महिलाओं के लिये उत्तराखण्ड की जेलें देश मेंसर्वाधिक दमघोटू
-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड की जेलों में बंदियों की रेलमपेल से न केवल मानवाधिकारों का हनन हो रहा है अपितु बंदियों का बोझढोने में असमर्थ होने के कारण जेलों की दीवारें फांदने वालों के लिये आसान हो रही हैं। यही नहीं भेड़ बकरियों कीतरह भरी गयी उत्तराखण्ड की जेलें महिलाओं के लिये देश में सर्वाधिक दम घोटू साबित हो रही हैं। उत्तराखण्डहाइकोर्ट भी मानवाधिकारों के इस हनन को काफी गंभीरता से लेने लगा हैं
राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान रिकार्ड ब्यूरो कीनवीनतम रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड की जेलों मेंक्षमता से कहीं अधिक 136.4 प्रतिशत बंदी भरे गयेहैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर जेलों की अधिकतम्एक्युपेंसी दर 114.4 प्रतिशत है। राज्य की जेलों केलिये महिलाएं तो भेड़ बकरियां ही हो गयी हैं। देशभरकी जेलों में महिलाओं की सर्वाधिक एक्यूपेंसी मेंउत्तराखण्ड दूसरे स्थान पर है। पहले नम्बर परछत्तीसगढ़ है जहां जेलों की क्षमता से कहीं अधिक179.4 प्रतिशत महिलाएं बंदी बना कर ठूंसी गयी हैं।उत्तराखण्ड में कोई महिला जेल नहीं है। राज्य कीजेलों में क्षमता से कही अधिक 151.2 प्रतिशतमहिलाओं को ठूंसा गया है। राष्ट्रीय स्तर पर एकजेलकर्मी पर 8 सजायाफ्ता या विचाराधीन बंदियोंकी जिम्मेदारी होती है। लेकिन उत्तराखण्ड मेंकैदियों की भरमार के चलते एक जेलकर्मी को 13 बंदियों को संभालना होता है। पंजाब और बिहार मेंप्रति जेलकर्मी को 11 और दिल्ली तथा छत्तीसगढ़ में10 बंदियों को संभालना पड़ता है। सर्वेक्षण के दौरानराज्य की जेलों में कुल 4348 सजायाफ्ता या विचाराधीन अभियुक्त बंद थे।
उत्तराखण्ड के 13 जिलों के लिये राज्य गठन के बाद भी केवल 7 जिला जेलें हैं। जाहिर है कि एक जिले के बंदियोंको दूसरे जिले में ले जा कर बंद करना होता है। इनके अलावा राज्य में एक सेंट्रल जेल, 2 उप कारागार या सबजेल और सितारगंज स्थित एक खुली जेल है। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान रिकार्ड ब्यूरो की 2015 की नवीनतमरिपोर्ट के अनुसार देश की जेलों में उस दौरान 1,34,168 सजायाफ्ता तथा 2,82,076 विचाराधीन बंदी बंद थे।सजायाफ्ता में 5740 महिलाएं तथा विचाराधीन में 11,916 महिलाएं थीं। रिपोर्ट के अनुसार 2015 के अन्त मेंराज्य की 7 जिला जेलों की कुल 1882 लोगों की क्षमता के विपरीत 2815 बंदी भरे गये थे। इनमें 161 महिलाएंशामिल थीं। इसी प्रकार राज्य के 2 उप करागारों में 494 की क्षमता के विपरीत 1092 विचाराधीन तथासजायाफ्ता बंदी भरे गये थे। इन सब जेलों में 25 विचाराधीन महिला बंदी भी थीं। इन जेलों में कुल 1960 सजायाफ्ता पुरुष और 96 महिला कैदी बंद थीं। राज्य में एक भी महिला जेल नहीं है। इस तरह से राज्य की जेलोंमें 47.3 प्रतिशत सजायाफ्ता तथा 52.7 प्रतिशत विचाराधीन बंदी रखे गये थे। उस दौरान देश में सर्वाधिक88,747 बंदी उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद थे।
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अत्यधिक भीेड़ के बोझ तले दबी इन जेलों में भरपेट भोजन और समय से भोजन न मिलने की समस्या तो है हीलेकिन इन जेलों के अन्दर अमानवीय परिस्थितियों के कारण बंदियों का मानसिक सन्तुलन बिगड़ना आम बातहो गयी है। राज्य की जेलों में कुल 38 सजायाफ्ता और 11 विचाराधीन बंदी मानसिक रोगी थे। राज्य की जेलों मेंगत वर्ष 18 से 30 वर्ष उम्र के 409, 30 से 50 साल के 1007 एवं 50 साल से अधिक उम्र के 640 बंदी थे। जेलों में 3 महिलाएं ऐसी थीं जिनके 4 बच्चे भी जेलों बिना अपराध के सजा भुगत रहे थे। इसी प्रकार 7 विचाराधीन महिलाबंदियों के 9 बच्चे जेल की बेस्वाद रोटियां तोड़ रहे थे। राज्य की जेलों में सजायाफ्ता बंदियों में हत्या के अपराधमें 963, हत्या के प्रयास में 86, गैर इरादतन हत्या में 183, बलात्कार में 187, अपहरण में 31, डकैती में 21, डकैती की योजना बनाने में 17 और लूट के अपराध में 17 लोग सजा भुगत रहे थे। विचाराधीन बंदियों में हत्या केममलों में 343, हत्या के प्रयास में 208, गैर इरादतन हत्या में 4, बलात्कार में 149, अपहरण में 115, डकैती में92, और लूट के मामलों में 72 पर मुकदमें चल रहे थे। अन्य बंदियों में विभिन्न अन्य धाराओं में मुकदमें चल रहेथे। जेलों में कम भोजन और समय से भोजन आदि न मिलने की शिकायत न केवल मानवाधिकार आयोगअपितु नैनीताल हाइकोर्ट में भी की गयी है। हाइकोर्ट ने जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों को ठूंसने के मामले कोगंभीरता से लेते हुये संबंधित अफसरों को तलब कर रखा है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
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