उत्तराखण्डियों
के लिये देहरादून
दूर और गैरसैण
पास है
-जयसिंह रावत
देहरादून। पूरे 8 साल का
वक्त जाया करने
और लगभग 2 करोड़
रुपये खर्च करने
के बाद उत्तराखण्ड
की स्थाई राजधानी
के चयन हेतु
गठित दीक्षित आयोग
की राय भले
ही गैरसैण के
बारे बेहद प्रतिकूल
रही हो मगर
इस हिमालयी राज्य
की भागोलिक सच्चाई
यह है कि
प्रदेश के 13 में से
12 जिलों के मुख्यालय
देहरादून से काफी
दूर और गैरसैण
से काफी करीब
हैं। इन जिलों
की देहरादून से
अधिकतम् दूरी 500 किमी से
अधिक तथा गैरसैंण
से 300 किमी से
कम होने के
कारण गैरसैण अगर
राजधानी बनती है
तो यह स्थान
सभी जिलों के
सबसे कम दूरी
का होगा।
उत्तराखण्ड
राज्य के गठन
के बाद राजसत्ता
लखनऊ से देहरादून
तो अवश्य आ
गयी मगर अब
भी इस पहाड़ी
राज्य के आम
नागरिकों के लिये
सत्ता का यह
केन्द्र दूर की
कौड़ी बना हुआ
है। हरिद्वार के
अलावा बाकी सारे
जिला मुख्यालय देहरादून
से काफी दूरी
बनाये हुये हैं।
जिला मुख्यालय पिथौरागढ़
तो देहरादून से
578 किमी की दूरी
पर है। इसी
तरह चम्पावत भी
देहरादून से 503 किमी, बागेश्वर
482 किमी और अल्मोड़ा
409 किमी की दूरी
पर है। जबकि
देहरादून समेत प्रदेश
का एक भी
जिला मुख्यालय ऐसा
नहीं जो कि
गैरसैण से 300 किमी से
अधिक दूरी पर
हो।
नित्यानन्द
स्वामी के नेतृत्व
में बनी प्रदेश
की पहली सरकार
द्वारा प्रदेश की स्थाई
राजधानी के चयन
हेतु गठित दीक्षित
आयोग ने 8 साल
की लेटलतीफी के
बाद जो रिपोर्ट 17 अगस्त
2008 कोतत्कालीन खण्डूड़ी सरकार को
सौंपी थी उसमें
गैरसैण को सीधे-सीधे ही
रिजेक्ट कर दिया
गया था। मात्र
6 माह के लिये
गठित इस आयोग
ने इस मामले
का 8 सालों तक
लटकाये रखा और
इस लेटलतीफी के
लिये उसे एक
के बाद एक
कुल 11 विस्तार दिये गये।
यह रिपोर्ट जब
13 जुलाइ 2009 को विधानसभा
के पटल रखी
गयी तो वह
2 करोड़ के व्यय
से तैयार रद्दी
का पुलिन्दा निकली।
दीक्षित आयोग ने
गैरसैण के साथ
ही रामनगर तथा
आइडीपीएल ऋषिकेश को द्वितीय
चरण के अध्ययन
के दौरान ही
विचारण से बाहर
कर दिया था
और उसके बाद
आयोग का ध्यान
केवल देहरादून और
काशीपुर पर केन्द्रित
हो गया था।
हालांकि दीक्षित आयोग ने
गैरसैण के विपक्ष
में और देहरादून
के समर्थन में
जो तर्क दिये
थे वे कुतर्क
ही थे। जैसे
कि उसने गैरसैण
का भूकंपीय जोन
में और देहरादून
को सुरक्षित जोन
में बताने के
साथ ही गैरसैंण
में पेयजल का
संभावित संकट बताया
था। आयोग का
यह अवैज्ञानिक तर्क
किसी के गले
नहीं उतरा था।
आयोग ने मानकों
की वरीयता के
आधार पर गैरसैंण
को केवल 5 नम्बर
और देहरादून को
18 नंबर दिये थे।
यही नहीं आयोग
ने देहरादून के
नथुवावाला-बालावाला स्थल के
पक्ष में 21 तथ्य
और विपक्ष में
केवल दो तथ्य
बताये थे, जबकि
गैरसैण के पक्ष
में 4 और विपक्ष
में 17 तथ्य गिनाये
गये थे। फिर
भी आयोग ने
जनमत को गैरसैण
के पक्ष में
और देहरादून के
विपक्ष में बताया
था। जम्मू-कश्मीर
से लेकर उत्तर
पूर्व के मणिपुर
नागालैंड तक सभी
हिमालयी राज्यों की राजधानियां
जब उनके केन्द्रीय
स्थानों पर हैं
तो केवल इस
पहाड़ी राज्य की
राजधानी पहाड़ से
दूर रखे जाने
का का औचित्य
आम उत्तराखण्डी की
समझ में नहीं
आ रहा है।
गैरसैण करीब और देहरादून दूर
प्रदेश के 13 जिला मुख्यालयों से गैरसैण और देहरादून की दूरी इस प्रकार हैः-
जिला गैरसैण देहरादून
उत्तरकाशी 266 किमी 208 किमी
पौड़ी 150 किमी 182 किमी
नयी टिहरी 202 किमी 115 किमी
रुद्रप्रयाग 46 किमी 186 किमी
चमोली, गोपेश्वर 95 किमी 259 किमी
हरिद्वार 255 किमी 55 किमी
पिथौरागढ़ 280 किमी 578 किमी
चम्पावत 261 किमी 503 किमी
बागेश्वर 156 किमी 482 किमी
अल्मोड़ा 135 किमी 409 किमी
नैनीताल 155 किमी 357 किमी
उधमसिंह नगर 213 270 किमी
गैरसैण से देहरादून 272
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