वन्यजीव
संसार पर महाआपदा
-जयसिंह रावत
जैव विविधता की दृष्टि
से विश्व के
सम्पन्न क्षेत्रों में गिने
जाने वाले उत्तराखण्ड
में अगर जंगलों
की आग पर
काबू नहीं पाया
गया तो अपने
भरे पूरे वन्यजीव
संसार के लिये
विख्यात ये जंगल
जल्दी ही जीवन
विहीन हो जायेंगे।
अब तक प्रदेश
के जंगलों में
लगी आग से
कई लोग जिन्दा
जल चुके हैं
तथा कई अस्पतालों
में तड़प रहे
हैं। जबकि हजारों
जीव और पादप
प्रजातियों के करोड़ों
छोटे बड़े जीवों
को दावानल लील
चुकी है। हैरानी
का विषय तो
यह है कि
बात-बात पर
विरोध का झण्डा
उठाने वाले तथाकथित
पर्यावरणवादियों की ओर
से कहीं भी
किसी कोने से
चिन्ता का स्वर
नहीं उठ रहा
है।
जंगलों में भड़की
आग से उत्पन्न
बेकाबू हालात पर काबू
पाने के लिये
पहली बार केन्द्र
और राज्य सरकार
के आपदा प्रबंधन
बलों के साथ
ही सेना को
भी दावानल का
मुकाबला करने के
लिये मोर्चे पर
झौंक दिया गया
है। लेकिन हैरानी
का विषय यह
है कि इंसानों
और पेड़ों को
बचाने के लिये
तो हायतौबा हो
रही है मगर
कीट-पतंगों से
लेकर स्तनपायी जीवों
तक की हजारों
प्रजातियों के करोड़ों
जीवों के जलभुन
जाने के महासंकट
के बारे में
किसी भी कोने
से चिन्ता का
स्वर नहीं सुनाई
दे रहा है।
खास कर पर्यावरण
के वे ठकेदार
कहीं नजर नहीं
आ रहे हैं,
जो कि बिजली
प्रोजेक्ट जैसी परियोजना
शुरू होने की
भनक लगते ही
विरोध का झण्डा
लेकर मैदान में
उतर आते हैं।
अभी उत्तराखण्ड में आसमान
से आग बरसनी
भी शुरू नहीं
हुयी कि तराई
से लेकर तिब्बत
सीमा से लगे
नन्दादेवी बायोस्फीयर रिजर्व तक
और काली तथा
टोंस नदियों के
बीच स्थित अस्कोट
से लेकर आरोकोट
तक के उत्तराखण्ड
के जंगल धधकने
लगे हैं। राज्य
के शासन तंत्र
की तन्द्रा तब
टूटी जब कि
राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल
रहे लोग भी
जब जंगल की
आग की चपेट
में आने लगे।
इस बनाग्नि पर
काबू नहीं पाया
गया तो इस
साल की चारधाम
यात्रा भी प्रभावित
हो सकती है।
इस भीषण आग
का सामना करने
के लिये सेना
और पुलिस फोर्स
तो भेजी गयी
मगर उनको आग
बुझाने के उपकरण
नहीं दिये। इस
मोर्चे पर सेना
को तोप या
बन्दूक नहीं बल्कि
अग्नि शमन यत्रों
की जरूरत होती
है, जो कि
उसे नहीं दिये
गये हैं। अमेरिका
जैसे देशों में
हेलाकाप्टरों से भी
जंगल की आग
बुझाई जाती है
लेकिन उत्तराखण्ड में
नेताओं और अफसरों
के सैरसपाटे से
ही हैलीकाप्टरों को
फुर्सत नहीं मिलती।
बनाग्नि की लम्बी
अग्नि रेखा सब
कुछ भस्म कर
आगे बढ़ती है
तो अपने पीछे
केवल राख छोड़ती
चली जाती है।
वनाग्नि बड़े वृक्षों
को छोड़ कर
उसके आगे आने
वाली हर वनस्पति
और हर एक
जीव का अस्तित्व
राख में बदल
कर चलती जाती
है। इस आग
की चपेट में
अब तक हजारों
हेक्टेअर वनक्षेत्र आ चुका
ह,ै जिसमें
वन्य जीवों के
लिये संरक्षित राष्ट्रीय
पार्क, वन्यजीव विहार और
कर्न्वेशन रिजर्व भी शामिल
है। बाघ और
हिरन जैसे स्तनधारी
वन्यजीव तो जान
बचा कर सुरक्षित
क्षेत्र की ओर
भाग सकते हैं,
मगर उन निरीह
सरीसृपों और कीट-पतंगों का क्या
हाल हुआ होगा
जो कि दावानल
की गति से
भाग ही नहीं
सकते। जीवों के
पास तो भागने
का विकल्प है
मगर उन नाजुक
वनस्पतियों के महाविनाश
की कल्पना की
जा सकती है
जो कि अपने
स्थान पर हिल
तो सकती हैं
मगर भाग नहीं
सकती! तमाम वनस्पतियां
और वन्यजीव एक
दूसरे पर निर्भर
होते हैं। कुछ
पादप या जीव
भी नष्ट हो
जायं तो एक
दूसरे पर पराश्रय
की वह श्रृंखला
ही टूट जाती
है। यहां तो
सवाल एक दो
जीवों या पदपों
के लुप्त होने
का नहीं बल्कि
जंगलों के जीवन
विहीन होने का
है।
भारत दुनिया के 17 मेगाबायोडाइवर्सिटी
(वृहद जैव विविधता)
वाले राष्ट्रों में
से एक गिना
गया है। भारत
में भी जैव
विधिता के 4 हॉटस्पॉट
में से एक
हिमालय है और
उत्तराखण्ड उसी हिमालय
की गोद में
स्थित है। उत्तराखण्ड
का दो तिहाई
भूभाग वनक्षेत्र है।
इसकी 70 प्रतिशत आबादी वनों
के अन्दर या
वनों के नजदीक
चारों ओर बसी
हुयी है। इसलिये
उत्तराखण्ड में जंगल
और जीवन को
अलग-अलग नजरिये
से नहीं देखा
जा सकता। अगर
जंगल कष्ट में
है तो समझिये
कि उत्तराखण्ड का
जनजीवन भी कष्ट
में ही होगा।
हर साल वनाग्नि
तथा वन्यजीवों द्वारा
भारी संख्या में
लोगों का मारा
जाना उत्तराखण्ड के
लोगों का वनों
से अटूट रिश्ते
का खुलासा करता
है। लोगों की
रक्षा के लिये
सरकार कभी-कभार
सामने आ भी
जाती है। लेकिन
इस वन प्रदेश
के भरपूर वन्यजीव
संसार की सुरक्षा
तो केवल कानून
के तालों और
डण्डों के सहारे
चल रही है।
वनों के असली
रखवाले वे वनवासी
गैर हो गये
हैं जिनका जीवन
सदियों से प्रत्यक्ष
और परोक्ष रूप
से वनों पर
निर्भर रहा है।
अस्कोट कस्तूरा अभयारण्य से
लेकर गोविंद राष्ट्रीय
पार्क तक का
यह क्षेत्र जैव
विविधता की दृष्टि
से बहुत सम्पन्न
माना जाता है।
यहां मृदा, ढाल,
जलवायु, शैल संरचना
एवं उपयुक्तता के
अनुरुप विभिन्न प्रकार की
वनस्पतियां पाई जाती
है। कार्बेट टाइगर
रिजर्व बाघों के घनत्व
की दृष्टि से
भारत में सबसे
समृद्ध माना जाता
है। बाघों का
सर्वाधिक घनत्व वहीं हो
सकता है, जहां
उनके लिये जीव-जन्तुओं का पर्याप्त
भोजन उपलब्ध हो।
इसलिये बाघों की आबादी
का घनत्व वन्यजीवों
की बहुतायत का
प्रतीक माना जाता
है। वन्यजीवों की
विविधता और बहुलता
पादपों की विधिता
और बहुलता पर
ही निर्भर करती
है। जन्तु विज्ञानियों
का मानना है
कि देशभर में
मिलने वाली पक्षियों
की 1200 में से
687 प्रजातियां यहां मिलती
हैं।
राज्य में लगभग
15 प्रतिशत भूभाग वन्यजीवों के
लिये संरक्षित है।
अकेले वन विभाग
के अधीन 24273.53 वर्ग
किमी आरक्षित वन
क्षेत्र के सापेक्ष
30 प्रतिशत से अधिक
संरक्षित क्षेत्र के रूप
में है। इनके
अलावा कुछ वन
राजस्व विभाग और वन
पंचायतों के प्रबंन्धन
में भी हैं।
यही नहीं, 1245.94 वर्ग
किमी बफर जोन
का प्रबंधन वन्यजीव
परिरक्षण के जिम्मे
है। राज्य में
छह राष्ट्रीय उद्यान,
सात अभयारण्य और
तीन कंजर्वेशन रिजर्व
हैं। नवीनतम् सर्वेक्षणों
के अनुसार राज्य
में स्तनपायियों 102, पक्षियों
की 687, उभयचरों की 19, सरीसृपों
की 70, मछलियों की 124 प्रजातियां
हैं। दुर्लभ श्रेणी
में बाघ, एशियाई
हाथी, कस्तूरा मृग,
हिम तेंदुआ, मोनाल
समेत अन्य वन्यजीव
हैं। उभयचर वर्ग
(एंफ़िबिया) पृष्ठवंशीय प्राणियों का
एक बहुत महत्वपूर्ण
वर्ग है जो
जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार
मत्स्य और सरीसृप
वर्गों के बीच
की श्रेणी में
आता है। इस
वर्ग में लगभग
3000 प्रजातियां पाई जाती
हैं। मेंढक इस
वर्ग का एक
प्रमुख प्राणी है। सरीसृप
वर्ग के सदस्यों
में साँप, छिपकली,
घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुआ आदि
हैं। पतंगा या
परवाना, तितली जैसा एक
कीट होता है।
जीवविज्ञान के हिसाब
से तितलियाँ और
पतंगों की 1.6 लाख से
ज्यादा प्रजातियां ज्ञात हैं।
दुनिया में कीट
अर्थाेपोडा वर्ग की
10 लाख से अधिक
जातियों का नामकरण
हो चुका है।
आर्थिक रूप से
महत्वपूर्ण कीट में
मधुमक्खी व रेशम
कीट, और रोग
वाहक कीटों में,
एनाफ्लीज, क्यूलेक्स तथा मच्छर,
टिड्डी तथा किंग
क्रेब आदि गिने
जाते हैं। इनके
अलावा बिच्छू की
कई प्रजातियां भी
उत्तराखण्ड में उपलब्ध
हैं जो कि
बड़ी संख्या में
जलमर रहे हैं।
दिल्ली से लगभग
300 कि.मी. दूर और
520 वर्ग क.मी.
में फैले कार्बेट
नेशनल पार्क में
110 प्रजातियां वृक्षों की, 51 झाड़ियों
की, और 33 प्रजातियां
बांस की पाई
जाती हैं। समुद्रतल से 400 मीटर
से लेकर 1210 मीटर
की उंचाई तक
फैले इस पार्क
में स्तनपाइयों की
50 प्रजातियां,पक्षियों की 580 तथा
सरीसृप की 25 प्रजातियां पाई
जाती हैं। यह
देश का पहला
टाइगर रिजर्व भी
है जिसकी स्थापना
1973 में की गयी।
यहां बाघों की
सर्वाधिक घनी आबादी पाई
गयी है।
राजाजी पार्क में सन्
2005 की गणना में
24 बाघ, 214 गुलदार, 416 हाथी, 3257 सांभर,
13372 चीतल, 952 काकड़, 527 घुरल, 1958 नीलगाय,10
स्लोथ बियर और
2032 जंगली सुअर पाये
गये थे। इस
पार्क में पक्षियों
की 315 प्रजातियां हैं। यहां
भी सरीसृप और
उभयचर सर्वाधिक खतरे
में हैं। वन
विभाग द्वारा 28 अप्रैल
को जारी किये
गये वनाग्नि के
आकड़ों के अनुसार
उस तिथि तक
कार्बेट टागर रिजर्व
में 27, राजाजी नेशनल पार्क
में 83, बिन्सर में 2 और
केदारनाथ वन्यजीव विहार में
4 बड़े अग्निकांड हो
चुकेे थे। वनों
की यह विनाशकारी
आग ऊंचाई वाले
स्थानों तक पहुंच
गयी है। लेकिन
पर्यावरण के स्वयंभू
पहरेदार कहीं चूं
तक नहीं कर
रहे हैं। क्योंकि
भाड़ में जाने
वाले ये जीव
उन्हें न तो
पद्म पुरस्कार और
ना ही डॉलर
दिला सकते हैं।
-जयसिंह
रावत
पत्रकार
ई-11, फ्रेण्ड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड
देहरादून।
09412324999,