उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी पर असमंजस क्यों
-जयसिंह रावत
उत्तराखंड की स्थाई
राजधानी का सवाल
प्रदेश के दोनों
ही प्रमुख राजनीतिक
दलों के लिये
वह गर्म दूध
हो गया जो
कि न तो
निगले जा रहा
है और ना
ही उगलते बन
रहा है। प्रदेश
में सत्ताधारी कांग्रेस
गैरसैण के मुद्दे
को चर्चा के
केन्द्र में तो
ले आई मगर
वह उसे क्या
नाम दे, इस
पर अटक गयी
है। इसी तरह
प्रमुख विपक्षी दल भाजपा
गैरसैण में फिजूलखर्ची
का रोना तो
रो रही है
मगर वह भी
वहां न तो
राजधानी की जैसी
सुविधाऐं जुटाने का विरोध
कर पा रही
है और ना
ही उसे स्थाई
या ग्रीष्मकालीन राजधानी
बनाने के लिये
सरकार पर दबाव
बनाने की हिम्मत
जुटा पा रही
है।
भारत के राष्ट्रपति
प्रणव मुखर्जी ने
18 मई 2015 को उत्तराखंड
विधानसभा में अपने
ऐतिहासिक भाषण में
गैरसैण को प्रदेश
की ग्रीष्मकालीन राजधानी
बनाये जाने की
बात कह चुके
हैं। लेकिन उत्तराखंड
की कांग्रेस सरकार
है कि राष्ट्रपति
द्वारा कही गयी
बात को भी
दुहराने की हिम्मत
नहीं जुटा पा
रही है। जबकि
चमोली गढ़वाल के
गैरसैण में विधानसभा
का लगातार दूसरा
सत्र आयोजित हो
रहा और गैरसैण
के ही निकट
भराड़ीसैंण में राजधानी
का जैसा ढांचा
शक्ल लेता जा
रहा है। दो
सत्र गैरसैण में
चलने के बाद
तीसरा सत्र भराड़ीसैण
स्थित नवनिर्मित विधानभवन
में भी आहूत
हो गया। वहां
विधानभवन ही नहीं
बल्कि विधायक आवास
भी तैयार हो
चुके हैं और
मिनी सचिवालय का
ढांचा भी लगभग
तैयार ही है।
लेकिन जब गैरसैंण
को राजधानी या
ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाये जाने
की बात आती
है तो मुख्यमंत्री
यह तो कह
देते हैं कि
उनकी सरकार उसी
दिशा की ओर
बढ़ रही है।
मगर वे यह
घोषणा करने से
साफ बच निकलते
हैं कि गैरसैण
ही वास्तव में
भविष्य की ग्रीष्मकालीन
राजधानी है। इसी
तरह सत्ता की
प्रबल दावेदार भाजपा
गैरसैण में राजधानी
की जैसी सुविधाएं
जुटाने का न
तो समर्थन कर
पा रही है
और ना ही
वह विरोध की
स्थिति में है।
भाजपा एक तरफ
तो प्रस्ताव आने
पर समर्थन की
बात करती है,
क्योंकि उसे पता
है कि कांग्रेस
सरकार में इतना
बड़ा कदम उठाने
की हिम्मत नहीं
है। दूसरी तरफ
भाजपा वहां विधानसभा
सत्र आहूत करने
का फिजूलखर्ची का
आरोप भी लगा
रही है। गैरसैण
में आहूत पिछले
दोनों सत्रों भाजपा
सदस्य जिस तरह
आपा खो बैठे
उससे गैरसैण के
बारे में उनकी
अरुचि का खुलासा
हो गया।
दरअसल गैरसैंण के मामले
में कांग्रेस सरकार
और खासकर हरीश
रावत ने कुछ
हिम्मत तो जरूर
जुटाई है, मगर
भविष्य की राजधानी
के बारे में
छाये हुये कोहरे
को हटाने की
हिम्मत वह भी
नहीं जुटा पाये।
कांग्रेस सरकार के संकोच
का एक कारण
यह भी हो
सकता है कि
गैरसैण को स्थाई
राजधानी घोषित करना न
तो इतना आसान
है और ना
ही इतना व्यवहारिक।
ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा
करने का मतलब
है वहां स्थाई
राजधानी की मांग
को सीधे-सीधे
नकार देना।
वैसे भी राजधानी
के चयन के
लिये गठित दीक्षित
आयोग ने तो
2 करोड़ रुपये खर्च करने
के बाद जो
रिपोर्ट सरकार को सौंपी
थी उसमें गैरसैण
को सीधे सीधे
ही रिजेक्ट कर
दिया था। दीक्षित
आयोग ने गैरसैण
के साथ ही
रामनगर तथा आइडीपीएल
ऋषिकेश को द्वितीय
चरण के अध्ययन
के दौरान ही
विचारण से बाहर
कर दिया था
और उसके बाद
आयोग का ध्यान
केवल देहरादून और
काशीपुर पर केन्द्रित
हो गया था।
हालांकि दीक्षित आयोग ने
गैरसैण के विपक्ष
में और देहरादून
के समर्थन में
जो तर्क दिये
थे वे कुतर्क
ही थे। जैसे
कि उसने गैरसैण
का भूकंपीय जोन
में और देहरादून
को सुरक्षित जोन
में बताने के
साथ ही गैरसैंण
में पेयजल का
संभावित संकट बताया
था। आयोग का
यह अवैज्ञानिक तर्क
किसी के गले
नहीं उतरा था।
आयोग ने मानकों
की वरीयता के
आधार पर गैरसैंण
को केवल 5 नम्बर
और देहरादून को
18 नंबर दिये थे।
यही नहीं आयोग
ने देहरादून के
नथुवावाला-बालावाला स्थल के
पक्ष में 21 तथ्य
और विपक्ष में
केवल दो तथ्य
बताये थे, जबकि
गैरसैण के पक्ष
में 4 और विपक्ष
में 17 तथ्य गिनाये
गये थे। फिर
भी आयोग ने
जनमत को गैरसैण
के पक्ष में
और देहरादून के
विपक्ष में बताया
था। वास्तव में
पहाड़ों से बड़े
पैमाने पर हो
रहे पलायन के
कारण प्रदेश का
राजनीतिक संतुलन जिस तरह
गड़बड़ा़ रहा है
उसे देखते हुये
प्रदेश की सत्ता
के प्रमुख दावेदार
कांग्रेस और भाजपा
भी खुलकर गैरसैण
के समर्थन में
आने से कतरा
रहे हैं। वैसे
भी जब राजधानी
अंगद की तरह
कहीं पैर रख
देती है तो
उसे उखाड़ना लगभग
नामुमकिन ही हो
जाता है।
सन् 1856 में ब्रिटिश
कमिश्नर लुशिंगटन ने गैरसैण
के लोहबा में
पेशकारी दफ्तर बनाया था, जिसमंे
नायब तहसीलदार को
रखा गया। उन्होंने
इसे सबसे बेहतरीन
स्थान बताते हुए
प्रशासन का केंद्र
बनाने का प्रस्ताव
भी प्रांतीय सरकार
को भेजा था
तथा सिल्कोट टी
स्टेट और अन्य
चाय बागानों को
मिलकर चाय बगान
का मुख्यालय भी
बनाया था। भराडी़सैण
के पास ही
रीठिया चाय बागान
के पास 100 हैक्टेअर,
सिलकोट के पास
300 हैक्टेअर और बेनीताल
चाय बागान के
पास 350 हैक्टेअर जमीन पड़ी
है। इन बागानों
के मालिक गैरसैंण
में राजधानी आ
जाने की प्रतीक्षा
में हैं ताकि
इन विशाल बागानों
पर शानदार रिसार्ट
बनाये जा सकें।
प्रख्यात समाजसेवी स्वर्गीय स्वामी
मन्मथन और कम्युनिस्ट
नेता विजय रावत
तथा मदनमोहन पाण्डे
इन चाय बागानों
के अधिग्रहण के
लिये 1978 आन्दोलन भी चला
चुके हैं।
सन् 2002 में जब
उत्तराखंड विधानसभा का पहला
चुनाव हुआ था
तो उस समय
40 सीटें पहाड़ से
और 30 सीटें मैदान
से थीं। इसलिये
सत्ता का संतुलन
पहाड़ के पक्ष
में होने के
कारण पहाड़ी जनभावनाओं
के अनुरूप गैरसैण
को भी देहरादून
से अधिक जनमत
हासिल था। यह
जनमत उसी दौरान
आयोग द्वारा एकत्र
किया गया था।
सन् 2006 में हुये
परिसीमन के तहत
पहाड़ की 40 सीटों
में से 6 सीटें
जनसंख्या घटने के
कारण घट गयीं
और मैदान की
30 सीटें बढ़ कर
36 हो गयीं। जबकि
पहाड़ में 10 जिले
हैं और मैदान
में देहरादून समेत
केवल 3 ही जिले
हैं और इन
तीन जिलों में
ही उत्तराखण्ड की
राजनीतिक ताकत सिमटती
जा रही है।
अगर यही हाल
रहा तो सन्
2026 के परिसीमन में पहाड़
में 27 और मैदान
में 43 सीटें हो जायेंगी।
पहाड़ से वोटर
ही नहीं बल्कि
नेता भी पलायन
कर रहे हैं।
राज्य के तीन
पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव
लड़ने मैदान में
आ गये हैं।
यकीनन मैदानी वोटरों
के रूठने के
डर से भी
प्रमुख दलों के
राजनीतिक नेता खुलकर
गैरसैण की तरफदारी
करने से कतरा
रहे हैं।
गैरसैंण केवल पहाड़
के लोगों की
भावनाओं का प्रतीक
नहीं बल्कि इस
पहाड़ी राज्य की
उम्मीदों का द्योतक
भी है। गैरसैण
के भराड़ीसैंण में
अघोषित ग्रीष्मकालीन राजधानी का आधारभूत
ढांचा खड़ा किये
जाने की शुरूआत
के साथ ही
वहां एक नये
पहाड़ी नगर की
आधारशिला भी पड़़
गयी है। वह
नवजात शहर स्वतः
ही देहरादून के
बाद सत्ता का
दूसरा केन्द्र बन
जायेगा। सत्ता के इस
वैकल्पिक केन्द्र में स्वतः
ही नामी स्कूल
और बड़े अस्पताल
आदि जनसंख्या को
आकर्षित करने वाले
प्रतिष्ठान जुटने लग जायेंगे।
अगर पहाड़ी नगर
शिमला और मसूरी
में देश के
नामी स्कूल खुल
सकते हैं तो
फिर गैरसैंण में
क्यों नहीं। सत्ता
ऐसी मोहिनी है
कि निवेशक खुद
ही गैरसैंण की
ओर खिंच आयेंगे।
लोगों का मानना
है कि गैरसैण
में ग्रीष्मकालीन राजधानी
बनने से प्रदेश
की राजनीतिक संस्कृति
में बदलाव आयेगा
और उसमें पहाड़ीपन
झलकने लगेगा। पहाड़
का जो धन
मैदान की ओर
आ रहा है
वह वहीं स्थानीय
आर्थिकी का हिस्सा
बनेगा। प्रदेश के हर
कोने से जब
गैरसैण जुड़ेगा तो इन
संपर्क मार्गों पर छोटे-छोटे कस्बे
उगेंगे और उससे
नया अर्थतंत्र विकसित
होगा।
-जयसिंह
रावत
पत्रकार
ई-11 फ्रेंड्स
एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
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