नारी निकेतनों में दुराचार-उत्तराखण्ड से लेकर बिहार तक
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड
सरकार की नाक
के नीचे प्रदेश
की राजधानी देहरादून
में बने नारी
निकेतन के नारकीय
जीवन और संवासनियों
के यौन शोषण
के बाद अब
बिहार के मुजफ्फरपुर
और उत्तर प्रदेश
के देवरिया के
महिला संरक्षणगृहों में
महिलाओं के शोषण
का भण्डाफोड़ हो
जाने से एक
बार फिर देश
और समाज के
सम्मुख सवाल खड़ा
हो गया है
कि जब कानून
के सख्त पहरे
और सरकार के
संरक्षण वाले नारी
संरक्षण गृहों की अभेद्य
बतायी गयी चाहरदीवारी
के अन्दर भी
महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं
तो फिर सुनसान
जगहों, गली-मुहल्लों
या अंधेरा होने
पर कहीं पर
भी महिलाएं कितनी
सुरक्षित होंगी ? इसके साथ
ही यह सवाल
उठना भी लाजिमी
हो गया है
कि भारत की
इस धरती पर
ऐसा अभयारण्य कहां
तलाशा जाय जहां
नारी की अस्मिता,
उसकी देह और
गरिमा सुरक्षित रखी
जा सके। राजनीतिक
दलों के लिये
दुराचार एक हथियार
के सिवा कुछ
और नहीं है
जिसे वे एक
दूसरे के खिलाफ
आजमाते रहते हैं।
Jay Singh Rawat, Journalist and Author |
सरकार द्वारा विधवा, परित्यक्ता,
निराश्रित, कुंवारी माताओं एवं
समाज से प्रताड़ित
महिलाओं को सुरक्षित
आश्रय देने के
उद्देश्य से नारी
निकेतन या संरक्षण
गृह स्थापित किये
गये हैं। इन
नारी निकेतनों में
महिलाओं और उनके
7 वर्ष तक के
बच्चों को रखा
जाता है। सरकार
का दावा यहां
तक होता है
कि इन संवासनियों
को आत्म निर्भर
बनाने के लिये
उन्हें यहां व्यावसायिक
प्रशिक्षण देकर उनके
पुनर्वास की व्यवस्था
की जाती है।
जिला कलक्टरों के
संरक्षण में चलने
वाले इन नारी
निकेतनों में संवासनियों
की सेहत का
भी ध्यान रखा
जाता है। लेकिन
इन संरक्षण गृहों
में संवासनियां कितनी
सुरक्षित हैं उसका
खुलासा देहरादून, देवरिया और
मुजफ्फरपुर के नारी
निकेतनों की हकीकत
सामने आ जाने
से हो गया
है।
उत्तराखण्ड
की अस्थाई राजधानी
देहरादून के केदारपुरम
में स्थापित नारी
निकेतन में नवम्बर
2015 में एक मूक
बधिर संवासिनी का
वहां के कर्ताधर्ताओं
द्वारा चुपचाप गर्भपात कराये
जाने का भण्डाफोड़
हो जाने के
बाद वहां रह
रही बेजुबान, असहाय
और मनोरोगी महिलाओं
के शारीरिक शोषण
होने का खुलासा
तो हुआ ही
लेकिन इसके साथ
ही नारी निकेतन
के नारकीय जीवन
की दारुण कथा
भी जगजाहिर हो
गयी। तीन महीने
की गर्भवती एक
गूंगी संवासिनी को
15 नवम्बर 2015 की रात
को चुपचाप उठा
कर एक निजी
अस्पताल में गर्भपात
के लिये ले
जाया गया और
गर्भपात कराने के बाद
दूसरे दिन 16 नवम्बर
को सुबह-सबेरे
वापस नारी निकेतन
में छोड़ दिया
गया। जाहिर है
कि यह सब
नारी निकेतन की
मुख्य संचालिका और
स्टाफ की जानकारी
में हुआ। इस
मामले में पुलिस
की एस.आइ.टी ने
मुख्य संचालिका सहित
कुल 9 लोगों को
गिरफ्तार किया हैरानी
का विषय यह
है कि उन
गिरफ्तार कर्मचारियों में नारी
निकेतन स्टाफ की 5 महिलाएं
भी शामिल थीं।
इस मामले में
गुरुदास नाम का
वह सफाई कर्मी
भी पकड़ में
आ गया जिसका
डीएनए सैंपल संवासिनी
के भू्रण के
डीएनए से मेल
खाता हुआ पाया
गया। जिस तरह
से मामला रफादफा
किया जा रहा
था उससे जाहिर
होता है कि
इस नारी निकेतन
में मजबूर और
बेसहारा महिलाओं के साथ
यह अमानवीय कृत्य
न जाने कब
से हो रहा
था। अगर कर्मचारियों
में गुटबंदी नहीं
होती तो षढ़यंत्रकारियों
ने तो महिला
के भू्रण के
साथ ही इस
दुराचार के सत्य
को भी सदा
के लिये दबा
दिया था। दरअसल
नारी निकेतन के
ही किसी चस्मदीद
कर्मचारी ने इस
कुकृत्य की पोल
निदेशक समाज कल्याण
के नाम गुमनाम
पत्र भेज कर
खोल दी थी।
उस पत्र की
प्रतिलिपि लोकल मीडिया
के पास पहुंची
तो मीडिया में
बवाल हो गया।
इसके बाद न
केवल समाज कल्याण
विभाग अपितु जिला
प्रशासन और राज्य
महिला आयोग भी
सक्रिय हो उठा।
पुलिस की जांच
के दौरान संवासिनी
का वह दफन
भू्रण भी मिल
गया जिसके डीएनए
परीक्षण के बाद
कानून के हाथ
एक दुराचारी के
गिरेबान तक पहुंच
गये।
इस काण्ड का भाण्डा
फूटने के बाद
राज्य महिला आयोग
की अध्यक्ष सरोजिनी
कैंतुरा और समाज
कल्याण मंत्री अमृता रावत
समेत जो भी
वीआइपी और हाकिम
नारी निकेतन गया
उससे संवासिनियों ने
उस नर्क से
मुक्ति की गुहार
लगायी। मूक बधिरों
ने इशारों-इशारों
में जो कुछ
कहा वह न
केवल बेहद शर्मनाक
था बल्कि इस
ओर भी इशारा
करता था कि
यहां इन असहायों
के साथ इस
तरह का बर्ताव
सामान्य बात है
और उनका शोषण
करने वालों में
सफाईकर्मी गुरुदास अकेला नहीं
बल्कि इन्हें परोसा
भी जाता है।
इस काण्ड का
पर्दाफास होने पर
नैनीताल हाइकोर्ट के न्यायाधीस
जस्टिस वी.के.बिष्ट ने 4 जुलाई
2016 को जिला विधियक
सेवा प्राधिकरण के
सचिव के साथ
देहरादून नारी निकेतन
का औचक निरीक्षण
किया तो उसकी
दुर्दशा देख कर
वह भी हैरान
रह गये। उन्होंने
राज्य सरकार को
लिखे पत्र में
कहा कि यहां
केवल 75 संवासिनियों को रखने
की क्षमता है
लेकिन मौके पर
वहां 101 संवासिनियां पायीं गयीं।
जस्टिस बिष्ट ने वहां
की पेयजल एवं
सफाई व्यवस्था पर
भी असंतोष जताया।
जस्टिस बिष्ट नारी निकेतन
में तब पहुंचे
थे जब तक
कि राज्य सरकार
ने वहां की
व्यवस्थाओं में काफी
सुधार कर दिया
था और तत्कालीन
मुख्यमंत्री हरीश रावत
स्वयं नारी निकेतन
मामलों की निगरानी
कर रहे थे।
नारी निकेतन में
संवासिनियों के साथ
दुराचार के मामले
पर नैनीताल हाईकोर्ट
की खण्डपीठ ने
राज्य सरकार को
यौन शोषण की
पीड़ित महिला को
25 लाख रुपये एकमुश्त मुआवज़ा
देने या फिर
11000 रुपये प्रतिमाह पेंशन के
रूप में देने
के आदेश दिये
थे। हाईकोर्ट ने
राज्य में नारी
निकेतनों, बाल आश्रय
गृहों, दृष्टि बाधितार्थ संस्थाओं
जैसे संस्थानों में
रह रहे आश्रितों
की दुर्दशा पर
तल्ख टिप्पणी करते
हुये कहा था
कि निराश्रित बच्चों
व महिलाओं को
आश्रय देने वाले
संस्थान दरअसल मंदिर के
समान हैं लेकिन
दुखद है कि
इन मजबूर लोगों
का उत्पीड़न हो
रहा है। जो
बाड़ के खेत
को खाने का
उदाहरण है। हमारे
मौजूदा राजनीतिक माहौल में
बलात्कार, हत्या, लूट एवं
घेटाले के जैसे
अपराध राजनीतिक बैरियों
पर हथियार की
तरह प्रयुक्त होते
हैं। उत्तराखण्ड में
जब नारी निकेतन
में दुराचार का
मामला सामने आया
तो उस समय
विपक्ष में बैठी
भाजपा को सरकार
के खिलाफ ब्रह्मास्त्र
की तरह एक
हथियार मिल गया
था। आज उसी
हथियार को भाजपा
के खिलाफ अन्य
दल आजमा रहे
हैं।
सवाल अकेले व्यभिचार का
नहीं है। सवाल
सरकारों की संवेदनहीनता
का भी है।
निमयानुसार वहां विधवा,
परित्यक्ता, निराश्रित, कुंवारी माताओं
एवं समाज से
प्रताड़ित महिलाओं को रखा
जाता है लेकिन
हैरानी की बात
यह है कि
इस नारी निकेतन
में सामान्य महिलाओं
के साथ मानसिक
रूप से विक्षिप्त
महिलाओं को भी
रखा जाता रहा
है। इस तरह
विक्षिप्त महिलाओं के साथ
सामान्य महिलाओं का भी
विक्षिप्त हो जाना
स्वाभाविक ही है।
संवासिनियां की शिकायतें
रहीं कि विक्षिप्त
महिलाएं अक्सर उग्र हो
कर हमला कर
देती थीं या
दिन हो या
रात, किसी भी
समय रोने-चिल्लाने
या हंसने लग
जाती थीं। जबकि
मानसिक रोगियों के लिये
देहरादून के सेलाकुंई
में अलग मानसिक
रोग अस्पताल बना
हुआ है, मगर
इस काण्ड के
सार्वजनिक होने और
अदालत के हस्तक्षेप
तक पागल महिलाओं
को भी स्वस्थ
महिलाओं के साथ
नारी निकेतन में
रखा जाता रहा।
नारी निकेतन के
कर्मचारियों का कहना
है कि ज्यादातर
संवासिनियों को मिरगी
के दौरे पड़ते
हैं। जब यह
काण्ड उछला तो
लगभग उसी दौरान
चार बीमार संवासिनियों
की मौत भी
हुयी और उन
सभी मृत संवासिनियों
के मौत के
लिये कुपोषण और
एनीमिया को जिम्मेदार
माना गया। उससे
पहले 2009 में भी
भुवन चन्द्र खण्डूड़ी
के मुख्यमंत्रित्वकाल में
यहां 4 संवासिनियों की इसी
तरह भूख, कुपोषण
और एनीमिया से
मौत हुयी थी।
एक संवासिनी का
जब पोस्टमार्टम हुआ
तो उसके पेट
में दवा के
अलावा कुछ नहीं
मिला। संवासिनी दुराचार
काण्ड का खुलासा
होने पर राज्य
महिला आयोग की
तत्कालीन अध्यक्षा सरोजिनी कैंतुरा
17 नवम्बर 2015 को नारी
निकेतन का मुआयना
करने पहुंची तो
उन्होंने वहां की
गन्दगी के बारे
में स्वयं कहा
कि वहां गंदगी
के कारण इतनी
बदबू आ रही
थी कि वहां
खड़े रहना भी
मुश्किल हो रहा
था। सन् 2015 में
सार्वनिक हुये नारी
निकेतन दुराचार मामले को
लेकर उस समय
विपक्ष में बैठी
भाजपा ने कांग्रेस
सरकार के खिलाफ
भारी हो हल्ला
किया था लेकिन
अब देवरिया और
मुजफ्फरपुर काण्डों का खुलासा
होने पर बवाल
का हथियार कांग्रेस
के हाथ लग
गया है।
जयसिंह रावत
पत्रकार/लेखक
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
09412324999
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