्डर से तेल की आपूर्ति करनी पड़ी थी।
हालांकि 25 अप्रैल 2015 के विनाशकारी भूकंप में भारत ने ‘‘आपरेशन मैत्री’’ चला कर आपदाग्रस्त नेपाल में युद्धस्तर पर बचाव और राहत का अभियान चलाया। लेकिन यह मैत्री अभियान भी भारत-नेपाल के बिगड़े हुये रिश्तों को पटरी पर नहीं ला पाया। के.पी. शर्मा ओली ने भारत विरोध के सहारे ही नेपाल में अपनी राजनीतिक साख मजबूत की है। उन्होंने वहां ऐसा ही माहौल तैयार किया जैसा कि भारत में राजनीतिक लाभ के लिये मुसलमानों के खिलाफ तैयार किया जाता है। वर्ष 2018 के संसदीय चुनावों में भारत विरोध के दम पर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी भारी मतों से विजयी हुई थी।
वास्तव में नाकेबंदी करने के लिये भारत को जिम्मेदार बताने वाले नेपाली प्रधानमंत्री ओली अकेले नहीं थे, बल्कि भारत में भी सुप्रीम कोर्ट के जज रहे जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और भारत के रक्षा मामलों के विशेषज्ञ मेजर जनरल (सेनि) अशोक के. मेहता ने इस नाकेबंदी को आने वाले बिहार चुनाव में लाभ की कामना से जोड़ा था। नेपाली टाइम्स अखबार के संपादकीय में यहां तक लिखा गया कि सुशील कुमार कोइराला को हटा कर ओली को प्रधानमंत्री बनाये जाने से नाराज होकर भारत ने नाकेबंदी की है।
नरेन्द्र मोदी 2014 से लेकर अब तक 4 बार नेपाल जा चुके हैं। उनकी 2014 में पहली दो दिवसीय नेपाल यात्रा में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने 1950 की मैत्री संधि और अन्य द्विपक्षीय समझौतों की समीक्षा, समायोजन एवं उन्हें अद्यतन करने पर सहमत जताई थी। लेकिन यह सहमति अब तक व्यवहारिक धरातल पर नहीं उतर सकी। नेपाल की युवा पीढ़ी माओवादी आन्दोलन के दिनों से सीमा स्तम्भों को उखाड़ कर भारत के प्रति अपना रोष प्रकट करती रही है। युवा चाहते हैं कि नेपाल को एक सम्प्रभु राष्ट्र होने के नाते भारत की ओर से बराबरी का दर्जा मिले और उसे हथियार खरीदने के लिये भी भारत की अनुमति लेनी पड़े। इसलिये 1950 की मैत्री संधि की समीक्षा कर उसे वर्तमान परिस्थितियों तथा समानता के आधार पर पुनरीक्षित करने की मांग नेपाल की ओर से ही नहीं बल्कि भारत की ओर से भी की जाती रही है। नेपाल का नया साम्यवादी माहौल और भारत के शासकों का अहंकारी स्वभाव ने भी रिश्तों को बिगाड़ने का काम किया।

जयसिंह रावत
पत्रकार
-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शहनगर, डिफेंस कोलोनी रोड,
देहरादून। उत्तराखण्ड।
मोबाइल-9412324999








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