Search This Blog
Tuesday, December 22, 2015
Friday, December 11, 2015
Wednesday, December 9, 2015
Þस्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता”
उत्तराखंड में ही मिली थी गांधी को महात्मा की उपाधि
मोहन दास कर्मचंद गांधी को महात्मा की उपाधि उत्तराखंड में ही मिली थी। खान अब्दुल गफ्फार खान को सरहदी गांधी के नाम से सबसे पहले एक उत्तराखंडी ने ही पुकारा था। यही नहीं भारत से गुपचुप निकलने के बाद अफगानिस्तान में आजाद हिन्दुस्तान की घोषणा करने वाला भी एक देहरादून निवासी ही था। प्रख्यात क्रांतिकारी रास बिहारी बोस वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने देहरादून से ही दिल्ली गये थे। इन पुरानी यादों को वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने अपनी नवीनतम् पुस्तक “स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता” में ताजा किया है। इस पुस्तक में न केवल उत्तराखंड की गौरवमय पत्रकारिता के अतीत की यादों को ताजा किया गया है बल्कि ऐसे ऐतिहासिक और प्रमाणिक तथ्य भी उजागर किये गये हैं जो कि आमो-खास की जानकारियों से दूर अभिलेखागारों की आल्मारियों में कैद हैं।
लेखक ने पुस्तक में उत्तराखंड की पत्रकारिता के इतिहास को प्रमाणिक तथ्यों के आधार पर लिपिबद्ध करने के साथ ही स्वाधीनता आन्दोलन में इस क्षेत्र के समाचारपत्रों तथा पत्रकारों के असाधारण योगदान को उजागर कर नयी पीढ़ी के लिये एक मार्गदर्शी दस्तावेज के रूप में पेश किया है। इस पुस्तक में दुर्लभ पुराने अखबारों का संकलन और तत्कालीन पत्रकारों और साहित्यकारों द्वारा आजादी के आन्दोलन को भड़काने वाले उन साहित्यों को भी संकलित किया गया है जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रतिबंधित कर जब्त कर दिया गया था। यह प्रतिबंधित साहित्य राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली की आलमारियों में बंद है। विन्सर पब्लिशिंग कंपनी द्वारा पांच अध्यायों में प्रकाशित इस 312 पृष्ठ की पुस्तक का प्राक्कथन श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्व विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर यू-एस- रावत ने लिखा है।
पुस्तक के पहले अध्याय में कलकत्ता से प्रकाशित ऑगस्टर हिक्की के बंगाल गजट से लेकर उत्तराखंड में आजादी के बाद के अखबारों के उदय तक का प्रमाणिक विवरण दिया गया है। दूसरे अध्याय में उत्तराखंड के अखबारों के स्वाधीनता आन्दोलन में योगदान का उल्लेख किया गया है। इसी मुख्य अध्याय में उत्तराखंड में स्वाधीनता आन्दोलन और उसमें शामिल पत्रकारों का विवरण दिया गया है। इनमें से केवल परिपूर्णानंद पैन्यूली के सिवाय बाकी सभी पत्रकार दिवंगत
Monday, December 7, 2015
मुख्यमंत्री ने किया जयसिंह रावत की पुस्तक का विमोचन
देहरादून। मुख्यमंत्री हरीश रावत
ने राज्य में
पत्रकारिता से संबंधित
उपलब्ध पुराने दस्तावेजों को
डिजिटलाइजेशन कर इन्हें
प्रदर्शित करने के
लिए गैलरी बनाने,
स्वतंत्रता सेनानी पत्रकारों या
उनके वंशजों को
सम्मानित करने और
स्वाधीनता आंदोलन के दौर
से प्रकाशित हो
रहे अखबारों को
विरासत के तौर
पर संरक्षण देने
की जरूरत पर
बल देते हुए
सूचना विभाग को
इस संबंध में
आवश्यक कदम उठाने
के निर्देश दिये
हैं।
रविवार को बीजापुर
गेस्ट हाउस में
वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत
की पुस्तक ‘स्वाधीनता
आंदोलन में उत्तराखंड
की पत्रकारिता’ पुस्तक
के विमोचन समारोह
में मुख्यमंत्री ने
ये आदेश दिये।
उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के
दौर में अंग्रेज
सरकार की तमाम
दमनकारी नीतियों के बावजूद
अत्यन्त विषम परिस्थितियों
में अखबारों का
प्रकाशन करने वाले
पत्रकारों को नमन
किया और कहा
कि ऐसे लोग
हमारे प्रेरणास्रोत हैं
और उनका सम्मान
किया जाना चाहिए।
यदि ऐसे पत्रकार
जीवित हैं तो
उनका अन्यथा उनके
परिवार के सदस्यों
का सम्मान किया
जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री
ने पुराने दस्तावेजों
और पत्रों को
अमूल्य धरोहर बताया और
कहा कि ऐसे
उपलब्ध दस्तावेजों का आधुनिक
तरीके से डिजिटलाइजेशन
कर उनके लिए
एक गैलरी बनाई
जानी चाहिए। साथ
ही उन्होंने छोटे
लेकिन स्वाधीनता संग्राम
के दौर से
प्रकाशित हो रहे
समाचार पत्रों को संरक्षण
और बड़े समाचार
पत्रों की तरह
मान्यता देने की
जरूरत बताई। उन्होंने
कार्यक्रम में मौजूद
सूचना महानिदेशक को
इस संबंध में
आवश्यक कार्यवाही करने के
निर्देश दिये।
पुस्तक के लेखक
जयसिंह रावत ने
कहा कि यह
पुस्तक उनके चार
दशक के पत्रकारिता
के अनुभव पर
आधारित है। जिसमें
अनेक पुराने दस्तावेज
संकलित किये गये
हैं। श्री रावत
ने कहा कि
उत्तराखंड की पत्रकारिता
को दिशा और
दशा देने में
अनेक महान पत्रकारों
ने योगदान किया
है, लेकिन उस
पुस्तक में उन्होंने
केवल उन्हीं पत्रकारों
का उल्लेख किया
है, जो पत्रकार
होने के साथ
ही स्वतंत्रता सेनानी
भी थे। उन्होंने
उम्मीद जताई उत्तराखंड
के इतिहास में
रुचि रखने वालों
की ज्ञान पिपासा
को
शांत करने पर
उनकी पुस्तक कामयाब
साबित होगी और
पत्रकारिता के विद्यार्थियों
के लिए भी
उपयोगी साबित होगी। पुस्तक
के प्रकाशक विनसर
पब्लिशिंग कंपनी के कीर्ति
नवानी ने मुख्यमंत्री
और अतिथियों का
स्वागत किया।
इस मौके पर
राज्य अभिलेखागार की
ओर से पुराने
समाचार पत्रों और दस्तावेजों
की प्रदर्शनी भी
लगाई गई। मुख्यमंत्री
के साथ ही
कार्यक्रम में आये
अन्य लोगों ने
इस प्रदर्शनी में
काफी रुचि ली
और इस तरह
के प्रयास की
प्रशंसा की।
समारोह में गृह
सचिव एवं सूचना
महानिदेश विनोद शर्मा, हार्क
के महेन्द्र कुंवर,
कांग्रेस नेता ब्रिजेश
नवानी, डीएवी के प्राचार्य
देवेन्द्र भसीन, मैती आंदोलन
के कल्याण सिंह
मैती, उत्तराखंड पत्रकार
परिषद दिल्ली के
महासचिव अवतार नेगी, प्रेस
क्लब देहरादून के
अध्यक्ष योगेश भट्ट, मुख्यमंत्री
के मीडिया प्रभारी
सुरेन्द्र कुमार, स्वतंत्र पत्रकार
प्रमोद भारती, लघु सिंचाई
सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष
राजेन्द्र शाह, किसान-खेत मजदूर
कांग्रेस के संयोजक
डॉ. आनन्द सुमन
सिंह, दून नर्सिंग
होम के डॉ.
जयंत नवानी, पत्रकार
दर्शन सिंह रावत,
राजेश भारती, अरुण
श्रीवास्तव, अर्जुन सिंह सहित
प्रदेश भर और
देश के अन्य
हिस्सों से आये
पत्रकार और गणमान्य
व्यक्ति मौजूद थे।
पुस्तक के संबंध
में
उत्तराखंड की पत्रकारिता
के इतिहास को
प्रमाणिक तथ्यों के आधार
पर लिपिबद्ध करने
के साथ ही
स्वाधीनता आन्दोलन में इस
क्षेत्र के समाचारपत्रों
तथा पत्रकारों के
असाधारण योगदान को भी
उजागर कर नयी
पीढ़ी के लिये
एक मार्गदर्शी दस्तावेज
के रूप में
पेश किया है।
इस पुस्तक में
दुर्लभ पुराने अखबारों का
संकलन और तत्कालीन
पत्रकारों और साहित्यकारों
द्वारा आजादी के आन्दोलन
को भड़काने वाले
उस साहित्य को
भी संकलित किया
गया है जिसे
अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रतिबंधित
कर जब्त कर
दिया गया था।
यह प्रतिबंधित साहित्य
राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली की
आलमारियों में बंद
है। विन्सर पब्लिशिंग
कंपनी द्वारा पांच
अध्यायों में प्रकाशित
इस 312 पृष्ठ की पुस्तक
का प्राक्कथन श्रीदेव
सुमन उत्तराखंड विश्व
विद्यालय के कुलपति
प्रोफेसर यू.एस.
रावत ने लिखा
है।
इसके पहले अध्याय
में कलकत्ता से
प्रकाशित ऑगस्टर हिक्की के
बंगाल गजट से
लेकर उत्तराखंड में
आजादी के बाद
के अखबारों के
उदय तक का
प्रमाणिक विवरण दिया गया
है। दूसरे अध्याय
में उत्तराखंड के
अखबारों के स्वाधीनता
आन्दोलन में योगदान
का उल्लेख किया
गया है। इसी
मुख्य अध्याय में
उत्तराखंड में स्वाधीनता
आन्दोलन और उसमें
शामिल पत्रकारों का
विवरण दिया गया
है। इनमें से
केवल परिपूर्णानंद पैन्यूली
के सिवाय बाकी
सभी पत्रकार दिवंगत
हो चुके हैं।
इसमें टिहरी रियासत
और हरिद्वार की
पत्रकारिता के योगदान
का वर्णन अलग
से करने के
साथ ही उत्तराखंड
की पत्रकारिता की
जन्मभूमि मसूरी से निकलने
वाले ऐतिहासिक अखबारों
को अलग से
विवरण दिया गया
है। तीसरे अध्याय
में सामाजिक चेतना
में अखबारों की
भूमिका और चौथे
अध्याय में प्रेस
से संबंधित कुछ
कानूनों का उल्लेख
किया गया है।
पांचवां और अंतिम
अध्याय एक तरह
से उत्तराखंड की
पत्रकारिता का अभिलेखागार
जैसा ही है,
जिसमें ऐतिहासिक अखबारों के
आवरणों/मुखपृष्ठों के साथ
ही आजादी के
आन्दोलन में जनमत
जगा कर आन्दोलन
की ज्वाला भड़काने
के लिये स्वाधीनता
संग्रामी पत्रकारों द्वारा रचे
गये उन गीतों
का संग्रह है
जिन्हें ब्रिटिश राज में
प्रतिबंधित कर जब्त
कर दिया गया
था। ये समस्त
दस्तावेज राष्ट्रीय एवं राज्य
अभिलेखागारों के साथ
ही दिल्ली स्थित
नेहरू स्मारक संग्रहालय
एवं पुस्तकालय आदि
श्रोतों से संकलित
किया गया है।
इससे पूर्व पत्रकार
जयसिंह रावत की
तीन अन्य पुस्तकें
बाजार में आ
चुकी हैं। इनमें
सबसे पहली पुस्तक
ग्रामीण पत्रकारिता पर तथा
दूसरी पुस्तक उत्तराखंड
की जनजातियों पर
है। उनकी तीसरी
पुस्तक हिमालयी राज्यों पर
है।
Subscribe to:
Posts (Atom)