योगी सरकार के पद्चिन्हों
पर चलते हुये
उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र
सिंह सरकार ने
भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी की उपस्थिति
में देहरादून में
देश के उद्योगपतियों
का जमावड़ा कर
डाला। हालांकि 65 करोड़
खर्च करने के
बाद भी योगी
सरकार के हाथ
कुछ नहीं आया।
फिर भी उत्तराखण्ड
सरकार 75 हजार करोड़
के निवेश के
एमओयू कर इतनी
गदगद है जैसे
इस पिछड़े पहाड़ी
राज्य में इतना
बड़ा पूंजी निवेश
हो चुका हो
और राज्य में
अभूतपूर्व औद्योगिक क्रांति भी
आ ही चुकी
हो। बहरहाल देहरादून
के इस इनवेस्टर्स
सम्मिट के लाभों
का पता तो
आने वाले समय
में ही लग
पायेगा मगर त्रिवेन्द्र
सरकार ने नासमझी
में या जानबूझ
कर जिस तरह
निवेश के नाम
पर भूमि कानून
का गला घोंट
दिया उससे पहाड़ियों
की जमीनों की
लूट खसोट का
रास्ता तो पहले
ही खुल गया
है। गैर जिम्मेदार
और पहाड़ विरोधी
सलाहकारों की सलाह
पर टिकी त्रिवेन्द्र
सरकार ने इतना
तक नहीं सोचा
कि पहाड़ी लोगों
की जमीनों की
खरीद फरोख्त पर
अंकुश लगाने के
लिये बने जिस
भूकानून को उसने
सूली पर चढ़ाया
है वह भुवनचन्द्र
खण्डूड़ी सरकार ने बनाया
था और भाजपा
ने इस कानून
के लिये वाहवाही
लूटने और इसका
राजनीतिक लाभ उठाने
में कोई कसर
नहीं छोड़ी थी।
राज्य सरकार यह
भी भूल गयी
कि जमीनों की
खरीद फरोख्त पर
नियंत्रण लगाने के लिये
सभी हिमालयी राज्यों
में किसी न
किसी तरह संवैधानिक
प्रावधान मौजूद हैं और
उत्तराखण्ड में भी
हिमाचल प्रदेश का अनुकरण
करते हुये इस
तरह की कानूनी
व्यवस्था सबसे पहले
2003 में नारायण दत्त तिवारी
की सरकार ने
की थी और
उसके बाद भाजपा
की भुवनचन्द्र खण्डूड़ी
सरकार ने इस
नियंत्रण को और
कठोर करने के
लिये उत्तराखंड (उत्तर
प्रदेश) जमींदारी उन्मूलन अधिनियम
में दुबारा संशोधन
कर नया कानून
बनाया था। उत्तराखण्ड
में केवल 13 प्रतिशत
जमीन कृषि उपयोग
की है और
उसमें से भी
लगभग 80 हजार हेक्टेअर
जमीन पिछले 18 सालों
में बिना उपयोग
के बंजर हो
गयी है।
Article of Jay Singh Rawat published in Shah Times on 9 October 2018 |
My article appeared in Uttar Ujala in Edit page on 15 October 2018 |
दरअसल जब राज्य
का गठन हुआ
था तो उसी
समय से राज्यवासियों
द्वारा हिमाचल प्रदेश टेनेंसी
एण्ड लैंड रिफार्म
एक्ट 1972 की धारा
118 की तर्ज पर
ही ऐसा कानून
बनाये जाने की
मांग की जा
रही थी, ताकि
बाहरी लोग पहाड़वासियों
की जमीनें खरीद
कर उनकी और
उनकी आने वाली
पीढ़ियों के पांव
के नीचे की
जमीन न खिसका
दें। अन्य हिमालयी
राज्यों में से
धारा 370 के चलते
जम्मू-कश्मीर में
बाहरी लोग जमीनें
नहीं खरीद सकते।
हिमाचल में ऐसा
कानून राज्य गठन
के तत्काल बाद
1972 में बन गया
था जबकि उत्तर
पूर्व के हिमालयी
राज्य शेड्यूल्ड-6 के
दायरे में आते
हैं इसलिये बाहरी
लोग जनजातियों की
जमीनें खरीद ही
नहीं सकते। अब
उत्तराखण्ड अकेला हिमालयी राज्य
हो जायेगा जहां
के मूल निवासियों
की जमीनें कोई
भी खरीद कर
उन्हें उनकी ही
जमीन पर मजदूरी
करने के लिये
विवश कर देगा।
तराई में थारू
और बोक्सा जन
जातियों का ऐसा
शोषण पहले से
ही चल रहा
है।
नारायण दत्त तिवारी
ने उत्तरांचल (उत्तर
प्रदेश जमींदारी विनाश एवं
भूमि व्यवस्था अधिनियम
1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण
आदेश, 2001) (संशोधन) विधेयक 2003 की
भूमिका में कहा
था कि उन्हें
बड़े पैमाने पर
कृषि भूमि की
खरीद फरोख्त अकृषि
कार्यों और मुनाफाखोरी
के लिये किये
जाने की शिकायतें
मिल रहीं थीं।
उनका कहना था
कि प्रदेश की
अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को देखते
हुये असामाजिक तत्वों
द्वारा भी कृषि
भूमि के उदार
क्रय विक्रय नीति
का लाभ उठाया
जा सकता है।
अतः कृषि भूमि
के उदार क्रय
विक्रय को नियंत्रित
करने और पहाड़वासियों
के आर्थिक स्थायित्व
तथा विकास के
लिये सम्भावनाओं का
माहौल बनाये जाने
हेतु यह कानून
लाया जाना जरूरी
है। चूंकि मामला
बेहद गंभीर और
जनभावनाओं से जुड़ा
था और उस
समय विधानसभा का
सत्र भी नहीं
चल रहा था।
इसलिये इस खरीद
फरोख्त पर तत्काल
अंकुश के लिये उत्तरांचल
(उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश
एवं भूमि व्यवस्था
अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण
आदेश, 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2003 लाया
गया जिसे बाद
में संशोधित कर
विधानसभा से पारित
किया गया। अब
त्रिवेन्द्र सरकार ने चन्द
उद्योगपतियों को पहाड़
की जमीनें पानी
के भाव खरीदने
के लिये रास्ता
बनाने हेतु मूल
कानून की बंदिशें
समाप्त करने के
लिये उत्तरांचल
(उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश
एवं भूमि व्यवस्था
अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण
आदेश, 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2018 को
मंजूरी दे दी।
उत्तराखण्ड में कृषि
के लिये केवल
13 प्रतिशत जमीन वर्गीकृत
है बाकी में
से 71 प्रतिशत भूभाग
पर जंगल हैं।
यहां 70 प्रतिशत से अधिक
जोतें आधा हैक्टेअर
से कम हैं
और जमीनांे की
कमी के चलते
एक ही भूखाते
के दर्जनों खातेदार
हैं। अगर इतनी
सीमित जमीन भी
पहाड़ के लोगों
से छीन ली
गयी तो उनकी
पीढ़ियां ही भूमिहीन
हो जायेंगी।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल-9412324999
jaysinghrawat@gmail.com
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Article 371A {Special
provision with respect to the State of Nagaland}
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