मंत्रियों के लिये दुखदायी रहे हैं उत्तराखण्ड के चुनाव
जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड
की सत्ता पर
बारी-बारी से
काबिज होने वाले
राजनीतिक दल और
खासकर मतदाताओं को
हसीन सपने दिखा
कर सत्ता की
सीढ़ियां चढ़ने वाले
नेता हर चुनाव
में पड़ रही
मतदाताओं की मार
की पीड़ा तो
झेल रहे हैं
मगर उस मार
के पीछे छिपे
संदेश को नहीं
पढ़ रहे हैं।
प्रदेश में अब
तक हुये चुनावों
में लगभग 60 प्रतिशत
विधायक और 80 प्रतिशत से
अधिक मंत्री चुनाव
हारते रहे हैं।
मतदाताओं के गुस्से
की इन्तेहा देखिये,
कि भारत में
कुर्सी पर रहते
हुये चुनाव हारने
वाला तीसरा मुख्यमंत्री
भी उत्तराखण्ड का
ही था। मतदाताओं
के निशाने पर
कांग्रेस और भाजपा
ही नहीं बल्कि
उक्रांद और बसपा
भी रहे हैं।
नव गठित राज्य
उत्तराखण्ड की चौथी
विधनसभा के चुनावों
का बिगुल बजने
वाला है। अब
केवल निर्वाचन आयोग
द्वारा आचार संहिता
और चुनाव कार्यक्रम
की घोषणा का
इन्तजार है। प्रदेश
के 70 में से
सभी वर्तमान विधायकों
को उम्मीद है
कि वे न
केवल अगली विधानसभा
के लिये बल्कि
सत्ता के गलियारों
को एक बार
फिर रौंदने के
लिये वापस आ
रहे हैं। लेकिन
मतदाताओं के गुस्से
की कहर का
रिकार्ड बताता है कि
इनमें से लगभग
60 प्रतिशत विधायक इस चुनावी
समर में खेत
रहेंगे। जो मंत्री
सत्ता के नशे
में चूर हो
5 साल तक स्वयं
को शासक और
अपने मतदाताओं को
शासित प्रजा समझते
रहे हैं उनके
दिन अब गिनती
के हैं। रिकार्ड
बताता है कि
80 प्रतिशत से अधिक
मंत्री अब तक
चुनाव हारते रहे
हैं।
सत्ता का सबसे
अधिक दुरुपयोग मुख्यमंत्री
के आसपास के
लोगों या उनके
खासमखास लोगों द्वारा किये
जाने की शिकायतें
रही हैं। लेकिन
सत्ता का नशा
ऐसा कि मुख्यमंत्री
के नाम पर
सत्ता का मजा
लूटने वाले पिछला
रिकार्ड नहीं देख
रहे हैं। 2012 के
चुनाव में तत्कालीन
मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र
खण्डूड़ी ने हारने
का ऐसा रिकार्ड
बनाया कि भारत
के चुनावों के
इतिहास में एक
काला पन्ना अवश्य
और जुड़ गया।
उससे पहले उत्तर
प्रदेश में टी.एन.सिंह
और झारखण्ड में
सिब्बू सोरेन ही मुख्यमंत्री
रहते हुये चुनाव
हारे थे। खण्डूड़ी
की हार भी
कोई छोटी-मोटी
नहीं थी। वह
5 हजार से अधिक
मतों से हारे
जबकि प्रदेश में
जीतने वाले 12 और
62 मतों से भी
चुनाव जीतते रहे
हैं।
नित्यानन्द
स्वामी के नेतृत्व
में गठित पहली
कामचलाऊ सरकार में मुख्यमंत्री
समेत कुल 13 मंत्राी
थे। उन मंत्रियों
ने स्वयं को
कामचलाऊ सरकार के मंत्री
नहीं माना। लगभग
11 महीने बाद जब
सत्ता बदली और
भगत सिंह कोश्यारी
मुख्यमंत्री बने मगर
मंत्रिमण्डल जैसा का
तैसा ही रहा।
सन् 2002 में
जब प्रदेश के
पहले चुनाव हुये
तो उसमें तत्कालीन
मुख्यमंत्री कोश्यारी के अलावा
बाकी सभी मंत्री
चुनाव हार गये।
उस चुनाव में
प्रदेश के पहले
मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी भी
लक्ष्मण चौक से
चुनाव हार गये
थे। उस चुनाव
में हारने वाले
मंत्रियों में स्वामी
के अलावा, बाद
में बनने वाले
मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल
निशंक, अजय भट्ट,
केदार सिंह फोनिया,
मातबर सिंह कंडारी,
मोहन सिंह रावत
’गांववासी’, बंशीधर भगत, नाराण
राम दास, राज्यमंत्री
नारायण सिंह राणा,
तीरथ सिंह रावत,
सुरेश आर्य एवं
निरुपमा गौड़ शामिल
थे। उसके बाद
देश के सबसे
अनुभवी नेता नारायण
दत्त तिवारी के
नेतृत्व में सरकार
बनी। तिवारी तो
हवा का रुख
भांप कर पहले
ही चुनाव मैदान
से अलग हो
गये। हालांकि अब
तक राज्य में
जो कुछ भी
दिखाई दे रहा
है वह तिवारी
के ही कार्यकाल
का है। तिवारी
के मंत्रिमण्डल में
पहले उनके सहित
कुल 16 सदस्य थे जिनकी
संख्या बाद में
12 हो गयी। फिर
भी उन 16 में
से केवल तीन
मंत्री, प्रीतम सिंह, अमृता
रावत और गोविन्द
सिंह कुंजवाल ही
चुनाव जीत पाये।
बाद में मंत्रिमण्डल
का आकर घटने
पर भी उनके
9 मंत्री चुनावी मैदान में
धराशाही हो गये।
तिवारी के 12 सदस्यीय मंत्रिमण्डल
के हारने वाले
मंत्रियों में इंदिरा
हृदयेश, नरेन्द्र सिंह भण्डारी,
हीरा सिंह बिष्ट,
तिलक राज बेहड़,
नव प्रभात एवं
साधूराम आदि शामिल
थे।
वर्तमान में सत्ता
की प्रबल दावेदार
भाजपा के शासनकाल
में नेताओं के
हारने का रिकार्ड
तो इतिहास में
ही दर्ज हो
गया। भाजपा के
शासनकाल के अधिकांश
मंत्री तो हारे
ही हैं, लेकिन
एक मुख्यमंत्री का
चुनाव हारने का
रिकार्ड भी भाजपा
ने ही दिया
है। भाजपा के
शासनकाल में 2007 में पहले
भुवन चन्द्र खण्डूड़ी
के नेतृत्व में
सरकार बनी और
फिर उन्हें हटा
कर रमेश पोखरियाल
निशंक को मुख्यमंत्री
बनाया गया। लेकिन
जब चुनाव हुये
तो स्वयं मुख्यमंत्री
खण्डूड़ी के साथ
ही उनके मंत्रियों
में से मातबर
सिंह कंडारी, बंशीधर
भगत, प्रकाश पन्त,
विशन सिंह चुफाल,
दिवाकर भट्ट, एवं त्रिवेन्द्र
रावत चुनाव हार
गये। हरीश रावत
जी के मंत्री
पिछले पांच सालों
तक राजा बन
कर प्रजा पर
शासन करते रहे।
उनके कर्ताधर्ता भी
सत्ता की दलाली
क रमजे लूटते
रहे। मगर उन्हें
इन दिनों अचानक
शासित प्रजा के
राजा होने का
अहसास हो रहा
है। वे अब
सत्ता के गलियारे
छोड़ कर गलियों
और पगडंडियों पर
पसीना बहा रहे
हैं।
-जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
09412324999
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