-जयसिंह रावत
V P Menon |
नेहरू का कद
छोटा दिखाने के
लिये मौजूदा सरकार
सरदार पटेल की
गगनचुम्बी प्रतिमा स्थापित करने
के साथ ही
आधुनिक भारत के
निर्माण और राष्ट्रीय
एकीकरण में उनकी
एकमात्र भूमिका साबित करने
के लिये कोई
कसर नहीं छोड़
रही है मगर
अखण्ड भारत के
निर्माण में नेहरू
ना सही मगर
उसे वप्पला पंगुन्नी
मेनन (पी.वी.
मेनन) की भूमिका
भी कहीं नजर
नहीं आ रही
है। जबकि सच्चाई
यह है कि
अगर सरदार पटेल
का 5 सौ से
अधिक रियासतों को
जोड़ कर एक
अखण्ड भारत बनाने
का सपना था
तो उस सपने
का व्यवहारिक धरातल
पर उतारने में
महत्वपूर्ण भूमिका मेनन ने
ही निभाई थी।
वैसे भारत के
एकीकरण में नेहरू
और माउंटबेटन के
विजन की अनदेखी
हीं की जा
सकती है। दुनिया
के सबसे बड़े
लोकतंत्र भारत का
राजनीतिक भूगोल गढ़ने के
लिये भारतवासी सदैव
सरदार बल्लभ भाई
पटेल के कृतज्ञ
तो जरूर रहेंगे
ही लेकिन सरदार
पटेल के सपने
को साकार करने
वाले पी.वी.
मेनन को अगर
हम भूल जांय
तो इससे बड़ी
कृतघ्नता और कुछ
नहीं होगी।
अगर भारत में 500 से ज्यादा देश होते तो ?
15 अगस्त
1947 को जब ब्रिटिश
पार्लियामेंट द्वारा पारित भारत
स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत
देश आजाद हुआ
तो उसके साथ
ही लगभग 565 देशी
राज्य, जिनकी पैंरामौंटसी या
सार्वभौम सत्ता ब्रिटिश ताज
में निहित थी,
ब्रिटिश नियंत्रण से मुक्त
हो गये थे।
विदित है कि
1857 की गदर के
बाद जब ब्रिटिश
सरकार ने भारत
का शासन ईस्ट
इंडिया कम्पनी से लेकर
अपने अधीन किया
तो अंग्रेजों ने
देशी शासकों का
राज्यहरण कर अपने
में मिलाने के
बजाय संधि के
जरिये उनके साथ
सुरक्षा और सहयोग
की गारण्टी के
बदले उनकी पैरामौंटसी
ब्रिटिश ताज में
निहित करना शुरू
कर दिया था।
इस संधि के
तहत सुरक्षा, विदेशी
मामले और संचार
जैसे कुछ विषयों
को अपने हाथ
में लेकर ब्रिटिश
शासन ने बाकी
सारे अधिकारों समेत
अपने राज्य में
शासन करने का
अधिकार देशी शासकों
को दे दिया
था। लेकिन भारत
स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत
भारत को स्वतंत्रता
मिलने के साथ
ही देशी शासकों
के साथ अंग्रेजी
शासन की वह
संधि भी समाप्त
हो गयी थी।
इसलिये सार्वभौम सत्ता को
पुनः वापस पा
चुके राज्यों को
भारत संघ में
मिलाना अत्यंत कठिन कार्य
था जिसे सरदार
बल्लभ भाई पटेल,
उनके अधीन देशी
राज्यों के मामलों
के सचिव पी.वी. मेनन
और स्वयं गर्वनर
जनरल माउंटबेटन ने
बेहद चुतराई, हिम्मत
और दृढ़ इच्छा
शक्ति से संभव
बनाया। जम्मू-कश्मीर का
घटनाक्रम हमारे सामने है।
सिक्कम को बड़ी
मुश्किल से चीन
ने भारत का
अंग माना, मगर
उसी अरुणाचल का
भारत के साथ
होना अभी भी
नहीं पचता है।
अगर सरदार पटेल
और पी.वी.
मेनन की जोड़ी
माउंटबेटन के सहयोग
और जवाहर लाल
नेहरू के वरदहस्त
से उस समय
भारत के एकीकरण
में कामयाब नहीं
होती तो कल्पना
की जा सकती
है कि आज
भारत की स्थिति
क्या होती!
भारत जब आजाद
हुआ तो उस
समय गृहमंत्री सरदार
पटेल और मेनन
ने बहुत ही
चतुराई से ऐसा
इंस्टूªमेंट ऑफ
एक्सेशन का संधिपत्र
तैयार किया किया
जिस पर देशी
राज्यों के शासक
जल्दी सहमत हो
गये और हैदारबाद,
ट्रावनकोर और गोवा
जैसे जो राज्य
सहमत नहीं हुये
उन्हें सहमत होने
के लिये विवश
कर दिया गया।
इस संधि के
तहत देशी शासकों
को सुरक्षा, यातायात,
संचार और वैदेशिक
मामलों के अलावा
पूर्ण स्वायत्तता दी
गयी जिससे वे
भारत गणराज्य के
साथ बने रहने
के लिये पाबंद
हो गये। महाराजा
हरिसिंह के साथ
हुयी यही संधि
आज जम्मू-कश्मीर
के मामले में
भारत के पास
एक पुख्ता दस्तावेज
है, जिस पर
मेनन ने ही
हस्ताक्षर कराये थे। उसके
बाद धीरे-धीरे
ऐसा वातावरण तैयार
किया गया कि
राजा-महाराजाओं वाला
प्रोटोकाल तो रहने
दिया मगर खर्च
चलाने के लिये
प्रिवीपर्स की व्यवस्था
कर राज्यों का
पूर्ण विलय कर
दिया गया। माउंटबेटन
द्वारा हस्ताक्षरित इंस्टूªमेंट ऑफ
एक्सेशन की संधि
से पहले राजाओं
से ‘‘स्टैंड स्टिल’’ संधि पर हस्ताक्षर
करवा लिये गये
थे, जिस पर
भारत सरकार की
ओर से पी.वी.मेनन
के ही हस्ताक्षर
थे। उस समय
पटेल ने देशी
शासकों का ध्यान
राष्ट्रभक्ति की ओर
आकर्षित करते हुये
कहा था कि,
‘‘हम इतिहास के
एक अत्यन्त महत्वपूर्ण
युग में हैं
और आपस में
मिल कर हम
देश को पुनः
उन्नति के शिखर
तक पहुंचा सकते
हैं। एकता के
अभाव में हम
नई विपत्तियों में
फंस सकते हैं।
एकता के सूत्र
में न बंधे
तो घोर अव्यवस्था
फैलेगी जो कि
छोटे-बड़े सभी
को नष्ट कर
देगी।’’
माउंटबेटन ने भी पटेल की राह आसान की
इसके बाद 25 जुलाइ 1947 को
‘चैम्बर और प्रिंसेज’ की बैठक में
माउंटबेटन ने सरदार
पटेल का यही
अनुरोध दुहराते हुये साफ
कहा कि अब
ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों
की मदद के
लिये नहीं आयेगी
और इन राज्यों
की जो व्यवस्था
ब्रिटिश सरकार के साथ
थी वही अगर
नयी भारत सरकार
के साथ नहीं
बनायी गयी तो
ऐसी अव्यवस्था फैलेगी
जिसका सबसे बुरा
प्रभाव देशी राज्यों
पर पड़ेगा। माउंटबेटन
ने साफ कहा
था कि जिस
प्रकार राजा अपनी
प्रजा को छोड़
कर नहीं जा
सकते उसी प्रकार
आप अपने पड़ोसी
भारत गणराज्य को
छोड़ कर अन्यत्र
जाने की नहीं
सोच सकते। पंडित
जवाहर लाल नेहरू
ने भी साफ
कह दिया था
कि भारत किसी
भी देशी राज्य
को स्वतंत्र रहने
की मान्यता नहीं
देगा और अगर
किसी विदेशी सरकार
ने ऐसा किया
तो उसे भारत
के साथ शत्रुतापूर्ण
कार्यवाही माना जायेगा।
इसका नतीजा यह
हुआ कि 15 अगस्त
1947 तक जूनागढ़, हैदराबाद और
कश्मीर जैसे कुछ
बड़े राज्यों को
छोड़ कर लगभग
136 राज्यों ने इंस्ट्रूमेंट
ऑफ एक्सेशन संधि
पर हस्ताक्षर कर
लिये थे।
देशी शासक संविधान सभा में आने को विवश किये गये
कैबिनेट मिशन की
संस्तुतियों के आधार
पर भारतीय संविधान
का निर्माण करने
वाली संविधान सभा
का गठन जुलाई,
1946 ई० में किया
गया। संविधान सभा
के सदस्यों की
कुल संख्या 389 निश्चित
की गई थी,
जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के
प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर
क्षेत्रों के प्रतिनिधि
एवं 93 देशी रियासतों
के प्रतिनिधि थे।
जवाहर लाल नेहरू
ने उस समय
देशी राज्यों के
शासकों से संविधानसभा
में अपने प्रतिनिधि
भेजने का अनुरोध
किया तो अपना
स्वतंत्र और सार्वभौम
अस्तित्व बनाये रखने के
इरादे से कई
शासकों ने नेहरू
के अनुरोध पर
रुचि नहीं दिखाई।
देशी शासकों की
संस्था ‘चैम्बर ऑफ प्रिंसेज,’
जिसे ‘नरेन्द्र मण्डल
’भी कहा गया,
के चान्सलर एवं
भोपाल के नवाब
ने न केवल
इसका विरोध किया
अपितु चैम्बर से
इस्तीफा तक दे
दिया। फिर भी
बीकानेर के महाराजा
ने सबसे पहले
अपने प्रतिनिधि भेजे।
उसके बाद महाराजा
पटियाला ने अपने
प्रतिनिधि भेजे तो
फिर 28 अपैल
1947 तक बड़ोदा, जयपुर, कोचीन
तथा रीवा आदि
के प्रतिनिधि में
संविधान सभा में
शामिल हो गये।
इधर भेपाल के
नवाब की जगह
पर पटियाला के
महाराजा को नरेन्द्र
मण्डल का चांसलर
चुन लिया गया,
जिन्होंने भारत के
हित में कई
कार्य किये। इस
प्रकृया में भी
सरदार पटेल और
मेनन का महत्वपूर्ण
योगदान रहा।
साधारण
क्लर्क से टॉप सिविल सर्वेंट बने पी.वी. मेनन
30 सितम्बर
1893 को मद्रास प्रेसिडेंसी के
ओट्टापलम में एक
शिक्षक के घर
जन्मे वप्पला पंगुन्नी
मेनन ने रेल
इंजन में कोयला
झोंकने वाले कर्मचारी
के रूप में
कार्य करने तथा एक
तम्बाकू कम्पनी में क्लर्क
के रूप में कार्य
करने के बाद
इंडियन सिविल सर्विस में
एक कनिष्ठ पद
से अपने कैरियर
की शुरूआत की।
अपनी मेहनत, लगन
और असाधारण प्रतिभा
के बल पर
वह भारतीय सिवल
सेवा के शीर्ष
तक पहुंचे। वह
अंतिम तीन ब्रिटिश
वायसरायों के संवैधानिक
सलाहकार एवं राजनीतिक
सुधार आयुक्त रहे।
उन्होंने सरदार पटेल के
साथ भारत के
एकीकरण में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई। उनकी असाधारण
सेवाओं के लिये
ब्रिटिश सरकार ने उन्हें
1941 में राव बहादुर
की पदवी देने
के बाद 1946 में
इंडियन सिविल सर्विस काडर भी
दे दिया। माउंटबेटन
के राजनीति सलाहकार
के रूप में
मेनन की असाधारण
क्षमता सरदार पटेल की
नजरों में आ
गयी और उन्होंने
1947 में गृहमंत्री बनने पर
मेनन को देशी
राज्यों से संबंधित
बेहद चुनौतीपूर्ण विभाग
में सचिव के
तौर पर ले
लिया।
पटेल के दाहिने हाथ माने जाते थे मेनन
जोधपुर के महाराजा
हनवन्त सिंह और
माउंटबेटन ने जब
इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन
पर हस्ताक्षर किये
तो उस बैठक
में मेनन भी
मौजूद थे। वह
संधि बहुत चतुराई
से की गयी
थी। मेनन ने
अपनी पुस्तक ‘‘ पालिटिकल
इंटीग्रेशन ऑफ इंडिया’’ में लिखा है
कि हस्ताक्षर के
बाद माउंटबेटन कमरे
से बाहर निकले
तो महाराजा और
मेनन ही कमरे
में रह गये
थे। महाराज हनवन्त
सिंह मेनन से
इतने क्रोधित हो
उठे कि उन्होंने
यह कहते हुये
कि मैं तम्हारे
इशारे पर चलने
वाला नहीं हूं,
अपनी पिस्तौल मेनन
पर तान दी।
इस पर मेनन
ने दो टूक
शब्दों में कह
दिया कि मुझे
धमकाना आपको महंगा
पड़ेगा और अब
संधि हो चुकी
है जिसे किसी
भी हाल में
निरस्त नहीं किया
जायेगा। सरदार पटेल के
साथ मेनन का
जुड़ाव बहुत मजबूत
था। पटेल मेनन
पर बहुत विश्वास
करते थे और
उनकी प्रतिभा का
आदर भी करते
थे। इसी वजह
कई बार मेनन
अपने बॉस के
निर्देशों से भी
आगे जा कर
कदम उठा देते
थे, जिसे बाद
में पटेल का
भरपूर समर्थन मिल
जाता था। जबकि
नेहरू समेत तत्कालीन
राजनीतिक शासक अंग्रेजों
के जमाने की
नौकरशाही पर ज्यादा
विश्वास नहीं करते
थे। मेनन देशी
राजाओं के साथ
पटेल के प्रतिनिधि
के तौर पर
विलय सम्बन्धी डील
किया करते थे।
उन्हें इन शासकों
को शाम दाम
दण्ड भेद से
काबू करने की
महारत हासिल थी।
असाधारण
कूटनीतिज्ञ और साहसी प्रशासक थे मेनन
मेनन केवल कूटनीतिज्ञ
ही नहीं बल्कि
एक दृढ़ प्रशासक
भी थे। उन्होंने
जूनागढ़ और हैदराबाद
के बेकाबू नबाबों
को साधने में
सैन्य विकल्प के
लिये पटेल के
लिये रणनीति बनायी।
उन्होंने पाकिस्तान और कश्मीर
के कबाइली हमले
के बारे में
भी नेहरू और
पटेल के सलाहकार
की भूमिका अदा
की। कैबिनेट ने
26 एवं 27 अक्टूबर 1947 को कश्मीर
के महाराजा हरिसिंह
से इंस्ट्रूमेंट ऑफ
एक्सेशन पर हस्ताक्षर
कराने के लिये
जम्मू भेजा था।
हालांकि इस कार्य
में उन्हें जम्मू
के दो चक्कर
लगाने पड़े मगर
वह अन्ततः हरिसिंह
से संधिपत्र पर
हस्ताक्षर कराने में कामयाब
रहे। इस संधि
के बाद हरिसिंह
न चाहते हुये
भी भारत संघ
के साथ बने
रहने के लिये
पाबंद हो गये
थे। उसी का
नतीजा है कि
जम्मू-कश्मीर आज
भारत का अभिन्न
अंग है।
पटेल के साथ अटूट सम्बन्ध थे मेनन के
ब्रिटिश इंडिया के इतर
देशी राज्यों में
कांग्रेस के बजाय
उसी का आनुसंगिक
संगठन अखिल भारतीय
लोक परिषद सक्रिय
था। परिषद के
पहले अध्यक्ष जवाहरलाल
नेहरू और दूसरे
अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया रहे।
इसी परिषद की
छत्रछाया में राज्यों
के प्रजा मण्डल
सक्रिय थे। मेनन
ने इन प्रजामण्डलों
के जरिये देशी
शासकों को भारत
संघ में विलय
के लिये मजबूर
किया। पटेल के
साथ मेनन के
इतने विश्वासपूर्ण और
अटूट सम्बन्ध थे
कि 1950 में पटेल
की मृत्यु के
बाद मेनन ने
भी भारतीय प्रशासनिक
सेवा से सेवाविृत्ति
ले ली। वह
कुछ समय के
लिये 1951 में उड़ीसा
के राज्यपाल भी
रहे।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
9412324999