Article Published in Rashtriya Sahara
यहां से वहां तक, सुरक्षित नहीं संवासिनें
सरकार का दावा यहां तक होता है कि इन संवासनियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें यहां व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है। लेकिन इन संरक्षण गृहों में संवासनियां कितनी सुरक्षित हैं, उसका खुलासा देहरादून, देवरिया और मुजफ्फरपुर के नारी निकेतनों की हकीकत सामने आ जाने से हो गया है
-जय सिंह रावत
This article was published in
Hastakshep
colmns of Rashtriya Sahara on
11 August 2018
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वरिष्ठ पत्रकार
सरकार की नाक के नीचे प्रदेश की राजधानी देहरादून में बने नारी निकेतन के नारकीय जीवन और संवासनियों के यौन शोषण के बाद अब बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के देवरिया के महिला संरक्षण गृहों में महिलाओं के शोषण का भंडाफोड़ हो जाने से एक बार फिर देश और समाज के सम्मुख सवाल खड़ा हो गया है कि जब कानून के सख्त पहरे और सरकार के संरक्षण वाले नारी संरक्षण गृहों की अभेद्य बताई गई चाहरदीवारी के अंदर भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर सुनसान जगहों, गली-मुहल्लों या अंधेरा होने पर कहीं पर भी महिलाएं कितनी सुरक्षित होंगी? इसके साथ ही यह सवाल उठना भी लाजिम हो गया है कि भारत धरा पर ऐसा अभयारण्य कहां तलाशा जाए जहां नारी की अस्मिता, देह और गरिमा सुरक्षित रखी जा सके। सरकार द्वारा विधवा, परित्यक्ता, निराश्रित, कुंवारी माताओं एवं समाज से प्रताड़ित महिलाओं को सुरक्षित आश्रय देने के उद्देश्य से नारी निकेतन या संरक्षण गृह स्थापित किएगए हैं। इन नारी निकेतनों में महिलाओं और उनके सात वर्ष तक के बच्चों को रखा जाता है। सरकार का दावा यहां तक होता है कि इन संवासनियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें यहां व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है। जिला कलक्टरों के संरक्षण में चलने वाले इन नारी निकेतनों में संवासनियों की सेहत का भी ध्यान रखा जाता है। लेकिन इन संरक्षण गृहों में संवासनियां कितनी सुरक्षित हैं, उसका खुलासा देहरादून, देवरिया और मुजफ्फरपुर के नारी निकेतनों की हकीकत सामने आ जाने से हो गया है।नारी निकेतन की दारुण गाथाउत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून के केदारपुरम में स्थापित नारी निकेतन में नवम्बर, 2015 में एक मूक बधिर संवासिनी का वहां के कर्ताधर्ताओं द्वारा चुपचाप गर्भपात कराए जाने का भंडाफोड़ हो जाने के बाद वहां रह रहीं बेजुबान, असहाय और मनोरोगी महिलाओं का शारीरिक शोषण होने का खुलासा तो हुआ ही लेकिन इसके साथ ही नारी निकेतन के नारकीय जीवन की दारुण कथा भी जगजाहिर हो गई। तीन महीने की गर्भवती एक गूंगी संवासिनी को 15 नवम्बर, 2015 की रात को चुपचाप उठा कर एक निजी अस्पताल में गर्भपात के लिए ले जाया गया और गर्भपात कराने के बाद दूसरे दिन 16 नवम्बर को सुबह-सबेरे वापस नारी निकेतन में छोड़ दिया गया। जाहिर है कि यह सब नारी निकेतन की मुख्य संचालिका और स्टाफ की जानकारी में हुआ।इस मामले में पुलिस की एसआईटी ने मुख्य संचालिका सहित कुल 9 लोगों को गिरफ्तार किया। हैरानी का विषय यह है कि गिरफ्तार कर्मचारियों में नारी निकेतन स्टाफ की 5 महिलाएं भी शामिल थीं। इस मामले में गुरुदास नाम का वह सफाई कर्मी भी पकड़ में आ गया जिसका डीएनए सैंपल संवासिनी के भ्रूण के डीएनए से मेल खाता हुआ पाया गया। जिस तरह से मामला रफा दफा किया जा रहा था, उससे जाहिर होता है कि इस नारी निकेतन में मजबूर और बेसहारा महिलाओं के साथ यह अमानवीय कृत्य न जाने कब से हो रहा था। अगर कर्मचारियों में गुटबंदी नहीं होती तो षडय़ंत्रकारियों ने तो महिला के भ्रूण के साथ ही इस दुराचार के सत्य को भी सदा के लिये दबा दिया था। दरअसल, नारी निकेतन के ही किसी चश्मदीद कर्मचारी ने इस कुकृत्य की पोल निदेशक, समाज कल्याण के नाम गुमनाम पत्र भेज कर खोल दी थी। उस पत्र की प्रतिलिपि लोकल मीडिया के पास पहुंची तो बवाल हो गया। इसके बाद न केवल समाज कल्याण विभाग अपितु जिला प्रशासन और राज्य महिला आयोग भी सक्रिय हो उठा। पुलिस की जांच के दौरान संवासिनी का वह दफन भ्रूण भी मिल गया जिसके डीएनए परीक्षण के बाद कानून के हाथ एक दुराचारी के गिरेबान तक पहुंच गए। नारी निकेतन के शर्मनाक हालातइस कांड का भांडा फूटने के बाद राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सरोजिनी र्केतुरा और समाज कल्याण मंत्री अमृता रावत समेत जो भी वीआईपी और हाकिम नारी निकेतन गया उससे संवासिनियों ने उस नरक से मुक्ति की गुहार लगाई। मूक-बधिरों ने इशारों-इशारों में जो कुछ कहा वह न केवल बेहद शर्मनाक था, बल्कि इस ओर भी इशारा करता था कि यहां इन असहायों के साथ इस तरह का बर्ताव सामान्य बात है, और उनका शोषण करने वालों में सफाई कर्मी गुरुदास अकेला नहीं, बल्कि इन्हें परोसा भी जाता है। इस कांड का पर्दाफाश होने पर नैनीताल हाइकोर्ट के न्यायाधीस जस्टिस वीके बिष्ट ने 4 जुलाई, 2016 को जिला विधियक सेवा प्राधिकरण के सचिव के साथ देहरादून नारी निकेतन का औचक निरीक्षण किया तो उसकी दुर्दशा देख कर वह भी हैरान रह गए। उन्होंने राज्य सरकार को लिखे पत्र में कहा कि यहां केवल 75 संवासिनियों को रखने की क्षमता है, लेकिन मौके पर 101 संवासिनियां पाई गई। जस्टिस बिष्ट ने वहां की पेयजल एवं सफाई व्यवस्था पर भी असंतोष जताया। जस्टिस बिष्ट नारी निकेतन में तब पहुंचे थे जब तक कि राज्य सरकार ने वहां की व्यवस्थाओं में काफी सुधार कर दिया था, और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत स्वयं नारी निकेतन मामलों की निगरानी कर रहे थे। नारी निकेतन में संवासिनियों के साथ दुराचार के मामले पर नैनीताल हाईकोर्ट की खंड पीठ ने राज्य सरकार को यौन शोषण की पीड़ित महिला को 25 लाख रुपये एकमुश्त मुआवजा देने या फिर 11000 रुपये प्रति माह पेंशन के रूप में देने के आदेश दिए थे। हाई कोर्ट ने राज्य में नारी निकेतनों, बाल आश्रय गृहों, दृष्टि बाधितार्थ संस्थाओं जैसे संस्थानों में रह रहे आश्रितों की दुर्दशा पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि निराश्रित बच्चों और महिलाओं को आश्रय देने वाले संस्थान दरअसल, मंदिर के समान हैं लेकिन दुखद है कि इन मजबूर लोगों का उत्पीड़न हो रहा है। जो बाड़ के खेत को खाने का उदाहरण है।संवेदनहीना भी है सवाल सवाल अकेले व्यभिचार का नहीं है। सवाल सरकारों की संवेदनहीनता का भी है। निमयानुसार वहां विधवा, परित्यक्ता, निराश्रित, कुंवारी माताओं एवं समाज से प्रताड़ित महिलाओं को रखा जाता है, लेकिन हैरानी की बात है कि इस नारी निकेतन में सामान्य महिलाओं के साथ मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाओं को भी रखा जाता रहा है। इस तरह विक्षिप्त महिलाओं के साथ सामान्य महिलाओं का भी विक्षिप्त हो जाना स्वाभाविक है। संवासिनियां की शिकायतें रहीं कि विक्षिप्त महिलाएं अक्सर उग्र हो कर हमला कर देती थीं, या दिन हो या रात, किसी भी समय रोने-चिल्लाने या हंसने लग जाती थीं। जबकि मानसिक रोगियों के लिये देहरादून के सेलाकुंई में अलग मानसिक रोग अस्पताल बना हुआ है, मगर इस कांड के सार्वजनिक होने और अदालत के हस्तक्षेप तक पागल महिलाओं को भी स्वस्थ महिलाओं के साथ नारी निकेतन में रखा जाता रहा। नारी निकेतन के कर्मचारियों का कहना है कि ज्यादातर संवासिनियों को मिरगी के दौरे पड़ते हैं। जब यह कांड उछला तो लगभग उसी दौरान चार बीमार संवासिनियों की मौत भी हुई और उन सभी मृत संवासिनियों के मौत के लिये कुपोषण और एनीमिया को जिम्मेदार माना गया।उससे पहले 2009 में भी भुवन चन्द्र खंडूड़ी के मुख्यमंत्रित्वकाल में यहां 4 संवासिनियों की इसी तरह भूख, कुपोषण और एनीमिया से मौत हुई थी। एक संवासिनी का जब पोस्टमार्टम हुआ तो उसके पेट में दवा के अलावा कुछ नहीं मिला। संवासिनी दुराचार कांड का खुलासा होने पर राज्य महिला आयोग की तत्कालीन अध्यक्षा सरोजिनी र्केतुरा 17 नवम्बर, 2015 को नारी निकेतन का मुआयना करने पहुंचीं तो उन्होंने वहां की गंदगी के बारे में कहा कि इतनी बदबू आ रही थी कि वहां खड़े रहना भी मुश्किल हो रहा था। 2015 में सार्वजनिक हुए नारी निकेतन दुराचार मामले को लेकर उस समय विपक्ष में बैठी भाजपा ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ भारी हो-हल्ला किया था, लेकिन अब देवरिया और मुजफ्फरपुर कांडों का खुलासा होने पर बवाल का हथियार कांग्रेस के हाथ लग गया है।
जयसिंह रावत
पत्रकार/लेखक
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव,
शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड,
देहरादून।
09412324999
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